Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

पुत्रजीवक — विवाद क्यों ? प्रो. बनवारी लाल गौड़ पूर्व कुलपति|

ProfBanwari Lal Gaur( पूर्व कुलपति)
पुत्रजीवक — विवाद क्यों ?
संसद में पुत्रजीवक के सम्बन्ध में प्रश्न उठा है। मेरे लिये सभी सांसद आदरणीय है, लेकिन एक आयुर्वेदज्ञ होने के कारण यहाँ कुछ शास्त्रसम्मत विचार प्रस्तुत करना आवश्यक ही नहीं अपितु मेरा धर्म है। ये विचार न किसी के पक्ष में है और न विपक्ष में। बाबा रामदेव की फार्मेसी में निर्मित पुत्रजीवक योग क्या है, यह मुझे पता नहीं है और न इस विषय में कुछ कहना है, पर यह कहना अपेक्षित है कि “पुत्रजीवक” नाम आयुर्वेदीय है तथा यह पारिभाषिक भी है। मैं अपने विचार आयुर्वेदज्ञों के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ—
• चरकसंहिता में चिकित्सा 3/267 में इसे आत्मजा कहा है, जिसकी व्याख्या में आचार्य चक्रपाणि इसे “आत्मजा पुत्रजीव इति ख्याता” कहते हैं।
• चरक चिकित्सा 18/69 में “इङ्गुदः” कहा है, जिसे आचार्य चक्रपाणि “इङ्गुदः पुत्रजीवकः” कहते हैं।
• चरक चिकित्सा 23/243 में “बन्धुजीव” कहा है, जिसकी व्याख्या आचार्य चक्रपाणि “बन्धुजीवः पुत्रजीवकः” करते हैं।
• यहाँ यह उल्लेख आवश्यक है कि चरकसंहिता के मूल स्वरूपअग्निवेशतन्त्र का काल ईसा पूर्व लगभग 3000वर्ष है तथा आचार्य चक्रपाणि 11वीं शताब्दी में हुये हैं।
• इसी तरह सुश्रुतसंहिता में चिकित्सास्थान 19/61 में स्पष्टतः इसका उल्लेख किया है यथा—
अनेनैव विधानेन पुत्रञ्जीवकजं रसम्।
प्रयुञ्जीत भिषक् प्राज्ञः कालसात्म्यविभागवित्॥
• इसके अतिरिक्त अनेक स्थलों पर इसका पर्यायवाची शब्दों के साथ उल्लेख किया है, जिनकी व्याख्या में आचार्य डल्हण ने सब जगह “पुत्रञ्जीवक” कहा है तथा एक जगह “पुत्रजीवक” भी कहा है।
• यह “पुत्रजीवक” स्वरूपपुत्र को गर्भ में जीवित रहने के दृष्टिकोण से है, पुत्र के उत्पन्न होने से इसका कोई लेना देना नहीं है। इस सन्दर्भ में पुत्र का अर्थ “गर्भ” किया जाता है, जिसका पुत्र या पुत्री से कोई लेना देना नहीं हैं। दोनों में से गर्भ में जो भी है, उसकी रक्षा करना इसका कर्म है और यही इस औषधि का प्रभाव है।
• पुत्र शब्द से पुत्र और पुत्री दोनों का ग्रहण होता है, इस सन्दर्भ में कुछ तथ्य प्रस्तुत है।
1. सुश्रुत शारीरस्थान 2/25-30 में पुत्रीयविधान कहा है, जिसकी व्याख्या में डल्हण ने स्पष्ट किया है कि यह पुत्रीय विधान पुत्र और पुत्री दोनों के लिये है। वे पुत्र का विधान बताने के बाद कहते हैं कि जो पुत्री चाहते हैं वे इस प्रकार का विधान करे। यथा—
अतः परं पञ्चम्यां सप्तम्यां नवम्याम् एकादश्यां च स्त्रीकामः, उपेयादित्यत्रापि संबध्यते।
2. चरकसंहिता में स्त्रियों की “पुत्रघ्नी” नामक एक विकृति का उल्लेख है, यथा—
रौक्ष्याद्वायुर्यदा गर्भं जातं जातं विनाशयेत्॥
दुष्टशोणितजं नार्याः पुत्रघ्नी नाम सा मता। (च. चि. 30/28-29)
इससे स्पष्ट होता है कि जिस स्त्री में बार-बार गर्भ का विनाश (गर्भस्राव या गर्भपात) होता है, उसे “पुत्रघ्नी” नाम की विकृति कहा गया है।
इसे चक्रपाणि ने आज के युग को परिकल्पित करके एक हजार वर्ष पहले ही स्पष्ट कर दिया है— वे कहते हैं कि “अत्र च यद्यपि सामान्येनैव गर्भविनाश उक्तः, तथापि पुत्रस्यैव प्राधान्यात् “पुत्रघ्नी” इति व्यपदेशो ज्ञेयः।
यह उल्लेख कर देने के बाद सम्भवतः और किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं फिर भी चरकसंहिता के और सुश्रुतसंहिता के अनेक प्रसंगों में पुत्र, मनुष्य, नर, मयूर, हंस, चटक आदि का जहाँ-जहाँ उल्लेख पुंलिंग के रूप में हुआ है, वहाँ-वहाँ स्त्री और पुरुषदोनों का ग्रहण होता है, इसके लिये अधिक स्पष्टतया समझने के लिये मेरे द्वारा चरकसंहिता के किये गये अनुवाद के चतुर्थ खण्ड में सिद्धिस्थान 12/16-17 पर की गई “हंसाण्डरसः” टिप्पणी देखनी चाहिये।
3. इस प्रसंग में संस्कृत व्याकरण भी हमें अनुमति देती है। यथा—
क. “पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च”। (अमरकोश 2/4/37) में पुत्र और दुहिता दोनों के लिये पुत्रौ शब्द का प्रयोग किया है। अतः पुत्रजीवक की व्युत्पत्ति इस प्रकार करनी चाहिये—
“पुत्रौ (पुत्रकन्ये) जीवयति इति पुत्रजीवकः”।
ख. “प्रातिपदिकग्रहणे लिङ्गविशिष्टस्यापि ग्रहणम्”। व्याकरण के इस पारिभाषिक निर्देश से एक ही प्रातिपदिक (पद, शब्द, नाम) का ग्रहण करने पर विशिष्ट लिंग (स्त्रीलिंग या पुंलिंग) का भी ग्रहण हो जाता है।
ग. इसी तरह “कुमारः श्रमणादिभिः” (2/1/69) अष्टाध्यायी का यह सूत्र भी इसी तथ्य की पुष्टि करने में सहायक है।
4. भावप्रकाशनिघण्टु में इसका वर्णन निम्नानुसार है, जिसमें इसे गर्भकर और गर्भद कहा गया है। वहाँ भी पुत्रजीव से पुत्रोत्पत्ति का अर्थ पुत्र और पुत्री दोनों प्रतिभासित होते हैं। यथा—
पुत्रजीवो गर्भकरो यष्टीपुष्पोऽर्थ
साधकः॥39॥
पुत्रजीवो गुरुर्वृष्यो गर्भदः श्लेष्मवातहृत्।
सृष्टमूत्रमलो रूक्षो हिमः स्वादुः पटुः कटुः॥40॥ (भा. प्र. नि. वटादिवर्ग)
और भी बहुत से प्रसंग उपस्थापित किये जा सकते हैं, पर यहाँ ये ही पर्याप्त हैं।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि पुत्रजीवक में प्रयुक्त किया गया पुत्र शब्द पुत्र और पुत्री दोनों के लिये समान रूप से प्रयुक्त है, इस पर विवाद करना युक्तिसंगत नहीं है।
प्रो. बनवारी लाल गौड़
पूर्व कुलपति
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल/ जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर दें। इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

1 टिप्पणी:

Dr.Satish Panda ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति गुरुवर

आज की बात (28) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (69) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (69) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "