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गाय के घी का दीपक जला कर रखने से वातावरण शुद्ध और सुगन्धित बनाने में सहायक होता हे | |
प्राणायाम
डॉ मधु सूदन व्यास
प्राणायाम में सांस लेने व छोड़ने की विधि को बार-बार दोहराया जाता है।इसे अनुलोम - विलोम भी कहा जाता हे| प्राणायाम को 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहते है। अनुलोम-विलोम को रोज करने से शरीर की सभी नाड़ियों स्वस्थ व निरोग रहती है। इस प्राणायाम को हर उम्र के लोग कर सकते हैं। वृद्धावस्था में अनुलोम-विलोम प्राणायाम योगा करने से गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें दूर होती हैं।
हिन्दू धर्म में देनिक संध्या पूजन (त्रिकाल या तीन समय का संध्या-पूजा) के समय प्रारम्भ में इस क्रिया के द्वारा शारीर और मन को अधिक अक्सिजन प्राप्त कर सबल बनाया जाता हे|
शारीर के लए लाभदायक होने से मनीषियों ने इसे धर्म के साथ जोड़ दिया हे|
पर यह कोई साम्प्रदायिक क्रिया नहीं हे| न ही इसे करने से स्व धर्म प्रभावित होता|
विधि
दरी व कंबल स्वच्छ जगह पर बिछाकर उस पर अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन( जिस तरह से बेठने में सबसे अधिक सुविधा हो) में बैठ जाएं।
कुर्सी पर बैठकर भी उतना ही लाभ होगा| बस लेट कर न करे|
यदि बेठने में कष्ट होता रहा तो कोई लाभ नहीं होगा|
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हिन्दू धर्म में गायत्री मन्त्र के साथ प्राणायाम करने को कहा गया हे ,यह एक प्रकार का समय प्रबंधन ही हे|
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फिर अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से सांस अंदर की ओर भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। उसके बाद उतने ही समय रोक कर, दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और सांस को बाहर निकालें।
अब दायीं नासिका से ही सांस अंदर की ओर 8 की गिनती तक भरे, 8 की गिनती तक रोक कर रखें , और फिर दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।
इस क्रिया को पहले 3 मिनट तक और फिर धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते हुए 10 मिनट तक करें। 10 मिनट से अधिक समय तक इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। हिन्दू धर्म में गायत्री मन्त्र के साथ (मन में बोलते हुए ) प्राणायाम करने को कहा गया हे ,यह एक प्रकार का समय प्रबंधन ही हे| पर साथ ही इससे एक निकली विशेष ध्वनि तरंग अधिक लाभकारी रहती हे|
इस क्रिया को पहले 3 मिनट तक और फिर धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते हुए 10 मिनट तक करें।
10 मिनट से अधिक समय तक इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
हिन्दू धर्म में गायत्री मन्त्र के साथ (मन में बोलते हुए ) प्राणायाम करने को कहा गया हे ,यह एक प्रकार का समय प्रबंधन ही हे| पर साथ ही इससे एक निकली विशेष ध्वनि तरंग अधिक लाभकारी रहती हे|
इस प्रणायाम को सुबह-सुबह खुली हवा में बैठकर करें।
लाभ
इससे शरीर में वात, कफ, पित्त आदि के विकार दूर होते हैं। इससे श्वास-संस्थान को विशेषकर फेपड़ों को अधिक फूलने सुकुड़ने के कारण उनकी कार्यक्षमता बढती हे| रोजाना अनुलोम-विलोम करने से फेफड़े शक्तिशाली बनतेहैं और अधिक आक्सीजन मिलने से रक्त कण (हिमोग्लोबिन ) बड़ने से शरीर में शक्ति मिलती हे ,जिससे शरीर स्वस्थ, कांतिमय एवं शक्तिशाली बनता है, और सबल शारीर ही तो सबकी मूलभूत आवश्यकता हे|
इस प्राणायाम को रोज करने से शरीर में कॉलेस्ट्रोल का स्तर कम होता है। क्योकि आक्सीजन की मिली अधिक मात्रा चर्बी को जलती हे और इनर्जी में परिवर्तित करती हे | यही कॉलेस्ट्रोल कम होने का कारण हे|
अनुलोम-विलोम करते हुए जब हम अधिक आक्सीजन ग्रहण करते हें,उसके साथ रोग प्रतिकारक शक्ति बढती हे| और परजीवी/विषाणु आदि को नष्ट कर सकने की शक्ति उत्पन्न होने से सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों में काफी आराम मिलता है। अनुलोम-विलोम द्वरा हिमोग्लोबिन या रक्त के बड़ने से हृदय को शक्ति मिलती है। इस प्राणायाम के दौरान जब हम गहरी सांस लेते हैं तो शुद्ध वायु हमारे खून के दूषित तत्वों को बाहर निकाल देती है. शुद्ध रक्त शरीर के सभी अंगों में जाकर उन्हें पोषण प्रदान करता है, इससे सारा शरीर सबल बनता हे| अनुलोम-विलोम प्राणायाम सभी आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं और सुविधानुसार इसकी अवधि तय की जा सकती है|
सावधानियां
कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगियों को इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने व छोड़ने में थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।
कुछ लोग समय की कमी के चलते जल्दी-जल्दी सांस भरने और निकालने लगते हैं। इससे वातावरण में फैला धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है।
प्रणायाम के दौरान सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए। प्राणायाम करते समय स्वयं को भी सांस की आवाज नहीं सुनायी देनी चाहिए।
दूषित वातावरण ,दुर्गंधितस्थान, धुंए वाले कमरे में में प्राणायाम नहीं करना चाहिए |
हिन्दू धर्म में गाय के घी का दीपक जला कर रखने से वातावरण शुद्ध और सुगन्धित बनाने में सहायक होता हे |
वर्तमान में मिलने वाले तेज गंध युक्त अगरबत्तियों और धुआ वाले हवन सामग्री का प्रयोग हानिकारक होता हे| इसीलिए हवन करते समय धूम्र रहित ज्वलित अग्नि को ही उपयुक्त माना हे | यदि जलती अग्नि या दीपक के सामने बेथ कर प्राणायाम करना हे तो कमरा पूर्ण खुला हवा के आने जाने के लिए युक्त द्वार /खडकी वाला होना जरुरी हे | इसी कारण पूर्व युग (काल) में हवन या पूजा का स्थान चारो और से खुला हुआ ऊपर छत पर रोशनदान जिसमे से हवा आ-जा सके होता था| वर्तमान कमरों में यह हवन और अग्नि की आहुती का प्रयोग हानी कारक हे | इसी कारण यह घर में निषिद्ध किया गया हे| प्राणायाम भी बंद कमरों में अधिक लाभदायक नहीं होता|
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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