मालिश के बारे में सभी अच्छी तरह से जानते हें, और अनुभव भी है की है की सिर, शरीर आदि स्थानों की
मालिश से करने से तत्काल असर होता है, सिर शरीर आदि दर्द से आराम मिलता है, नींद आ
जाती है, तनाव दूर हो जाता है| हमारे देश में जन्मते ही बच्चे एवं माता की मालिश
एक परपरा है| इसके लाभ के बारे में सभी जानते हें|
आयुर्वेद शास्त्र में मालिश को 'अभ्यंग' के नाम से जाना जाता है| जहाँ मालिश अनघड तरीके से किया जाता है| सामान्यत: हमारे देश में मालिश करने वाले सभी विधियां को सम्मलित करके करते हें| इस प्रकार से अभ्यंग, मर्दन, उद्वर्तन, संवहन, भी शामिल हो जाते हें और प्रत्येक के लाभ-हानि भी अलग-अलग होते हें|
यदि यह मालिश आयुर्वेदोक्त तकनीकी अनुसार की जाये तो रोगों के अनुसार अधिक लाभ लिया जा सकता है| साथ ही विशेषज्ञ द्वारा, या विशेषज्ञ की देखरेख में, विशेष रोग परस्थिति एवं विशेष तैल ओषधि विशेष आदि का
प्रयोग यदि प्रक्रिया में किया जाये तो अधिक लाभ होगा ही| क्योंकि आयुर्वेद तकनीक में यह
सब शामिल होता है|
जैसा की पूर्व लेख में लिखा है की, 'अभ्यंग' का अर्थ शरीर
पर तैल आदि लगाना (या मालिश), सामान्यत: अभ्यंग के अंतर्गत
ही 'लेप', 'मर्दन', 'उद्वर्तन', आदि भी आते हें परन्तु सभी में थोडा
थोडा प्रक्रिया भेद होता है| अभ्यंग आराम से सुख पूर्वक
अनुलोम गति से अर्थात रोम (बाल) उगने की दिशा) में, किया
जाता है, जबकि 'उद्वर्तन' प्रतिलोम या विपरीत दिशा में थोडा ताकत से मालिश है| मर्दन में अधिक बल देकर जोर से मालिश की
जाती है| जब हलके हाथ से सहलते हुए विशेषकर कोमल बच्चों आदि
को मालिश की जाती है,तव इसे संवहन कहते हें| मालिश के इन प्रत्येक विधि का विशेष
लाभ भी मिलता है|
अभ्यंग (मालिश) & शारीरिक व्यायाम
स्नेहन या मालिश
शारीरिक व्यायाम के पहले या बाद में किया जा सकता है|
मालिश से
शरीर का रक्त परिसंचरण में सुधार होता है, और बाद व्यायाम करने से अंग सञ्चालन से
विभिन्न जोड़ों की कठोरता निकल जाती है| मालिश के बाद व्यायाम करने से पाचन
संस्थान(gastro
intestinal tract) में एकत्र पाचन क्रिया से उत्पन्न अपशिष्ट (मल) (metabolic
waste) को हटाने में सहायता मिलती है|
अभ्यंग के लाभ
1.
जरा हर -बुढ़ापा [senility, aging] -
प्रतिदिन अभ्यंग करने से बुढ़ापा देर से आता है, रक्त मांस आदि समस्त धातुओं को बल
मिलता है|
2.
श्रम हर अर्थात थकावट
से मुक्ति- अधिक चलने,परिश्रम या काम करने,आदि से आई थकावट दूर होती है|
3.
वात हर-समस्त शरीर, या
हाथ पेर, जोड़, आदि किसी भाग में दर्द का कारण वात बढ़ना होता है, स्नेहन से वात का
शमन (शांति) होने से दर्द मिट जाता है|
4.
द्रष्टि वृधि – स्नेहन
से रक्त संचार ठीक होने से आँखों की रौशनी बढती है, नजर का धुंधलापन दूर होता है|
5.
पुष्टिकर- रस,
रक्त,मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र धातुओं का पोषण होता है, इससे रोग प्रतिकार
शक्ति बढती है, शरीर पुष्ट और वलवान बनता है| समस्त धातुओं का पोषण होने से ओज तेज
भी बढ़ता है|
6.
आयुष्यकर – धातु परिपोषण
सम्यक (ठीक) होने से स्वस्थावस्था में वृधि हो आयु बढती है|
7.
स्वप्नकर- स्नेहन या
मालिश से अच्छी नींद आती है|
8.
त्वक-दाढर्यकर - त्वचा (स्किन) कोमल, निरोगी और चमकदार बनती
है|
9.
क्लेश-सहत्व- अभ्यंग या
मालिश से कष्ट सहने की क्षमता बढ़ती है|
10.
अभिघात–सहत्व – नित्य
अभ्यंग करने, करवाने वालों को अभिघात या चोट आदि लगने पर दर्द, या कष्ट नहीं महसूस
होता|
11.
कफ-वात निरोधन- सुश्रुत
अनुसार अभ्यंग से कफ और वात दोनों कम होते हें|
12.
मृजावर्ण-बलप्रद- त्वचा
शुद्ध होती है रंग निखर उठता है, बल में वृद्धि होती है|
अभ्यंग
के योग्य (किसका किया जा सकता है अभ्यंग या किन रोगों में इसका लाभ मिलता है)-
ü क्रश और क्षीण शरीर वाले
ü अधिक परिश्रम या व्यायाम करने वाले|
ü अति मध्य पान किये(जिनने शराब अधिक पी ली हो)|
ü अति व्यवाई (मैथुन से थके)|
ü चिंता-तनाव ग्रस्त|
ü वृद्ध और बालक|
ü अनिद्रा के रोगी|
ü स्वस्थ व्यक्ति जो स्वास्थ्य का इच्छुक हो|
ü कटी शूल(कमर दर्द) रोगी|
ü आर्दित (चहरे पर लकवा) रोगी|
ü बाल पक्षाघात (पोलियो ग्रस्त)
ü मांस क्षय सूखा रोग ग्रस्त (muscular emaciation)|
अभ्यंग
के अयोग्य अभ्यंग के अनुपयुक्त (Contra- indication) आष्टांग ह्रदय सूत्र 2/9 के अनुसार व्यक्ति या रोगी को जब ज्वर (बुखार), या बदहजमी (indigestion अपच)हो, से
व्यक्ति को जिसे वमन(उल्टी) विरेचन (दस्त होना), या वस्ती (एनिमा) दिया हो, एसे रोग जो
अति पोषण (over
nourishment) के कारण हुए हों और कफ दोष से
उत्पन्न रोग से प्रभवित रोगी की मालिश या अभ्यंग से शरीर में कफ धातु बढती है, इसलिए कफ दोष से उत्पन्न रोग से प्रभवित रोगी को मालिश करने से रोग और बढ़ जाता है| (किन किन रोगों और परिस्थिति में स्नेहन या मालिश नहीं करें, इससे हानि हो सकती है)-
û नव ज्वर पीड़ित|
û आम जन्य रोग (अपच के कारण)|
û कफज रोग|
û अजीर्ण (indigestion) रोगी|
û जिनका शोधन हुआ हो|
û उदर (पैट) रोगी|
û अतिसार (diarrhea दस्त लगना) रोगी|
û अस्थि भग्न (हड्डी टूट गई हो) |
û वमन या विरेचन के बाद|
अभ्यंग कैसे करते हें?
अभ्यंग विधि- अभ्यंग
आराम से सुख पूर्वक अनुलोम गति से अर्थात रोम (बाल) उगने की दिशा) में हथेलियों से
हलका दवाव बनाते हुए करना चाहिए| अभ्यंग सिर पर, दोनों पेरों में, कान पर (कर्ण
पूरण सहित), विशेषत: किया जाता है| शरीर के चोंड़े भाग, हाथ और पैरों पर लम्बाई में
ऊपर से नीचे हथेलियों से, सन्धि (जोड़), कमर,कन्धा, प्रष्ठ (पीठ),हथेली, पादतल, पर वर्तुलाकार
(गोल घुमाते हुए), अभ्यंग करना चाहिए|
अभ्यंग का मूल उद्धेश्य उस स्थान के अंगों
की गति बढ़ाना होता है| यह कार्य केवल पढ़कर नहीं किया जा सकता प्रत्यक्ष देख और
करके ही सीखा जा सकता है| {पंचकर्म इस कार्य के लिए सहायक कार्यकर्त्ता (पेरामेडिकल) प्रशिक्षण एक वर्ष का होता है}
अभ्यंग कब
करना चाहिए?
रोगी के
खाए हुए भोजन का पाचन हो गया हो, या भूख लगने लगी हो, किया जाना चाहिए।
अभ्यंग के
समय यदि गर्मी का मौसम हो तो दिन का ठंडा समय, और सर्द मोसम में दिन का उष्ण समय
चुनना चाहिए|
अभ्यंग के
लिए तिल,सरसों, या औषधीय/ मुर्छित तेल लिया जाना चाहिए।
सामान्यत:
प्रात: काल का लगभग 9 बजे स्नान से पूर्व हमेशा मालिश के लिए उपयुक्त समय होता है|
अभ्यंग के लिए उपयुक्त तैल आदि? अभ्यंग सामान्यत: किसी तैल से किया जाता है| विशेष परिस्थिति में घृत, वसा, आदि अन्य द्रव्यों का भी प्रयोग किया जाता है| चिकित्सक रोग और दोष, के अनुसार अभ्यंग के लिए ओषधि सिद्ध तैल/घृत आदि का चयन करता है| वात व्याधियों में नारायण, महानारायण, विषगर्भ, निर्गुन्डी, आदि आदि तैल का प्रयोग करते हें|
सर्वांग
अभ्यंग की अवस्थायें| Body positions in Ayurvedic massage.
आयुर्वेदिक अभ्यंग हेतु शरीर की स्थितियां|
प्रत्येक अंग का
अभ्यंग भली प्रकार हो इसके लिए निम्न आठ शरीर की अवस्थाओं में किया जाता है|
समान्यत: शरीर का वह भाग जो उस अवस्था में दिखाई देता है, उस पर अभ्यंग किया जाता
है|
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Body positions in Ayurvedic massage.
आयुर्वेदिक अभ्यंग हेतु शरीर की स्थितियां|
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1. पैरों मोढ़कर बैठे हुए आसन में - बेठे हुए, या पैरों को 90 अंश पर मोड़कर हाथ दोनों और फ़ले हुए, और पैर सीधा रख बिठाकर -सिर,
चेहरा, ग्रीवा, हाथ, हथेली, पेर, पगतल (चक्राकार), पर|
2.
सीधा लिटा कर- वक्ष (छाती), पेट (उदर), पैर, कमर, दोनों जंघा, बाजू (शरीर के सामने भाग.)
3.
बाई करवट लिटा कर-
सम्पूर्ण बायाँ पार्श्व भाग, कर्ण पाली, कर्ण पूरण|
4.
पीठ के बल लिटा कर-
ग्रीवा भाग, पीठ, नितम्ब, जंघा, पिंडलिया से परों तक सम्पूर्ण|
5. दाएँ पार्श्व
स्थिति में लेटाकर {Lying
down in right lateral position.} शरीर के बाएँ पार्श्व भाग, बाएं हाथ,
बाएं जांघ, बाएं पैर व बाएं पगतल।
6. पुन: पीठ के बल –पूर्वानुसार|
7. अंत में पुन: बिठाकर
पूर्वानुसार|
बाह्य
सर्वाभ्यंग में शरीर का कोई भाग छूटना नहीं चाहिए| गुप्तांग के आसपास अभ्यंग हेतु
स्वयं रोगी कर सकता है| आँखों में अभ्यंग द्रवादी न जाने पाए| कान में यदि कोई रोग
हो तो रोगानुसार करें| नाक में ‘नस्य विधि’ से स्नेहन किया जाता है|
बाद
में 30 मिनिट विश्राम, स्वेदन तुरंत किया जा सकता है| स्वेदन न करना हो तो स्नान
30 मिनिट बाद|
अभ्यंग
की दिशा (Direction
of massage) अभ्यंग हमेशा नीचे की ओर अर्थात ह्रदय के विपरीत
दिशा की और किया जाना चाहिए, यह सामान्यत अनुलोम (रोम या बाल उगने की दिशा) में होता है। जोड़ों के ऊपर अभ्यंग चक्राकार हाथ घुमाते हुए करना
चाहिए। ऊपरी और निचले शरीर भाग पर कोमलता से चक्राकार हाथ घुमाते हुए करें|
अभ्यंग
के लिए कितना दबाव डालें यह इस बात पर निर्भर है की ह्रदय स्तिथी और उस
स्थान का रक्त परिसंचरण कैसा है, व्यक्ति की मांसपेशियां, लसीका वाहनियां (Lymphatic
drainage), मर्म अंग (Vital parts), जोड़ों (joints) आदि, के अनुसार या बाल /वृद्ध /स्त्री, या
सामान्य पुरुष की शारिरिक सामर्थ्य के अनुसार न्यूनाधिक दवाब के साथ अभ्यंग किया
जा सकता है|
अभ्यंग काल (समय)-अभ्यंग
प्रत्येक अवस्था में 5 से 10 मिनिट {न्यूनतम 35 मिनिट} करना श्रेष्ट होता है| शिर,
हाथ-पेर,और पीठ पर कम से कम 15 मिनिट अभ्यंग होना चाहिए|
- "सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाये आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराये- -- -- इस चम्पी में बड़े- बढे गुण – लाख मर्ज की एक दवा है काहे घबराए" गाना गाते और सिर पर मालिश की आवाज लगते हुए कलाकार जोनी वाकर को सभी ने सुना/ देखा होगा| कहना न होगा की हम सब सिर की मालिश के विषय में अच्छी तरह परिचित है| आदि काल से ही प्रत्येक भारत वासी इसके लाभों से परिचित है| -यही शिरोभ्यंग या शिरो-अभ्यंग है| आयुर्वेद चिकित्सा में बाह्य स्नेहन के अंतर्गत मूर्ध तैल श्रेणी में शिरोभ्यंग, किया जाता है| पूरा लेख पढ़े- Shiro-Abhyang [शिरोभ्यंग] Head Massage.
Abhyng (अभ्यंग) - The Massage of Ayurveda.
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