उत्तर -
सेंकडों वर्षों से विदेशियों द्वारा देश पर अधिपत्य कर अपनी चिकित्सा पद्धत्ति
लागु की, इस पद्ध्ति के चिकित्सक वैद्यों को राज्याश्रय
न मिलने से विस्मृत हो गई थी, अब देश की आजादी के बाद
राज्याश्रय मिलने, और लाभकारी होने से सज्ञान में आ रही
है|
प्र- इसे पंचकर्म क्यों कहते हैं? -
प्रश्न -वमनकर्म से चिकित्सा किन किन रोगों के लिए दी जाती है?
उत्तर-
कुष्ठ रोग (leprosy), मधुमेह (Diabetes), राज
यक्ष्मा (Tuberculosis), इर्रीटेबल बोयल सिंड्रोम {Irritable
bowel syndrome (पेट
में दर्द, ऐंठन, भूख न लगना, कब्ज या दस्त लग जाना, जी मिचलाना, असामान्य शोच आना अदि पेट
की समस्याएं)}, उन्माद (mania), अपस्मार या मिर्गी (epilepsy), एनीमिया
(Anemia खून
की कमी), मतली
(nausea), उल्टी (vomiting), मोटापा (obesity), शोफ
(oedema), पुरानी खाँसी (chronic coughing), सांस से संबंधित समस्यायें (breath related problems)
आदि कफ विशेषकर कफ दोष प्रधान रोग वमन से ठीक होते हें|
प्रश्न -
विरेचन कर्म से चिकित्सा किन किन रोगों के लिए दी जाती है?
उत्तर - विरेचन (Virechan)- ज्वर (Fever), बवासीर
(haemorrhoids), भगंदर (fistula), व्रण (ulcer), थयोरोइड
(thyroid), उदर कृमि (intestinal worms), समस्त विकृतियाँ (blemishes), पीलिया
(jaundice), फील पांव (elephantiasis), विवंध (constipation) and अरुचि (anorexia) आदि विशेष कर पित्त दोष प्रमुख रोग|
प्रश्न
-नस्य कर्म से चिकित्सा किन किन रोगों के लिए दी जाती है?
उत्तर -
नस्य कर्म से साइनोसाईतिस (Sinusitis), मुख रोग (mouth diseases), शिर शूल (headache), माइग्रेन
दन्त शूल (pain in teeths), कर्ण शूल (pain in ears), नेत्र शूल (pain
in eyes) हकलाना या
बोलने में अटकाना (fumbling in voice), अर्दित (चेहरे का लकवा facial paralysis), दन्त हर्ष (teeth
sensitivity), और समस्त उर्द्व जत्रुगत रोग (diseases related to neck region) आदि,
प्रश्न -बस्ती कर्म से चिकित्सा किन किन
रोगों के लिए दी जाती है?
उत्तर - बस्ती शिरःशूल (Headache), कटी शूल (backache), जघन शूल, (thighs
related pain), संधि शूल (joints), छाती,
thorax, श्रोणि pelvis स्तन breast, चेहरे का पक्षाघात facial paralysis, अर्धांगघात, (hemiplegia), अधो
या उर्ध्वंग घात ( paraplegia, बहुमुत्रता (oliguria), ऐसे रोगियों को जो वमन विरेचन में असमर्थ हों,
बस्ती चिकित्सा अन्य वमन विरेचन पंचकर्म के स्थान पर सभी रोगों में
की जा सकती है|
प्रश्न -रक्त मोक्षंण से चिकित्सा किन किन
रोगों के लिए दी जाती है?
उत्तर -रक्तमोक्षण- कुष्ट, (Leprosy), सडन
या जहरबाद (septicemia), यकृत विकार (liver
diseases), तिल्कलक (black moles), blemishes, झियां (freckles), शरीर दुर्गन्ध,मोटापा (obesity),उत्क्लेश (vomiturition or belching), खालित्य
(alopecia areata), चर्म रोग, आदि,
प्रश्न
- क्या मालिश करना और भाप आदि से पसीना लाना पंचकर्म है?
उत्तर -
नहीं! ओषधिय घृत, तेल
आदि से मालिश को स्नेहन और
भाष्प आदि उष्ण सेक आदि को स्वेदन कहा जाता है| यह पूर्व कर्म है, अर्थात पंचकर्म के पूर्व
की जाने वाली प्रक्रिया है|
उत्तर-
स्नेह घी तेल आदि चिकनाई वाले पदार्थ को कहते हें| घी तैल आदि से मालिश, घी तैल पिलाना, अथवा शरीर में मुख, कान, नाक,
नेत्र, गुदा, अदि के
माध्यम से चिकनाहट पहुचाना स्नेहन कहता है| शरीर के बाहरी
भाग त्वचा, शिर, आदि माध्यम से की
मालिश, शिरोधरा आदि, स्नेहन "बाह्य स्नेहन,"
एवं मुख आदि से प्रयुक्त स्नेहन "अंत: स्नेहन" कहलाता है|
प्रश्न- दोष क्या
होते हें?
उत्तर-
आयुर्वेद सिद्धांत के अनुसार किसी भी रोग का प्रमुख कारण, या जो रोग के लिए जिम्मेदार हो, वह 'दोष' कहता है| ये "वात,
पित्त, और कफ" तीन होते हें|
प्रश्न-
दूष्य क्या होते हें?
उत्तर-
दोष जिनपर प्रभाव डालते हें या दूषित करते हें वे दूष्य होते हें| दूष्य को शरीर की धातु भी कहते हें| ये धातुएं "रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र" सात होती हें| यदि ये
सभी ठीक ठीक बनते रहें तो अंत में "ओज" जिसे कई आचार्य आठवीं धातु भी
कहते हें|
प्रश्न-
पूर्व कर्म क्या होता है?
उत्तर-
पंचकर्म चिकित्सा करने के पूर्व की जाने वाली प्रक्रिया पूर्व कर्म होती है| इसे प्री- ओपरेटिव कार्य भी कहा जाता है|
प्रश्न-
पंचकर्म के पहिले क्या क्या करना होता है और क्यों?
उत्तर - पंचकर्म चिकित्सा के पहिले
"पाचन" ठीक किया जाता है| यदि पाचन ठीक नहीं तो
प्रयुक्त ओषधि कारगर नहीं होतीं| किस कपडे को रंगने (कलर
करने) के पाहिले धोना जरुरी है| क्योंकि गंदे कपडे पर रंग
नहीं चढ़ता उसी प्रकार पाचन ठीक न होने पर चिकित्सा निष्फल होती है| पाचन के बाद स्नेहन और फिर स्वेदन करते हें|
उत्तर- पसीना लाने की प्रक्रिया ही स्वेदन कहाती है| यह पंचकर्म द्वारा शोधन कार्य के पूर्व कर्म के अंतर्गत आता है| शरीर का पसीना सूखी या गीली दो विधि से लाया जा सकता है, स्वेदन के द्वारा रोगों के कारण बने दोष शरीर के बाहर आ जाते हें या
निकलने के लिए मल-मूत्र आदि के साथ निकलने के लिए सम्बंधित स्थान पर पहुँच जाते
हैं| कुछ दोष जो पसीने के साथ निकलकर भी सम्बंधित रोग को ठीक
कर देते हैं|
प्रश्न- स्वेदन से क्या होता है?
उत्तर-
जीवन का आधार, शरीर के अन्दर सतत चलने वाली चपापचय (मेटाबोलोक)
क्रिया जो भोजन को पचाकर समस्त अंगों का पोषण, शोधन, आदि करती रहती है| प्रक्रिया चलते रहने से कई विष,
अपशिष्ट पदार्थ भी बनते रहते हें| सामान्यत:
यह गन्दगी साँस, पसीना, मल, मूत्र, आदि के द्वारा फेंक दी जाती रहती है| परन्तु खाध्य पदार्थों, श्वास, पानी, आदि के द्वारा अवांछित पदार्थ भी जाने-अनजाने
प्रवेश करते रहते हें, और जो पूरी तरह न निकलकर शरीर के
विभिन्न स्थानों पर जमा होकर रोग का कारण बनते हें, स्वेदन
के पूर्व किये जाने वाली दीपन-पाचन प्रक्रिया से अपचित पदार्थ पचकर एकत्र होता है,
एवं स्नेहन {वाह्य मालिश एवं अंत:पान (घृत,
तेल आदि पीना)} की सहायता निकल जाने जैसी
अवस्था में आकर निकलने के लिए तत्पर होते हें| इनमें से भी
कुछ तो स्वयं ही बाहर आ जाते हें, जो नहीं आ पाते वे स्वेदन
की प्रक्रिया से श्वास मार्ग, मल-मूत्र मार्ग, त्वचा मार्ग (पसीना निकलने के छिद्र), आदि से वे विष
(टोक्सिन), एवं अपशिष्ट, अवांछित
पदार्थ पिघलकर, शरीर से निकल जाते है|
प्रश्न-
क्या स्वेदन से सभी दोष निकल जाते हें?
उत्तर- स्वेदन से वे चलायमान अर्थात अस्थिर होते हें, जो
आसानी से निकले जा सकते हें| स्वेदन से शरीर के कतिपय या जड जमाये हुए दोष, यदि नहीं निकलते
तो पंचकर्म की अन्य प्रक्रिया वमन, विरेचन, बस्ती, रक्तमोक्षण आदि से आसानी से निकाले जा सकते
है|
प्रश्न-
क्या पंचकर्म और प्राकृतिक चिकित्सा एक है?
उत्तर -
नहीं दोनों अलग चिकित्सा पद्धति हैं| हालाँकि दोनों ही प्राचीन आयुर्वेद से सम्बन्धित है| पंचकर्म में जड़ी बूटी, ओषधि,
घृत, तेल, मिटटी,
पानी, हवा,अग्नि. आदि
सभी द्रव्य प्रयोग किये जाते हें, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा
मिटटी, धूप, पानी, हवा, और एकांत इन पांच पर ही निर्भर होती है| सभी द्रव्य प्रयोग होने से पंचकर्म चिकित्सा अधिक प्रभावकारी और सक्षम होती है|
क्रमश; अन्य और प्रश्न उत्तर जारी रहेंगे - -