Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

पीलिया रोग के जिम्मेदार हम स्वयं?

अधिकांशत: पीलिया रोग हमारी लापरवाही से ही होता है।  
वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारण लोग पीलिया के नाम से जानते हैं।
मंत्र-तंत्र, झाड-फूँक आदि अंधविश्वास वाली क्रियाओ से पीलिया ठीक नहीं होता। समान्यत: यह वाइरस के
विरुद्ध एंटिबाड़ी बन जाने से कुछ दिन में खुद ही ठीक हो जाया करता है। इसी बात का लाभ झाड-फूँक वाले 

उठाते हें या शायद उन्हे भी यह बात नहीं मालूम, वे समझते हें, की उनकी क्रियाओं से या दावा से रोगी ठीक 

गया है। उचित चिकित्सा करवाने से काप्लीकेशन नहीं होता।
यह रोग बहुत ही सूक्ष्‍म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पडते हैं, परन्‍तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं।
जिन वाइरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्‍यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है,
1- वायरल हैपेटाइटिस ए, 2- वायरल हैपेटाइटिस बी तथा 3- वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी।
कैसे फेलता है रोग ?
यह रोग ज्‍यादातर ऐसे स्‍थानो पर होता है जहॉं के लोग व्‍यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्‍यान देते हैं अथवा बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते। भीड-भाड वाले इलाकों में भी यह ज्‍यादा होता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नान ए व नान बी एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति के नजदीकी सम्‍पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होतें है पीलिया रोग से पीडित व्‍यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है।
ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नही दिख रहे हों परन्‍तु यदि वे इस रोग से ग्रस्‍त हो तो अन्‍य रोगियो की तरह ही रोग को फैला सकते हैं।
वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून व खून से निर्मित प्रदार्थो के आदान प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है।
इसमें वह व्‍यक्ति हो देता है उसे भी रोगी बना देता है। यहॉं खून देने वाला रोगी व्‍यक्ति रोग वाहक बन जाता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्‍जेक्‍शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है।
पीलिया रोग से ग्रस्‍त व्‍यक्ति का वायरस, निरोगी मनुष्‍य के शरीर में प्रत्‍यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्‍यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहूंच जाते हैं। इससे स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य भी रोग ग्रस्‍त हो जाता है।
रोग कहॉं और कब?
ए प्रकार का पीलिया तथा नान ए व नान बी पीलिया सारे संसार में पाया जाता है। भारत में भी इस रोग की महामारी के रूप में फैलने की घटनायें प्रकाश में आई हैं। हालांकि यह रोग वर्ष में कभी भी हो सकता है परन्‍तु अगस्‍त, सितम्‍बर व अक्‍टूबर महिनों में लोग इस रोग के अधिक शिकार होते हैं। सर्दी शुरू होने पर इसके प्रसार में कमी आ जाती है।
रोग के लक्षण:-
ए प्रकार के पीलिया और नान ए व नान बी तरह के पीलिया रोग की छूत लगने के तीन से छः सप्‍ताह के बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
बी प्रकार के पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) के रोग की छूत के छः सप्‍ताह बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
पीलिया रोग होने पर निम्न लक्षण मिल सकते हें:- 
  1. रोगी को बुखार रहना।
  2. भूख न लगना।
  3. चिकनाई वाले भोजन से अरूचि।
  4. जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियॉं होना।
  5. सिर में दर्द होना।
  6. सिर के दाहिने भाग में दर्द रहना।
  7. आंख व नाखून का रंग पीला होना।
  8. पेशाब पीला आना।
  9. अत्‍यधिक कमजोरी और थका थका सा लगना 
पीलिया रोग किस आयु में?
यह रोग किसी भी अवस्‍था के व्‍यक्ति को हो सकता है, हॉं, रोग की उग्रता रोगी की अवस्‍था पर जरूर निर्भर करती है। गर्भवती महिला पर इस रोग के लक्षण बहुत ही उग्र होते हैं और उन्‍हे यह ज्‍यादा समय तक कष्‍ट देता है। इसी प्रकार नवजात शिशुओं में भी यह बहुत उग्र होता है तथा जानलेवा भी हो सकता है।
बी प्रकार का वायरल हैपेटाइटिस व्‍यावसायिक खून देने वाले व्‍यक्तियों से खून प्राप्‍त करने वाले व्‍यक्तियों को और मादक दवाओं का सेवन करने वाले एवं अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍बन्‍धों द्वारा लोगों को ज्‍यादा होता है।
रोग की जटिलताऍं:-
ज्‍यादातार लोगों पर इस रोग का आक्रमण साधारण ही होता है। परन्‍तु कभी-कभी रोग की भीषणता के कारण कठिन लीवर (यकृत) दोष उत्‍पन्‍न हो जाता है।
बी प्रकार का पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) ज्‍यादा गम्‍भीर होता है इसमें जटिलताएं अधिक होती है। इसकी मृत्‍यु दर भी अधिक होती है।
उपचार:-
सभी वाइरल रोगों की तरह कोई जटिलता (कोप्लीकेशन) न होने पर, यह भी शरीर में कुछ समय बाद एंटीबोडी बनाने के बाद सामान्यत: स्वत: ठीक हो जाया करता है, इसी लिए जटिलताओं से बचने के लिए अच्छा है, यदि रोगी को शीघ्र ही शिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक या डॉक्‍टर के पास जाकर परामर्श ले ले। कई व्यक्ति व्यर्थ की मंत्र-तंत्र, झाड-फूँक गंडा तावीज आदि करवाते रहते हें इससे कोई भी फर्क नहीं होता यदि कोप्लीकेशन नहीं होता तो रोगी को तो स्वत: ठीक होना ही है। यदि उचित सलाह मिल जाती है तो न तो रोगी व्यर्थ कमजोर होगा ओर न ही कोई जटिलता या काप्लीकेशन होगा।
 निम्न बातें ध्यान रखे:-
  • बिस्‍तर पर आराम करना चाहिये घूमना, फिरना नहीं चाहिये।
  • लगातार जॉंच कराते रहना चाहिए।
  • भोजन में प्रोटिन और कार्बोज वाले प्रदार्थो का सेवन करना चाहिये।
  • गन्ने का रस, नीबू, संतरे तथा अन्‍य फलों का रस भी इस रोग में गुणकारी होता है।
  • वसा युक्‍त गरिष्‍ठ भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है।
  • चॉवल, दलिया, खिचडी, थूली, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्‍लूकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली सप्रेटा(क्रीम रहित) दूध, आदि कार्बोहाडेट वाले प्रदार्थ हैं इनका सेवन करना चाहिये। 
  • रोग के प्रारम्भ कुछ दिन नमक चिकनाई (घी,तेल,आदि) बंद करने पर रोग जल्दी ठीक होता है। 
  •  पीलिया में आयुर्वेदिक औषधीय बहुत ही कारगर है|इससे लीवर की क्षति पूर्ति के साथ ही अन्य संक्रमण या कोप्लीकेशन भी नहीं होने पाते। इससे रोगी को राहत महसूस होती है। श्वेत या क्षार पर्पटी १/२ ग्राम+हजरल यहूद भस्म १/४ ग्राम +ग्लूकोस+पानी =दो या तीन बार एवं कायनेटोमाईन (kynetomine) टेब जे एंड जे डिशेंन) २-२ गोली दो या तीन बार| चिकनाई और नमक रहित भोजन करने से जल्दी ही रोग नष्ट हो जाता है। यकृत भी बलवान बनता है। रोगी के मूत्र का पीलापन जल्दी कम होने से मनोवैज्ञानिक रूप से भी उसे लाभ होता है। 
जरा सी सावधानी-ओर पीलिया से बचाव
यह भी अधिक जरूरी है की पीलिया रोग की रोकथाम की जाए ताकि घर- परिवार ओर शहर गाँव में फैल नही सके। 
पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिये कुछ साधारण बातों का ध्‍यान रखना जरूरी हैः-
  • खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्‍छी तरह धोना चाहिए।
  • भोजन जालीदार अलमारी या ढक्‍कन से ढक कर रखना चाहिये, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें।
  • ताजा व शुद्ध गर्म भोजन करें दूध व पानी उबाल कर काम में लें।
  • पीने के लिये पानी नल, हैण्‍डपम्‍प या आदर्श कुओं को ही काम में लें तथा मल, मूत्र, कूडा करकट सही स्‍थान पर गढ्ढा खोदकर दबाना या जला देना चाहिये।
  • गंदे, सडे, गले व कटे हुये फल नहीं खायें धूल पडी या मक्खियॉं बैठी मिठाईयॉं का सेवन नहीं करें।
  • स्‍वच्‍छ शौचालय का प्रयोग करें यदि शौचालय में शौच नहीं जाकर बाहर ही जाना पडे तो आवासीय बस्‍ती से दूर ही जायें तथा शौच के बाद मिट्टी डाल दें।
  • रोगी बच्‍चों को डॉक्‍टर जब तक यह न बता दें कि ये रोग मुक्‍त हो चूके है स्‍कूल या बाहरी नहीं जाने दे।
  • इन्‍जेक्‍शन लगाते समय सिरेन्‍ज व सूई को 20 मिनट तक उबाल कर ही काम में लें अन्‍यथा ये रोग फैलाने में सहायक हो सकती है।
  • रक्‍त देने वाले व्‍यक्तियों की पूरी तरह जॉंच करने से बी प्रकार के पीलिया रोग के रोगवाहक का पता लग सकता है।
  • अनजान व्‍यक्ति से यौन सम्‍पर्क से भी बी प्रकार का पीलिया हो सकता है।
समाज के समझदार लोग ओर स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता आदि ध्‍यान दें
  • यदि आपके क्षेत्र में किसी परिवार में रोग के लक्षण वाला व्‍यक्ति हो तो उसे डॉक्‍टर के पास जाने की सलाह दें।
  • क्षेत्र में व्‍यक्तिगत सफाई व तातावरणीय स्‍वच्‍छता के बारे में बताये तथा पंचायत आदि से कूडा, कचरा, मल, मूत्र आदि के निष्‍कासन का इन्‍तजाम कराने का प्रयास करें।
  • रोगी की देखभाल ठीक हो, ऐसा परिवार के सदस्‍यों को समझायें।
  • रोगी की सेवा करने वाले को समझायें कि हाथ अच्‍छी तरह धोकर ही सब काम करें।
  • स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता सीरिंज व सुई 20 मिनिट तक उबाल कर अथवा डिसपोजेबल काम में लें।
  • रोगी का रक्‍त लेते समय व सर्जरी करते समय दस्‍ताने पहनें व रक्‍त के सम्‍पर्क में आने वाले औजारों को अच्‍छी तरह उबालें।
  • रक्‍त व सम्‍बन्धित शारीरिक द्रव्‍य प्रदार्थो पर कीटाणुनाशक डाल कर ही उन्‍हे उपयुक्‍त स्‍थान पर फेंके अथवा नष्‍ट करें।
  • समाज सेवक देखें की आपके आस-पास कोई चिकत्सक स्वास्थ कार्यकर्ता इन बातों का ध्यान रख रहे हें या नहीं। एसा न होने पर समझाएँ। न मनाने पर नजदीकी जिला स्वास्थ्य अधिकारी से शिकायत करें। हम सबका यह दायित्व है की हमारा समाज रोग मुक्त हो। 
------------------------पीलिया के कारण एवं बचाव ओर भी ----------------------
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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