Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

What & Why- do not eat, in the rainy season?

क्या और क्यों - वर्षा ऋतू में नहीं खाना चाहिए? 
         हर मोसम में कई खाद्य हानि कारक होते हें पर अक्सर कुछ लोग कहते सुने जाते हें की "वे तो खाते हें उन्हें कुछ नहीं होता" 
        वारिश के मोसम में पत्तेवाली सब्जियां और विशेष रूप से जो सीधे जमींन पर लगतीं हें जैसे पालक, मेथी आदि, नहीं खाना चाहिए| -
       चूँकि बरसात का पानी खेतों में भर जाया करता है, इससे बहुत तरह के कीट उन्हें अपना आश्रय बना लेते हें, इसी मोसम में कीट पतंगों का प्रजनन काल या ब्रीडिंग सीजन होता है वे इनमें अपने अंडे, लार्वा आदि रखते हें| 
        कीट पंतंगों लार्वा अण्डों से भरी सब्जी खाना हानि कारक होगा ही, यदि किसान इन से बचने के लिए कीट नाशक दवा का छिडकाव करते हैं, जो बार बार और अधिक मात्रा में (पानी से धुल जाने के कारण) करना होती है, इससे ये रसायन मिटटी में गिर कर पोधों की जड़ों से सोखे जाकर सब्जियों में अन्दर तक समा जाया करते हैं, और आसानी से धोने , उबलने आदी से भी नहीं निकल पाते, और शरीर में पहुंचकर केंसर जेसे रोग तक बना सकते हें| 
वर्षा ऋतू में वात की स्वभाविक प्रकोप और कफ वृद्धि होती है, वीर्य हीन (शक्ति हीन) सब्जियां जो समय बड रही होती है ताकि पूर्ण परिपक्वता के बाद अच्छे बीज को जन्म दे सकें, इस वात को बढ़ने में सहयक होती है|
वात बड़ने से शरीर / जोड़, आदि में दर्द, पेट की खराबी और कफ दोष के कारण श्वास, कास (खांसी), वाइरल, सर्दी जुकाम, होता है जो आगे बढकर साइनसाइटीस, ब्रोंकाइटिस, टोसिलाइटिस, अस्थमा, आदि आदि जैसे रोग का कारण भी होती है| 
        वात और कफ दोष के लिए पत्ते वाली सब्जी के अतिरिक्त दही, पकोड़ा-पकोड़ी, दूध मलाई, और स्ट्रीट फ़ूड अत्यंत हानि कारक होता है| 
जब कुछ लोग कहते सुने जाते हें की "वे तो खाते हें उन्हें कुछ नहीं होता" 
होता यह भी यह भी सही है पर उन्हें "कुछ" क्यों नहीं होता? 
अधिकतर ऐसे लोग युवा होते हैं उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति अच्छी होती है जो रोगों कीटाणु के विरुद्ध लड़कर उन्हें नष्ट करती रहती है| 
        परन्तु इसकी भी एक सीमा होती है, अधिक आयु होने पर या अधिक संक्रमण होने पर, जीवन चर्या (खान-पान, सोना- जागना, व्यायाम आदि) ठीक न होने, दंत मुहं नाक गला आदि की सफाई ठीक से न करने पर, शरीर पर कई रोग एक साथ होने पर, या कुछ जन्मजात कारणों से, देर-सबेर उन्हें भी इसका परिणाम भोगना ही पड़ सकता है|
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जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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