मूत्र के रुक जाने से होने वाला कष्ट. - मूत्र मार्ग संकोच !
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किसी भी आयु के 90% पुरुषों में (स्त्रियों[A]
में 10%) जिनमें बच्चे से लेकर बड़े तक चाहे वे किसी भी आयु के हों, कभी अचानक ही
मूत्र प्रवाह (पेशाव आना) रुक जाये, कम आने लगे, बार-बार आने लगे, पेशाव करने (मूत्र
त्यागने) में हल्का या तेज दर्द और जलन होने लगे, पेशाव (मूत्र) रोका न जा रहा हो,
कमर (pelvic) और पेट के निचले भाग में दर्द हो, मूत्र बूंद बूंद
कर निकले, लिंग या शिश्न (penile) में भी सुजन और दर्द होने
लगे, कभी कभी खून या वीर्य आता नजर आये, मूत्र के रंग में गहरा हो रहा हो, तो
स्तिथि बड़ी गंभीर हो जाती है, और इमरजेंसी चिकित्सा के लिए अस्पताल की और दोडना
होता हैI
जी हाँ एसा हो सकता है, इस रोग
में जिसे आयुर्वेद में मूत्राघात या आधुनिक चिकित्सा में युरिथ्रल स्ट्रीकचर (urethral
stricture),मूत्र मार्ग संकोच, कहा जाता है|
जब भी यह रोग आक्रमण करता है, तो सीधे इमरजेंसी में जाना होता है|
वहां चिकित्सक तात्कालिक राहत के लिए एक ट्यूब डाल कर मूत्र निकाल
देते हें, इससे तात्कालिक कुछ राहत तो मिल जाती है, पर रोग मुक्ति के लिए ओपरेशन करने की सलाह दी जाती है|
आप्रेशन कितना सफल है?
समस्या को गंभीर मान अधिकांश मामलों में ओपरेशन करना स्वीकार कर लिया
जाता है, परन्तु इसके बाद भी समस्या सिर्फ कुछ समय तक तो नहीं
रहती, पर पुनरावृत्ति (बार बार रोग आक्रमण होते रहना) अधिकांश
मामलों में देखी जाती है|
आयुर्वेद में है कारगर चिकित्सा!
आयुर्वेद के आचार्यों ने मूत्र घात (युरिथ्रिल स्ट्रिक्टचर-Urethral
stricture) नामक इस तकलीफ देह और खतरनाक रोग की चिकित्सा के लिए,
कारगर अच्छी और रोग से हमेशा के लिए मुक्ति देने वाली चिकित्सा बताई हैI
यह चिकित्सा उत्तर-बस्ती
हैI वतर्मान में कई आयुर्वेदिक चिकित्सको ने इस पर कार्य किया है, और परिणाम बहुत
ही अच्छे प्राप्त किये हैं| इस चिकित्सा से बिना किसी तकलीफ देह ओपरेशन आदि किये
ही रोगी को ठीक किया जा रहा है|
इस चिकित्सा विषयक विस्तार से कुछ चिकित्सको द्वारा किये गए विशेष प्रयोग
और परिणाम सम्पूर्ण जानकारी सहित शीघ्र प्रस्तुत कर रहे हें,
जिससे आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगियों की चिकित्सा कर लाभ दे सकें, और
जानकारी प्राप्त होने पर बिन ओपरेशन कराये रोगी भी लाभ ले सकें|
अगले लेख में.
इसके
पूर्व की इन प्रयोग और परिणामो की जानकारी आपको दें,
इस रोग के बारे जान लेना
जरुरी है|
आचार्य सुश्रुत ने प्रथम बारह और चरक ने सभी तेरह [B]
प्रकार के “मूत्र रोग” का वर्णन किया है| उनमें से एक यह “मूत्रोत्संग/ मूत्राघात जिसे आधुनिक रोग युरिथ्रिल
स्ट्रिक्टचर- urethral stricture के रूप में जाना
जाता है. इसका प्रमुख लक्षण मूत्र बंद हो जाना होता है.
हालांकि आधुनिक मान से उपरोक्त में से कई रोग एक जसे लक्षण वाले लगते
हें| परन्तु आयुर्वेद के अनुसार दोष (वात,पित्त,और कफ) की न्यूनाधिकता के कारण अलग अलग नाम
दिए जाते है| इससे उपयुक्त दोषानुसार ओषधि लेकर सटीक
चिकित्सा संभव हो जाती है|
मूत्राशय की शरीर रचना-
सही रोग निर्णय और चिकित्सा के लिए यह आवश्यक है, की प्रभावित स्थान की रचना
(एनाटोमी) की भी जानकारी हो|
शरीर के मूत्राशय से मूत्र निष्कासित करने वाली नली को मूत्र मार्ग (urethra) कहा जाता है| पुरुषों में स्त्रियों ( 2 से 3 इंच)
की तुलना में अधिक लम्बी (9 से 10 इंच) होती है| इसी
कारण यह रोग स्त्रियों में बहुत कम देखा जाता है|
सामान्य स्तिथी में यह नली मूत्र निष्कासन (निकालने) हेतु पर्याप्त
होती है, परन्तु जब किसी कारण से यह नली संकरी (सिकुड़ जाना narrowed) हो जाती है तो मूत्र का प्रवाह रुकने लगता है| इसे
ही आयुर्वेद में मुत्रावरोध, मूत्राघात, एवं आधुनिक चिकित्सा में युरिथ्रल स्टिक्चर (urethral stricture) आदि नामों से जाना जाता है|
कारण (Causes)
मूत्र मार्ग के मूत्राघात युरिथ्रल स्टिक्चर (urethral
stricture) के निम्न कारण हो सकते हें|
- मूत्रमार्ग
में अवरोध (मूत्राघात) का एक कारण मूत्र नलिका (युरिथ्रा) की उतकों (टिस्युज)
में किसी ओषधि/ तीक्षण खाद्य/ या रसायन से सूजन (Tissue
swelling) और फिर उसका निशान (scar) बन
जाने से |
- पूर्व
में हुई किसी शल्य चिकित्सा से बने घाव से|
- किसी
कारण से बाहरी नलिका (कैथेटर) आदि डालकर चिकित्सा के बाद उससे हुए घाव के
भरने के बाद बने निशान (scar) के कारण|
- पैर
फैलाकर बैठने से|
- साइकल
चलाने पर लगातार टकराने के कारण लगी चोट के खिचाव से|
- श्रोणि
भंग (श्रोणी की हड्डी टूटना pelvic fractures)|
- एक्स
रे आदि के विकिरण से (radiation),
- प्रोस्टेट
की शल्य चिकित्सा के बाद|
- योन
रोगों (STD)
जैसे सुजाक (gonorrhea), आदि से|
- मूत्रमार्ग
के पास किसी ट्यूमर के कारण|
- कुछ
मामलों में जन्म जात (congenital) विकृति से|
रोग
के लक्षण (Symptoms)-
निम्न
लक्षणों में से रोग ती तीव्रता के अनुसार कम या अधिक लक्षण मिल सकते हें|
Ø अचानक ही मूत्र प्रवाह या मूत्र की मात्रा का कम होना,
Ø बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होना|
Ø मूत्र त्यागने में जलन और दर्द होना|
Ø मूत्र त्यागने पर नियंत्रण खोना|
Ø श्रोणि (कमर pelvic) और पेट के निचले भाग में
क्षेत्र में दर्द |
Ø मूत्र मार्ग से बूंद रूप में गिरना|
Ø शिश्न (penile) शोफ (सुजन) और दर्द|
Ø मूत्र में खून या वीर्य आना|
Ø मूत्र के रंग में गहरा होना|
Ø उपरोक्त लक्षणों के साथ यदि रोगी को मूत्र त्यागने में असमर्थता भी होने
लगे तो यह स्तिथि बहुत गंभीर हो सकती है
रोग विनश्चय -
रोग निदान के लिए रोगी का पूर्व इतिहास जानकर निर्णय किया जा सकता है| जानना चाहिए की उपरोक्त कारणों में से कितने कारण हो सकते हें इससे रोग की
गंभीरता का ज्ञान होगा| शिश्न (लिंग) की जाँच में
मूत्र मार्ग (urethral discharge) स्थान पर सूजन (ललिम),
दिखाई देती है| वर्तमान में केमरे युक्त दर्शन
यंत्र भी उपलब्ध है जो मूत्र मार्ग से अन्दर डालकर प्रभावित भाग दिखा सकते हें|
मूत्र परिक्षण/ रक्त परिक्षण किया जाकर निदान किया जा सकता है|
विभेदक निदान (Differential diagnosis)- अलग अलग रोगों में अंतर कैसे जाने?
प्रमुख रूप से किसी भी आयु के पुरुषों को होने वाला इस रोग का अन्य
इस प्रकार के रोगों से अन्तर करे तो देखंगे की मूत्रक्रच्छ (Dysurea)
में मूत्र त्याग में अधिक कष्ट होता है, परन्तु
मूत्र का रुकना मुत्रावरोध (retention) कम होता है जबकि
मूत्राघात (Suppresion of urin) में मुत्रावरोध (retention)
अधिक पाया जाता है|
मूत्राघात की आधुनिक चिकित्सा [Conservative / Medicinal Treatment of Urethral Stricuture]. –
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Urethral stricture or Mutra ghat/ Mutrotsang (मूत्राघात/ मुत्रोत्संग),
The Problem caused by Urinary failure.
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चूँकि मूत्रमार्ग में अवरोध कारण टिस्युज में स्कार (घाव भरने के बाद
हुए निशान) के कारण उस स्थान की त्वचा सिकुड़ने से होती है इसलिए इन अवरोधों को अवरोध
ओषधिय चिकित्सा से नहीं हटाया जा सकता| ओषधि
केवल जलन, सूजन, दर्द आदि दूर की जा
सकती है| इसलिए जब तक स्थाई समाधान न हो तब तक रोग मुक्त
नहीं होता|
आप्रेशन होने से भी बढती है मुसीबत?
आधुनिक चिकित्सक इसकी चिकित्सा आधुनिक
चिकित्सा केवल सर्जिकल विधि से ही करते हें| परन्तु इसमें भी
पुन: घाव भरें पर पूर्व स्तिथि आने से बचने के लिए रोज-रोज एक नली (डाइलेटर (dilator) डाल वहां की त्वचा को फेलाना (expand) करना होता
जो रोगी को सिखाया जाता है यह बहुत कष्टकारी प्रक्रिया होती है इससे भी घाव होकर
खून बहने संक्रमण होने की सम्भावना बढती है| और रोग इसी कारण
फिर से हो जाता है|
शल्य चिकित्सा रहित (Non surgical
Nonsurgical) में भी यह प्रक्रिया होती है Urethral
Dilatiation एक को मूत्र मार्ग के अन्दर डालकर धीरे
धीरे चौड़ा किया जाता है| इससे मूत्र मार्ग बड सकता है|
यह स्थानीय (Local) या सामान्य संज्ञाहरण (General
anesthesia) देकर किया जाता है। यह आवश्यकता के अनुसार लगातार या
आवश्यक दिन/ सप्ताह / महीने या वर्ष में एक बार पर दोहराया जाता है। कभी-कभी, रोगियों को स्वयं करने की सलाह दी जाती है| इससे भी
खून जाने, जलन, दर्द आदि समस्याएं होने
की सम्भावनाये अधिक होती है|
इसके अतिरिक्त स्थायी रूप से मूत्र कैथेटर डालना भी एक अन्य nonsurgical विकल्प है| जो गंभीर मामलों में किया जाता है|
परन्तु इससे मूत्राशय में जलन और संक्रमण का खतरा होता है|
अन्य चिकित्सा में Urethral Stent मूत्रमार्ग से स्टंट डालना भी एक दर्दनाक चिकित्सा है| इससे बाद में फाइब्रोसिस हो सकता है|
विशेष शल्य चिकित्सा (Surgery)
में रोग का एक और भी विकल्प है| वह यह की युरिथ्रोप्लास्टी (urethroplasty) द्वारा प्रभावित टिस्युज को हटाकर मूत्रमार्ग का पुनर्निर्माण (Urinary
Diversion) कर दिया जाये| इसमें मूत्र प्रवाह एक कैथेटर के माध्यम से पेट से बनाया जाता है| यह एक अंतिम उपाय होता है| यह
अस्थायी या स्थायी हो सकता है। सफल चिकित्सा के बाद, अस्थायी
ट्यूब को निकाल दिया जाता हैं|
आधुनिक चिकित्सा में उपरोक्त कई कठिनाइयों और जटिलताओं और अनिश्चित
सफलता की तुलना में आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंर्तगत होने वाली
उत्तर बस्ती[C]
चिकित्सा अधिक सफल पाई गई|
मूत्रोत्संग/ मूत्राघात (urethral
stricture) रोग की चिकित्सा हेतु आचार्य सुश्रुत एवं चरक द्वारा कही उत्तर बस्ती चिकित्सा के आधार पर हमने उत्तर बस्ती की भूमिका के लिए एक अध्ययन किया गया था| परिणाम
बहुत ही उत्साह-जनक मिले हैं| हम लगतार रोगियों को रोग से मुक्त कर सफलता प्राप्त कर रहे हें|
प्रत्यक्ष अनुभव हेतु चिकित्सक भी संपर्क कर सकते हें| चिकित्सको के लिए जानकारी एवं अभ्यास हेतु प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किये जाते रहे हें, इसकी जानकर आपको इस साईट और फेस बुक आदि सोशल साइट्स के माध्यम दी जाती हें|
प्रभावित रोगी भी चिकित्सा हेतु हमसे संपर्क कर लाभ लें सकते हैं| आयुर्वेदिक चिकित्सा से यूरिथ्रल स्ट्रीकचर प्रभावित रोगियों की चिकित्सा कर हमेशा के लिए उन्हें रोग से
मुक्ति दिलाई जा सकती है|
किसी भी प्रकार की नए पुराने रोगों, की (यूरिथ्रल स्ट्रीकचर सहित) ओषधि चिकित्सा, पंचकर्म चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, के लिए आप रविवार एवं अन्य अवकाश छोड़कर प्रात: 9 से 1 बजे तक हमारे चेरिटीबल "महाकाल आयुर्वेदिक चिकित्सालय एवं मेटरनिटी होम" के बाह्य रोगी शल्य चिकित्सा विभाग (ओपीडी) में प्रत्यक्ष संपर्क करें| इस चेरिटीबल चिकित्सालय में सभी आर्थिक वर्गों के लिए चिकित्सा व्यवस्था जनरल वार्ड/ स्पेशल वार्ड/ विशेष "वी आई, पी कक्ष", भी उपलब्ध है|
सभी प्रकार के रोगों की आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए उन्हें सम्बंधित ओपीडी में परिक्षण/ चिकित्सा के लिए उपस्थित होना आवश्यक होगा|
Contact O.P.D. For Ayurvedic treatment & Panchakarma Therapy.
Superintendent - Mahakal Ayurvedic Hospital and Maternity Home,
उत्तर बस्ती चिकित्सा प्रक्रिया - Ayurvedic treatment of Urethral stricture or Mutra ghat or Mutrotsang – Practical panchakarma procedure. मूत्राघात / मुत्रोत्संग/ मूत्र मार्ग संकोच (यूरिथ्रल स्ट्रीकचर)
की आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यावहारिक पंचकर्म चिकित्सा|
मूत्र घात (urethral stricture) रोग स्त्रियों को बहुत कम होता हैI
[B] आचार्य चरक/ सुश्रुत
द्वारा वर्णित मूत्र रोग ;- 1. मूत्रसाद
(Scanty Urination) :- सामान्य से कम मूत्र का आना|,2. मूत्र जठर (Distended blader). :-मूत्र मार्ग रुक जाने पर मूत्राशय का भर जाना|,3. मूत्रोत्संग/ मूत्राघात (urethral stricture). मूत्र बंद हो जाना|,4. मूत्र क्षय (Anurea or Suppresion of urin).
मूत्र न होना|,5. मूत्रातीत(Incotinence
of urin).:- मूत्र त्याग प्रव्रत्ति को रोकें से हुई दर्द, जलन आदि समस्या| , 6. वाताष्ठिला (Enlarged prostate). प्रोस्टेट बढ़ जाना|,7. वातबस्ती (retention of
urin).,8. उष्ण वात (Cystitis
or urethritis).,9. मूत्र कृच्छ (Dysurea).,10. वातकुंडलिका (Spasmodic stricture).:- मूत्र नलिका की पेशियों के स्थानिक संकोच के कारण.,11. मूत्र ग्रंथि (Tumour of bladder).,12. विडविघात (Recto-vesial fistula).,13. बस्ती-कुंडल (Atonic condition of bladder).,
[C] आचार्य सुश्रुत और चरक
ने रोग निदान हेतु उत्तर बस्ती चिकित्सा का वर्णन किया है|
तैलं
धृतं वा तत् पेयं तन वाऽप्यनुवासनम्।
दद्यादुत्तरबस्ति
च वातकृच्दूोपषन्तये।। सु.उ. 59/18
दोड्ढाधिक्य
मवेक्ष्यैतान् मूत्रकृच्छहरैर्जयेत् ।
बस्तिमुत्तरबस्ति
च सर्वेशामेव दापयेत्।।च.सि. 9/49
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