Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |
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Won't the corona grow in unlock?(क्या कोरोना अनलॉक में अधिक नहीं बढेगा?)

क्या कोरोना अनलॉक में अधिक नहीं बढेगा

डॉ मधु सूदन व्यास उज्जैन 30/08/2020

पिछले छे माहों से आतंक फैलाने वाली कोविड या कोरोना महामारी को रोकें हेतु, शासन ने अनलॉक की नई गाइड लाईन जारी की है, इसमें कुछ ही व्यवस्थाओं को छोड़कर अधिकतम को मुक्त कर दिया है|  

इस विषय में मेरा यह मानना है कि, शासन की अनलॉक करने की प्रक्रिया पूरी तरह एक सोचा समझा समझदारी का निर्णय है। इससे आर्थिक, रोजगार, आदि समस्याओं, से छुटकारे की ओर बढ़ेंगे।

Careful - From the spray in the toilet.

सावधान - शौचालय में उठने वाली फुहार (spray) से! 
Your toilet too can make your family sick.  आपका टॉयलेट भी आपके परिवार को बीमार  बना सकता है| 
कहीं आपका टॉयलेट ही आपके परिवार को बीमार नहीं बना रहा है? 
आप रोगों के प्रति बड़ा ही सावधानी पूर्ण नजरिया रखते हें, रेल, बस, और सार्वजानिक स्थानों पर किसी के भी खांसते या छींकते समय आप बड़े ही सावधान होते हें, की उनके मुहं से निकली फुहार (स्प्रे), या एरोसोल आपकी साँस के साथ अन्दर न चली जाये| 
परन्तु अधिकतर लोग यह नहीं जानते की शोच के बाद जब हम फ़्लैश चलाते हें तो भी बड़ी ही तेजी से फुहार या एरोसोल ऊपर की और उठती है, जो नजदीक से अनुभव भी की जा सकती है|  

Simhastha 2016Ujjain invasion potential of swine flu ?

सिहस्थ 2016 उज्जैन में स्वाइन फ्लू के आक्रमण की सम्भावना?  
   आत्याधिक संक्रामक या फैल जाने वाला स्वाइन फ्लू एक प्रकार के इन्फ्लूएंजा वायरस जिसे H1N1 का नाम दिया गया,   से फैलता है| श्वसन संस्थान या सांस और फेफडों को प्रभावित करने वाला यह रोग भूख की कमी, नाक से लगातार बहने वाले पानी, मन का एक दम उदास और हताशा सी महसूस कराने वाला, यह रोग सबसे पाहिले मेक्सिको में पाया गया था| महामारी (एपिडेमिक के रूप में 2009 से फैला और आज 2015 के प्रारम्भ में आतंक मचा रहा है| 

   सभी दूर इसे अभी तक हल्के से देखे जा रहा है, इसीलिए अभी-तक शासन ने जाँच की पर्याप्त व्यवस्था नहीं बनाई है, सम्भावित है की यह अगले वर्ष और अधिक जोर से आक्रमण करेगा इससे इतिहास देखते हुए इंकार करना धोखा होगा| चिकित्सा में थोड़ी सी देरी और लापरवाही से मौत के आंकड़े आत्याधिक हो जाने की की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता|  
  अगले वर्ष उज्जैन में सिंहस्त मेला भी होने वाला है, जिसमें दो करोड़ से अधिक समूचे भारत से और विश्व के लोग एकत्र होंगे, उन दिनों सभी के नजदीकी संपर्क से इसके फैलने की संभावना भी अधिक हो जाएगी| सिहस्थ व्यवस्था में स्वस्थ्य विभाग और राज्य शासन मप्र की और से अभी तक भी कोई योजना नहीं बनाई है| भारत और प्रदेश शासन के प्रति इसके लिए योजना बनाये जाने प्रत्येक जिले में जाँच लेब बनाने की कार्यवाही की जाना समय रहते आज प्राथमिकता होना चाहिए|
   शासन को चाहिए की समय रहते प्रत्येक जिले में जाँच के लिए लेबोरेटरी और चिकित्सा उपलब्ध करवाएं, निजी चिकित्सको सहित अन्य सभी को प्रशिक्षित करें, जन सतर्कता अभियान के लिए सभी को पर्शिक्षित करें|
पोस्ट शेयर करें, “सुप्त व्यवस्था” जगाएं! 
जन सामान्य से अनुरोध है, की इस बात को जन जन तक फेलायें, शेयर करें ताकि “सुप्त व्यवस्था” समय रहते चेत जाये|  
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल/ जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर दें। इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

क्रोनिक टाइफोइड केसे ठीक हो? - आयुर्वेदिक चिकित्सा - प्रश्न पर उत्तर।


उत्तर - टाइफाइड बेसिलस साल्मोनेला टाइफी, के कारण से मियादी बुखार जिसे आंत्रिक ज्वर (आंतों का बुखार) भी कह सकते हें होता है। 
    यह टाइफाइड बेसिलस, दूषित भोजन या पानी के द्वारा फैलता है। इसका फैलाव (ट्रांसमिशन) कच्चे फल, मानव मल, दूषित दूध और दूषित दूध उत्पादों (फूड प्रोडक्ट) दूषित पानी से पैदा की गई (निषेचित) सब्जियों को खाने के माध्यम से भी होता है। मक्खियां भी खाद्य पदार्थों के संक्रामण के लिए जिम्मेदार हो सकती हें। अधिकतर मामलों में पीने के पानी और अन्य उपयोग हेतु पानी के एक ही स्रोत का उपयोग टाइफाइड बुखार की महामारी का कारण पाया गया है। 
    टाइफाइड बुखार के गंभीर मामलों बुखार, सिरदर्द, बेचैनी, आहार और अनिद्रा की क्रमिक शुरुआत विशेषत: देखि जाती है। वयस्कों में कब्ज और बड़े बच्चों में ज्यादा दस्त होना आम है। 
  सही चिकित्सा नहीं करने पर कुछ रोगियों, कभी कभी, निमोनिया निरंतर बुखार, मंदनाड़ी, यकृत-या प्लीहा की वृद्धि (hepatosplenomegaly), हो सकती हें। 
  शरीर के मध्य भाग(ट्रंक) की त्वचा पर गुलाबी धब्बे, दिखाई दे सकते हें। तीसरे सप्ताह में रोग 10-20% तक घातक हो सकता है।

क्या? मियादी बुखार आंत्रिक ज्वर या टाइफोइड अधिकांशत: होता है स्वयं की गलती से!

क्या? मियादी बुखार आंत्रिक ज्वर या टाइफोइड अधिकांशत: होता है स्वयं की गलती से!  

जी हाँ यह सही है।

केवल मनुष्यों में सालमोनीला टायफ़ी नामक जीवाणु वाले संक्रमित जल और मल से दूषित खाद्य पदार्थ खाने से आंतों में पहुँच वहाँ से खून में जाकर तेजी से बढ़ते हें, और टाइफाइड, आंत्रिक ज्वर, आन्त्र ज्वर,  उत्पन्न करते हें।  
कुछ व्यक्तिओं में  इसके  कीटाणु तो मिलते हें, पर उन्हे यह रोग नही होता वे अन्य को रोग फेला सकते हें। एसे लोग रोग संबाहक होते हें।
बचने का रास्ता यही है की जोखिम भरे

पुजा के समय बांधा जाने वाला कलावा अगले दिन उतार देना चाहिए।

पुजा के समय बांधा जाने वाला कलावा प्रति दिन बदलने वाले वस्त्र की तरह प्रतिदिन बदला जाए या हर हाल में अगले दिन उतार देना ही चाहिए?
हिन्दू धर्म से संबन्धित कोई भी व्यक्ति

प्रश्न - चिकिन गुनियाँ के बाद जोढ़ों के दर्द की चिकित्सा?

प्रश्न - मेरी पत्नी को चिकिन गुनियाँ के बाद जोढ़ों के दर्द की चिकित्सा बताएं?
 [after Chikenguniya's treatment for Joint pain. My wife suffer with join pain. Please guide me. भवदीय, Hiren shah | hsci2012@gmail.com]

उत्तर- चिकनगुनिया रोग [जो एडीज़ मच्छर द्वारा वाइरस पहुँचने से होता है,] में जोड़ों की सूजन, जोड़ों का दर्द, जोड़ों की हार्डनेस [कठोरता] मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, थकान (कमजोरी), मतली, उल्टी और चिड़चिड़ाहट और ज्वर होता है।

दूसरों के द्वरा धूम्रपान से फेफड़ों का कैंसर- विश्व में मौत का सबसे बड़ा कारण होगा?

दूसरों के द्वरा धूम्रपान-  फेफड़ों का कैंसर, विश्व में मौत का सबसे बड़ा कारण होगा?
सैकंड हैंड स्मोक महिलाओं के लिए खतरे की घंटी?
पहले सिग्रेट व उससे होने वाले लंग कैंसर का नाम सुनकर लोग उसे पुरुषों से संबंधित मानते थे। लेकिन पुरूषों की बीमारी समझे जाने वाला लंग कैंसर

पीलिया रोग के जिम्मेदार हम स्वयं?

अधिकांशत: पीलिया रोग हमारी लापरवाही से ही होता है।  
वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारण लोग पीलिया के नाम से जानते हैं।

स्वाइन फ्लू में प्रभाव शाली हे आयुर्वेदिक औषधि ।

 स्वाइन फ्लू में प्रभाव शाली हे आयुर्वेदिक औषधि 
स्वाइन फ्लू का वायरस बेहद संक्रामक होता हे। 
   यदि किसी किसी भी आयु के रोगी में बुखार या बढा हुआ तापमान (100.4°F से अधिक), अत्यधिक थकान, सिरदर्द, ठण्ड लगना या नाक निरंतर बहना' गले में खराश, कफ, सांस लेने में तकलीफ, भूख कम लगना, मांसपेशियों में बेहद दर्द,  पेट खराब होना, जैसे कि उल्टी या दस्त होना , ये सभी लक्षण या ज़्वर के साथ इनमें से तीन से अधिक लक्षण मिल रहे हों तो वय स्वाइन फ्लू का रोगी हो सकता हे। 
  आयुर्वेद में इस प्रकार से लक्षणो से युक्त रोग का नाम सन्निपातज ज़्वर {माधव निदान] के नाम से जाना  गया हे। 
  आधुनिक विज्ञान की सहायता से इसका कारण एक  शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच1एन1 माना गया हे, इसी कारण इसे स्वाइन फ्लू भी कहते हैं। यह विषाणु सूअर [Pigs] में समान्यतया पाया जाने वाले विषाणुओं में से हे। यह विषाणु के विरुद्ध मनुष्यो में एंटीबोड़ी बन जाने से संक्रमण नहीं कर पाता। पर जब एंटोबोड़ी नहीं हो तब घातक असर डाल सकता हे।  परंतु सूअरों के लिए बड़ा घातक होता हे। सूअरों से सीधे मनुष्यों में संक्रमण के कम ही मामले होते हें, पर यदि होते हें, तो बड़े घातक या मारक सिद्ध होते हें। 

   स्वाइन फ्लू का वायरस बेहद संक्रामक होता हे, जो एक इंसान से दूसरे इंसान तक उनमें एंटोबोड़ी न होने पर बहुत तेज़ी से फैलता है। जब कोई खांसता या छींकता है, तो हवा में उड़ती ये बून्द करीब एक मीटर (3 फीट) तक पहुंचती है। जब कोई खांसता या छींकता है, तो छोटी बून्दे थोडे समय के लिए हवा में फैल जाती हैं, और बाद में किसी सतह पर बैठ जाती है। छोटी बून्दो में से निकले वायरस कठोर साधारण वस्तुएं जैसे कि दरवाजों के हैंडल, रिमोट कंट्रोल, हैण्ड रैल्स, तकिए, कम्प्युटर का की बोर्ड  बसो,रेलों या घर के हेंडिलो, सीटो बिस्तर, कपड़ों, आदि पर आ जाते हैं। जिस पर ये वायरस 24 घंटो तक जीवित रह सकते हैं, किसी कोमल सतह पर बैठती हैं, तो वायरस करीब 20 मिनट तक जीवित रह सकता है। जब भी कोई अन्य इस दोरान इसके संपर्क में आता हे , इन सतहों को छूता है, और संक्रमित हाथों को अपने मुंह या नाक में रखता है, तो वह स्वाइन फ्लु से संक्रमित हो सकता है। छींक या खांसी के द्वारा हवा में फेलते हुई इन संक्रमित बून्दो के बीच सांस लेते हैं, तो भी आप भी प्रभावित हो जाते हें। यदि आपके शरीर में एंटीबोडी हे, तो स्वयं रोग ग्रस्त न हों पर आप इनके वाहक वन कर अन्य संपर्क में आने वालों को अनजाने ही ये विषाणु बाँट देते हें। 
     बच्चे और युवा, बड़े  वयस्कों की अपेक्षाकृत स्वाइन फ्लू से जल्दी संक्रमित होते हैं, अधिकतर मामलों में  लक्षण बेहद मामूली होते हैं, और सप्ताह के भीतर ही सुधार दिखाई देने लगता है। स्वाइन फ्लू के अधिकतर मामलों में बीमारी उपचार से या बिना किसी उपचार के ठीक हो जाती है। 
    बहुत ही कम मामलों में स्वाइन फ्लू गंभीर रूप धारण करती है, और मृत्यु का कारण बनती है, जैसे कि न्युमोनिया। रिपोर्टो के अनुसार प्रयोगशाला से प्रमाणित स्वाइन फ्लु के मामलो मे से करीब 0.4% लोगो की मौत हो चुकी है, जो कि सामान्य मृत्यु दर ही है। इसलिए स्वाइन फ्लू से आतंकित रहने का कोई कारण नहीं हें। 
 परंतु  यदि आपको कोई गंभीर बीमारी है, (जैसे कि कैंसर, किडनी की गंभीर बीमारी) जो कि आपके प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर बनाती हो, या यदि आप गर्भवती हैं, या यदि आपका बीमार बच्चा एक साल से कम उम्र का हो , या यदि आपकी बीमारी अचानक पहले से अधिक गंभीर होने लगी हो, ओर घातक लक्षण साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे हों, या १६ वर्ष से कम उम्र के बच्चों की हालत में, पांच या सात दिनों के बाद भी कोई सुधार नहीं हो रहा हो तो,  आपको अपने चिकित्सक से तुरंत मिलना चाहिए। 
   संक्रमण की वजह स्वाइन फ्लू  नहीं हो पर इसकी तरह कुछ लक्षण अन्य उत्पन्न होनेवाले  अन्य गम्भीर रोगों से भी उत्पन्न हो सकते जेसे टान्सलाइटिस (तुण्डिका-शोध) – (टांसिल का संक्रमण), ओटिटिस मीडिआ, ( कान में संक्रमण), सेप्टिक शॉक - (खून का संक्रमण जो कि खून के दबाव को नीचे गिराने का कारण बनता है. और ये जानलेवा भी साबित हो सकता है।) ,मस्तिष्क ज्वर - ( दिमाग और रीढ की हड्डी को ढंकने वाली झिल्ली का संक्रमण) और एन्सेफलाइटस - (मस्तिष्ककोप) – (मस्तिष्क में जलन या सूजन) है।(हालांकि इसकी संभावना बेहद कम होती है)
एलोपेथिक चिकित्सा में स्वाइन फ्लु का उपचार सामान्य फ्लु के जैसे ही किया जाता है, बुखार, कफ, और ठंड के बचाव के लिये दवाए दी जाती हैं, कुछ लोगों को शायद विषाणुरोधक दवाए (एंटीवायरल) या उपचार की ज़रुरत पड सकती है। 


आयुर्वेदिक चिकित्सा 
संजीवनी वटी, लक्ष्मीविलास रस, गोदन्ती भस्म, गिलोय सत्व, का मिश्रण आयु के अनुसार ,  मान्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से इस रोग में प्रभाव शाली सिद्ध हुआ हे। 

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डेंगू जानलेवा हे -केसे बचे?

जानलेवा डेंगू हे  -केसे बचे   
एडीज मच्‍छर के काटने से होने वाला डेंगू संक्रामक रोग है और यह जानलेवा भी हो सकता है। यह मच्‍छर दिन में काटते हैं। डेंगू होने पर तेज बुखार, शरीर में दर्द, पेट में दर्द खून की उल्‍टी जैसी समस्‍यायें शुरू हो जाती हैं। इसमें रक्त के अन्दर पाई जाने वाली प्लेटलेट्स की संख्या 30 हजार से कम होने लगती हे । यह प्लेटलेट्स रक्त में रह कर कहीं से भी लीकेज अदि होने पर वहां पहुचकर थक्के के रूप में जमा होकर लीकेज को पंचर जोड़ने की तरह जोड़ कर रक्त बहने से रोकती हें। इनकी कमी से मष्तिष्क आदि में रक्त रिसने से क्षति पहुचती हे जो मोत का कारण बन जाती हे। 

पीलिया के कारण एवं बचाव

जॉण्डिस या पीलिया अनेक कारणों से होता है। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन प्रोटीन होता है, जो कि रक्त में ऑक्सीजन वाहक का कार्य करता है। रक्त की लाल रक्त कोशिकाएं निरंतर बनती रहती हैं, और पुरानी नष्ट होती रहती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं से टूटने से हीमोग्लोबिन निकलकर बिलिरूबिन लवण में परिवर्तित हो जाता है, वहां से बिलिरूविन लिवर में पहुंचकर रासायनिक परिवर्तन मल या पेशाब के माध्यम से शरीर से निकलता रहता है। यदि लाल रक्त कोशिकाओं की टूटने की प्रक्रिया तेजी से होती रहती है या लीवर के रोगों में बिलिरूबिन का स्तर रक्त में बढ़ जाता है, रक्त में जब बिलिरूबिन का स्तर 0.8 मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली. से बढ़ जाता है तो यह दशा जॉण्डिस कहलाती है, पर आंख तथा त्वचा का पीला रंग रक्त में बिलिरूबिन की मात्रा 2 से 2.5 मि.ग्रा. तक बढ़ने पर ही दिखाई पड़ता है।

मम्‍स या कण्ठमाला


    कण्ठमाला रोग का संक्रमण एक वायरस से होता है,     जो प्रत्येक कान के सामने कर्णमूलीय ग्रंथियों की सूजन का कारण बनता है | यह सुजन गाठो के रूप में बढती हें|


 पैरामायक्सोवायरस जो कि एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में  खाँसी,छीके, और लार,साथ ही साथ दूषित वस्तुओं और सतहों के माध्यम के साथ संपर्क से,(उपयोग किए हुए टिशू , पीने का गिलास से, गंदे हाथ,बहती हुई नाक को छुने से, फैलाता है )| एक बार कण्ठमाला रोग वायरस शरीर में प्रवेश करता है, वह खून में गुजरता है और कई अलग अलग ग्रंथियों और मस्तिष्क में फ़ैल सकता है| कण्ठमाला रोग वायरस भी मस्तिष्क में चले जाती है , जहां यह मैनिंजाइटिस (सूजन और मस्तिष्क की झिल्लियों के संक्रमण को करती है ) और इन्सेफेलाइटिस (मस्तिष्क संक्रमण) का कारण हो भी  सकता है| कभी कभी बहरापन , पक्षाघात (कमजोरी, विशेष रूप से चेहरे की मांसपेशियों में) कर सकता हे |

कण्ठमाला रोग के साथ लोगों को पहले 48 घंटे जब शुरू होता है एक अवधि कि और 6-9 दिन समाप्त होने के दौरान कण्ठमाला रोग के लक्षणों की शुरुआत के बाद ऐसा होता हैं | इसका  प्रभावी टीके से पहले 1960 में उपलब्ध हो गया था |

15% से 20% रोगियों में, कण्ठमाला रोग प्रारम्भ में कोई भी लक्षण पैदा नहीं करता है| आमतौर पर 14-18 दिन में लक्षण होते हैं 
 कण्ठमाला रोग के लक्षणों में संक्रमण, बुखार, सिर दर्द, गले में ख़राश, मांसपेशियों में दर्द, भूख ना लगना, बीमार जेसी  गिरी गिरी हालत महसूस कर सकता है| कण्ठमाला रोग वायरस दर्द करता हे कान के नीचे इअरलोब के सामने सूजन हो सकता है जिसको पेरोटिसिस कहते हें| इसके  दर्द की वजह से, चबाने, निगलने में बहुत असुविधाजनक हो सकता है ,और रोगी का खाने का मन नहीं होता|
कभी कभी, पुरुष, किशोरों और वयस्कों में कण्ठमाला रोग के साथ सूजन और एक या दोनों टेस्टीकल्स  में दर्द हो सकता हैं | महिलाओं में, अंडाशय में संक्रमण से पेट दर्द पैदा कर सकता है|
कुछ सेक्स के रोगियों / बच्चों / वयस्कों में साधारण या गंभीर जटिलताओं के सहित हो भी सकता है|

कण्ठमाला का रोग के लक्षण आम तौर पर 10 दिनों तक रहते है| एक बार के संक्रमण के बाद आमतौर जीवन भर के लिए कण्ठमाला रोग के वायरस से प्रतिरक्षा हो जाती हैं| कण्ठमाला रोग को होने से  रोकने के लिए कण्ठमाला रोग के टीके दिए जा सकते हें|

क्योंकि कण्ठमाला का रोग के साथ रोगियों में 48 घंटे संक्रामक हैं,इस समय रोगी को अलग रखना चाहिए|आमतौर पर बच्चे जिनको कण्ठमाला का रोग होता है उनको स्कूल या शिशु देखभाल से नौ दिनों के लिए बाहर रखा जाता है |
सामान्य परिस्थितियों में चूँकि यह रोग स्वयं ही ठीक हो जाता हे अत दवाओ की जरुरत नहीं होती |इसी का लाभ झाड़,फूक, मंत्र टोना वाले लोग उठाते हें | अत उनसे सावधान रहे | पर दर्द / ज्वर अदि से बचने और शारीरिक क्षमता बांये रखने हेतु निम्न आयुर्वेदिक औषधि कारगर हें|
कांचनार गूगल २-२  /लघुबसन्त मालती रस १/४ ग्राम/ संजीवनी वटी२-२ गोली, दो या तीन बार  दें| अन्य जटिलता लगती हो तो गण्डमाला कंडंन रस चिकित्सक से परामर्श कर दी जा सकती हे |


समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान ,एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें |.
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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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