दही Curd – लाभ ओर हानियाँ एवं रोग नाशक प्रभाव।
संस्क्रत में दधि, पयसी, अङ्ग्रेज़ी मे कर्ड, लेटीन में कोम्युलेटेड मिल्क
जिसे दूध में जामन मिलाकर तेयार किया जाता हें, ओर हमारे देश
ही नहीं सारे विश्व में इससे सभी परिचित हें, इसके बारे में
सभी बहुत कुछ नहीं जानते हें। यदि इसके बारे में पूरी तरह से जान लिया जाए तो इसका
अधिकतम लाभ लिया जा सकता हे, ओर इसके कारण होने वाली
समस्याओं से भी बचा जा सकता हे।
इसको समझने के लिए हमको आयुर्वेद के विचार
से दही के पाँच प्रकारों को समझना होगा।
1-मंद , 2-मधुर, 3-मधुराम्ल, 4-अम्ल, ओर
5-अत्यम्ल। जो दूध जमकर गाड़ा हो गया हो, पर स्वाद हीन हो वह
मंद, जो मीठा हो{खट्टा पन बिलकुल न हो} वह मधुर, खट्टे-मीठे स्वाद वाला मधुराम्ल, खट्टा जिसमें मीठापन बिलकुल न हो वह अम्ल, ओर
अत्यधिक खट्टा जिसे खाना कठिन हो वह अत्यम्ल ।
उपरोक्त सभी प्रकार के दही का सेवन सभी
ने कभी न कभी किया ही होगा अत: विस्तार से समझाना आवश्यक नहीं।
1.
मंद दही- इसका सेवन मल मूत्र
त्यागने में दाह या जलन पेदा करता है।
2.
मधुर दही- ओर 3- मधुराम्ल दहि-
वीर्य वर्धक, मेद जनक[चर्बी बड़ाने वाला], कफ कारक, वात नाशक,पचने में मीठा पर बाद में पित्त वर्धक[
दाह,जलन, नकसीर,आदि
करने वाला] होता है ।
4. अम्ल दही - दीपन [भूख
बड़ाने वाला] रक्तपित्त बड़ाने वाला [गरम प्रभावी], तथा कफ पेदा करने वाला होता है।
5.- अत्यम्ल दही-
रक्त विकार[चर्म रोगादि] वात रोग, पित्त को अधिक बड़ाने वाला दाह,जलन। एसिडिटी करने वाला, होता है।
गाय {Cow] के
दूध से बना दही अति श्रेष्ठ, बल-कारक,
शीतल, पचने में श्रेष्ठ, रुचि कारक, अग्नि वर्धक, पोष्टिक, ओर कफ
नाशक होता है।
भेंस के दूध का
दही रक्तपित्त बड़ाने वाला, बल-वीर्य वर्धक, स्निग्ध, कफ कारक, भारी, होता है।
बकरी के दूध का
दही कफ, पित्त, ओर वात नाशक, होता
हें। यह गर्म बल ओर वीर्य वर्धक, स्निग्ध, अग्नि या भूख बड़ाने वाला, बवासीर,श्वास-खांसी ओर अतिसार[दस्त लगना] में लाभकारी होता हें।
वर्षा ऋतु में
दही के सेवन से पित्त की व्रद्धि करने वाला [गरम], वात दोष
निवारण, पर कफ का प्रकोप करने वाला होता हे। वर्षा काल में
इसका सेवन बवासीर, चर्म रोगियों, ओर
रक्तपित्त[नकसीर] के रोगियो को नहीं करना चाहिए रोग बड़ जाएगा।
शरद ऋतु में दही
के सेवन की आयुर्वेद में मनाही की है, इस समय खट्टा दही खाने से अति पित्त
व्रद्धि जलन दाह ओर कुछ रोग हो सकते हें। कफ़/पित्त प्रकर्ति वालों को ध्यान रखना होगा।
हेमंत ऋतु में
दहि के सेवन से बल- वीर्य की व्रद्धि, बुद्धि की व्रद्धि, होती हे इस समय दहि
का सेवन पोष्टिक ओर तृप्तिदायक होता है। यह ठंड करता है, यह भ्रांति है।
शिशिर ऋतु में
भी दही बल वीर्य वर्धक पर कुछ पित्त जनक[गर्म] होता हें।
वसंत ऋतु में दहि
खाने श्रेष्ठ नहीं होता। हालांकि यह अपने गुणो के अनुसार बल- वीर्य की वृद्धि, बुद्धि
की व्रद्धि, पोष्टिक करता हे पर इस समय दही के खाने से बाद
में कष्ट बड़ सकते हें।
ग्रीष्म ऋतु में
दही के सेवन से पित्त की व्रद्धि होती हें इससे प्यास खुश्की आदि बड़ जाती हे। रक्त पित्त
या नकसीर भी हो सकते है।
मक्खन निकाला
दही मलरोधक [पतले दस्त रोकने वाला] शीतल, हल्का, अग्नि[भूख] बड़ाने वाला संग्रहणी ठीक करने वाला, वात
कारक होता है।
दही का तोड़ या
पानी क्रमी नाशक, बल कारक,रुचि वर्धक, शरीर के सभी स्त्रोतों को शुद्ध करने वाला, तृषा(प्यास)
निवारक, वात नाशक, मल संचय को दूर करने
वाला, गुणकारी होता है।
दही के
दुर्गुणों को ठीक करने के लिए या इसकी हानी से बचने के लिए नमक, सोंठ, पोदीना, जीरा, मिलाना चाहिए।
मिश्री या शक्कर मिलाने से विशेष लाभ या हानी नहीं होती।
दही के सिर पर
मालिश से अच्छी नींद आती हे, चेहरे पर मलने से चेहरे का सूखापन, झाई या कालिमा, दूर होती है। चावल के साथ खाने से
अतिसार(दस्त) में लाभ होता है।
दही में त्रिकटु चूर्ण[ सोंठ+पीपल+कालिमिर्च], सेधा नमक, ओर राई का चूर्ण मिला कर विशेषकर शिशिर
ऋतु में खाने से कफ ओर वात के रोग दूर होते हें। अग्नि व्रद्धि होती है। शरीर द्रड
ओर तेजस्वी ओर कान्ति मान हो जाता है।
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1 टिप्पणी:
Jaankari bahut upyogi hai.
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