Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |
Season Conception/ऋतु -चर्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Season Conception/ऋतु -चर्या लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

Summer (Grishma) - Seasonal schedule:- How to stay healthy this season?

ग्रीष्म-  ऋतु चर्या - कैसे स्वस्थ रहें, इस मोसम में? 
ऋतु आवत ऋतु जात हैकहत सबन यह बात|  अनुकूल चंगा  रहेप्रतिकूल पाये घात||
हमारे देश में सूर्य उत्तरायण होने से दिन लम्बे और गर्म होते हैं| इसे  ग्रीष्म ऋतु जो माह मई से जुलाई के आरम्भ तक रहती है, कहा जाता है| इस समय वातावरण कष्टकारी तीव्र गर्मी, गर्म हवाएं (लू) के साथ चलती है|  इससे व्यक्ति शारीरिक शक्ति में कमी की अनुभूति, और अग्नि मंद हो जाती है| अग्नि और वायु महाभूत प्रबलता होती है| वात दोष संचित (एकत्र) होता है, कफ दोष शांत रहता है| 

Spring;- Seasonal schedule:- How to stay healthy this season?

बसन्त ऋतुचर्या ( कैसे स्वस्थ रहें इस मोसम में?)
ऋतु आवत ऋतु जात है, कहत सबन यह बात।
अनुकूल चंगा  रहे, प्रतिकूल पाये घात।। 
मार्च, से मई – (चैत्र, वैशाख) के आसपास बसंत ऋतु रहती है| 

Spring - Invasion of Allergies!

वसंत ऋतु - एलर्जी का आक्रमण !
डॉ मधु सूदन व्यास MIG 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र 

वसंत ऋतु का आगमन हो चूका है| निश्चय ही हम सभी ठण्ड के कपडे पेक कर रहे होंगे| वसंत ऋतु की ठंडी हवाओं का आनंद भी ले रहे होंगे, और आम जैसे मौसमी फलों, सब्जियों और उनसे बने व्यंजनों का का मजा लेने के लिए भी तैयार होंगे|
परन्तु हमको यह भी पता होना ही चाहिए की वसंत ऋतु आनंद के साथ कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं भी लेकर आता है| इनसे बचने के लिए जाने और समझे की उन्हें कैसे नियंत्रण में रख सकते हें|  मोसम के इस परिवर्तन काल में एलर्जी या प्रत्यूर्जता जो किसी भी पदार्थ पराग कण, कुछ विशेष खाने-पीने, धुआं, धूल, अगरबत्ती की गंध आदि आदि किसी भी कारण से हो सकता है, इस संमय अधिक देखा जाता है|
इसमें प्रभावित अपनी नाक रूकावट, एक या अधिक छींक, गले में खुजली या अपनी बांह या शरीर पर छोटे-छोटे दाने, खुजली, चकत्ते, मिल सकते हें, जो ध्यान न देने पर अधिक कष्टकारी भी सिद्ध हो सकते हें|
भ्रमित न हों की यह सब सर्दी जुकाम से है, यह मनुष्य की उसके शरीर द्वारा उस विशेष वस्तु से बचाव का प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया है, इसे उस वस्तु के प्रति हाइपरसेंसिटिव होना भी कहा जाता है|

What & Why- do not eat, in the rainy season?

क्या और क्यों - वर्षा ऋतू में नहीं खाना चाहिए? 
         हर मोसम में कई खाद्य हानि कारक होते हें पर अक्सर कुछ लोग कहते सुने जाते हें की "वे तो खाते हें उन्हें कुछ नहीं होता" 
        वारिश के मोसम में पत्तेवाली सब्जियां और विशेष रूप से जो सीधे जमींन पर लगतीं हें जैसे पालक, मेथी आदि, नहीं खाना चाहिए| -

After rain, How to live in the Autumn? What should we eat? What do not eat ? बारिश के बाद, शरद ऋतू में, कैसे रहें? क्या खाएं ? क्या न खाएं?

The arrival of autumn, after the rain, - the beginning of the activity of ghosts and vampires - It means diseases like Dengue, malaria,  typhoid et  
शरद ऋतु का आगमनबारिश के बाद, - भूत और पिशाच की गतिविधि की शुरुवात - इसका मतलब  डेंगूमलेरियाटाइफाइड आदि, जैसे रोग होना
वर्षा ऋतू के अंत के साथ शरद ऋतू का प्रारम्भ हो रहा है | सितम्बर से नवम्बर तक (लगभग) चलने वाली
यह ऋतू हिंदी माह अश्विन या क्वार में आती है | इस समय मोसम का तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता है|  मानसून के पीछे हटने या उसका प्रत्यावर्तन हो जाने से आसमान एकदम साफ़ हो जाता है और तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस समय पानी से भरपूर भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता बहुत अधिक बढ़ जाती है इससे असहनीय उमस (दम घुटनेवाली वायु, stuffiness)  होने लगती है|  हमारे देश में यह स्थिति ‘क्वार की गर्मी’ के रूप में जानी जाती है। अतिश्योक्ति में कहा जाता है, की "इस गर्मी से हिरन भी काले पढ़ जाते हें" इस समय की गर्मी से वर्षा की फसल पकती है|
श्राद्ध पक्ष, नवरात्रिविजयादशमीशरद पूर्णिमा जैसे, अवसर इसी समय आते हें
इस ऋतू में अधिक मात्रा में खाना विष खाने जैसा है? 

What to eat to stay healthy in the rainy season, and how to live?

What to eat to stay healthy in the rainy season, and how to live? वर्षा ऋतू में स्वस्थ्य रहने क्या खाएं कैसे रहें?

 हमारे देश भारत में वर्षाऋतू हिंदी माह श्रावण- भाद्रपद (जुलाई, अगस्त) माह में आती है।
वर्षा काल के रोग!
इस समय कमजोरी या कार्श्य (powerlessness), निद्रा नाश (Sleep destruction,), कब्ज (Constipation), जोड़ो में दर्द (Joint pain), पेट में गुडगुडाहट, शरीर में रूखापन (rustiness) और जकड़ाहट (stiffness), आदि रोग सामान्यत: होता है|

Why is it necessary?- A Friendly Lifestyle & Seasonal diet. क्यों आवश्यक है- मौसम (ऋतू) के अनुकूल आहार-विहार या खाना-रहना?

Why is it necessary?- A Friendly Lifestyle & Seasonal diet. क्यों आवश्यक है- मौसम (ऋतू) के अनुकूल आहार-विहार या खाना-रहना? 
    पृथ्वी की परिक्रमा से ऋतुओं में परिवर्तन होता रहता है| प्रत्येक मनुष्य सहित प्राणी, और वनस्पतियों में भी, परिवर्तन होता रहता है| इन सबके बदलते रहने का प्रभाव भी एक दुसरे पर पढता है, क्योंकि हम सब एक दूसरे पर निर्भर होते हें|

How to keep yourself healthy in rainy season- What about this, says Acharya Charaka.{वर्षा ऋतू में कैसे रखें स्वयं को स्वस्थ्य – इस बारे में क्या कहते हें आचार्य चरक|}

वर्षा ऋतू में कैसे रखें स्वयं को स्वस्थ्य – इस बारे में क्या कहते हें आचार्य चरक|


        आचार्य चरक ने उत्तरायण और दक्षिणायन को दो नाम आदान काल और विसर्ग काल के नाम से वर्गीकृत किया है| आदान काल में शिशिर वसंत और ग्रीष्म ऋतू और विसर्ग काल में वर्षा, शरद, और हेमंत ऋतुएँ होती हें| आदान काल में क्रमश हिंदी माह के माघ-फाल्गुन, चेत्र- वैशाख, ज्येष्ट-आषाड़ (फरवरी अंत से जुलाई तक का भाग) और विसर्ग काल में क्रमश श्रावण-भादों,क्वार-कार्तिक, अगहन-पोष, मॉस(लगभग कुछ जुलाई, अगस्त,सितम्बर, अक्तूबर, नवम्बर,दिसंबर, और जनवरी का भाग) होते हें|

आरोग्य दर्शक कलैंडर -Mahesh Dadhich

आरोग्य दर्शक कलैंडर की विशेषताएं
यह कलैंडर भारतीय नव वर्ष यानी चैत्र प्रतिपदा 2072 विक्रम सम्वत यानी 21 मार्च 2015 से प्रारम्भ होगा।
यह कलैंडर भारत में होने वाली छ: ऋतुओं में होने वाली बीमारियों उनका निराकरण तथा उस मास में कौन-कौन से आसन आसन एवं योग करके स्वस्थ रहने के बारे में बताता है।
स्वस्थ्य रहने के लिए सुबह उठने से लेकर रात्री सोने पर्यन्त क्या करना चाहिए जिससे व्यक्ति रोगी न हो।
इस कलेण्डर में ६ रंगीन पृष्ठ है जिसके १२ पेजों में स्वास्थ्य की दृष्टि से वर्ष भर निरोग रहने के लिये आहार, विहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, योगासनों आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है ।
प्रमुख आहार द‌र्व्यों की कैलोरी, मोटापा रोकने के उपाय विश्व के प्रमुख दिवस, रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाये रखने के उपाय, एवं आहार विहार से स्वस्थ रहने का निर्देश करता है। 

नारियल का पानी गर्मी मेँ श्रेष्ठ ।

गर्मी की ऋतु में घर से बाहर रहने पर नारियल का पानी एक सर्वश्रेष्ट पैय है, किसी भी वाइरस या किटाणुओं और मिलावट से दूर, नारियल पानी कमी (डिहाइड्रेशन) से बचाता है, वरन हलका विरेचक होने से कब्ज नहीं होने देता, पेट साफ रखता हे। जो कि गर्मी मेँ होने वाला एक बड़ा कष्ट है। नारियल का पानी शीतल, प्यास बुझाने वाला, वमन या जी मचलाने को दूर करता है। यह मूर्च्छा और पित्त (एसीडिटी) को दूर करने के लिए भी श्रेष्ठ है। इसे सतत पीते रहने वालों को, लू लगना जैसा कष्ट या सनस्ट्रोक नहीं होता।
-------------------------------------------------------
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| आपको कोई जानकारी पसंद आती है, ऑर आप उसे अपने मित्रो को शेयर करना/ बताना चाहते है, तो आप फेस-बुक/ ट्विटर/ई मेल/ जिनके आइकान नीचे बने हें को क्लिक कर शेयर कर दें। इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।

असली च्यवन प्राश क्या है?

What is the real Chyawanprash?
बाज़ार में मिलने वाले स्वादिष्ट च्यवनप्राश का एक लाभ जरूर है,
 इस बाहने से कुछ मात्रा में ही सही आवॅला जो की जीवनीय शक्ति 
के लिए एक अच्छा घटक है, मिल जाएगा।

वर्तमान में सर्वाधिक बिकने वाला शक्ति दाता टानिक च्यवन प्राश कई व्यक्ति सेवन करते हें परन्तु खाने के बाद अकसर वह लाभ नहीं दिखता जो इसके मिथक च्यवन ऋषि के पुन: युवा बना देने के बारे में प्रचलित है

कहा जाता है की, हजारों वर्ष पूर्वच्यवन ऋषि का देव चिकित्सक युगुल अश्वनी कुमारों ने च्यवनप्राश की सहायता से कायाकल्प  कर दिया था। उसमें वर्तमान की तरह कोई सोना चाँदीया कोई अन्य उत्तेजक ओषधि नहीं थी।
      आज कल धन कमाने मात्र की होड मेंच्यवन प्राश अवलेह में कोई सोना-चाँदी की बात करता है, कोई,  कोई कुछ ओर की। ओर तो ओर डाईविटीज के रोगियों की जेब पर हाथ साफ करने के लिए अब शुगर फ्री भी मार्केट च्यवनप्राश मार्केट में है।

आचरण - मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक व्यवहार।

आचरण - आयुर्वेदीय दिनचर्या में आचरण को भी विशेष महत्व दिया गया है। इसका प्रभाव मनुष्य को मानसिक रूप से स्वस्थ रखें का काम करता है। स्मृतियों में इसे ही धर्म कहा गया है। धर्म शब्द को लेकर राजनीतिज्ञों ने बढ़ा हँगामा मचाया हुआ है। वास्तव में हम सबका धर्म है की सुख देने वाले अपने उपकारक पदार्थों की रक्षा करें। सभी प्राणियों की इच्छा होती है की वे "सुख" मिले, अत: उनकी सतत्  कोशिश सुख पाने के लिए ही होती है। सुख की प्राप्ति धर्म के विना हो नहीं सकती, सुख के ये साधन ही धर्म हें। यही आचरण भी है। 
     हम जैसा आचरण करेंगे वैसा ही प्रतिफल हमको प्राप्त होगा। जब हम कोई आचरण करते हें तब उसके कारण हमारी क्षमता का विकास भी उसी ओर होने लगता है, यह सब एक प्रकार से कम्पुटर में सेट होने वाले प्रोग्राम जैसा ही होता है। एक बार यह प्रोग्राम सेट हुआ, उसके  बाद हम को पता भी नही चलता की हम क्या कर रहे हें। या कहा जाए तो विवेक खो बेठते हें, ओर अनजाने ही वैसा आचरण उनके साथ भी करने लगते हें, जिनके (अपने परिजन आदि) साथ नहीं करना चाहिए था,  ओर यही बात मानसिक अवसाद, अनिद्रा, तनाव, आदि जैसे मानसिक रोगों को पैदा करती है। मानसिक रोग शरीर संतुलन के प्रभावित हो जाने से अन्य कई रोग भी उत्पन्न हो जाते हें।  

अलग अलग ऋतुओं के अनुसार आहार,विहार ओर आचरण थोड़ा बहुत अलग होता है।

  अलग अलग ऋतुओं के अनुसार आहार, विहार ओर आचरण (दिन चर्या कुछ अलग हो सकती है । इस बात को समझने के लिए आयुर्वेद के अनुसार जीवन के आधार या स्तम्भ के बारे में जानना होगा।  
आयुर्वेद के अनुसार, मनुष्य जीवन तीन खभों (कालम) पर खड़ा हुआ है। जीवन के ये आधार उप-स्तम्भ तीन कहें हें। इनके बिना "स्वस्थ जीवन" जो आयुर्वेद का प्रयोजन है,  सभव नहीं है। 
   किसी भी प्राणी का जीवन हवा के विना कुछ मिनिट, पानी के विना कुछ दिन, ओर आहार या भोजन के अभाव में कुछ माह से अधिक नहीं चल सकता। ये जीवन के आधार या स्तम्भ होते हें जिन पर शरीर जीवित रहता है। ऋषियों मुनियों ने प्रमुख पाँच स्तम्भ या पिलर्स पर केवल जीवन ही नहीं समस्त जढ़ जगत [पहाड़, नदी, आदि सभी] को पञ्च- तत्व [पृथ्वी, जल, तेज, वायु, ओर आकाश] सृष्टि को रखा हुआ माना हें। 
 आयुर्वेद में ये तीन उपस्तंभ या जीवन के आधार हें-  1- आहार, 2- निद्रा और 3-ब्रह्मचर्य, कहे गए हैं।
  इनका सही या सम्यक प्रयोग से ही शरीर स्वस्थ रहता है। इनमें से एक भी आधार या स्तम्भ या पिलर कमजोर, क्षति ग्रस्त, हो जाए या हमारी लापरवाही का शिकार हो जाए, जेसें घर के खंभों की देखभाल नहीं होने से वह घर खंडहर बन जाता  है, उसी प्रकार जीवन रूपी इस "महल" को खंडहर होते या जीवन नष्ट होते देर नहीं लगती। 
सर्वोपरि है आहार 
इसमें पहला ओर प्रमुख स्थान आहार का है। आहार शरीर के पोषण के साथ-साथ स्वस्थ भी रखता है। यही वजह है, कि आहार चिकित्सा का साधन भी है।

दिन चर्या- अर्थात निरोगी रहकर सौ वर्ष जीने की विधि।


 दिन चर्या- अर्थात निरोगी रहकर सौ वर्ष जीने की विधि।

 देखा जा रहा है, की आज इस वर्तमान समय में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हें, जिनका उल्लेख पुरातन  से लेकर आधुनिक चिकित्सा ग्रन्थों तक में नहीं मिलता, इसका प्रमुख कारण है ऋषि-मुनियों [पूर्वजों] व्दारा अनुभव सिद्ध दिनचर्या का पालन नहीं करना!
"दिन चर्या" शब्द के अंतर्गत रात्रि चर्या ओर ऋतुचर्या का समावेश भी विश्व के प्राचीनतम चिकित्सक आचार्य चरक /बाग्भट्ट आदि ने कर दिया है। चर्या का अर्थ 'आहार' (भोजन) ,'विहार'(रहन -सहन),  ओर 'आचरण' (व्यवहार)   की विधि से है।  हमारे देश में दिनचर्या की जानकारी परंपरागत रूप से माता-पिता ओर गुरु या शिक्षक से पीढी दर पीढ़ी

गर्मी का मोसम- बेचेनी ओर मुश्किल का हल?

 गर्मी की शुरुआत हो रही है। चिकित्सक  इन दिनों में खानपान पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हैं, ओर हमें ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थो का सेवन करने को कहते हैं। वजह ये है, कि गर्मी के दिनों में खूब पसीना निकलता है। इसके साथ ही शरीर से जरूरी मिनरल और साल्ट भी निकल जाते हैं। डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) न हो, इस लिए डाक्टर ज्यादा से ज्यादा पानी और पेय पदार्थ लेने की सलाह देते हैं। तो इन गर्मियों में आप और आपका परिवार इन समस्याओं से दुखी न हों गर्मी के साथियो के बारे में जानने का समय हे। इनका सेवन कर आप स्वस्थ बने रह सकते हें। 

काम शक्ति का स्त्रोत -सालम मिश्रीओर उसके चमत्कार।

शक्ति का स्त्रोत सालम मिश्री - या सालम पंजा  
शक्ति का स्त्रोत सालम मिश्री   
       अक्सर कुछ आदिवासी कबीले के स्त्री पुरुषों को सड़क पर मजमा लगाए, थेले टांग कर जड़ी बूटी बेचते हुए अकसर सभी ने देखा होगा। ये सालम मिश्री ले लो जेसी आवाज भी लगते देखे जाते हें। जिज्ञासा वश जब कोई उनसे पूछे तो वे मर्दांनगी की दवा बताते हें। कई लोग ले भी लेते हें विशेषकर ग्रामीण,  उसके उपयोग के बाद लाभ होने पर उनके अन्य साथी भी आकर्षित होते हें। अधिकांश लोग यह नहीं जानते की ये क्या हे?

दही Curd – लाभ ओर हानियाँ एवं रोग नाशक प्रभाव।


दही Curd – लाभ ओर हानियाँ एवं रोग नाशक प्रभाव।  
संस्क्रत में दधि, पयसी, अङ्ग्रेज़ी मे कर्ड, लेटीन में कोम्युलेटेड मिल्क जिसे दूध में जामन मिलाकर तेयार किया जाता हें, ओर हमारे देश ही नहीं सारे विश्व में इससे सभी परिचित हें, इसके बारे में सभी बहुत कुछ नहीं जानते हें। यदि इसके बारे में पूरी तरह से जान लिया जाए तो इसका अधिकतम लाभ लिया जा सकता हे, ओर इसके कारण होने वाली समस्याओं से भी बचा जा सकता हे।

इसको समझने के लिए हमको आयुर्वेद के विचार से दही के पाँच प्रकारों को समझना होगा।
1-मंद , 2-मधुर, 3-मधुराम्ल, 4-अम्ल, ओर 5-अत्यम्ल। जो दूध जमकर गाड़ा हो गया हो, पर स्वाद हीन हो वह मंद, जो मीठा हो{खट्टा पन बिलकुल न हो} वह मधुर, खट्टे-मीठे स्वाद वाला मधुराम्ल, खट्टा जिसमें मीठापन बिलकुल न हो वह अम्ल, ओर अत्यधिक खट्टा जिसे खाना कठिन हो वह अत्यम्ल ।
    उपरोक्त सभी प्रकार के दही का सेवन सभी ने कभी न कभी किया ही होगा अत: विस्तार से समझाना आवश्यक नहीं।

मानसून में पेरों में फंगस (या फफूंद) एवं सोंदर्य की समस्याए |

फंगल या फफूंद ग्रस्त अंगुलियाँ 
 मानसून में पेरों की फंगस (या फफूंद) एवं सोंदर्य की समस्याए |

मानसून आ गया है,  लम्बी गर्मी और सूखे के मोसम के बाद बारिश सारी धरती को हरी भरी बना देती हे, जो हमारे मन को बड़ा ही आनंद देती है,  पर प्रत्येक मोसम के लाभ और हानिया भी हें| उसकी अधिकता से या हमारी उसका अति आनंद लेने या लापरवाही के कारण बारिश भी कई रोगों के साथ शारीरिक सोंदर्य को भी प्रभावित करती है।  इस मोसम में अनजाने से शारीर के अन्य भोगो की तुलना में पर अधिक प्रभावित होते हें| अत:आज कल पैरों का बचाव भी बहुत जरुरी हो जाता है।  बरसात में पैरों का ख्याल रखने के सोंदर्य के अतिरिक्त और भी कई दुसरे कारण भी हैं। ऐसे में पैरों की खूबसूरती से अधिक आवश्यक हो जाती है पैरों की सफाई। बारिश के मौसम में पेरों की सफाई की जरा सी भी कमी हुई नहीं की पैरों पर फंगस या फफूंद से संक्रमण होने की संभावना रहती है।

विरूद्ध आहार-विहार


विरूद्ध आहार-विहार का अर्थ हे, एक साथ नहीं खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ आहार एवं एक साथ नहीं किये जा सकने  वाले कम जेसे धुप में ठंडे पानी से नहाना आदि क्रियाये विहार कहलाती हें |
जो पदार्थ शरीर की धातुओं[ ( रस(तरल-पानी), रक्त, मांस,मेद (चर्बी)अस्थि( हड्डी),मज्जा,और शुक्र)] के विरूद्ध गुणधर्म वाले या एक दुसरे से विपरीत गुण वाले, इस बात को इस प्रकार भी समझ जा सकता हे की गरम और ठन्डे खाद्य एक साथ खाना | त्रिदोषों (वात-पित्त-कफ) को प्रकुपित करने वाले (खरावियाँ या रोग  बढाने वाले),  तथा रोगों को उत्पन्न करने वाले हैं, उनके सेवन को विरूद्ध आहार कहते हैं। जेसे एक साथ खट्टा और तला हुआ खाने से खांसी आदि होती हे|  

 विरूद्ध आहार-विहार:अर्थ हे, एक साथ नहीं 


इन पदार्थों में परस्पर गुणविरूद्ध ,या विपरीत गुण वाले, *संयोगविरूद्ध,* संस्कार विरूद्ध * देश, काल, मात्रा, स्वभाव आदि से विरूद्ध होते हैं।
जैसे – 
 दूध के साथ -मूँग,उड़द, चना आदि दालें, सभी प्रकार के खट्टे व मीठे फल, गाजर, शकरकंद, आलू, मूली जैसे कंदमूल, तेल, गुड़, शहद, दही, नारियल, लहसुन, कमलनाल, सभी नमकयुक्त व अम्लीय पदार्थ संयोगविरूद्ध हैं।
दही के साथ -उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद।
शहद के साथ- गुड़, घी के साथ तेल विरूद्ध है।
  शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों का समभाग मिश्रण मात्राविरूद्ध है। 
गर्म व ठंडे पदार्थों का एक साथ सेवन वीर्य विरूद्ध है।

दही व शहद को गर्म करना संस्कार विरूद्ध है।

दूध को विकृत कर बनाया गया छेना, पनीर आदि व खमीरीकृत पदार्थ स्वभाव से ही विरूद्ध (दूध के गुण के )हैं।

हेमंत व शिशिर  इन शीत ऋतुओं (सर्दियोंमें) में कम भोजन करना या भूखे रहना। 
 शीत, लघु, रूक्ष, वातवर्धक पदार्थों का सेवन तथा --
वसंत-ग्रीष्म शरद इन उष्ण ऋतुओं में - दही का सेवन काल विरूद्ध है।
मरूभूमि में रूक्ष, उष्ण, तीक्ष्ण पदार्थों व समुद्रतटीय पदार्थों में स्निग्ध-शीत पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरूद्ध है।

अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए अल्प, रूक्ष, वातवर्धक पदार्थों का सेवन व बैठे-बैठे काम करने वाले व्यक्तियों के लिए स्निग्ध, मधुर, कफवर्धक पदार्थों का सेवन अवस्थाविरूद्ध है।

अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे – फास्टफूड), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे – फ्रिज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरूद्ध हैं।

मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रम विरूद्ध है। जो आहार मनोनुकूल न हो, वह हृदय विरूद्ध है क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता। 
इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य, आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, अर्श, भगंदर, कुष्ठरोग, पेट के विकार, शोथ, अम्लपित्त, सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अष्टौमहागद अर्थात् आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। विरूद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है।
अतः पथ्य-अपथ्य का विवेक कर नित्य पथ्यकर पदार्थों का ही सेवन करें। अज्ञानवश विरूद्ध आहार के सेवन से उपरोक्त व्याधियों में से कोई भी उत्पन्न हो गयी हो तो वमन-विरेचनादि पंचकर्म से शरीर की शुद्धि एवं अन्य शास्त्रोक्त उपचार करने चाहिए। ऑपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ उपाचार करने चाहिए। ऑपरेशन व अंग्रेजी दवाएँ रोगों को जड़ मूल से नहीं निकालते। अपना संयम और निःस्वार्थ एवं जानकार वैद्य की देखरेख में पंचकर्म विशेष लाभ देता है। इससे रोग तो मिटते ही हैं, 10-15 साल आयुष्य भी बढ़ सकता है।
=============
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|

शीत ऋतु- सर्दियों में स्वस्थ रहने के लिए

सर्दियों में स्वस्थ रहने के लिए
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु भी आ चुकी हे और कुछ ही दिनों में शरद ऋतु का प्रारंभ होने को हे, याने सर्दियों ने दस्त‍क  दे दी है, इसके साथ ही सबमे आलस्य भी पनप रहा होगा। सर्दियों का ख्याल आते ही, वो समय याद आता है जब आप सर्दियों में धूप सेंकते हैं या दोस्तों के साथ गर्म पकवान का आनंद लेते हैं।

स्वास्‍थ्‍य की दृष्टि से सर्दियां बहुत ही अच्छी मानी जाती है। गर्मियों की तुलना में सर्दियों में भूख अधिक लगती है और ऐसे में चटपटे व्यंजनों का आनंद भी लिया जा सकता है। लेकिन अस्थमा, अर्थराइटिस और हृदय रोगियों को इस मौसम में खास ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।
शीत ऋतु में पाचन शक्ति बड़ जाती हे ,इसलिए जो कुछ भी खाया पिया जाता हे हजम हो जाता हे | पर लापरवाही हानी भी कर सकती हे |
सर्दियों में स्वस्थ रहने के लिए -
• सर्दियों के कपड़े पहिने -: सर्दियों की शुरूवात में कभी अधिक ठंड लगती है, तो कभी कम। ठंड नहीं लगने पर भी गर्म कपड़े पहने रहें। ठंड का प्रकोप सबसे पहले सर, हाथों व पैरों पर होता है, इसलिए इन स्थानों को ढक कर रखें।
• आदर्श भोजन व पेय-:  सर्दियों में अधिक ठंडे पेय व आहार का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसे मौसम में लोग पानी कम पीते हैं, जिससे निर्जलीकरण(पानी की कमी) की संभावना बढ़ जाती है। अल्कोहल जैसे पेय पदार्थों से भी निर्जलीकरण होता है इसलिए इनका सेवन कम करें|
• नियमित सफाई:-  सर्दियों में प्रतिदिन नहायें। आप नहाने के लिए गर्म पानी का प्रयोग कर सकते हैं और त्वचा को शुष्की से बचाने के लिए नहाने के पानी में तुलसी के पत्ते , अजवायन या मेथी को पकाकर स्नान भी इनका प्रयोग कर सकते हैं।तिल्ली पीस कर उबटन बना कर नहाने से पहिले लगा सकते हे |
• व्यायाम का मज़ा:--  सर्दियां मज़ेदार तो होती हैं, लेकिन इस मौसम में आलस्य् भी कुछ कम नहीं होता। अधिकतर लोग आलस्य में घिरकर लोग व्यायाम करना भी छोड़ देते हैं, और देर तक रजाई का आनद लेते रहते हें,यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं।
सर्दियों में स्वस्थ‍ और फिट रहना है तो आलस्य छोड़ें और व्यायाम अपनायें।
  • जो अधिक वजन चाहते हें वे पोष्टिक लड्डू आदि खाए | जो वजन कम करना चाहते हो वे संतुलित प्रोटीन भरा पर पर्योत आहार ले |और पानी अधिक पिए|

(समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान ,एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें |).
आज की बात (30) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (70) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (71) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "