Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

पाइल्स,बवासीर, अर्श, या हीमोरायड्स

बवासीर/ अर्श 
बवासीर या पाइल्स को हीमोरायड्स के नाम से भी जाना जाता है। बवासीर उत्तक (टिश्यूज)  के पिंड(गठान) ही मस्से होते हैं, ये गुदा के अन्दर या बाहरी भाग में हो सकते हें| इनमें बढ़ी हुई रक्तवाहिकाएं (ब्लड वेसल्स) होती हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें गुदा (ऐनस) के अंदरूनी और बाहरी क्षेत्र और मलाशय (रेक्टम) के निचले हिस्से की रक्त शिरा में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से ऐनस के अंदर और बाहर या किसी एक जगह एक अंकुरों, उभार, गठान, या मस्से जैसा बन जाते है, जो अंदर की ओर या बाहर तक भी हो सकते हैं। इन्ही मांस के अंकुरों को बवासीर या अर्श कहते हैं ! 
     ये मांस के अंकुर गुदामार्ग का अवरोध करते हैं और मलत्याग के समय शत्रु की भांति पीड़ा करते हैं ! इसलिए इनको अर्श भी कहा जाता है, ( चरक)। 
अधिकांश को अपने जीवन में किसी न किसी वक्त पाइल्स की समस्या रह सकती है, ओर उम्र बढ़ने के साथ-साथ पाइल्स की समस्या भी बढ़ सकती है। अगर परिवार में किसी को यह समस्या (आनुवांशिक)  रही है, तो इसके होने की आशंका बढ़ जाती है। 

     समान्यत: अर्श या पाइल्स बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होते कब्ज आदि के कारण से हुए तब कब्ज दूर होने पर तीन-चार दिन में अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। पर कब्ज की समस्या को दूर न करने से ये बने रहते हें ओर अक्सर रोगी को भी नहीं चलता कि उन्हें पाइल्स हैं। जब अधिक बढ़कर कष्ट देने लगते हें तब उन्हे चिंता होने लगती हे। 
      उदर में किसी भी तरह का दवाब बनाने पर यह दबाब अर्श  (बवासीर) को उत्पन्न कर सकता है। विशेष कर शोच के लिए किये जाने वाला दवाब, खासकर उन लोगों में जिनको लगातार कब्ज रहती है, इसके अतिरिक्त गर्भवस्था, मोटापा, गुदा मैथुन, भी इसका कारण हो सकता है। 
समान्यत: अर्श आंतरिक बवासीर ओर बाहरी बवासीर दो तरह के होते हें। आयुर्वेदिक विचार से दोष भेद की विवेचना करने की अवश्यकता सामान्य जन को नहीं है, यह चिकित्सा के विध्यार्थियों ओर चिकित्सक को जानना जरूरी है। 

    आंतरिक बवासीर गुदा की नाली में ऊपर की ओर रहता है, जो अंगुली के स्पर्श से एक गठान की तरह महसूस किया जा सकता है। अधिक बढ्ने या कब्ज के कारण कठोर मल के रगड़कर निकालने से मल (लेट्रिन) के साथ रक्तस्त्राव का कारण बनता है। इस ख़ूनी बवासीर में मलाशय की आकुंचक पेशी के अन्दर अर्श होता है जो  म्युकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) से ढका रहता है। ख़ूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नहीं होती है केवल ख़ून आता है। पहले मल में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ़ ख़ून आने लगता है। 
   आंतरिक बवासीर कई बार गुदा के बाहर तक बढ़ जाते है और एक छोटे अंगूर के गुच्छे जैसा देखे जा सकते हें।  यह आमतौर पर दर्दरहित हो सकता है।  इस मेम्ब्रेन के अन्दर मस्सा होता है, यही फिर बाद में बाहर आने लगता है। मलत्याग के बाद नया मस्सा अपने से अन्दर चला जाता है।  पुराना मस्सा  हाथ की ऊँगली के पोर से दबाने पर ही अन्दर जाता है।  आख़िरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाता है। 

     बाहरी बवासीर  गुदा के द्वार पर होता है, ओर वहां वह सूजन उत्पन्न करता है। इससे जलन दाह, दर्द, अन्य कष्ट भी हो सकता हे। यह सूजन गुदा के अंदर वाले हिस्से तक हो सकती है।  इस बाहरी बवासीर से गुदा क्षेत्र को साफ़ रखना मुश्किल होता है, इससे बाहरी बवासीर से कभी-कभी दस्त या कब्ज के बाद खून का थक्का (पेरिएनल हेमाटोमा) जम जाता है ,  ओर गुदा के आसपास अचानक दर्दनाक सूजन या गाँठ  बन सकती है। 

कई रोगियों में आन्तरिक और बाहरी दोनों बवासीर हो सकते हें। 
वबासीर अधिकतर उन लोगो को होता है, जो अपने खाने में बहुत कम फाइबर खाते है, मिर्च मसाला फास्ट फूड अधिक खाते हें, पानी कम पीते हें, और पर्याप्त आवश्यक व्यायाम भी नहीं करते, अधिकतर बैठे रह कर काम करते हें। इन सभी कारणो से उन्हे लगातार कब्ज रहती है, जो वबासीर का कारण बन जाती है। 
   गर्भवती महिलाओं में बवासीर के लक्षणों में नाटकीय ढंग से सुधार होता है और बच्चे के जन्म के साथ वे गायब हो जाते है | 

   पाइल्स या अर्श के लक्षणों में प्रारम्भ में आमतौर पर पाइल्स बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होते और तीन-चार दिन में अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। कई बार तो लोगों को पता भी नहीं चलता कि उन्हें पाइल्स हैं। 
लक्षण :-
  • ऐनस के इर्द-गिर्द एक कठोर गांठ जैसी महसूस हो सकती है। इसमें ब्लड हो सकता है, जिसकी वजह से इनमें काफी दर्द होता है।
  • टॉयलेट के बाद भी ऐसा महसूस होना कि पेट साफ नहीं हुआ है।
  • मल त्याग के वक्त लाल चमकदार रक्त का आना।
  •  मल त्याग के वक्त म्यूकस का आना और दर्द का अहसास होना।
  • ऐनस के आसपास खुजली होना और उस क्षेत्र का लाल और सूजन आ जाना।

 बवासीर का सबसे उत्तम उपचार आयुर्वेद के द्वारा ही किया जा सकता है ! आयुर्वेदिक उपचार एक बहुत ही सुलझा और बिना साइड इफ़ेक्ट का उपचार है ! पाइल्स को पूरी तरह से आयुर्वेदिक तरीके से ही ठीक किया जा सकता है|
यह महा भयानक कष्ट देने वाली बीमारी न हो या न बढ़े तो इसके लिए यह जरूरी है कि -
  • हम भरपूर हरी और रेशेदार सब्जियां खाएं, ताजे फल खाएं और खूब पानी पिएं। इससे मल सॉफ्ट होगा जिससे जोर नहीं लगाना पड़गा।
  • प्रारम्भिक पाइल्स होने पर सॉफ्ट और नमी वाले टॉयलेट पेपर का प्रयोग करें और रगड़ने या पोंछने की बजाय पेपर से थपथपा कर गुदा साफ करें। 
  • ढीले अंडरवेयर पहनें। टाइट अंडरवेयर की वजह से पाइल्स पर रगड़ आ सकती है, जिससे दिक्कत होगी।
  • मल त्याग के समय जोर लगाने से बचें- वास्तव में पाइल्स के मरीज को मल त्याग के बाद भी ऐसा लगता रहता है, जैसे अभी और मल आना बाकी है। इसके लिए वे जोर लगाते हैं, जो नुकसानदायक हो सकता है। मल और आने की सेंसेशन उन्हें पाइल्स की वजह से ही होती है, जबकि असल में पेट साफ हो चुका होता है। 
  • टॉयलेट में एक से डेढ़ मिनट के भीतर फारिग होकर बाहर आने की कोशिश करें। टॉयलेट में बैठकर पेपर या कोई किताब न पढ़ें। इससे हम निरर्थक दवाब बनाने से बचेंगे, ओर अंतर गति को सुधार सकेंगे। 
आयुर्वेद चिकित्सा 
सामान्यत:  दो तरह सेओषधि ओर क्षार सूत्र द्वारा इलाज किया जाता है।

   झोलाछाप डॉक्टर से बचें 
   आपसे निवेदन है कि इस क्षेत्र में कई झोलाछाप डॉक्टर भी इलाज करते हैं और बड़े-बड़े दावे करते हैं। पर आप  आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज के लिए ऐसे डॉक्टरों के पास ही जाएं जिनके पास सही डिग्री है। क्षारसूत्र चिकित्सा विशेषज्ञ से कराएं जिनके पास इसकी या  एमडी आयुर्वेद शल्य चिकित्सा, की डिग्री हो। 


योग  कुछ योग क्रियाओं को नियम से किया जाए तो पाइल्स होंगे ही नहीं, जैसे कपालभाति, अग्निसार क्रिया, पवनमुक्तासन, मंडूकासन, अश्विनी मुदा। शंख प्रक्षालन क्रिया भी कब्ज दूर करने सहायक है। 

 अगर पाइल्स हैं तो गणेश क्रिया की जा सकती है। कोई भी योगिक क्रिया किसी योग्य योग गुरु से सीखकर ही करें।
अर्श की चिकित्सा न करने से फिशर या भगंदर भी बन सकता है गुदा में - कब्ज ओर वबासीर की चिकित्सा नहीं करेने से, मल सक्त (कडा) होने के कारण, मल का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन (गुदा की बाहरी त्वचा) फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है, इसे फिशर कहते हें। इसमें ख़ून भी आता है, इससे शरीर में रक्त की कमी होने से कमजोरी, ओर गुदा में असहनीय जलन और पीडा होती है। 
बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर  (फिस्टुला)  हो सकता है। यह फिस्टुला कई प्रक़ार का होता है। भगन्दर में मल के रास्ते के पास से बाहरी त्वचा तक एक आर-पार छेद हो जाता है,गुदा से मल की इस नली में चला जाता है, और फोड़े की शक्ल में गुदा के बाहर की ओर फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है |

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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान ,एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें |.

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