रीड की हड्डियाँ एक बांस की संरचना के समान होती हें, बीच के जोड़ से जुड़े भाग को 'न्यूक्लियस' डिस्क कहा जाता है। इसमें जेली जैसा पदार्थ भर होता है जो झटकों से बचाने का काम करता है । इस हेतु इसमें रेशेदार परतें (called the 'annulus' which means "ring") होती हें।
बडती आयु के साथ साथ,
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पीठ का तेज दर्द |
अंतर- कशेरुका डिस्क
जेल (पानी) कम होने लगता है। ओर सूखा सा होकर बाहर की ओर खिसक जाता है। ओर एक प्रकार
का उभार सा बन जाता है,
ओर रिंग फेल सी जाती है,
यह वेसा ही है जेसे किसी फटी हुए थेली से पोटली सी निकलने
लगे। इसके अत्यधिक दबाब के कारण परतों में टूटन होने लगती है।
इससे वलय के बाहर जेली (नाभिक pulposus) रिसाव होने लगता है।
परिणाम के रूप में चोट के समान दर्द होता है। ओर दो कशेरुकाओं को जो अब तक आसानी से बंधे हुए
थे में अस्थिरता और तंत्रिका जलन के साथ गंभीर पीठ दर्द (nerve irritation can lead to severe back pain.)
हो सकता है।
दर्द पीठ के निचले हिस्से तक महसूस किया
जा सकता है,
या, यह
पैर नीचे radiates रीड
की हड्डी के बीच मेरु नाड़ी मे हो सकता है। मेरुनाडीय दर्द का सबसे आम कारण डिस्क की
हर्नियेशन है। पीठ के नीचे के भाग में दर्द
(लो बेक पैन) हर्नियेशन 85% L4-5
और L5-S1
पर होते हैं। सामान्यत: वयस्कों में यह herniated डिस्क समस्या 30 की उम्र और 55 साल के बीच मिलती
है।
आम तौर पर, शरीर के वजन मध्य के
भाग (interspersed,)
के साथ एंटीरियर स्पाइनल कॉलम (anterior
spinal column ) और बोनी कशेरुकाओं (bony vertebrae) पर (fibrocartilaginous discs)
रहता है,
मेरुनाडीय दर्द आमतौर पर चोट, उठाने या मरोड़ने के
साथ शुरू होती है। तेज दर्द के साथ महसूस की जाती है।
स्नायविक संरचनाओं में जलन ,प्रतिक्रीया, या कभी कभी आंत्र या
Blader के
रोग के रूप भी हो सकती है।
कटिस्नायुशूल या
ग्रध्रसी (Sciatica)
की स्टीथी भी पैर में (आमतौर पर पैर या टखने
के भाग में) या पिछले भाग में नीचे की ओर चलती हुई सी (radiating ) एक तेज जलन या दर्द, ओर अक्सर स्तब्ध हो
जाना आदि जेसे
लक्षण हो सकते है।
आधुनिक चिकित्सक इसकी चिकित्सा एक मात्र सर्जरी
मानते हें, पर सर्जरी से बाहर निकले पदार्थ को अंदर धकेला जा सकता है
रोक लगाई जा सकती है पर सूखे हुए तरल को पुनः स्थापित किया जाना संभव नहीं।
आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा द्वारा यह सभव हो सकता
है। पंचकर्म में की जाने वाली प्रक्रियाओं जैसे कटिबस्ती ,पत्रपिंड स्वेद, आदि द्वरा रोगी को लाभ दिया जा सका
है। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसकी चिकित्सा करते समय मल-मूत्र की स्थिति पर नजर रखते
हुए भोजन अनुपान, ओर कई प्रकार की ओषधि बस्तियो (एनीमास) का
प्रयोग करते हें। आयुर्वेद में विशिष्ट फिजिओथेरेपी भी पंचकर्म के साथ ही जुड़ी
होती है। पूरी चिकित्सा लंबे समय तक चलती रह सकती है। इसके लिए कोई अत्यधिक कुशल पंचकर्म विशेषज्ञ की
सहायता ही लेना चाहिए। तीव्र (एक्यूट) स्थिति में पहिले ट्रेक्सन ओर दर्द निवारक
आधुनिक ओषधि आधुनिक चिकित्सक की सलाह से ले लेना चाहिए। थोड़ी राहत होने पर पंचकर्म
चिकित्सा लेने से रोग मुक्ति हो सकती है। -डॉ मधु सूदन व्यास
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Q- स्लिप्ड डिस्क समस्या से कैसे बचा जा सकता है?
A-नियमित तीन से छह किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलें। यह सबसे अच्छा व्यायाम है हर व्यक्ति के लिए। देर तक स्टूल या कुर्सी पर झुक कर न बैठें। अगर डेस्क जॉब करते हैं तो ध्यान रखें कि कुर्सी आरामदेह हो और इसमें कमर को पूरा सपोर्ट मिले। शारीरिक श्रम मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। लेकिन इतना भी परिश्रम न करें कि शरीर को आघात पहुंचे। देर तक न तो एक ही पोश्चर में खडे रहें और न एक स्थिति में बैठे रहें।किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी न करें। पानी से भरी बाल्टी उठाने, आलमारियां-मेज खिसकाने, भारी सूटकेस उठाते समय सावधानी बरतें। अचानक झटके के साथ न उठें-बैठें।हाई हील्स और फ्लैट चप्पलों से बचें।
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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