Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |
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दाँत सड़ते हें मसूडे से खून आता है? प्रश्नो के उत्तर

प्रश्न - मेरी पत्नी को एसिड बनाता है, और दांत सड़ते हें, मसूडे से खून आता है, क्या करना चाहिए? 
मूल प्रश्न- {meri wife ko tijab banti h or dant sadte h masudo me khun ata h kya karna chahiy}

टूथ पेस्ट हो सकता है बच्चों के पेट दर्द का कारण?

टूथ पेस्ट हो सकता है बच्चों के पेट दर्द का कारण? 
यूं तो पेट का दर्द एक साधारण समस्‍या है, लेकिन टूथपेस्ट इस्‍तेमाल करते समय इस बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि बच्‍चा उसे निगल तो नहीं रहा। बाजार में विभिन्न प्रकार के स्वाद और सुगंधयुक्त पेस्ट बिक रहे हैं, विशेषकर फ्लोराइड युक्त, वे बच्‍चे के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं। इस कारण बच्चे मुंह धोने के दौरान इसे निगल जाते हैं या चाटते हैं।

दांतों सम्बन्धी सामान्य बीमारियाँ

   दन्त रोग   दांतों सम्बन्धी सामान्य बीमारियाँ
अधिकांश  लोगों को कभी-न-कभी दांतों से संबंधित परेशानी होती ही  है। लेकिन नियम पूर्वक प्रतिदिन कम से कम दो बार प्रात:और रात्रि सोने से पूर्व साफ-सफाई के साथ-साथ हर छह महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें, तो दांतों की ज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है। दांतों में ठंडा-गरम लगना, कीड़ा लगना (कैविटी), पायरिया (मसूड़ों से खून आना), सांस में बदबू और दांतों का बदरंग पीला काला होना जैसी तकलीफें  आम पाई जाती हें।
दांत में दर्द {गंडूष या कवल से चिकित्सा}
दांत का दर्द बीमारी नहीं, बीमारी का लक्षण है। दर्द की अलग-अलग वजहें हो सकती हैं, मसलन कैविटी, मसूड़ों में सूजन, ठंडा-गरम लगना आदि। ज्यादातर मामलों में दर्द की वजह कैविटी होती है। दरअसल, मीठी और स्टार्च वाली चीजों से बैक्टीरिया पैदा होता है, जिससे दांतों खराब होने लगते हैं और उनमें सूराख हो जाता है। इसे ही कीड़ा लगना या कैविटी कहते हैं। लार और दांतों का गठन भी कई बार कैविटी की वजह बन जाता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई न करने पर उन पर परत जम जाती है। इसमें जमा बैक्टीरिया टॉक्सिंस बनाते हैं, जो दांतों को नुकसान पहुंचाते हैं।
 कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार-बार न खाएं। खाने के बाद ब्रश करें। ऐसा मुमकिन न हो तो अच्छी तरह कुल्ला करें।
कैविटी  
अगर दांतों पर काले-भूरे धब्बे नजर आने लगें, खाना फंसने लगे और ठंडा-गरम लगने लगे तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में फौरन डॉक्टर के पास जाएं। शुरुआत में ही फिलिंग कराने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।

राहत के लिए: अगर दांत में दर्द हो रहा हो तो बहुत ठंडा-गरम न खाएं। इसके अलावा, एक कप गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक +एक चुटकी फिटकरी  डालकर कुल्ला करें। इससे कैविटी में फंसा खाना निकल जाएगा। जहां दर्द है, वहां लौंग के तेल में भिगोकर रुई का फाहा रख सकते हैं।  ध्यान रहे कि तेल दर्द की जगह पर ही लगे, आसपास नहीं। तेल नहीं है, तो लौंग भी उस दांत के नीचे दबा सकते हैं। जरूरत पड़ने पर पैरासिटामोल, कॉम्बिफ्लेम या आइबो-प्रोफिन बेस्ड इनालजेसिक ले सकते हैं। हालांकि कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह कर लें। कई लोग एस्प्रिन लेते हैं, जोकि ब्लीडिंग की वजह बन सकती है। जिन्हें अस्थमा है, वे कॉम्बिफ्लेम की बजाय वोवरॉन लें। जितना जल्दी हो सके, डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।
दूसरी वजहों के लिए: अगर दर्द मसूड़ों में सूजन की वजह से है तो भी गुनगुने पानी में नमक या डिस्प्रिन डालकर कुल्ला करने से राहत मिल सकती है। मसूड़ों के दर्द में गलती से भी लौंग का तेल न लगाएं। इससे मसूड़ों में जलन हो सकती है और छाले बन सकते हैं। फौरी राहत के लिए ऊपर लिखे गए पेनकिलर्स में से ले सकते हैं लेकिन जल्द-से-जल्द डॉक्टर के पास जाकर प्रॉपर इलाज कराना बेहतर है।
सांस में बदबू
आमतौर पर लोग मानते हैं कि पेट खराब होने या साइनस की प्रॉब्लम होने से सांस में बदबू होती है, लेकिन 95 फीसदी मामलों में मसूड़ों और दांतों की ढंग से सफाई न होने और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। खाने के बाद जब हम ढंग से दांत साफ नहीं करते तो खाने के बचे हुए हिस्सों पर बैक्टीरिया सल्फर कंपाउंड बनाता है, जिससे सांस में बदबू हो जाती है। यह बदबू मुंह से अंदर, जीभ के पीछे वाले हिस्से और मसूड़ों के निचले हिस्से में बनती है। लहसुन, प्याज जैसी चीजें भी बदबू की वजह बनती है। पेट में कीड़े होने, सही से डाइजेशन न होने, गले में इन्फेक्शन होने और दांतों में कीड़ा लगने पर भी सांस में बदबू हो सकती है। जिस वजह से सांस में बदबू है, उसी के मुताबिक इलाज किया जाता है। फिर भी फौरन राहत के लिए सौंफ, लौंग, तुलसी या पुदीने के पत्ते चबा सकते हैं। जिनको सांस में बदबू की शिकायत रहती है, उन्हें मिंट आदि की शुगर-फ्री चुइंग-गम चबानी चाहिए। इससे ज्यादा स्लाइवा बनता है, जो बदबू को कम करता है। ज्यादा पानी पीने से भी स्लाइवा का मोटापन कम होता है और सांस की बदबू कम होनी की उम्मीद होती है।
कैसे करें ब्रश
यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं होता इसलिए दिन में कम-से-कम दो बार ब्रश जरूर करें। रात में सोने से पहले और सुबह उठकर ब्रश जरूर करें। अगर रात में ब्रश किया है तो नाश्ता करने के बाद भी ब्रश कर सकते हैं। दांतों को तीन-चार मिनट ब्रश जरूर करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं, जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं, उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है। दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे-धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी-बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। जीभ को भी टंग क्लीनर के बजाय ब्रश से साफ करना चाहिए। टंग क्लीनर इस्तेमाल करें तो इस तरह कि ब्लड न निकले। उंगली या ब्रश से धीरे-धीरे मसूड़ों की मालिश करें। इससे वे मजबूत होते हैं।
कैसा ब्रश इस्तेमाल करें
ब्रश (सेंसटिव) सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। हार्ड ब्रश या मीडियम ब्रश से दांत कट जाते हैं। दो-तीन महीने में या ब्रशल्स फैलने पर उससे पहले ही ब्रश बदल देना चाहिए। रोजाना गर्म पानी में भिगोने से ब्रशल्स सॉफ्ट बने रहते हैं।
फ्लॉसिंग 
फ्लॉसिंग  करें
दांतों के बीच में फंसे खाने के कणों को निकालने के लिए रोजाना फ्लॉसिंग (प्लास्टिक के धागे से) जरूर करें। हालांकि कुछ डॉक्टर मानते हैं कि खाना फंसने पर ही फ्लॉसिंग करें, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर रोजाना फ्लॉसिंग की सलाह देते हैं। इससे दांतों के उस हिस्से की भी सफाई हो जाती है, जहां ब्रश नहीं पहुंच पाता।
कौन-सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करें
दांतों की सफाई में टूथपेस्ट लुब्रिकेशन और ताजगी का काम करता है। टूथपेस्ट में फ्लॉराइड हो तो वह दांतों को कीड़ा लगने से बचाता है। लेकिन ज्यादा फ्लोराइड से भी दांतों पर दाग भी पड़ने लगते हैं। 6 साल से छोटे बच्चों को भी फ्लोराइड वाला पेस्ट यूज नहीं करना चाहिए। जिनको कैविटी ज्यादा होती हैं, वे जरूर फ्लोराइडवाला टूथपेस्ट यूज करें। मटर के दाने के बराबर टूथपेस्ट काफी होता है।
टूथपाउडर और मंजन: टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं, बल्कि ब्रश से। मंजन दांतों की ऊपरी परत को घिस देता है।
दातुन:  कभी-कभार नीम, बबूल या जामुन (खासकर शुगर के मरीज) की दातुन कर सकते हैं। दातुन में मौजूद एस्ट्रिंजेंट व टोनर से फौरी तौर पर अच्छा महसूस होता है, लेकिन दातुन पूरी तरह सफाई कर पाती है। ज्यादा यूज करने से दांतों का इनमेल घिस जाता है और मसूड़ों में भी चोट लग सकती है।
माउथवॉश : माउथवॉश के इस्तेमाल को लेकर एक राय नहीं है। डॉक्टर सांस की बदबू आदि में माउथवॉश यूज करने की सलाह देते हैं तो डॉक्टर से जरूर पूछें कि कितने दिन यूज करना है? ज्यादा यूज करने से इनमें मौजूद केमिकल दांतों पर दाग की वजह बन सकते हैं। ध्यान रहे कि अल्कोहल बेस्ड माउथवॉश बिल्कुल यूज न करें। हेक्सिडीन, प्लाक्स, पैरियोगार्ड आदि माउथवॉश यूज कर सकते हैं। माउथवॉश रात में सोने से पहले इस्तेमाल करें।
छालों के लिए
टेंशन, एलर्जी, विटामिन की कमी, पाचन क्रिया सही न होना, किसी दांत का बेहद तीखा होना, खराब ब्रश से मुंह में कट लगना, डेंचर का बेहद शार्प होना या मुंह में चोट लगना आदि छालों की वजह हो सकती हैं। आमतौर पर छाले 6-7 दिन में खुद ही ठीक हो जाते हैं।
क्या करें: पानी खूब पिएं। डाइजेशन सुधारने की कोशिश करें। शहद या ग्लिसरीन में थोड़ा बोरिक पाउडर मिलाकर भी छालों पर लगा सकते हैं। ध्यान रखें कि यह मिक्सचर सिर्फ छालों पर लगाएं। ग्लिसरीन बेस्ड गम पेस्ट या दर्द में राहत देनेवाला जेल लगा सकते हैं। साथ में, सुबह-शाम पांच दिन तक मल्टी-विटामिन कैप्सूल (बी कॉम्पलेक्स या विटामिन सी) का कैप्सूल खाएं। हिंग्वाष्टक चूर्ण ३-से ५ ग्राम भोजन के पाहिले या लवणभास्कर ३से ५ ग्राम भोजन के बाद हाजमा ठीक करने के लिए अच्छा हे।
ध्यान दें : मुंह काफी सेंसटिव है। इसमें कोई भी चोट या कैविटी बड़ी बीमारी की वजह बन सकता है। 15 दिन तक छाले ठीक न हों तो डॉक्टर के पास जरूर जाएं।
ठंडा-गरम लगने पर
दांत के टूटने-पीसने, किरकिराने, मसूड़ों की जड़ें दिखने पर ठंडा-गरम लगने लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस जाते हैं और मुंह में संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
क्या करें : ज्यादा ठंडा-गरम न खाएं। आमतौर पर डॉक्टर ठंडा-गरम लगने पर मेडिकेटिड टूथपेस्ट व माउथ वॉश की सलाह देते हैं। इनमें कोलगेट सेंसटिव, सिक्वेल एडी आदि यूज कर सकते हैं। अगर हफ्ते-10 दिन इस्तेमाल करने पर भी संवेदनशीलता बनी रहती है तो डॉक्टर को दिखाएं। ये पेस्ट या माउथवॉश एक महीने से ज्यादा यूज न करें।
घरेलू नुस्खे
चमकते दांतों के लिए क्या करें
बेकिंग सोडा और हाइड्रोजन परोक्साइज को मिलाकर पेस्ट बना लें। हफ्ते में एक बार इससे दांत साफ करें।
 संतरे के छिलके को अंदर की तरफ से हल्के हाथ से दांतों पर रगड़ने से दांत साफ हो जाते हैं। ऐसा कभी-कभी करें
नीबू का रस और सेंधा नमक बराबर मात्रा में मिला लें। दांतों के पीले हिस्से पर धीरे-धीरे रगड़ें। इसे मसूड़ों पर मलना ज्यादा फायदेमंद है।
एक कप पानी में आधा चम्मच सेंधा नमक मिला लें। रात में सोने से पहले इससे कुल्ला करें।
दर्द होने पर उस दांत पर लौंग का तेल लगा सकते हैं या लौंग दबा सकते हैं। मसूड़ों पर लौंग करने से वाइट पैच हो सकता है।
- तुलसी का पेस्ट बनाएं। उसमें थोड़ी चीनी मिला लें। अगर डायबीटीज है तो चीनी की बजाय शहद मिला लें। धीरे-धीरे मसूड़ों पर मसल लें। सांस और दांत दोनों अच्छे होंगे।
- सौंफ चबाएं से बदबू से फौरी राहत मिलती है।
- एक कप पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर गार्गल करें। शहद हीलिंग का काम करता है।
नोट : कोई भी तरीका हफ्ते में दो बार से ज्यादा इस्तेमाल न करें। फिटकरी या सोडा दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाते हैं। विटामिन-सी का ज्यादा इस्तेमाल भी सही नहीं है।
बच्चों के दांतों की देखभाल
छोटे बच्चों की दूध की बॉटल अच्छे से साफ करें। सोते हुए उनके मुंह में बोतल न छोड़ें। हाथ से धीरे-धीरे उनके मसूड़ों की मालिश करें। छह साल से नीचे के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट यूज न करने दें। उन्हें चॉकलेट या चूइंग-गम कम खानें दें।
ओरल हेल्थ अगर ठीक नहीं है तो दिल की सेहत भी खराब हो सकती है। स्टडी के मुताबिक हार्ट अटैक के 40 फीसदी मरीजों को मसूड़ों की दिक्कत पाई गई। असल में, जब दांत खराब होते हैं या मसूड़ों में सूजन होती है तो धमनियां सुकड़ जाती हैं। वजह, दांतों में मौजूद बैक्टीरिया ब्लड वेसल्स में जाकर उनमें भी प्लाक बना देते हैं और वे संकरी हो जाती हैं। दिल की बीमारियों के लिए रिस्क फैक्टर्स में डायबीटीज, हाइपर टेंशन, स्मोकिंग, ड्रिंकिंग के साथ-साथ दांत खराब होना भी जुड़ गया है। यहां तक कि जिन महिलाओं को मसूड़ों की दिक्कत होती है, उनके मिस कैरिज या प्री-मैच्योर बच्चा होने की आशंका बढ़ जाती है।
टेंशन का दांतों पर असर
साफ-सफाई न रखने पर दांतों में दिक्कत होने के बारे में तो ज्यादातर लोग जानते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इससे अनजान हैं कि टेंशन का हमारे दांतों पर सीधा असर पड़ता है। मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है। सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है, वहीं मुस्कराहट से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है, जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से तेजाब भी बनता है, जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
मुंह सूखने की समस्या होने पर स्वाइवा कम हो जाता है। इससे स्वाद घट जाता है और भूख भी कम लगती है। दांतों में टूट-फूट बढ़ जाती है। लुब्रिकेशन की कमी से डेंचर लगाने में दिक्कत हो सकती है। दांतों में संवेदनशीलता बढ़ सकती है। बर्निंग माउथ सिंड्रोम (बीएमएस) में जीभ, होंठ, तालु या पूरे मुंह में जलन महसूस होती है। यह समस्या आमतौर पर उम्रदराज महिलाओं में होती है। इसमें मरीज को खाना तीखा लगता है, मुंह सूख जाता है और जीभ का हिस्सा सुन्न हो जाता है।

 मसूड़ों पर काफी टारटर बनता हे, जिससे क्रोनिक इन्फेक्शन हो कर  और मसूड़ों से खून निकलने लगाता । मुंह से बदबू के साथ-साथ मसूड़े भी घटने लगते । दांत भी गिर सकते हें ।   आयुर्वेदिक गोली जी-32 (एलारसिन)  पीसकर मसूड़ों पर मसाज करें , नीचे से ऊपर, और ऊपर से नीचे की ओर। मसाज करने से तुरंत लाभ होगा।  हफ्ते में दो बार कर सकतें हें । यह टैब्लेट थोड़ी रफ है, इसलिए किसी बारीक टूथ पउडर में मिलाकर सॉफ्ट हाथों से करें।
क्या करें
- रोजाना दो बार ब्रश करें। सोने से पहले और जागने के बाद। हर बार कम से कम तीन मिनट तक जरूर ब्रश करें।
- जीभ को टंग क्लीनर या ब्रश से साफ करें।
- दांतों के बीच फंसी गंदगी को साफ करने के लिए फ्लॉस का इस्तेमाल करें।
- कुछ भी खाने-पीने के बाद कुल्ला करें।
- अगर रात में सोते हुए दांत चबाने की आदत है तो गार्ड्स पहनें। इससे दांत घिसेंगे नहीं।
- हर छह महीने में दांत जरूर चेक कराएं। हमारी सेहत पूरी तरह खाने और खाना दांतों की सेहत पर निर्भर है।
- शुगर फ्री चुइंग-गम चबाएं। यह स्वाइवा बढ़ाती है, मसल्स को मजबूत करती है और दांतों को भी साफ करती है।
क्या न करें
- दांतों पर कुछ भी रगड़े नहीं। दांतों पर रगड़ने से इनेमल खराब होने का खतरा होता है।
- हल्के हाथ से उंगलियों से मसूड़ों की मसाज नियमित रूप से करें।
- जंक और पैक्ड फूड ज्यादा न खाएं क्योंकि इनमें मौजूद शुगर कंटेंट पर बैक्टीरिया जल्दी अटैक करते हैं।
- बार-बार मीठा न खाएं। च्यूइंग-गम, टॉफी व दांतों में चिपकनेवाली चीजों से परहेज करें।
- बिस्कुट, चिप्स, ब्रेड जैसी सॉफ्ट चीजें न खाएं। कच्ची सब्जियां खाने से दांत मजबूत होते हैं।
- नीबू जैसी खट्टी चीजें ज्यादा न खाएं। इनसे दांतों पर बुरा असर पड़ता है।
- पान-तंबाकू, गुटका आदि के सेवन से बचें। चाय-कॉफी भी कम पिएं।
- ज्यादा कोल्ड ड्रिंक्स पीने से दांतों पर दाग-धब्बे आ सकते हैं।
- दांतों में धागे आदि न फंसाएं। न ही कोई नुकीली चीज दांतों के बीच डालें।
- खाली पेट न रहें। खाली पेट से सांसों में बदबू हो सकती है।
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|

नीम के स्वास्थ्य लाभ- गुडी पड़वा विशेष

नीम के पेड़ (Azadirachta इंडिका) एक उष्णकटिबंधीय सदाबहार 
वृक्ष भारत की  मूल प्रजाति है और कुछ अन्य दक्षिण पूर्वी देशों में 
भी पाया है| भारत में नीम अपनी चिकित्सा बहुमुखी प्रतिभा की 
वजह से "गांव फार्मेसी" या "गावों का वेध्य" के रूप में भी जाना 
जाता है, और यह इसके औषधीय गुणों के कारण 4,000 से अधिक 
वर्षों से इसका उपयोगआयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जा रहा हे। 
 नीम भी कहा जाने वाले लेतीं शब्द  'एरिस्टा'  एक संस्कृत शब्द है
 जिसका अर्थ हे " पूर्ण  और अविनाशी " |. बीज, छाल और पत्तियों 
यौगिकों के परिक्षण से  यह साबित हो चूका हे की यह  एंटीसेप्टिक,
(antiseptic,) (anti-ulcer), ज्वरनाशक(antipyretic) विषाणु नाशक 
(antiviral) , सुजन  नाशक (anti-inflammatory)और ऐंटिफंगल
(antifungal) हैं। संस्कृत नाम 'निम्बा' शब्द 'निम्बती  स्वास्थ्यंददाति'
 अर्थात जो अच्छा स्वास्थ्य देने वाला हे।
 Health For All  

 नीम के स्वास्थ्य लाभ
गुडी पड़वा पर विशेष 
शुभकामना सहित  
आज नीम की कोमल पत्ती खाने की परंपरा हे।

नीम का तेल और नीम के पत्ते दोनों ही त्वचा के लिए अद्भुत सिद्ध हुई हे ।



नीम तेल शुष्क त्वचा की खुजली दूर करने और सुजन या लाली, जलन मिटाने चिकनाहट लाने (soothes.) एवं सामान्य त्वचा की स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा में सुधार, करने, जीवाणु संक्रमण का मुकाबला करने और मुँहासे, फोड़े, और अल्सर ठीक करने हेतु आत्याधिक सफल सिद्ध हुई हे। परन्तु व्यावसायिक कारणों से मल्टी नेशनल कम्पनियाँ नीम का नहीं  इससे बने उत्पादों के बैक्टीरिया प्रतिरोधी गुणो का प्रचार कर रहीं हें, और भारी मुनाफा कमा रही हें।

नीम के लाभ लेने से हम पर्यावरण के लिए हानिकारक ख़राब रसायनों और कीटनाशकों से बच सकते हें।
चर्म रोग,खुजली,एक्जिमा,सिर के जूँ,आदी के लिए कोई खुद को कीटनाशकों में पानी में गोता क्यों लगाना चाहेगा, या corticosteroids के द्वारा हमेशा के लिए शरीर को हानि क्यों पहुचना चाहेगा।
जबकि वह  नीम के इन अद्भुद गुणों का पूरा उपयोग कर लाभ ले सकता हो। 
पर इससे व्यापारियों को हानी तो पहुचेगी ही!और वे इसका विरोध भी करेंगे या कम से कम प्रचार तो होने ही नहीं देंगे।कुछ झूठी भ्रम पैदा करने वाली जानकारी शोध के नाम पर देकर उपयोग करने वालों को डरना जरुर चाहेंगे।
 यह तो भला हो जागरूक भारतीयों का की विदेशी/और व्यापारी  इसका पेटेंट हांसिल नहीं कर पाए अन्यथा यह हमारा प्राचीन वेद्या नीम हमको विदेशो को अधिक धन चुका कर खरीदना पड़ता। हमारे पास सिर्फ करने को "गर्व"रह जाता की नीम को हमारे बाप दादा सदियों से प्रयोग करते आ रहे हें!"  
लेकिन फिर भी हमारे हुक्मरान अभी इसकी आश्चर्यजनक गुणों की और से बेखबर हें। शायद उनको 'आर्थिक लाभ' नहीं हो पा रहा हे? परमात्मा उन्हें सदबुद्धि दे !

 नीम का प्रयोग अक्सर हम  एक उपरोक्त  चिकित्सा के लिए ही करते रहे हें, इसका अन्य  बेहतर उपयोग खेतों में प्रयुक्त किए गए कीटाणु नाशको के रूप में भी किया जाना चाहिए।
 नीम का तेल - बालों को चमकदार, स्वस्थ बाल के लिए,सूखापन दूर करने  के लिए कारगर हे। समय से पहले सफ़ेद होने से (graying) से रोकता है और यहां तक ​​कि बालों के झड़ने के लिए कुछ हद तक मदद कर सकता  हैं। इससे बालों में जू अदि क्रमियों से मुक्ति मिलती हे।



नीम के तेल का भी एक महान गुण यह भी हे की यह  नाखून में स्निग्धता  बनाता है, और भंगुर नाखून(टूटने और विकृत होने की समस्या) को हटा कर उन्हें नया-सुन्दर वर्ण प्रदान करता हे।इससे नाखून के कवक(फंगल) से छुटकारा मिल जाता हे।



नीम का तेल और नीम के पत्ते का सबसे बड़ा लाभ है कि वे अपने सामान्य स्वास्थ्य, आपकी त्वचा और शरीर की स्थिति, और अपने प्रणाली के लिए हानि नहीं करता। हम तो चाहे तो इसके उपयोग कर के शारीरिक प्रतिरक्षा  प्रणाली को सक्षम कर त्वचा हालत से लड़ने के लिए या किसी भी त्वचा से संबंधित समस्याओं को रोकने के लिए, सक्षम हो सकते हें।


नीम के पत्ते लेने के लाभ

नीम पत्ती कई आयुर्वेदिक उपचार में एक आवश्यक एवं बहुतायत से प्रयोग किया जाने वाला घटक है। इसे हम सब भारतीय पोराणिक काल से(हजारों साल)  जानाते है। नीम लेने केऔर भी कई फायदे हैं, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित कर सक्रिय करता है। यकृत की क्रिया में (funcion) में सुधार कर  रक्त  का शोधन (detoxifies) कर  एक स्वस्थ मानसिक प्रसन्नता, एवं श्वसन और पाचन तंत्र को ठीक करने के लिए बहुत सक्षम हे। इसी कारण यह यह मलेरिया और मधुमेह के  इलाज के लिए प्रसिद्ध है।

पश्चिमी दुनिया के लोग प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने और विशेष रूप से त्वचा की समस्याओं के लिए, आजकल ज्यादातर नीम चाय पी रहे हें, या नीम कैप्सूल ले रहे हें। 


नीम के औषधीय लाभ-
नीम के बीज, छाल और पत्तियों के यौगिकों के परिक्षण से यह साबित हो चूका हे की यह एंटीसेप्टिक,(antiseptic,) अल्सर नाशक (anti-ulcer), ज्वरनाशक(antipyretic) विषाणु नाशक(antiviral), सुजन नाशक (anti-inflammatory)और ऐंटिफंगल(antifungal) हैं। 


नीम के संस्कृत नाम 'निम्बा' शब्द 'निम्बती स्वास्थ्यंददाति' से ही बना हे।अर्थात जो अच्छा स्वास्थ्य देने वाला हे।



नीम परिवार के लिए एक जन्म नियंत्रण हेतु परिवार नियोजन के प्राकृतिक साधन के रूप में उपयोगी सिद्ध हुआ हे, और इसकी बनी औषधियां की उपयोगिता WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने भी स्वीकार कर ली हे।

मुहं और दांतों की  देखभाल और दंतरोग (periodontal) रोग में नीम का बहुत लाभ होता हे।  भारत में लोग टूथब्रश के रूप में, मुख-दन्त की  या क्रमी से बने छेद (cavities) आदी की समस्याओं से बचने के लिए, नीम पेड़ से बनाई दातून का इस्तेमाल सदियों से करते रहें हें। 

वर्तमान में अब नीम का उपयोग  कई उत्पाद टूथपेस्ट,मंजन(toothpowder,) कवल धारण (mouthwash,) और दूसरों अनेको रूप में कर रहे हैं।



नीम पर शोध भी  किया जा रहा है। इससे एक और जहां  इलाज के लिए विकल्पों का विस्तार हुआ हे, एड्स, कैंसर, मलेरिया, मधुमेह, हेपेटाइटिस, ग्रहणी अल्सर, गुर्दे संबंधी विकार, फंगल संक्रमण, खमीर संक्रमण, एसटीडी, त्वचा रोग skin disordes,दंतरोग periodontal dieases , mononucleosis, रक्त विकार, तंत्रिका संबंधी विकार, एलर्जी आदी के लिए विस्तृत विविधता पूर्ण हानी रहित उपलब्धयां मिली हें। इन उपलब्धयों ने आयुर्वेद और हमरी प्राचीन अन्य चिकित्सा पद्धति की और विश्व का ध्यान आकर्षित किया हे।

पशुओं के लिए भी लाभकारी हे 
नीम डाल कर उबला पानी-या नीम साबुन या शैम्पू के साथ अपने कुत्ते और बिल्ली स्नान कृमियों और संक्रमण ( infestacion) और चोट-कटने, ticks और fleas, दाद, कण और कई त्वचा विकारों या फंगल संक्रमण को रोकने के लिए चमत्कारी उपयोगी और सस्ता साधन हे।



अपने और अपने जानवरों पर नीम के साथ उत्पादों का उपयोग करके, आप आर्थिक लाभ के साथ हानिकारक रसायनों और दवाओं, के दुष्प्रभाव  से बच कर प्रतिरक्षा प्रणाली पर बिना प्रभाव डाले एक स्वस्थ जीवन जीने का आनंद ले सकते हें।



माली और किसानों के लिए नीम के लाभ

नीम से बने कीटनाशक जैविक विषरहित  होने से मनुष्य के लिए और अन्य स्तनधारियों, पक्षियों, मक्खियों के साथ और अन्य कीड़ों फायदेमंद होते हैं।

नीम का तेल बाहर नीम के पेड़ से प्राप्त बीज से बनाया जाता है.इसे एक जैविक कीटनाशक स्प्रे के रूप में  उपयोग किया जानाअधिक अच्छा हे।   इसके अतिरिक्त, नीम का तेल औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन के रूप  में इस्तेमाल किया जाना लाभकारी हे,जिसे आप स्वयं बना कर कर लाभ उठायें।


 एक उत्पाद के जरिये (Dyna-Gro) बताते हैं कि कैसे नीम तेल एक जैविक कीटनाशक के रूप में काम करता है: इससे "यह 'कीड़े हार्मोनल संतुलन को बाधित किये बिना मर जाते हैं।



नीम तेल स्प्रे भी एक निजी कीट repellant के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. नीम मच्छरों को दूर रखता है और यह आपकी त्वचा के लिए अच्छा है! 
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कोल्‍ड सोर और संक्रमण क्‍या है


मुँह की परेशानियां और मौखिक घाव सूजन, धब्बो या मुंह, होंठ या जीभ पर छालों रूप में उत्पन्न हो सकते हैं। मुँह के घाव (सोर्ज) कई प्रकार के होते हैं। सबसे सामान्य मुख घाव, कैंकर सोर्ज, कॉल्ड सोर्ज, ल्युकेप्लेकिया और कैंडिडिएसिस (थ्रश) हैं। मुहं के घाव का होना काफी सामान्य है। मौखिक घाव जलन और दर्द पैदा कर सकते हैं और खाना और बोलना मुश्किल कर सकते हैं। अगर आपके मुंह के घाव एक सप्ताह से अधिक समय तक बने रहते हैं तो अपने दंत चिकित्सक से परामर्श लीजिए। आपके दंत चिकित्सक मुहं के घावों के स्थायी रहने के कारण का पता लगाने के लिए बायोप्सी (जांच के लिए ऊतक निकालना) का सुझाव दे सकते हैं (कैंसर और एचआइवी जैसी गंभीर रोग की संभावना से निजात पाने लिए)।

अगर आपमें निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं तो ये एक मुहं के दर्द या मौखिक घाव का संकेत हो सकता है।
कैंकर सोर्ज: कैंकर सोर्स मुहं के भीतर सफेद सूजन या घाव के रूप में उजागर होते हैं जिसके चारों ओर लालिमा का एक क्षेत्र होता है। कैंकर सोर्स कॉल्ड सोर्ज की तरह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित नहीं होते, कॉल्ड सोर्ज हरपीज़ वायरस द्वारा उत्पन्न होता है और संक्रामक होता है। कैंकर सोर्स मुहं के अंदर देखा जाता है जबकि कॉल्ड सोर्स प्रायः मुहं के बाहर उत्पन्न होता है। कैंकर सोर्स प्रायः आवर्तक होते हैं। घाव छोटे, बड़े या हरपीटिफॉर्म (एकाधिक, झुंडों या समूहों में) हो सकते हैं। कैंकर सोर्स का सटीक कारण अज्ञात है परन्तु कुछ विशेषज्ञों के अनुसार प्रतिरोधी तंत्र की समस्याएं, बैक्टीरिया या वायरस का इसमें योगदान हो सकता है। तनाव, आघात, एलर्जी, सिगरेट धूम्रपान, लोहे या अन्य विटामिन की कमी, और आनुवंशिकता संभवतः वे कारक हैं जो जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
कॉल्ड सोर्ज: कॉल्ड सोर्ज को फीवर ब्लिस्टर्स या हरपीज़ सिम्प्लेक्स भी कहा जाता है। वे पीड़ादायक, द्रव्य से भरे फफोलों के समूह के रूप में नज़र आते हैं। कॉल्ड सोर्स अधिकतर होठों के क्षेत्र, नाक के नीचे या ठोड़ी के गिर्द पाए जाते हैं। इन मौखिक घावों का कारण हरपीज़ वायरस है और ये बहुत संक्रामक होते हैं। अगर आप एक बार हरपीज़ वायरस से संक्रमित हो जाते हैं तो ये शरीर में हमेशा के लिए रह जाता है। कुछ लोगों में ये वायरस निष्क्रिय रहता है और अन्य में यह आवर्तक हमलों का कारण हो सकता है।
ल्यूकेप्लेकिया: ल्यूकेप्लेकिया अधिकतर आंतरिक गाल, मसूड़ों और जीभ पर एक मोटे, सफ़ेद धब्बे की तरह नज़र आता है। ये अधिकतर धूम्रपान करने वालों और तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों में पाया जाता है। अन्य संभावित, कारण गलत फिट किये गए डेन्चर, टूटे दाँत और गाल का चबाया जाना हैं। लगभग 5 प्रतिशत रोगियों में ल्यूकेप्लेकिया कैंसर बन सकता है। अगर आप धूमपान छोड़ देते हैं तो ल्यूकेप्लेकिया ठीक हो सकता है।
कैंडिडिएसिस: कैंडिडिएसिस या मौखिक थ्रश का कारण फंगल संक्रमण (कैंडिडा ऐल्बिकन्स ए यीस्ट) है। ये मुँह की नम सतह पर एक क्रीमी, पीले-सफ़ेद या लाल रंग के धब्बे की नज़र आता है। ओरल थ्रश पीड़ादायक होता है। ये मुख्यतः उन लोगों में होता है जो डेन्चर पहनते हैं, काफी दिनों से एंटीबायोटिक ले रहे हैं, किसी कमजोर करने वाली बिमारी (जैसे कैंसर , एचआईवी) से ग्रस्त हैं और जिनका प्रतिरोधी तंत्र कमजोर है। नवजातों में भी ओरल थ्रश विकसित होना का खतरा होता है।

कोल्‍ड सोर और संक्रमण की चिकित्सा अवस्था के प्रकार पर निर्भर करती है।

कैंकर सोर्ज: इन मौखिक घावों को ठीक होने में 7-10 दिन लग सकते हैं। आपके डॉक्टर अस्थायी राहत के लिए सामयिक ओइंटमेंट्स और दर्द निवारकों का निर्देश दे सकते हैं। कभी-कभार सूक्ष्मजीवीरोधी मुख घोल (माउथ रिन्सीज़) जलन को कम करने में मदद कर सकते हैं। आगामी (सेकेन्डरी) संक्रमण की रोकथाम या उपचार के लिए एंटीबायोटिक दवायें निर्धारित की जा सकती हैं।

कॉल्ड सोर्ज: ये मौखिक घाव ठीक होने में लगभग 7 दिन ले सकते हैं। दाद संक्रमण के लिए कोई भी स्थायी उपचार नहीं है। कॉल्ड सोर्ज बार-बार हो सकते हैं। कॉल्ड सोर्ज के लिए विभिन्न उत्प्रेरक कारक भावनात्मक परेशानी, धूप से संपर्क, एलर्जी या बुखार हैं। आपके चिकित्सक अस्थायी राहत के लिए टॉपिकल अनेस्थेटिक और आवर्तक संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए एंटीवायरल दवाओं का निर्देश दे सकते हैं।

लयूकेप्लेकिया: ल्युकेप्लेकिया के उपचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड घाव पैदा करने वाले कारकों से छुटकारा पाना है जैसे तम्बाकू का उपयोग बंद करना, गलत फिट किये डेन्चर को निकाल देना। आपके दन्त चिकित्सक प्रकार, स्थिति और आकार के आधार पर समय-समय पर यानी प्रति तीन से छह महीनों में आपकी अवस्था का पुनरावलोकन करेंगे।

कैंडिडिएसिस: कैंडिडिआसिस के उपचार के लिए घाव उत्पन्न करने वाले कारकों से छुटकारा पाने की आवश्यकता होती है। जैसे:
डेन्चरस् की नियमित सफाई और रात में इन्हें निकाल देना
यदि एंटीबायोटिक या मौखिक गर्भनिरोधक अंतर्निहित कारण हैं तो इन्हें बंद करना, खुराक कम कर देना या उपचार में परिवर्तन सहायक हो सकता है।
यदि आपका मुहं सूखा रहता है तो सैलाइवा के अन्य विकल्प सहायक हो सकते हैं
इसके अलावा अच्छी मौखिक स्वच्छता बनाए रखें। कवकरोधी दवाओं की जरूरत हो सकती है।

-आयुष्मान भव:

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दांत दर्द


   दांत दर्द जब भी जिसे को होता हेवही जानता हे दांत दर्द बहुत पीड़ादायक होता है। दांत दर्द कई कारणों से हो सकता हे| मसलन किसी तरह के संक्रमण से या डाईबिटिज की वजह से या अधिकतर ठीक ढंग से दांतों की साफ सफाई नहीं करते रहने से धीरे धीरे जड़ तक सडन से या संक्रमण  से सुजन  हो  जाती  हे और  यही  से निरंतर  दर्द  का  प्रारंभ  होता हे
यूँ तो दांत दर्द के लिए कुछ ऐलोपैथिक दवाइयां होती हैं लेकिन उनके बहुत हीं कुप्रभाव होते हैं| जिसकी वजह से लोग चाहते हैं की कुछ घरेलू उपचार से इसे ठीक कर लिया जाये।अगर आप भी दांत दर्द से परेशान है एवं इसके उपचार के लिए प्रभावकारी घरेलू उपाय चाहते हैं तो नीचे दिए गए उपायों पर अमल करें। दांत दर्द के उपचार के लिए प्रभावकारी घरेलू उपाय हींग  - हमारे  रसोईघर  में  होने  वाला  यह  मसाला  तात्कालिक  लाभ  के  लिए  जाना  जाता  हे |
 दादी 
 दादी  नानी  से जब पुच्छे  तो  वे  भी दांत दर्द के घरेलू उपचार के  लिए  हींग का नाम सबसे पहले  लेती  हें |  ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह दांत दर्द से तुरंत मुक्ति देता है। इसका इस्तेमाल करना भी बेहद आसन है। आपको चुटकी भर हींग को मौसम्मी के रस में मिलाकर उसे रुई में लेकर अपने दर्द करने वाले दांत के पास रखना है। चूँकि हींग लगभग हर घर में पाया जाता है इसलिए दांत दर्द के लिए यह उपाय बहुत सुलभ, सरल एवं कारगर माना जाता है।
लौंग- यह  भी लगभग  हर  घर  में  उपलब्ध  होती   हे |
लौंग में औषधीय गुण होते हैं जो बैकटीरिया एवं अन्य कीटाणु (जर्म्स, जीवाणु) का नाश करते हैं। चूँकि दांत दर्द का मुख्य कारण बैकटीरिया एवं अन्य कीटाणु का पनपना होता है इसलिए लौंग के उपयोग से बैकटीरिया एवं अन्य कीटाणु का नाश होता है जिससे दांत दर्द गायब होने लगता है। घरेलू उपचार में लौंग को उस दांत के पास रखा जाता है जिसमें दर्द होता है। लेकिन दर्द कम होने की प्रक्रिया थोड़ी धीमी होती है इसलिए इसमें धैर्य की जरुरत होती है। प्याज-प्याज (कांदा ) दांत दर्द के लिए एक उत्तम घरेलू उपचार है। जो व्यक्ति रोजाना कच्चा प्याज खाते हैं उन्हें दांत दर्द की शिकायत होने की संभावना कम रहती है क्योंकि प्याज में कुछ ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो मुंह के जर्म्स, जीवाणु एवं बैकटीरिया को नष्ट कर देते हैं। अगर आपके दांत में दर्द है तो प्याज के टुकड़े को दांत के पास रखें अथवा प्याज चबाएं। ऐसा करने के कुछ हीं देर बाद आपको आराम महसूस होने लगेगा। लहसुन-लहसुन भी दांत दर्द में बहुत आराम पहुंचाता है। असल में लहसुन में एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं जो अनेकों प्रकार के संक्रमण से लड़ने की क्षमता रखते हैं। अगर आपका दांत दर्द किसी प्रकार के संक्रमण की वजह से होगा तो लहसुन उस संक्रमण को दूर कर देगा जिससे आपका दांत दर्द भी ठीक हो जायेगा। इसके लिए आप लहसुन की दो तीन कली को कच्चा चबा जायें। आप चाहें तो लहसुन को काट कर या पीस कर अपने दर्द करते हुए दांत के पास रख सकते हैं। लहसुन में एलीसिन होता है जो दांत के पास के बैकटीरिया, जर्म्स, जीवाणु इत्यादि को नष्ट कर देता है। लेकिन लहसुन को काटने या पीसने के बाद तुरंत इस्तेमाल कर लें। ज्यादा देर खुले में रहने देने से एलीसिन उड़ जाता है जिससे बगैर आपको ज्यादा फायदा नहीं होता। गरारे   (गार्गल) करें गरारे   भी दांत दर्द दूर करने का एक अति उत्तम घरेलू उपाय है। हल्के गर्म पानी में एक चम्मच नमक लेकर गड़गड़ा करें। ऐसे नमकीन पानी से दिन में दो चार बार कुल्ला किया करें। नमक के संपर्क में आने के बाद मुंह के जर्म्स, जीवाणु एवं बैकटीरिया नष्ट हो जाते हैं जिसकी वजह से आपको दर्द से तुरंत राहत मिलती है।पिपरमेंट +कपूर+अजवायन का सत या  फूल   बराबर   मात्र  में  मिलकर  रखने  से रस( लिक्विड )  बन  जाती  हे यह  अमृतधारा के  नाम   से  भी मिलती  हे ,इसको  रुई  में  भिगो  कर  लगाने  से तत्काल  आराम  मिलता  हे| सलाह--जब दांत दर्द हो तब मीठे पदार्थ खाने या पीने से परहेज करें क्योंकि ये बैकटीरिया, जर्म्स, जीवाणु इत्यादि को और बढ़ावा देते है जिनसे आपकी तकलीफ और बढती है।अगर उपरोक्त घरेलू उपचार से दांत दर्द कम न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। उपरोक्त उपचार अस्थाई दांत दर्द या मामूली दांत दर्द के लिए होते हैं। अगर आपको जिंजीवाईटीज जैसी दांत की कोई समस्या हो तो दवाईयाँ अथवा डाक्टरी निरीक्षण /देखभाल जरुरी है।

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कब और कैसे करें ब्रश

कब और कैसे करें ब्रश
यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं होता इसलिए दिन में कम-से-कम दो बार ब्रश जरूर करें। रात में सोने से पहले और सुबह उठकर ब्रश जरूर करें। अगर रात में ब्रश किया है तो नाश्ता करने के बाद भी ब्रश कर सकते हैं। दांतों को तीन-चार मिनट ब्रश जरूर करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं, जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं, उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है। दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे-धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी-बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। जीभ को भी टंग क्लीनर के बजाय ब्रश से साफ करना चाहिए। टंग क्लीनर इस्तेमाल करें तो इस तरह कि ब्लड न निकले। उंगली या ब्रश से धीरे-धीरे मसूड़ों की मालिश करें। इससे वे मजबूत होते हैं।
कैसा ब्रश इस्तेमाल करें
ब्रश (सेंसटिव) सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। हार्ड ब्रश या मीडियम ब्रश से दांत कट जाते हैं। दो-तीन महीने में या ब्रशल्स फैलने पर उससे पहले ही ब्रश बदल देना चाहिए। रोजाना गर्म पानी में भिगोने से ब्रशल्स सॉफ्ट बने रहते हैं।


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दांत में दर्द

· दांत में दर्द
करीब 90 फीसदी लोगों को कभी-न-कभी दांतों से संबंधित परेशानी होती है। लेकिन ढंग से साफ-सफाई के साथ-साथ हर छह महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें तो दांतों की ज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक रोका जा सकता है। दांतों में ठंडा-गरम लगना, कीड़ा लगना (कैविटी), पायरिया (मसूड़ों से खून आना), सांस में बदबू और दांतों का बदरंग होना जैसी बीमारियां आम हैं
दांत का दर्द बीमारी नहीं, बीमारी का लक्षण है। दर्द की अलग-अलग वजहें हो सकती हैं, मसलन कैविटी, मसूड़ों में सूजन, ठंडा-गरम लगना आदि। ज्यादातर मामलों में दर्द की वजह कैविटी होती है। दरअसल, मीठी और स्टार्च वाली चीजों से बैक्टीरिया पैदा होता है, जिससे दांतों खराब होने लगते हैं और उनमें सूराख हो जाता है। इसे ही कीड़ा लगना या कैविटी कहते हैं। लार और दांतों का गठन भी कई बार कैविटी की वजह बन जाता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई न करने पर उन पर परत जम जाती है। इसमें जमा बैक्टीरिया टॉक्सिंस बनाते हैं, जो दांतों को नुकसान पहुंचाते हैं।
कैसे बचें : कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार-बार न खाएं। खाने के बाद ब्रश करें। ऐसा मुमकिन न हो तो अच्छी तरह कुल्ला करें।
कैसे पहचानें: अगर दांतों पर काले-भूरे धब्बे नजर आने लगें, खाना फंसने लगे और ठंडा-गरम लगने लगे तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में फौरन डॉक्टर के पास जाएं। शुरुआत में ही फिलिंग कराने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।
राहत के लिए: अगर दांत में दर्द हो रहा हो तो बहुत ठंडा-गरम न खाएं। इसके अलावा, एक कप गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक डालकर कुल्ला करें। इससे कैविटी में फंसा खाना निकल जाएगा। जहां दर्द है, वहां लौंग के तेल में भिगोकर रुई का फाहा रख सकते हैं। यह तेल केमिस्ट से मिल जाता है। ध्यान रहे कि तेल दर्द की जगह पर ही लगे, आसपास नहीं। तेल नहीं है, तो लौंग भी उस दांत के नीचे दबा सकते हैं। जरूरत पड़ने पर पैरासिटामोल, कॉम्बिफ्लेम या आइबो-प्रोफिन बेस्ड इनालजेसिक ले सकते हैं। हालांकि कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से सलाह कर लें। कई लोग एस्प्रिन लेते हैं, जोकि ब्लीडिंग की वजह बन सकती है। जिन्हें अस्थमा है, वे कॉम्बिफ्लेम की बजाय वोवरॉन लें। जितना जल्दी हो सके, डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।
दूसरी वजहों के लिए: अगर दर्द मसूड़ों में सूजन की वजह से है तो भी गुनगुने पानी में नमक या डिस्प्रिन डालकर कुल्ला करने से राहत मिल सकती है। मसूड़ों के दर्द में गलती से भी लौंग का तेल न लगाएं। इससे मसूड़ों में जलन हो सकती है और छाले बन सकते हैं। फौरी राहत के लिए ऊपर लिखे गए पेनकिलर्स में से ले सकते हैं लेकिन जल्द-से-जल्द डॉक्टर के पास जाकर प्रॉपर इलाज कराना बेहतर है। 

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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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