Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

दिन चर्या- अर्थात निरोगी रहकर सौ वर्ष जीने की विधि।


 दिन चर्या- अर्थात निरोगी रहकर सौ वर्ष जीने की विधि।

 देखा जा रहा है, की आज इस वर्तमान समय में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हें, जिनका उल्लेख पुरातन  से लेकर आधुनिक चिकित्सा ग्रन्थों तक में नहीं मिलता, इसका प्रमुख कारण है ऋषि-मुनियों [पूर्वजों] व्दारा अनुभव सिद्ध दिनचर्या का पालन नहीं करना!
"दिन चर्या" शब्द के अंतर्गत रात्रि चर्या ओर ऋतुचर्या का समावेश भी विश्व के प्राचीनतम चिकित्सक आचार्य चरक /बाग्भट्ट आदि ने कर दिया है। चर्या का अर्थ 'आहार' (भोजन) ,'विहार'(रहन -सहन),  ओर 'आचरण' (व्यवहार)   की विधि से है।  हमारे देश में दिनचर्या की जानकारी परंपरागत रूप से माता-पिता ओर गुरु या शिक्षक से पीढी दर पीढ़ी
मिलती रही है, परंतु विदेशी शासको के आगमन से पिछले एक हजार वर्ष में शिक्षा का यह ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया, इसका ही परिणाम है नई- नई बीमारियों का हमारे देश में आगमन। 
ऋषि ग्रंथो के अनुसार एक सामान्य मनुष्य की दिनचर्या निम्नानुसार होना चाहिए।
 ब्राह्ममुहूर्त में जागना -
     "ब्राम्हे मूहूर्त उत्तीष्टेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुष:॥" चरक सूत्र  
ब्राह्ममुहूर्त अर्थात सूर्योदय से पहिले रात्रि की अंतिम प्रहर(4-4 घंटे के तीन प्रहर) -चरक] में जागना अर्थात् सूर्योदय के पहिले अपनी आवश्यकता ओर क्षमता के अनुसार प्रतिदिन सो कर उठ जाना चाहिए। अंतिम प्रहर से पूर्व जगाना भी हानि कारक होगा। वर्तमान में हमारे युवक युवती पढ़ाई के नाम पर रात देर तक पढ़ते रहते हें इससे वे देरी तक सोते हें। यह हानि कारक होता है।

  • वर्तमान समय में सूर्योदय के पूर्व किसी भी समय उठ जाना अच्छा है। 
 पूर्व काल मेँ संध्याकाल के पश्चात् आवागमन कठिन हो जाता था। पग-पग पर कीड़ों मकोड़ों ओर साँप बिच्छू से लेकर बढ़े हिंसक जानवरों का भय अधिक होता था, इसी परिस्थिति समझ कर ऋषि मुनियों ने दिन चर्या निर्धारित की थी। संध्या काल पश्चात संध्या- कर्म अर्थात पुन: दैनिक जीवन की आवश्यक शरीर चिंताओं को भी सम्मलित किया गया था। इसके पश्चात रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात सूर्यास्त से 4 घंटे पश्चात रात्रि शयन का निर्देश दिया गया हे।  पिछले लगभग सौ वर्षों से विज्ञान ने दिन ओर रात का भेद समाप्त सा कर दिया हे। इसी कारण देर रात तक जागते रहना आदत बन गया हे यह हानि कारक है। एक सामान्य मनुष्य को लगभग 7-8 घंटे की नींद आवश्यक होती है।पर इस आवश्यकता की पूर्ति रात्री के अतिरिक्त अन्य समय में करना स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होता है। हालांकि आचार्य चरक ने परिश्रम करने वाले, सामान्य जन को ग्रीष्म ऋतु में, सभी मोसम में बच्चों, व्रद्धों, रोगियों को, दिवा शयन की अनुमति दी है, परंतु वह भी उसकी आवश्यकता अनुसार उचित प्रमाण में होना चाहिए।

  • अतः सूर्योदय से पूर्व सॉकर उठ जाना, ओर रात्रि में लगभग दस साढ़े दस बजे तक सो जाना ही स्वस्थ्य के लिए उचित है।

दिन चर्या में अगला विंदु शरीर चिंता का है।  अक्सर इसे बढ़ी ही जल्दवाजी मेँ निवटा दिया जाता है।     
शरीर चिंता - शरीर चिन्तां निर्वर्त्य कृतशौचविधि स्तत: ॥  वाग्भट्ट -- जागते ही बैठ कर चिंतन करना की में उठने योग्य हूँ या नहीं इसके लिए अपने हाथौ की ओर देख कर स्वयं की क्षमता का आकलन किया जाता है। इसे ईश वंदन भी कह सकते हें।  

  • इसके पश्चात "उष:-पान" अर्थात प्रात: पर्याप्त मात्रा में उपयोगी जल या पानी पीना। इसका अर्थ है, मोसम के अनुसार उष्ण, शीतल, या सामान्य जल, ओर उसकी मात्रा निश्चित करना। 

रात्रि के समय शारीरिक प्रक्रियाओं में शरीर का अधिकाश जल प्रयुक्त हो चुका होता है। मूत्र के रूप में वह पानी उसमें घुली गंदगी, एसिड, अमोनिया, आदि पदार्थों के साथ निकाल दिया जाता हे इससे जलियांश की कमी हो जाती है, जलियांश की कमी के कारण मल (शोच) की सहज प्रवृत्ति नहीं होती, ओर दुर्बलता भी प्रतीत होती है, इसिकी पूर्ति यह "उष:-पान" करता है। एक सामान्य वयस्क व्यक्ति को इसकी पूर्ति लगभग एक लीटर पानी से होती है, अतः इस मात्र में पानी पी लेने से मल- मूत्र की प्रवृर्ति सुगम हो जाती है, मल- मूत्र का त्याग यदि अच्छा हो जाए तो स्वयं को ही जैसे "सब कुछ अच्छा" लगने लगता है।

  •   बाह्य शरीर की चिन्ता अर्थात मल मूत्र त्याग के पश्चात,  दंतवन (मंजन पेस्ट) , जिव्हा निरलेखन (जीभ गला साफ करना), हाथ पैर मुह साफ करना या धोना,  अभ्यंग (तैल मालिश) व्यायाम, ओर सूर्य दर्शन करना इसका अर्थ है घूमने जाना, वापसी में स्नान (नहाना) करना आदि यही सब शरीर चिन्ता के अंतर्गत आता है।       
  • यही पूरी प्रक्रिया संध्या काल में भी किए जाने का विधान बनाया गया था। ताकि दिन भर की धूल, पसीना, जैसा शारीरिक स्वच्छता ओर ध्यान आदि द्वारा अपने क्रिया-कलापों का पुनरावलोकन कर आगामी योजना बनाई जा सके के लिए संध्या-पूजन, प्राणायाम आदि जैसा कर्म सम्मलित किया गया।  

     प्राचीन काल में उपलब्धता के अनुसार नीम बबुल आदि की दाँतोन से दांत साफ करने को कहा गया था, वर्तमान में उपलब्ध ब्रश से मंजन पेस्ट करना भी सही होगा। 
      सिर से पैर तक सारे शरीर अभ्यंग या मालिश करने से शरीर की रुक्षता या सूखापन हट जाता है, ताजगी प्रसन्नता का अनुभव होता है, चर्म रोगों ओर शरीर पर स्थिक परजीवी/जीवाणु/ विषाणु आदि से अनजाने ही छुटकारा मिल जाता है।  व्यायाम से रक्त का संचार बढ़ता है। व्यायाम को आचार्यों ने शीत ऋतु में बलार्ध अर्थात्  जितनी शक्ति हो उससे आधा, एवं ऋतु गर्मी में ओर भी कम व्यायाम करने के लिए निर्देशित किया है। अधिक व्यायाम भी हानिकारक होता है। रोगी, गर्भणी  बालक आदि को यथायोग्य अलग निर्देश हें।

  •   अक्सर या अधिकतर व्यक्ति शाम को शोच नहीं जाते, पर यह जानना आवश्यक हे कि जब हा दो बार भोजन करते हें तो दो बार मल त्याग के लिए भी जाना ही चाहिए। मूत्र वेग को तो त्यागने से कोई रोक नहीं पाता पर मल त्याग अकसर रोकने में सफल रहते हें। यह रुका हुआ मल आंतों में सूख कर जम जाया करता है, ओर कब्ज, कर कई रोगों को आमंत्रित भी करता है। आयुर्वेद में सामान्य व्यक्ति से लेकर रोगी तक, ओर शिशु से लेकर वयोव्रद्ध तक मल प्रवृत्ति पर विशेष ध्यान दिया जाता है। 
  •         अन्य शरीर शुद्धि जैसे, रोम(अनचाहे बाल) नख(नाखून), श्मश्रु (दाढ़ी-मुछ),अधिक न बढ़ाएँ। पैरों, मल-मूत्र स्थान,साफ रखें, प्रतिदिन स्नान, साफ वस्त्र धारण, सुगंधित तैल इत्रादी का प्रयोग करें इससे न केवल स्वस्थ रहेंगे वरन दिन भर जो भी समीप आएगा उसे भी अच्छा लगेगा। 
  •  प्रात: भोजन - स्नानादी से निवृत्त होकर प्रात: कालीन भोजन अर्थात नाश्ते का विधान, आयुर्वेदीय दिन चर्या में बताया गया है। चूंकि इसके पूर्व भोजन एक दिन पूर्व किया गया था अत: अब तक भोजन के पच जाने के कारण शक्ति पाने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। इसके बाद दूसरा भोजन शाम को पुनः शरीर साफ करने के बाद सूर्यास्त से पूर्व किया जाना अच्छा है।    
आंतरिक शरीर की चिन्ता शरीर तब ही स्वस्थ रह सकता हे जब की मन ओर आत्मा भी स्वस्थ्य हो।  यहाँ एक बात समझनी होगी की आयुर्वेदिय दिनचर्या ओर स्मृतियों की दिन चर्या में भिन्नता है। स्मृति में दैनिक संध्या आदि धार्मिक कार्यों को भी को भी दिनचर्या में जरूरी माना है। परंतु आयुर्वेद में इसे आचरण भी कहा जासकता है।  

  • आचरण  आयुर्वेदीय दिनचर्या में आचरण को भी विशेष महत्व दिया गया है। इसका प्रभाव मनुष्य को मानसिक रूप से स्वस्थ रखें का काम करता है। स्मृतियों में इसे ही धर्म कहा गया है।  इस प्रकार शरीर शुद्धि के पश्चात अपने दैनिक कामों में, जैसे व्यापार, रोजगार, शिक्षा लेना या देना कृषि,आदि आदि जो भी करते हों वे सद आचरण के साथ करना चाहिए। दिन चर्या में मानसिक स्वास्थ्य के लिए अपने आचरणों को भी चरक आदि समस्त ऋषिगणो ने मान्यता दी है, ओर अत्यावश्यक बताया है, इसे मनुष्य का धर्म भी कहा है।  

      धर्म शब्द को लेकर राजनीतिज्ञों ने बढ़ा हँगामा मचाया हुआ है। वास्तव में हम सबका धर्म है की सुख देने वाले अपने उपकारक पदार्थों की रक्षा करें। सभी प्राणियों की इच्छा होती है की वे "सुख" मिले, अत: उनकी सतत्  कोशिश सुख पाने के लिए ही होती है। सुख की प्राप्ति धर्म के विना हो नहीं सकती,  सुख के ये साधन ही धर्म हें। यही आचरण भी है। इसके अंतर्गत ही निम्न आचरण आते हें, जिन्हे पालन करना ही धर्म है।  चरक, वाग्भट्ट आदि ऋषियों ने इसका भी विस्तार से वर्णित किया है। इनसे किसी भी संप्रदाय के विचारों की मर्यादा नहीं टूटती, ओर सभी संप्रदायों में नाम ओर भाषा भेद से इन्ही को अपने आदर्शों में स्थान दिया है।

  • अलग अलग ऋतुओं के अनुसार आहार,विहार ओर आचरण थोड़ा बहुत अलग होता है।  अगला लेख ।    

------------------------------------------------------------------------------------------------------------
         समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से है| 
आज की बात (29) आनुवंशिक(autosomal) रोग (10) आपके प्रश्नो पर हमारे उत्तर (61) कान के रोग (1) खान-पान (69) ज्वर सर्दी जुकाम खांसी (22) डायबीटीज (17) दन्त रोग (8) पाइल्स- बवासीर या अर्श (4) बच्चौ के रोग (5) मोटापा (24) विविध रोग (52) विशेष लेख (107) समाचार (4) सेक्स समस्या (11) सौंदर्य (19) स्त्रियॉं के रोग (6) स्वयं बनाये (14) हृदय रोग (4) Anal diseases गुदरोग (2) Asthma/अस्‍थमा या श्वाश रोग (4) Basti - the Panchakarma (8) Be careful [सावधान]. (19) Cancer (4) Common Problems (6) COVID 19 (1) Diabetes मधुमेह (4) Exclusive Articles (विशेष लेख) (22) Experiment and results (6) Eye (7) Fitness (9) Gastric/उदर के रोग (27) Herbal medicinal plants/जडीबुटी (32) Infectious diseaseसंक्रामक रोग (13) Infertility बांझपन/नपुंसकता (11) Know About (11) Mental illness (2) MIT (1) Obesity (4) Panch Karm आयुर्वेद पंचकर्म (61) Publication (3) Q & A (10) Season Conception/ऋतु -चर्या (20) Sex problems (1) skin/त्वचा (26) Small Tips/छोटी छोटी बाते (71) Urinary-Diseas/मूत्र रोग (12) Vat-Rog-अर्थराइटिस आदि (24) video's (2) Vitamins विटामिन्स (1)

चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

स्वास्थ /रोग विषयक प्रश्न यहाँ दर्ज कर सकते हें|

Accor

टाइटल

‘head’
.
matter
"
"head-
matter .
"
"हडिंग|
matter "