गृध्रसी या
साईटिका की चिकित्सा करें घर पर|
कोविड 19
के संक्रमण त्रासदी ने आयुर्वेदिक चिकित्सा के महत्त्व को भारत के जन जन तक पहुंचा
दिया है| आज देश का लगभग प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में आयुर्वेदिक चिकित्सा
का लाभ ले रहा है| आयुर्वेद चिकित्सा केवल व्यावसायिक नहीं है यह रसोईघर से ही
प्रारम्भ हो जाती है, इसी कारण इसके महत्त्व को समझने में देर लगी|
यूँ तो
पूर्ण आयुर्वेदिक चिकित्सा जिसमें, पंचकर्म, शल्य आयुर्वेद, रस चिकित्सा, काष्ठ
ओषधि चिकित्सा आदि आदि कई अधिक विषय एसे हैं जिनमें बिना आयुर्वेद स्नातक और
विशेषज्ञ आयुर्वेद के सलाह के चिकित्सा संभव नहीं है|
हम यहाँ
कुछ एसे आयुर्वेद चिकित्सा विधियाँ प्रस्तुत कर रहें है जिन्हें आप अपने घर पर
स्वयं करके बिना हानि के लाभ ले सकते है, यह हो सकता है की कुछ लाभ कम मिले| यदि इसे आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श के साथ
करेंगें तो अधिक लाभ होगा|
निम्न चिकित्सा से एलोपेथिक आदि चिकित्सा (दवा कहते रहने तक आराम फिर कष्ट शुरू) द्वारा कभी ठीक न हो पाने वाला यह रोग तीन माह की चिकित्सा से हमेशा के लिए ठीक किया जा सकेगा|
Sciatica,
Ischialgia, गृध्रसी, कटिस्नायुशूल, पृथुस्नायुशूल, आदि नामो से जाना जाने वाला यह
रोग सभी अन्य चिकित्सा पद्धतियों में कष्ट साध्य है, जब तक
दर्द की दवा खाते रहें ठीक रहें, बाद में तकलीफ फिर शुरू, और एलोपेथिक दवा के कारण
एसिडिटी, लीवर किडनी और मुत्रादी की संभावित समस्याएं मुफ्त में, जिनकी चिकित्सा
के लिए और तलाश करें नया डाक्टर|
परन्तु आयुर्वेदिक
पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से अति शीघ्र ठीक किया जा सकता है| {इस रोग विषयक जानने के लिए देखें:-
इस रोग में
सामान्यत: विवंध (सक्त लेट्रिन आना या रोज न आना) या कब्ज (खुलकर न आना) एक बड़ा
कारण हो सकता है|
शोच प्रवृत्ति (हाजत) बनी रहती| इसलिए रोगी को चिकित्सा में इस कब्ज या विवन्ध का कारण अमीबारुग्णता (amebiasis)
, आंत्र शोथ, (कोलाइटिस), आदि जान उसे ठीक करना चाहिए| आंत्र में इस मलावरोध
के प्रभाव से रीड की हड्डी के स्नायु जो कमर से लेकर परों के अंतिम सिरे तक स्थित
होते हें, प्रभावित होते है इससे करेंट की तरह दर्द की लहर
चलती रहती है
इसके लिया
रोगी को चिकित्सा के एक दिन पूर्व गर्म एरंड तेल 40 से 75
ग्राम तक (रोगी के वल अनुसार) विरेचन
देकर कोष्ट शुद्ध करना ही चाहिए| एरण्ड तेल का विरेचन
पूर्ण सुरक्षित है,यह बच्चो और गर्भवती महिलाओं के लिए भी बिना शक दिया जा सकता
है| अरंड तेल की एक वयस्क के लिए मात्रा 50 से 75 कम न हो|
इस रोग में
आप निम्न चिकित्सा घर पर स्वयं किसी की सहायता से कर सकते है|
पत्र पिंड
स्वेद करें- लगभग 10 से 15 दिन :-
इसमें कई
प्रकार की ताजा बनस्पतियों के पत्तों के कल्क ( मोटी चटनी) को एक सूती कपडे में
पोटली की तरह से बांध कर पिंड जैसा बना कर इस माध्यम से स्वेदन (सिकाई) करने को
पत्र पिंड स्वेद कहा जाता है|
यह संधिवात, संधि शूल, ग्रध्रसी, पक्षाघात,
संधि शोथ, बाल शोष, आदि
में किया जाता है|
इसके लिए
निम्न अनुसार पोटली बनाते है|
क्रम :-
उपयुक्त
वायु के आवागमन से युक्त,
उजाले से भरपूर, साफ़- स्वच्छ, पवित्र स्थान जहां सीधे हवा, धूल, न आती हो एसा स्थान|
आवश्यक तेल, ओषधि पत्र, आदि संग्रह||
गेस , चूल्हा, लोहे का तवा, सूती
कपड़ा, तपेली, चम्मच, आदि संग्रह
पोटली
निर्माण|
रोगी
परिक्षण ज्वर,
रक्त चाप अधिक या कम, बेचेनी, आदि न हो|
रोगी को
मानसिक रूप से चिकित्सा के लिए तैयार करना|
पोटली
निर्माण |
पत्र पिंड पोटली निर्माण- निर्गुन्डी पत्र
, धतुरा पत्र , अर्क (आंकड़ा) पत्र, सहजन पत्र, (जितने से दो बिल्ब फल के आकार की बन सकें) लेकर, एक लोहे की कड़ाई में कोई भी अथवा स्नेहन के लिए प्रयोग में लाये जा रहे तेल में से 20 -25 ग्राम, एवं 200 gm पानी मिलकर, सब्जी की तरह गर्म करें| जब पत्र नरम हो जाएँ तब उनकी चित्रानुसार दो पोटली बना लें| शेष बचा हुआ पत्तों का पानी एक चोडे पात्र में भर कर रख लें| यह पत्र रस मिला पानी स्वेदन के समय पोटली को सूखने से बचाने के लिए बार बार इसमें पोटली डुबो कर प्रयोग किया जा सकेगा|स्नेहन:-
पोटली से स्वदन के पूर्व समस्त प्रभावित अंग को तेल से अच्छी तरह स्निघ करना
आवश्यक होता है,
यदि शुष्क त्वचा पर स्वेदन किया जायेगा तो जलन, दाह, हानि होगी |
रोगी को
प्रात: भोजन के पूर्व (नाश्ता जलपान आदि के बाद), सुखासन में
उल्टा लेटाकर किसी भी वात शामक तैल (जैसे महानारायण
तेल, विषगर्भ तेल, निर्गुन्डी तेल आदि)
से प्रभावित पैर को, कमर से लिकर नीचे पेर तक
चारों और अच्छी तरह 10 - से 15
मिनिट, स्नेहन ( ऊपर से नीचे एक दिशा में
मालिश) करना चाहिए, स्नेहन में
लगभग 15 से 25 ग्राम तक तेल प्रयुक्त
हो सकता है|
जोड़ कर नाडी यंत्र की तरह प्रयोग कर सकते हैं) यदि नाडी स्वेद (देखें कैसे करें) की व्यवस्था नहीं हो तो इन्ही पत्तों आदि को पानी में उबाल कर एक मुलायम साफ़ धुले हुए सूती कपडे को इस पानी में भिगो कर पूरी तरह निचोड़ कर फिर गर्म गर्म 15 मिनिट करें| इससे उसकी भाप से स्वेदन (सिकाई) होगी| भाप से स्वेदन के पश्चात एक लोहे के मोटे तवे को गेस आदि पर गर्म करें, तवे में थोडा तेल डाल कर पोटली को उस पर घुमाते हुए (जिससे कपड़ा जल न जाये)गर्म करें, गर्म पोटली को अपने दुसरे हाथ के पीछे स्पर्श कर अनुभव करें के कहीं अधिक गर्म पोटली तो नहीं है (अन्यथा रोगी को जलने का खतरा होता है) सहने योग्य गर्म होने पर कमरे से लेकर नीचे एडी तक क्रमशः सिकाई करें| एक स्थान पर अधिक देर न करें इससे जलने का खतरा हो सकता है| आवशयकता अनुसार रोगी को सीधे या करवट, कर स्वेदन करें|
लगभग 10 से 20 मिनिट तक रोगी सहनशक्ति के अनुसार प्रक्रिया
करें|
8 से 10 दिन तक रोज इसी प्रकार से पत्र पिंड स्वेदन
करें| प्रतिदिन नई ओषधि पत्र, लें और
नई पोटली का ही प्रयोग करें|
पत्र पिड
स्वेदन के अतिरिक्त
रोगी को निम्न ओषधि चिकित्सा दें|
ओषधि
चिकित्सा :- निम्न ओषधियाँ लगभग तीन माह तक दें|
महायोगराज
गूगल 2
से 4गोली X 2 (दो
बार रोज )
रास्नादी
गूगल 2
X 2
वैश्वानर
चूर्ण 4
-4 gm
- गूगल और चूर्ण खाकर निम्न में से एक क्वाथ 50 gm पियें|
महारास्नादी क्वाथ 40 ml दो बार रोज गोली खाने के
बाद( क्वाथ को गर्म कर प्रयोग करें)
या - रास्ना सप्तक क्वाथ (रासना, गिलोय,अमलतास गुदा, देवदारु, गोखरू,
एरंड मूल, और पुनर्नवा पंचांग (बाज़ार में
कच्ची जड़ी बूटी विक्रेता (अत्तार) के यहाँ उपलब्ध) सामान मात्रा में
लेकर जों कुट (मोटा हवं सामग्री जैसा) प्रतिदिन 50 gm +400 gm पानी मिला चोथाई रहने तक उबालें , फिर आधा, आधा गर्म कर दोनों समय उक्त गूगल के साथ लें|
नोट- बाज़ार में क्वाथ तैयार बोतल में बंद मिलते है पर ताजा क्वाथ रोज बनाने से अधिक प्रभावशाली होता है)
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