Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |
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Irregular life is an invitation to serious diseases!!! (अनियमित जीवन गंभीर रोगों को आमंत्रण!!!)

आज का स्वास्थ्य संदेश-

अनियमित जीवन गंभीर रोगों को आमंत्रण!!!

वैद्य मधुसूदन व्यास उज्जैन.

 (निशुल्क चिकित्सा परामर्श हेतु फोन /व्हाट्स अप 9425379102)

 संसार की समस्त गतिविधियाँ तो एक निश्चित समय पर नियमित चलती रहतीं हैंपरन्तु हम अधिकांश मनुष्य अक्सर अपने जीवन की गतिविधियां विशेषकर खाने-पीने-सोने-जागने आदि का समय नियमित नहीं रखते|

इस अनियमितता का परिणाम होता है, गंभीर रोगों का आमंत्रण नींद का न आनाबेचेनी, करवट बदलनाअपचनविवंध (शोच में कमी) कब्जववासीरवजन का बढनाऔर इससे आगे चलकर गंभीरलीवर रोगउदर रोगमूत्र रोगकिडनीरोगमेटाबोलिक रोगप्रोस्टेट बड़नेआदि जैसे गंभीर रोग|

सनातन हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसारयदि जीवन भर स्वस्थ रहना है, तो सायंकाल बाद और रात्रि गरिष्ठ भोजन को त्याग दें, और भोजन, नाश्ताचायदोपहर, भोजन,रात्रि भोजन आदि उचित समय पर होना चाहिए|

प्रतिदिन प्रात: अच्छा स्वल्पाहार या नाश्ता करना जरुरी होता हैक्योंकि रात्रि भोजन के बाद 10 से 14 घंटे व्यतीत हो चुके होते हैंइस समय शरीर को अच्छी केलोरी की जरुरत होती है|

नाश्ते के 4 से 5 घंटे बाद दोपहर का खाना खाना चाहिएयदि नाश्ता 7 बजे लिया है तो 12 बजे के लगभग खाना खाना आवश्यक होता है|

दोपहर के इस भोजन या लंच के बाद या 4 घंटे बाद बूस्टर डोज के रूप में फलखाना उचित है|

दोपहर के भोजन के लगभग 6-7 घंटे बाद डिनर या रात्रि भोज खाना चाहिएरात्रि के इस खाने में अच्छे स्वास्थ्य बनांये रखने सुपाच्य और दोपहर की तुलना में हलका कम केलोरी वाला खाना खाना चाहिएइस भोजन के 3 से 4 घंटे में सो जाया करते हैं इसलिए पूरी पकवान और वर्तमान में डिनर पार्टियों में परोसा जाने वाला गरिष्ठ खाना पचाने में शरीर को मुश्किल आती हैइसका परिणाम कई  गंभीर रोगों के द्वारा खोलता हैप्रारम्भ में युवा वस्था में तो इन समस्याओं का पता नहीं चलता पर जब कई वर्ष भोजन की अनियमितता चलती रहती है तब प्रोड़ावस्थाया बुडापे के रोगों के रूप में बेवक्तऔर रात्रि के गरिष्ठ भोजन के दुष्परिणाम आते हैं और तब तक देर हो चुकी होती हैवापिस स्वस्थ जीवन नहीं पाया जा सकता

हिन्दू धर्म मेंऔर जैन धर्म में इसी कारण सूर्यास्त के बाद भोजन निषिद्ध किया हैहमारे अधिकांश जैन भाई इस का पालन करते है पर हिन्दू भाई इस को भूल गए हैऔर पश्चात डिनर में गरिष्ठ भोजन को आदर्श मान रोगों को आमंत्रित करते रहते हैं|

आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार भी भोजन का क्रम उपरोक्त होना चाहिए|

प्रात: का भोजन रईसों की तरह अधिक केलोरी वाला,

दोपहर का भोजन मध्यम वर्गीय सामान्यऔर

रात्रि भोजन गरीबों के भोजन के सामानरुखा सुखा ( कम केलोरी वाला सुपाच्य) रखना चहिये|

 यह भोजन मन्त्र स्वास्थ के लिए सर्वथा उपयुक्त है|

मधुमेह आदि के रोगियों के लिए तो इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं|   

वर्तमान में पश्चात् सभ्यता से प्रभावित वैवाहिक अदि कार्यक्रमों रात्रि कालीन भोजन रखा जाता है इस परम्परा को बदल कर दोपहर भोज रखा जाना उचित होगा|    


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 समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में आयुर्वेदिक चिकित्सा के ज्ञान, सामर्थ्य, हेतु किया जा रहा है। चिकित्सा हेतु नजदीकी प्राधिक्रत आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेँ। चिकित्सक प्रशिक्षण हेतु सम्पर्क करै।

वलिष्ठ बनाने वाला भोजन ?- छोटी छोटी बातें-

वलिष्ठ बनाने वाला भोजन ?-     छोटी छोटी बातें- 

          भोजन के विषय में जनता में यह भ्रम फेला हुआ है कि शरीर को शक्ति शाली स्वस्थ्य और वलिष्ठ बनाने के लिए अधिक मूल्य वाले महंगे खाद्य की आवश्यकता होती है, इस विचार में आशिंक भी सत्यता नहीं है| 
सत्य यह है कि उचित समय (भोजन काल), उचित परिमाण (मात्रा) , उचित रूप (भोजन ठोस, तरल, परिपाक या पाचन योग्य बनाने के लिए निर्माण करना)  में, निश्चिन्त होकर ग्रहण किया जाने वाला भोजन सदा लाभ दायक होता है|  
वैध्य मधुसूदन व्यास उज्जैन. (healthforalldrvyas.blogspot.com) https://healthforalldrvyas.blogspot.com/2024/05/blog-post.html

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Irregular life invitation to serious diseases? अनियमित जीवन गंभीर रोगों को आमंत्रण ?


 अनियमित जीवन गंभीर रोगों को आमंत्रण ?

आज का स्वास्थ्य संदेश- क्या आप जानते हैं ?

 संसार की समस्त प्राकृतिक और पशु पक्षियों सहित प्राणी मात्र की गतिविधियाँ तो एक निश्चित समय पर सतत चलती रहतीं हैं| परन्तु हम अधिकांश इंसान अक्सर अपने जीवन की गतिविधयां विशेषकर खाने-पीने का समय नियमित नहीं रखते|

इस अनियमितता का परिणाम है, --- गंभीर रोगों का आमंत्रण { नींद का न आना, बेचेनी, से करवट बदलना, अपचन, विवंध (शोच में कमी) कब्ज, ववासीर, पेचिश , वजन का बढना, और इससे आगे चलकर गंभीर, लीवर रोग, उदर रोग, मूत्र रोग, किडनी, रोग, मेटाबोलिक रोग, प्रोस्टेट बड़ने, आदि जैसे गंभीर रोग}

हिन्दू और जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, यदि स्वास्थ जीवन भर ठीक रकना है तो सायंकाल बाद और रात्रि गरिष्ठ भोजन को त्याग दें| और भोजन नाश्ता, चाय, दोपहर भोजन ,रात्रि भोजन आदि सही समय पर होना चाहिए|

प्रतिदिन प्रात अच्छा नाश्ता खाना जरुरी होता है, क्योंकि रात्रि भोजन के बाद १० से १२ घंटे व्यतीत हो चुके होते हैं| इस समय शरीर को अच्छी केलोरी की जरुरत होती है|

नाश्ते के ४  से ५ घंटे बाद दोपहर का खाना खाना चाहिए| अर्थात यदि नाश्ता 7 बजे लिया है तो १२ बजे के लगभग खाना खाना आवशयक है|

दोपहर के इस भोजन या लंच के बाद या ४ घंटे बाद बूस्टर डोज के रूप में फल, खाना उचित है|

दोपहर के भोजन के लगभग ८ घंटे बाद डिनर या रात्रि भोज खाना चाहिए| रात्रि के इस खाने में अच्छे स्वास्थ्य बनांये रखने सुपाच्य और दोपहर की तुलना में हलका कम केलोरी वाला खाना खाना चाहिए| चूँकि इस भोजन के ३ से ४ घंटे में सो जाया करते हैं इसलिए पूरी पकवान और वर्तमान में डिनर पार्टियों में परोसा जाने वाला गरिष्ठ खाना पचाने में शरीर को मुश्किल आती है, इसका परिणाम कई  गंभीर रोगों के द्वारा खोलता है| प्रारम्भ में युवा वस्था में तो इन समस्याओं का पता नहीं चलता पर जब कई वर्ष भोजन की अनियमितता चलती रहती है तब प्रोड़ावस्था, या बुडापे के रोगों के रूप में बेवक्त, और रात्रि के गरिष्ठ भोजन के दुष्परिणाम आते हैं और तब तक देर हो चुकी होती है, वापिस स्वस्थ जीवन नहीं पाया जा सकता| 

हिन्दू धर्म में, और जैन धर्म में इसी कारण सूर्यास्त के बाद भोजन निषिद्ध किया है| हमारे अधिकांश जैन भाई इस का पालन करते है पर हिन्दू भाई इस को भूल गए है, और पश्चात डिनर में गरिष्ठ भोजन को आदर्श मान रोगों को आमंत्रित करते रहते हैं|

आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार भी भोजन का क्रम उपरोक्त होना चाहिए|

कुछ विद्वानों ने प्रात: का भोजन रईसों की तरह अधिक केलोरी वाला, दोपहर का भोजन मध्यम वर्गीय सामान्य, और रात्रि भोजन गरीबों के भोजन के सामान, रुखा सुखा, कम केलोरी वाला सुपाच्य रखने की सलाह देते हैं| यह भोजन मन्त्र स्वास्थ के लिए सर्वथा उपयुक्त है|

मधुमेह आदि के रोगियों के लिए तो इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं|    

वैद्य मधुसूदन व्यास l

1-2- चैत्र शुक्ल 2080 / 7 मार्च 2023

पूर्व जिला आयुष अधिकारी उज्जैन

वात्सल्य सेवार्थ ओषधालय

MIG 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र.

 

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How to defeat the corona monster. :- Small small measures. (कैसे कोरोना राक्षस को हराएं,:- छोटे छोटे उपाय )


कैसे कोरोना राक्षस को हराएं, ओर स्वयं परिवार, समाज, मानवता, ओर देश को स्वस्थ सम्रद्ध बनाएं।
सबकी जय हो।
Thanks to concern, for the image about Covid 19
कोरोना अब सेकेंड ओर थर्ड स्टेज में जा रहा है, यही वह समय है जब संक्रमित रोगी जो नाक बहना, खांसी, हल्का या तेज बुखार, सिरदर्द जैसे जुकाम के सामान्य लक्षण से पीड़ित दिखता है, वह रोगी अपने वाइरस औरों में फैला सकता है, इसलिए जरूरी है कि वह स्वयं को सभी से दूर कर ले, इससे संक्रमण उनके परिवार, समाज के अन्यों में नहीं जा पायेगा, स्वयं खवरायें नहीं, नाक साफ रखें विक्स, इंट्रोप्स लिकविड डिशेन, नाक कान में डालते रहें, खांसी के लिए, दूध में हल्दी, कंटकारी अवलेह, खदिरादी वटी, आयोबिन ओर कफलीन टैब डिशेन, कोफ़्लेट ,सेप्टोलीन हिमालय, जैसी जुकाम खांसी की दवा 6 से 7 दिन लें, मुहं हाथ बार बार धोते रहें, नाक कान में चीटी अंगुली से बोरोप्लस, बोरोलीन जैसी एंटीसेप्टिक क्रीम लगाए, इससे अन्य का संक्रमण आपको प्रभावित नहीं कर पायेगा, ओर यदि आपको न केवल कोरोना बल्कि अन्य इन्फ्लूएंजा, जुकाम, आदि से भी स्वयं ओर अन्य को बचाया जा सकेगा। जुकाम प्रभावित को इससे सांस लेने में सुविधा भी होगी, रोग से राहत मिलेगी।
कोरोना राक्षस को हराएं, स्वयं परिवार, समाज, मानवता, ओर देश को स्वस्थ सम्रद्ध बनाएं, ।
सबकी जय हो।

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निशुल्क चिकित्सा परामर्श
कोरोना वाइरस रोग संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि अनावश्यक कहीं आना जाना बंद कर दिया जाए।
इस दौरान यदि आप किसी रोग से ग्रस्त होते हैं तो आप मुझसे दूरभाष पर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकते है।
में एक इंटीग्रेटेड (आयुर्वेद एवं एलोपैथ) चिकित्सक ओर पूर्व अधीक्षक शासकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय उज्जैन पद से सेवानिवृत्त हूँ।
फोन 9425379102 / 0734 3590859 .
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Fasting on festivals - A mode of mind and self refinement, with the liberation of body disease! त्योहारों पर उपवास - शरीर की रोगों से मुक्ति के साथ मन और आत्म शोधन की एक विधा!

पर्व ओर त्योहारों पर उपवास – शरीर (रोग मुक्त्ति) , मन ओर आत्म शोधन की एक विधा! 
डॉ. मधु सूदन व्यास उज्जैन मप्र,  
https://healthforalldrvyas.blogspot.com/2019/09/
fasting-on-festivals-mode-of-mind-and.html
कई व्यक्ती नव रात्री सहित अन्य पर्वो पर एक या अधिक दिन के  ब्रत या उपवास रख साधना करते हैं। धर्म ग्रंथो में वर्णित उपवास के कई भावार्थ किये हैं। ईश्वर के पास बेठना, तप-जप करना, बल पूर्वक इंद्रियो को वश में करने का प्रयंत्न, आदि आदि हैं पर सामान्यत: इसे भोजन ग्रहण न करने से माना जाता है। वास्तव में इसे धर्म ग्रंथो में शरीर, मन ओर आत्मा को स्वस्थ्य ओर शुद्ध करने के विचार से ऋषियों ने शामिल किया है। इसलिये उपवास शरीर ओर मन की चिकित्सा से स्वत: जुड जाता है। 
चिकित्सकीय द्रष्टी से यहाँ उपवास का अभिप्राय, शरीर के पाचन संस्थान के विश्राम से है। प्रतिदिन दो से पांच बार या अधिक भी, कुछ न कुछ खाते रहने से यह पाचन संस्थान दिन रात सक्रिय रहता है। पाचन तंन्त्र भी विश्राम करे यह शरीर की प्राकृतिक मांग होती है, इसीलिये लगभग सभी प्राणी अकसर कभी कभी कुछ समय के लिये खाना छोडते देखे जाते हैं। मनुष्य को भी रोग प्रभाव होते समय खाना खाना छोडते देखा जाता है।
रोग की मजबूरी वश खाना छोडने की बजाय यदि विचार पूर्वक छोडा जाये, या उपवास किया जाये तो अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है।  

The reason for growing weight, drinking water less - now American research also says!


The reason for growing weight, drinking water less - now American research also says!

वजन बढ़ने का कारण, पानी कम पीना - अब अमेरिकी शोध भी कहता है!
प्राचीन आयुर्वेद अनुसार हजारों वर्षों से कहा गया है की भोजन के पूर्व पानी पीना वजन में कमी, भोजन के साथ पीना वजन को स्थिर, और भोजन के बाद पानी पीना से वजन बड़ता है| 

अब अमेरिकन कैमिकल सोसाइटी ने भी इस संबंध में शोध करने पर पाया कि "खाने  के पहले पानी पी लेने से 3 महीने में करीब सवा 2 किलो वजन कम होने के परिणाम दिखे क्योंकि भोजन से पहले ग्रहण किया गया पानी भोजन में 75 से 90 फीसदी कैलोरी कम ग्रहण करने में मददगार साबित होता है|

Now we are available in a charitable hospital also.

Now we are available in a charitable Mahakal Ayurvedic Hospital O.P.D without consultation fee, for Ayurvedic treatment & Panchakarma Therapy.
"Get First Firsts"

The Consultation with doctors in Mahakal Ayurvedic Hospital is absolutely free.

Prayer after Awakining.(प्रात:स्मरण).

Prayer after Awakining.
प्रात: स्मरण आयुष्य, जीवन रक्षक, जीवन-शक्ति, Lifemanship है|
अक्सर सुबह का टेलीफोन सन्देश किसी परिजन को लकवा (Paralysis)होने, दिल का दोरा (Heart attack), मस्तिष्क अघात (Brain Stroke), या मृत्यु (Death) होने जैसा दुखद समाचार देता है|

Depression: Let's Talk '- World Health Day, 7 April 2017, (The main goal of WHO).

Depression: Let's Talk' - विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल 2017 का प्रमुख लक्ष्य
"विश्व स्वास्थ्य दिवस पर शुभ कामनाएं"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रतिवर्ष एक विशेष उद्धेश्य को लेकर विश्व स्वास्थ्य दिन मनाता है|
इस वर्ष २०१७ के लिए जागरूकता का विषय है-
'Depression: Let's Talk'. 'अवसाद: के बारे में बात करें.

When Film actor 'Akshay Kumar' become a fan of Ayurveda medicine (Punch karma).

When Film actor 'Akshay Kumar' become a fan of Ayurveda medicine (Punch karma).
जब फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार आयुर्वेद चिकित्सा (पन्च कर्म) के प्रशंसक बन गए ! फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार जो आयुर्वेदिक चिकित्सा पर विश्वास रखते हें, ने पिछले दिनों केरला के एक आश्रम (पंचकर्म केंद्र) में 15 दिन तक रह कर चिकित्सा लि कैसा अनुभव किया पढ़े और उनसे सुनिए निम्न विडिओ में| 

Why Doctors, physicians & Vaidya are called Dhanvantari? {Exclusive artical by Vaidya Madhu Sudan vyas} चिकित्सको, वैद्यों और डॉक्टरों को धन्वन्तरी क्यों कहा जाता है? {धन्वन्तरी जयंती विशेष } वैद्य मधु सूदन व्यास उज्जैन

चिकित्सको, वैद्यों और डॉक्टरों को धन्वन्तरी क्यों कहा जाता है?
{धन्वन्तरी जयंती विशेष }
वैद्य मधु सूदन व्यास उज्जैन

भगवान धन्वन्तरि जयंती, धनतेरस (कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी) मनुष्य का प्रथम सुख निरोगी व् पुष्ट  शरीर, एवं श्री संपन्नता हेतु की जाती है|
समुद्र मंथन या सारे संसार की खोजबीन (Exploration) से प्राप्त धन्वन्तरी जी, वैदिक काल के महान चिकित्सक होने से, देवताओं के वैद्य कहलाये गए|
रोग निवारण और नवजीवन प्रदान करने वाली ओषधिय ज्ञान से निष्णात चिकित्सक, होने से ही उन्हें काल के सर्वश्रेष्ट देव, विष्णु का अवतार भी माना गया|
प्रतीक के रूप में, उनके एक हाथ में कलश, दुसरे में जलोका या ओषधि,  तीसरे में शंख, (रोग-भय नष्ट करने हेतु शंख बजाने वाले), और चोथे हाथ में चक्र (रोग चक्र नष्ट करने वाले) धारण किया रूप प्रदर्शित कर उनका विशेष सम्मान किया गया था|

Researching Ayurvedic Drug product by Specialist- see on video

Foundation of establishment of 'AYUSH CENTER.' AROGYA 2015

   देखें विडिओ लिंकAROGYA 2015   

उज्जैन के इस आयुष सेंटर जो की विराट रूप लेकर भारत भर में अपनी शाखायें स्थापति करने जा रहा है की स्थापना की नीव कानपुर उप्र में दिनांक 04-05 अप्रैल 2015 को हुई आयुर्वेद चिकित्सको की एक डॉ. गौरांग जोशी राजकोट के नेतृत्व में डॉ. उमाशंकर निगम मुंबई, डॉ मधुसूदन व्यास उज्जैन, डॉ नवीन जोशी देहरादून, डॉ जी एस तोमर, डॉ ओ पी सिंग, डॉ एम् पी चतुर्वेदी, डॉ विनोद कुमार गंगवार भोपाल, डॉ जी के जैन भोपाल, डॉ राम अरोरा उज्जैन,  डॉ रमेश राजगुरु अहमदनगर महा., डॉ अबरार मुल्तानी भोपाल, डॉ देवाशीष दास ईलाहबाद, डॉ ब्रिजेश प्रताप सिंह वाराणसी, डॉ ओम प्रकाश सिंग B H U, डॉ शशिकांत राय इलाहाबाद, डॉ यू एस राजरिया जुनझुन राजस्थान, डॉ अजित कुमार यादव Mau UP, डॉ देवेश कुमार श्रीवास्तव लखनऊ, ने भाग लिया|

कहीं रूम हीटर तो नही है, आपकी बीमारी का कारण?

Room heater can be the cause of your illness?
ठण्ड से बचाने वाला रूम हीटर कहीं आपको और आपके परिवार को बीमार तो नहीं कर रहा, और आप समझ रहे हों की अधिक ठण्ड से आप या आपका परिवार बीमार है

भाई अब भी मान लो की छिलके सहित फल सब्जी हानिकारक ही नहीं घातक हैं।

भाई अब भी मान लो की छिलके सहित फल सब्जी हानिकारक ही नहीं घातक हैं।
अभी तक माना जाता रहा था, की छिलके सहित फल अधिक अच्छे होतें है। और यह सच भी है| पर व्यवसायकता के चलते अधिक समय तक फल और सब्जियों को सुरक्षित रखने उन पर कई प्रकार के केमिकलों

प्यास और पानी

क्या आप जानते हें की शरीर में पानी का स्तर में मात्र 2 % की कमी जिसका पता सामान्यत चलता ही नहीं, से –
थोड़ी देर में ही भूलने ( शोर्ट टर्म मेमोरी लोस), साधारण जोड़ बाँकी भी न कर पाना, ध्यान विचलित होना,  थकान, महसूस होने लगती है।  मेटाबोलिज्म की गति कम होने से शरीर की गतिविधियां प्रभावित होने लगतीं है।
एसा अक्सर आपके साथ होता भी होगा,पर आप यह कभी नहीं सोचते की एसा पानी की कमी से है और पानी की शरीर को आवश्यकता है, या प्यास लगी है|
पानी और प्यास के बारें में अधिक जानकारी   -पानी में होती है वजन कम करने की क्षमता?
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल/ जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर दें। इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

Fat-free or low fat diets lead to obesity-फेट फ्री या लो फेट डाईट बड़ा रही है वजन – नई अमरीकन शोध|

फेट फ्री या लो फेट डाईट बड़ा रही है वजन – नई अमरीकन शोध|
लीजिये अब बता रहें हें अमरीकन शोध कर्ता की फेट फ्री या लो फेट डाईट के कारण अमरीकन बच्चों में पूर्ण पोषण नहीं हो पा रहा है| लो फेट लेने से भी मोटापे की समस्या हल नहीं हो पा रही है|
न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में, डॉ दारुश मौजाफारियान जो ह्रदय विशेषज्ञ हैं, ने इसे उजागर किया है, कि नई शोध के अनुसार फेट की कमी से मोटापा बड रहा है, और फेट फ्री या लो फेट खाद्य के चलते नई पीडी की सेहत ख़राब हो रही है|

क्या आप निम्न प्रतिबंधित दवाओं के बारे में जानते हें?

क्या आप निम्न दवाओं के बारे में जानते हें?
जो कुछ स्थानों (राज्यों में) प्रतिबंधित हें फिर भी आसानी से खरीदी जा सकती हें|

क्या आप निम्न दवाओं के बारे में जानते हें?
हैल्थ फॉर आल डॉ व्यास
जो कुछ स्थानों (राज्यों में) प्रतिबंधित हें फिर भी आसानी से खरीदी जा सकती हें|
दवा खरीदते समय कृपया केवल ब्रांड नाम के साथ उसका जेनरिक नाम जो इन्ग्रेडीयेंट्स में होगा जरुर देखें, कहीं वह कालम नं एक की दवा का तो नहीं? 



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अस्थमा श्वास या दमा (Athama) से बचने के लिए वायु का उपयोग छान कर करें?

अस्थमा से बचने के लिए वायु का उपयोग छान कर करें? [अस्थमा दिवस 6 मई] 
आयुर्वेद के अनुसार श्वांस रोग अस्थमा या दमा के नाम से जाना जाने वाला यह विश्वव्यापी रोग जो साँस लेने में होने वाली घरघराहटसांस लेने में कष्ट, सीने में जकड़न, और खांसी से पहचाना जाता है, जिसमें विकासशील देशों विशेषकर उन देशों की एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है, जहाँ आधुनिक बस्तियां बस्ती बसने के लिए पेड़ों की अंधाधुन्द कटाई/छटाई कर पर्यावरण का संतुलन ख़राब कर दिया है| यह रोग भारत अमेरिका केनेडा सहित कई देशों की लगभग 10% से अधिक आबादी को प्रभावित कर रहा है| आज 6 मई को विश्व अस्थमा दिवस पर इस समस्या पर चिंतन करें|

पुत्र जीवक या पुत्रन्जिवा या Putranjiva,Putranjiva roxburghii, एक आयुर्वेदिक ब्रक्ष ओषधि है आजकल सुर्ख़ियों में|

आजकल एक आयुर्वेदिक ओषधि पुत्रन्जिवा Putranjiva, सुर्ख़ियों में है| 
बोटानिकल विवरण -Kingdom: PlantaeOrder:MalpighialesFamily: PutranjivaceaeGenus: PutranjivaSpecies: Putranjiva roxburghii

पुत्रजीवक — विवाद क्यों ? प्रो. बनवारी लाल गौड़ पूर्व कुलपति|

ProfBanwari Lal Gaur( पूर्व कुलपति)
पुत्रजीवक — विवाद क्यों ?
संसद में पुत्रजीवक के सम्बन्ध में प्रश्न उठा है। मेरे लिये सभी सांसद आदरणीय है, लेकिन एक आयुर्वेदज्ञ होने के कारण यहाँ कुछ शास्त्रसम्मत विचार प्रस्तुत करना आवश्यक ही नहीं अपितु मेरा धर्म है। ये विचार न किसी के पक्ष में है और न विपक्ष में। बाबा रामदेव की फार्मेसी में निर्मित पुत्रजीवक योग क्या है, यह मुझे पता नहीं है और न इस विषय में कुछ कहना है, पर यह कहना अपेक्षित है कि “पुत्रजीवक” नाम आयुर्वेदीय है तथा यह पारिभाषिक भी है। मैं अपने विचार आयुर्वेदज्ञों के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ—
• चरकसंहिता में चिकित्सा 3/267 में इसे आत्मजा कहा है, जिसकी व्याख्या में आचार्य चक्रपाणि इसे “आत्मजा पुत्रजीव इति ख्याता” कहते हैं।
• चरक चिकित्सा 18/69 में “इङ्गुदः” कहा है, जिसे आचार्य चक्रपाणि “इङ्गुदः पुत्रजीवकः” कहते हैं।
• चरक चिकित्सा 23/243 में “बन्धुजीव” कहा है, जिसकी व्याख्या आचार्य चक्रपाणि “बन्धुजीवः पुत्रजीवकः” करते हैं।
• यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि चरकसंहिता के मूल स्वरूपअग्निवेशतन्त्र का काल ईसा पूर्व लगभग 3000वर्ष है तथा आचार्य चक्रपाणि 11वीं शताब्दी में हुये हैं।
• इसी तरह सुश्रुतसंहिता में चिकित्सास्थान 19/61 में स्पष्टतः इसका उल्लेख किया है यथा—
अनेनैव विधानेन पुत्रञ्जीवकजं रसम्।
प्रयुञ्जीत भिषक् प्राज्ञः कालसात्म्यविभागवित्॥
• इसके अतिरिक्त अनेक स्थलों पर इसका पर्यायवाची शब्दों के साथ उल्लेख किया है, जिनकी व्याख्या में आचार्य डल्हण ने सब जगह “पुत्रञ्जीवक” कहा है तथा एक जगह “पुत्रजीवक” भी कहा है।
• यह “पुत्रजीवक” स्वरूपपुत्र को गर्भ में जीवित रहने के दृष्टिकोण से है, पुत्र के उत्पन्न होने से इसका कोई लेना देना नहीं है। इस सन्दर्भ में पुत्र का अर्थ “गर्भ” किया जाता है, जिसका पुत्र या पुत्री से कोई लेना देना नहीं हैं। दोनों में से गर्भ में जो भी है, उसकी रक्षा करना इसका कर्म है और यही इस औषधि का प्रभाव है।
• पुत्र शब्द से पुत्र और पुत्री दोनों का ग्रहण होता है, इस सन्दर्भ में कुछ तथ्य प्रस्तुत है।
1. सुश्रुत शारीरस्थान 2/25-30 में पुत्रीयविधान कहा है, जिसकी व्याख्या में डल्हण ने स्पष्ट किया है कि यह पुत्रीय विधान पुत्र और पुत्री दोनों के लिये है। वे पुत्र का विधान बताने के बाद कहते हैं कि जो पुत्री चाहते हैं वे इस प्रकार का विधान करे। यथा—
अतः परं पञ्चम्यां सप्तम्यां नवम्याम् एकादश्यां च स्त्रीकामः, उपेयादित्यत्रापि संबध्यते।
2. चरकसंहिता में स्त्रियों की “पुत्रघ्नी” नामक एक विकृति का उल्लेख है, यथा—
रौक्ष्याद्वायुर्यदा गर्भं जातं जातं विनाशयेत्॥
दुष्टशोणितजं नार्याः पुत्रघ्नी नाम सा मता। (च. चि. 30/28-29)
इससे स्पष्ट होता है कि जिस स्त्री में बार-बार गर्भ का विनाश (गर्भस्राव या गर्भपात) होता है, उसे “पुत्रघ्नी” नाम की विकृति कहा गया है।
इसे चक्रपाणि ने आज के युग को परिकल्पित करके एक हजार वर्ष पहले ही स्पष्ट कर दिया है— वे कहते हैं कि “अत्र च यद्यपि सामान्येनैव गर्भविनाश उक्तः, तथापि पुत्रस्यैव प्राधान्यात् “पुत्रघ्नी” इति व्यपदेशो ज्ञेयः।
यह उल्लेख कर देने के बाद सम्भवतः और किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं फिर भी चरकसंहिता के और सुश्रुतसंहिता के अनेक प्रसंगों में पुत्र, मनुष्य, नर, मयूर, हंस, चटक आदि का जहाँ-जहाँ उल्लेख पुंलिंग के रूप में हुआ है, वहाँ-वहाँ स्त्री और पुरुषदोनों का ग्रहण होता है, इसके लिये अधिक स्पष्टतया समझने के लिये मेरे द्वारा चरकसंहिता के किये गये अनुवाद के चतुर्थ खण्ड में सिद्धिस्थान 12/16-17 पर की गई “हंसाण्डरसः” टिप्पणी देखनी चाहिये।
3. इस प्रसंग में संस्कृत व्याकरण भी हमें अनुमति देती है। यथा—
क. “पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च”। (अमरकोश 2/4/37) में पुत्र और दुहिता दोनों के लिये पुत्रौ शब्द का प्रयोग किया है। अतः पुत्रजीवक की व्युत्पत्ति इस प्रकार करनी चाहिये—
“पुत्रौ (पुत्रकन्ये) जीवयति इति पुत्रजीवकः”।
ख. “प्रातिपदिकग्रहणे लिङ्गविशिष्टस्यापि ग्रहणम्”। व्याकरण के इस पारिभाषिक निर्देश से एक ही प्रातिपदिक (पद, शब्द, नाम) का ग्रहण करने पर विशिष्ट लिंग (स्त्रीलिंग या पुंलिंग) का भी ग्रहण हो जाता है।
ग. इसी तरह “कुमारः श्रमणादिभिः” (2/1/69) अष्टाध्यायी का यह सूत्र भी इसी तथ्य की पुष्टि करने में सहायक है।
4. भावप्रकाशनिघण्टु में इसका वर्णन निम्नानुसार है, जिसमें इसे गर्भकर और गर्भद कहा गया है। वहाँ भी पुत्रजीव से पुत्रोत्पत्ति का अर्थ पुत्र और पुत्री दोनों प्रतिभासित होते हैं। यथा—
पुत्रजीवो गर्भकरो यष्टीपुष्पोऽर्थ
साधकः॥39॥
पुत्रजीवो गुरुर्वृष्यो गर्भदः श्लेष्मवातहृत्।
सृष्टमूत्रमलो रूक्षो हिमः स्वादुः पटुः कटुः॥40॥ (भा. प्र. नि. वटादिवर्ग)
और भी बहुत से प्रसंग उपस्थापित किये जा सकते हैं, पर यहाँ ये ही पर्याप्त हैं।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि पुत्रजीवक में प्रयुक्त किया गया पुत्र शब्द पुत्र और पुत्री दोनों के लिये समान रूप से प्रयुक्त है, इस पर विवाद करना युक्तिसंगत नहीं है।
प्रो. बनवारी लाल गौड़
पूर्व कुलपति
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