चर्म रोग एक अवलोकन त्वक क्षति या विकार {त्वचा में होने वाले रोग या चर्म रोग}
त्वचा में तीन स्तर पर रोग
पाए जाते हें|
A. सपाट (Flat) या समतल
क्षति; B. उन्नत Elevated) क्षतियाँ; C. गहरी क्षति Depressed lesion .
चर्म रोगों को
प्राथमिक (Usual skin lesions -1
) और विशेष क्षति (Particular skin lesions- 2 ) दो भागों में विभाजन
से समझने में आसानी होगी|
प्राथमिक त्वक क्षति (Usual skin lesions -1 ) निम्न है;-
1.
Macule मैकुले :- त्वचा में विवर्णता (discoloration) या त्वचा का रंग बदलने से दिखने वाले चिन्ह जो त्वचा
के समतल होते है| मैक्यूलस किसी भी आकार या रंग का हो सकता है| यह आन्तरिक रक्त दूषित का प्रतीक है, सामान्यत:
इससे कोई कष्ट नहीं होता| रंग एवं चिन्ह के अनुसार दोष से सम्बन्ध जोड़ा जा
सकता है| इसे तिल (mole) जो जन्मजात चिन्ह होता है, नहीं
समझना चाहिए|
2. Papule पेपुल:- आधा सेमी से बड़े, ठोस, उभार होते हें| इनमे कोई द्रव अदि नहीं होता| कफ दोष से प्रभावित, गुरु गुण वाले स्थिर होते
हें| ये मेकुले की तुलना में त्वचा की अधिक गहराई तक
स्थित होते हें|
3.
Nodule :- नोड्यूल पैपुल का बड़ा और गहराई तक जाने वाला रूप हैं| ये त्वचा के नीचे की के ऊतकों में या एपिडर्मिस में स्थित हो सकते हैं।
नोड्यूल व्यास में आमतौर पर आधा सेमी या अधिक बड़े हो सकते है|
4.
Plaque :-बाह्य त्वचा की कोशिकाओं में अप्राकृतिक जमाव या वृद्धि है, जो वाइरस या अन्य किसी कारण से होती है| ये
त्वचा में सतह पर उभरे हुए 2 सेमी या व्यास में
बहुत से पैपुलस या नोडल्स मिलने से यह एक प्लेट की तरह हो जाती है| यह त्वचा की गहराई तक नहीं होती|
5. Pustule पूयस्फोट (फोड़े) – त्वचा पर अधिक उभरे हुए
जिनमें सफ़ेद, हरा, पीला पूय
युक्त तरल भरा होता है| यह त्वचा में पित्त के प्रकोप
से होने वाला पाक का परिणाम है|
6.
Vesicle पुटिका :-बाह्य त्वचा पर उभरे हुए स्वच्छ से क्लेद युक्त
तरल से भरे, आधा सेमी से कम वाले वेसिक्ले जो कफ दुष्टि
के कारण होते हें, वेसिकल कहाते हें|
7.
Bulla पुटक :- जब वेसिकल या पुटिका का क्षेत्र बड़ा होजाता है
तब उन्हें बुल्ले या पुटक कहा जाता है| आमतौर पर इन्हें
फफोले ब्लिस्टर कहा जाता है| यह कफ प्रकोप से होने वाली
रक्त दुष्टि है| सुश्रुत अनुसार यह विस्फोटक है (सुश्रत
निदान स्थान अ१३ श्लोक१६).
8.
Wheal चक्रिका :- त्वचा पर शोथ के कारण उसकी सतह पर किनारे पर
लालिमा वाले पर उठे हुए कई आकार के चक्क्त्तरे होते है| इनमें खुजली होती है| इसका कारण कफ और पित्त का
प्रकोप होता है| उदर्द, शीतपित्त
इसी श्रेणी के होते हें|
9. व्रण
विद्रधि (Abcess):- एक सेमी से अधिक बड़ा, त्वचा में कोशा समूह (tissue) के विघटन (नष्ट
होने) या क्षय होने पुय का संचय व्रण होता है| इसका
प्रमुख कारण संक्रमण है| दर्द, शोथ (सूजन), उष्णता, आदि पित्तज लक्षण इसके पित्त प्रकोप का करना है|
10.
Petechiae पेटीचिया:- आघात आदि से त्वचा में रक्त स्राव होने
पर लाल, नीले, काले निशानो
की तीन स्तिथियाँ हो सकतीं है| पेटीचिया, परपुरा, और एक्मोसेस. पेटीचिया में ये निशान से
आलपिन के सिरे जैसे होते हें| आयुर्वेद के विचार से
स्थानीय कोशिकाओं में कफ क्षय के कारण और रक्त बड़ने से होता है|
11.
Purpura परपुरा:- इसमें ये 2 cm तक बड़े और समूह में मिलते हें|
12. Ecchymoses :- एक्मोसेस में बड़े क्षेत्र में फेले हुए निशान मिलते हें| सामान्यत इन्हें “नील पड़ना” कहा जाता है| तात्कालिक स्तिथि में एक्मोसेस
में त्वचा के नीचे इतना अधिक रक्त भी एकत्र हो सकता है, जो अंगुली से दवाने पर हलचल प्रतीत हो सकती है, जो कुछ समय बाद रक्त जमने (clotting) से स्थिर
हो जाती हें|
13. रक्त गुल्म (Hematoma हेमोटोमा) :- सामान्यत:
इसे गुमडा कह जाता है, जो चोट आदि लगने से अधिक मात्र
में रक्त स्राव होने पर उसके संचय से बनता है| रक्त
क्षय का करना आघातज या ने कारणों से कफ क्षय होता है|
14.
Telangiectasia तेलनजेक्तेशिया :- यह त्वचा पर रक्त वाहिनियों
का जाल सा दिखाई देता है, इन्हें स्पाईडर वेंन भी कहा
जाता है, सूक्ष्म रक्त वाहिका स्त्रोतास में रक्त की
अति प्रवृत्ति होने से रक्त वाहिनी फेल जाने से होता है| यह नाक, परों में जांघों आदि स्थानों पर देख जा
सकता है| आगे चलकर वेरीकोज वेन में परिवर्तित हो सकता
है यह उसका पूर्व रूप भी कहा जा सकता है|
15. Erythema एरिथ्रिमा :- त्वचा पर लालिमा, पित्त के प्रभाव
से त्वचा के वर्ण में परिवर्तन होना है| यह संनिकृष्ट
कारणों से पित्त की तीव्र दुष्टि है| आधुनिक चिकित्सा
विज्ञानं मत से यह हर्पीज सिम्पलेक्स के संक्रमण से होने वाली प्रतिक्रिया से होती
है, जो सामान्यता स्वत: ठीक हो जाती है|
16.
Burrow खाज :- बुर्रो का अर्थ बिल या गुफा होता है, त्वचा में यह एक प्रकार की खुजली वाला रोग है, जो सरकोप्टस स्कैबीईनामक
परजीवी (लिंक पर रोग का विवरण है देखें) से होने वाली स्केबीज है| यह
पेरासाईट बहुत छोटे होते हैं तथा त्वचा में रह कर उसे खोदते रहते हैं जिससे तेज
खुजली होती है। रात में यह खुजली और भी बढ़ जाती है।
17.
Poiklodarma पोइकलोडर्मा:- रक्त दुष्टि का परिणाम है, रुक्ष विपाक से रक्त क्षय है| यह त्वचा पर लाल
रंग की विवर्णता (Pigmentation) जो हाइपोपैग्मेंटेशन, हाइपरप्ग्मेंटेशन, टेलेन्जेक्टियास और क्षय के
कारण होता है| यह अधिकांशत: छाती या गर्दन पर होती है| जो कि त्वचा होता है, इसे धुप का प्रभाव (सन
बर्न) भी माना जाता है|
18.
Comedo कील :- त्वचा के रोम कूपो में जमा हुआ केराटिन (त्वचा
मलबे) है। ब्लैकहेड या सफ़ेद हेड से बंद दीखते हें यह मुख दूषिका (मुँहासे) के साथ
अधिक दिखाई देते हें| यह मुहांसे न हों तब भी हो सकता
है। यह संक्रमण पर निर्भर है| न्यून वात के साथ कफ के
विशेष प्रकोप से यह दूषित होती है|
= Continuous. क्रमश: Next to see. - देखने के लिए निम्न क्लिक करें लिंक :-