Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

SKIN – The Outermost protective body covering & Responder for external stimuli.

Skin त्वचा शरीर की सुरक्षात्मक चादर, और सम्बेदना  का ज्ञान (अनुभव) कराने वाली एक ज्ञानेन्द्रिय . 
वर्तमान में यदि कोई रोग सर्वाधिक होता है तो वह है चर्म रोग या स्किन डिसीज|
सबसे बड़ी समस्या है तो वह है, हवा, पानी, धूल, धुप, रसायन, वातावरण, प्रदूषण, दवाओं के परिणाम, कुछ भी हो त्वचा को ही सबसे पाहिले भुगतना होता है|  
वर्तमान में सोन्दर्य प्रसाधन बाज़ार ही सबसे बड़ा है| सभी सुन्दर, स्वस्थ, निरोगी रहना चाहते है, इसके लिए हमको अपनी इस त्वचा या स्किन को जानना ही होगा| यदि हम अपनी त्वचा को जान जायेंगे तो चर्म रोगों को भी समझना आसान रहेगा जिनके कारण हम बदसूरत और कई आन्तरिक रोगों से प्रभावित हो जाते हें| क्योंकि किसी भी रोग का पहिला असर त्वचा पर ही पड़ता है|  
हमारी यह त्वचा या स्किन बड़ी ही अद्भुत (amazing ) है! –
शरीर के आन्तरिक स्वास्थ्य, और बाह्य सुन्दरता के लिए सबसे बड़ा कवच, सबसे अधिक सफल चोकीदार, और सबसे शक्तिशाली योद्धा, यदि कोई है तो वह हमारी स्वतः बदल जाने वाली, बहुत सारे काम एक साथ करने वाली, और वातावरण से रक्षा करने वाली  त्वचा (skin) ही है |  
त्वचा में अनेक प्रकार की कोशिकाएं होतीं हें और उनके अनेक प्रकार के कार्य भी होते हें, वातावरण, परिस्थिति रसायनों के सीधे सम्पर्क में आ जाने से कई दुष्परिणाम होते रहते हें, प्रत्येक विशिष्ट कोशिका प्रभावित होकर अपक्षय (degenerative)  प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकती है|
त्वचा शरीर के आन्तरिक रोगों का प्रतिबिम्ब भी होती है| यदि शरीर में कोई भी रोग हो तो उसका प्रभाव त्वचा अवश्य पर दिखाई देता है|
त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग कहा जा सकता है, सामान्यत यह शरीर के वजन का 16% और 1.8 m2 घन मीटर) या 19.375 ft2 or sq ft (घन फीट) तक होता है|
त्वचा की बनावट और मोटाई अलग अलग स्थान के मान से 0.जैसे (आंख की पलक) से 3 mm (जैसे एडी और पग तल) तक हो सकती है|
त्वचा तीन परत वाली होती है, 
एपिडर्मिस –बाह्य त्वचा  या उपत्वक (Epidermis), 
डरमिस – मुख्य त्वचा अंतसत्वक (dermis), और 
हायपोडर्मिस- मुख्य त्वचा के नीचे का स्तर उपचर्म वसा (subcutaneous fat), 
बनावट - त्वचा में कहाँ क्या है?
हमारे तलुओं एवं ऊँगलियों की मोटी बाल विहीन त्वचा की एपिडरमिस भी ज्यादा मोटी होती है। इसमें त्वचा पेशीरक्तवाहिनियों के जालें तथा पसीना ग्रंथी की नलिकायें होती हैं। साथ ही साथ त्वचा के संवेदन तंतु भी होते हैं। हायपोडर्मिस मुख्य रुप से स्निग्ध पेशी की होती है। इसमें रक्तवाहनियां (Blood vessels), संवेदना तंत्रिकायें (sensory nerve) एवं पसीने की ग्रन्थियां (Sweat glands) होती हैं।
शरीर के शेष भाग में पतलीकेशयुक्त त्वचा में बाह्य त्वचा का स्तर कम मोटा होता है। इससे बाल बाहर निकलते हैं। बालों के चारों ओर सॅबेशियस ग्रंथी का मुख होता है। शेष त्वचा पर पसीने की ग्रन्थियों के मुख होते हैं। डरमिस अथवा मुख्य त्वचा मोटी होती है। इस स्तर में रक्तवाहनियाँसंवेदना तंतुसॅबेशियस ग्रंथी एवं सूक्ष्म स्नायु होते हैं। हायपोडरमिस में पसीने की ग्रंन्थियां तथा बालों की जडें होती हैंजो डरमिस से लेकर हायपोडरमिस तक होती हैं।
एपिडर्मिसप्रतिदिन बदलते रहने वाली त्वचा की सबसे बाहरी परतएक जलरोधक आवरण प्रदान करती है, और हमारी त्वचा को वर्ण (रंग) देता है| एपिडर्मिस के नीचे स्थित त्वचासक्त संयोजी ऊतक (connective tissue)बाल follicles, और पसीना ग्रंथियां होतीं हैं।
आंतरिक त्वचा के ऊतक (हाइपॉडर्मिस) वसा (Fat) और संयोजी ऊतक से बना होता है।
बाह्य त्वचा (एपिडर्मिस) स्थित मेलेनोसाइट्स नामक विशेष कोशिकाओं द्वारा रंजक तत्व मेलेनिन का उत्पादन होता है। मेलॅनीन नामक पदार्थ ही त्वचा का रंग तय होता है, दूसरी लॅगरहन्स पेशी होती है, जिसका संबंध शरीर के अंतर्गत प्रतिकार शक्ति से होता है। कोई भी एलर्जिक प्रतिक्रिया (रिएक्शन) इन पर ही होता हैउपत्वक सामान्यत केरेटिनोसाइट्स (Keratinocytes[1]) से बनती है, इसकी भी चार परतें होतीं हैं| स्ट्रैटम कॉर्नएम (Stratum corneum), स्ट्रैटम ग्रैनुलोसम (Stratum granulosum)  स्ट्रैटम स्पानोसॉम (Stratum spinosum)स्ट्रैटम बेसल (Stratum basale),
स्ट्रैटम कॉर्नएम प्रतिदिन नष्ट होने वाली मृत कोशिकाओं की पर्त होती है, जो स्नान आदि के समय निकाल जाती है|  यदि साफ़-सफाई करके हटाई न जाएँ तो भूसी की तरह जमा होकर नई कोशिका बनने में बाधक होने के साथ रोग का कारण होतीं है| शेष तीनो केरेटिन संश्लेषण (synthesis) कर के जीवित कोशिकाये उत्पन्न  करतीं हैं
एपिडर्मिस के ठीक नीचे गहराई में जालीदार पैपिलरी डर्मिस होती है|
डर्मिस की संयोजी ऊतक connective tissue), जो प्रमुखत: कोलेजन collagen, इलास्टिन, और ग्लाइकोमामिनोग्लाइकन glycosaminoglycan की होतीं हें|
डर्मिस dermis में ही फाइब्रोब्लास्ट (fibroblast), लिम्फोसाइट्स(lymphocytes), और वृक्ष के समान कोशिकाएं  (dendritic cells) स्थित होतीं है
subcutis the lowermost layer has a plexus of nerves and vessels. सबक्यूटीस की  निम्नतम परत में तंत्रिकाओं और वाहिनियों का जाल होता है|
त्वचा में ही रोम और बाल (Hair), स्वेद ग्रन्थियां (Sweat glands), वसा ग्रन्थि (Sebaceous Gland), रहतीं है| त्वचा के इस स्तर में अनेक स्निग्ध पदार्थ होते हैं जिन्हें ‘लिपिडो’ कहते हैं।
त्वचा की पेपिलरी डर्मिस में, सम्बेदी तंत्रिकाओं (Sensory nerves) और उनके विशेष सिरों (nerve ending) का व्यापक जाल होता है|
यहीं पर रस वाहिनियाँ भी त्वचा में एक दूसरे के समांतर चलती हैं और पैपिलरी डर्मिस की सतह पर उनके (वाहिनिओं) जाल बनातीं है, इन स्थानीय रस (लसिका) वाहिनी (लिम्फेटिक्स-लिम्फ नोड्स) से रस धातु (लसिका) निकलती है।
What does this amazing skin do? (Work of skin)
यह अद्भुत त्वचा क्या क्या करती है? ( त्वचा के कार्य):-
  1.  संरक्षण (Protection):-  भोतिक, रासायनिक एवं संक्रमण से बचाव:- शरीर को सभी प्राकृतिक, अप्राकृतिक, बाहरी आक्रमणों का सामना सबसे पहिले त्वचा को ही करना होता है| मुहं से खाई गई हो या श्वास से खींची गई हों, या किसी कीट या सुई इंजेक्शन आदि से शरीर के किसी भी भाग में पहुंच गई हो , उसका अच्छा या बुरा परिणाम त्वचा पर ही सबसे पाहिले दिखता है| 
  2. त्वचा में ही शारीरिक (Physiological)  जल और प्रोटीन आदि (एलेक्टरोलाइटस) का समायोजन ( Adjustment) होता है, इस क्रिया को समस्थिति करण (homeostasis[2] of electrolytes, water and proteins.) कहा जाता है|
  3.  शरीर का ताप नियंत्रण (थर्मो रेग्युलटरी फंक्शन) :- त्वचा ही शरीर पर पड़ने वाली अधिक गर्मी या सर्दी को नियंत्रित कर हमारे जान बचाती है| स्वेद ग्रन्थि इसमें सहायक भूमिका का निर्वाह करती है|
  4.  सम्बेदना ग्रहण, त्वचा एक अनुभूतिक्षम अवयव (सेन्सरी ऑर्गन) है| त्वचा ही शरीर को होनेवाले कष्ट और उनके बचाव के लिए किया जाने वाले प्रतिक्रियात्मक कार्य को सम्पादित करती है|  अपने मन के भाव प्रकट करनेवाली त्वचा (एक्सप्रेसिंग) ही होती है , जो ख़ुशी में रोमहर्ष से, भय में पीली पड जाने आदि लक्षणों से प्रतिबिम्बित होती है|   
  5. आवरण (Covering)   त्वचा में स्थित वसा ग्रन्थि से शरीर को स्निग्धता, और जलरोध आवरण प्रदान करती है जो वातावरण के प्रभाव को निष्क्रिय करने में सहायक होता है| अत त्वचा ही शरीर का संरक्षक कवच (प्रोटेक्टिव ऍक्शन ) है, यह सब जानते हें|
  6.  प्रतिरक्षा immunological – त्वचा में स्थित लैंगेरहाउस  कोशिकाएं (langerhans cells)लिम्फोसाइट्स (lymphocytes),, मैक्रोफेज ( macrophages) रासायनिक प्रभावों को झेलकर उनकी उपयुक्तता या अनुपयुक्तता का निर्णय करती है, सामान्य प्रतिक्रियात्मक रसायन (कीट, वातावरण सम्पर्क आदि से प्राप्त) यहाँ परिवर्तित कर दिए जाते हें इससे वे अंदरूनी अंगों को क्षति नहीं कर पाते| 
  7. विटामिन डी का संलेषण :- त्वचा में  डीहाइड्रो-कॉलेस्ट्रॉल (dehydrocholesterol) नामक एक पदार्थ होता है, सूर्यकिरणों जब इस पदार्थ पर पड़तीं है तो यह विटामिन डी में बदल जाती है
  8.  शरीर की गंध  शरीर की गंध दुर्गन्ध, आदि का प्रभाव को विशेष ग्रन्थि (apocrine glands) द्वारा ज्ञात होता है| 
  9.  मनोवैज्ञानिक Psychological- त्वचा में परिवर्तन से सुन्दरता, कमनीयता, गोर कृष्ण वर्ण आदि प्रसाधिनिक (cosmetic) प्रभाव मनोवैज्ञानिक विश्वास आदि का करना त्वचा ही है| 
  10. त्वचा के निःस्सारण कार्य (एक्सक्रिटरी ऍक्शन) :- त्वचा स्थित स्वेद ग्रन्थियां पसीने के साथ कोशिकाओं में एकत्र मल, मृत जीवाणु, विषाणु आदि को निकलती है|
  11.  सामाजिक – त्वचा से प्रभावित होकर ही लैंगिक निकटता, (सोशिओ सेक्जुअल कम्युनिकेशन) व्यक्ति को मिलती है| इससे संतति वृद्धि, संरक्षण, आदि होना त्वचा की सामाजिक भूमिका है|
आयुर्वेद के अनुसार त्वचा रोगों को जानने हेतु विषयक महत्व पूर्ण विन्दु निम्न हैं 
(key point in disease profile)
  • त्वचा का शरीर की ज्ञानेन्द्रियों के अंतर्गत महत्व पूर्ण स्थान हैअत उपघात एवं उपताप का त्वचा से सीधा सम्बन्ध होता है|
  • त्वचा सात प्रकार (सुश्रुत) की पर्त होती हैं| 1- अवभासनी, 2 लोहिता, 3 श्वेता, 4 ताम्रा, 5 वेधनी, 6 रोहिणी, और 7 मम्सधरा, (चरक मत से प्रथम 6)  होतीं है|  
  • स्पर्श ग्रहण क्षमता के कारण पंचमहाभूतों में वायु महाभूत त्वचा विकार से सीधे सम्बंधित होता है|
  • त्वचा रोगों में वात और पित्त दोष (विशेषकर भ्राजक पित्त) प्रमुख रूप से संबधित रहता है|
  • त्वचा चूँकि रक्त धातु से बनती है, इसीलिए रक्त धातु बड़ने पर शरीर का स्वास्थ्य त्वचा पर प्रदर्शित होता है|
  • रसप्रसादन का प्रभाव सीधे त्वचा पर प्रघट होता है|
  • त्वचा के स्पर्श से रोगी की परीक्षा की जा सकती है|   
  • त्वचा सार देखकर आतुर बला प्रमाण परीक्षा की जाती है|
  • रक्तवह स्त्रोतों की दुष्टि त्वक विकारों में प्रधान होती है|
  • दोषों के अनुसार गुणविकल्प त्वचा पर ही प्रतिबिम्बित होता है|
  • अभ्यंग, उद्वर्तन, स्नान, स्वेदन, आदि त्वचा रक्षा के देनिक भाग होते हें|
त्वचा रोग विषयक आधुनिक शब्द 
त्वचा में होने वाले रोग विषयक वर्तमान में कुछ सामान्य आधुनिक शब्द प्रयुक्त होते हें, और अक्सर इन्ही के शब्द जाल में उलझकर रोगी और आयुर्वेदिक चिकित्सक समान्य से रोग या बात को बढ़ा भरी रोग मानकर भ्रमित होते हें अत: इनको जानना आवश्यक है|
हाइपरकेराटोसिस (Hyperkeratosis):- होने का अर्थ है स्ट्रैटम कॉर्नएम की मोटाई बढ़ना|
पेराकेरोटोसिस  (Parakeratosis):-  स्ट्रैटम कॉर्नएम की कोशिकाओं में अपरिपक्व कोशिकाओं की उपस्थिति|
डिस्केरोटोसिस (Dyskeratosis):- कुछ विशेष कोशिकाओं में समय से पूर्व केरोटिन का बनना|
एकेंथोसिस (Acanthosis) :- आधारीय त्वचा की परत में किसी उत्तेजना के कारण स्ट्रैटम स्पानोसॉम की मोटाई बढ़ना|
एट्रोपी Atrophy  (अपक्षय) :- त्वचा की सभी परतों का अपक्षय (Thining) होना|
एकेंथोलैसिस (Acantholysis) :- बाह्य त्वचा की उपत्वक कोशिका (epithelial cells) की द्रड़ता कम होना
 स्पोनजीओसिस Spongiosis :- कोशिकाओं के बीच तरल पदार्थ के संचय से होने वाली शोथ|
ग्रेनुलोमा (Granuloma) :- मोनोंयुक्लियर या एपिथेलोइड, या बहुकेंद्रित (multinucleated) सेल के कारण से कोई पुराना बढ़ने वाला घाव|
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बहुत से हैं त्वक विकार  
अब हम त्वचा में होने वाले रोगों  (skin lesions) के बारे में जानेंगे| हालाँकि अगले लेख में इन प्रत्येक रोग विषयक जानकारी और आयुर्वेदिक नाम और चिकित्सा प्रस्तुत की जा सकेगी, पर इनके नाम निम्न है|   
त्वचा तीन तरह की क्षति (रोग) हो सकतीं है|
1- सपाट (Flat) या समतल क्षति;-  जैसे मेकुला (Macule), पेच ( patch),परपूरा (purpura), तेलेंजेक्तेसिया (telangiectasia),आदि
2-  उन्नत Elevated) क्षतियाँ:- पपुल papule, पट्टिका plaque, नोडल nodule, ट्यूमर tumour, व्हयल wheal, पुटिका vesicle, बुल्ले bullae, पुस्तले pustule, फोड़ा abscess, स्केल scale, क्रस्ट crust, लायनेफीफिकेशन lichenification, आदि
3- गहरी क्षति Depressed lesion:- क्षत (erosion), व्रण (Ulcer), और अपक्षय (Atrophy),


[1] keratinocyte noun - an epidermal cell that produces keratin. The end products of this type of proliferative system, such as mature red blood cells and keratinocytes , are themselves incapable of division and die.
Current treatment for psoriasis focuses on reducing inflammation and slowing down the rapid growth and shedding of skin cells called keratinocytes .
[2] (physiology) metabolic equilibrium actively maintained by several complex biological mechanisms that operate via the autonomic nervous system to offset disrupting changes

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