Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

After rain, How to live in the Autumn? What should we eat? What do not eat ? बारिश के बाद, शरद ऋतू में, कैसे रहें? क्या खाएं ? क्या न खाएं?

The arrival of autumn, after the rain, - the beginning of the activity of ghosts and vampires - It means diseases like Dengue, malaria,  typhoid et  
शरद ऋतु का आगमनबारिश के बाद, - भूत और पिशाच की गतिविधि की शुरुवात - इसका मतलब  डेंगूमलेरियाटाइफाइड आदि, जैसे रोग होना
वर्षा ऋतू के अंत के साथ शरद ऋतू का प्रारम्भ हो रहा है | सितम्बर से नवम्बर तक (लगभग) चलने वाली
यह ऋतू हिंदी माह अश्विन या क्वार में आती है | इस समय मोसम का तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता है|  मानसून के पीछे हटने या उसका प्रत्यावर्तन हो जाने से आसमान एकदम साफ़ हो जाता है और तापमान में पुनः वृद्धि होने लगती है। इस समय पानी से भरपूर भूमि तथा तीव्र तापमान के कारण वायु की आर्द्रता बहुत अधिक बढ़ जाती है इससे असहनीय उमस (दम घुटनेवाली वायु, stuffiness)  होने लगती है|  हमारे देश में यह स्थिति ‘क्वार की गर्मी’ के रूप में जानी जाती है। अतिश्योक्ति में कहा जाता है, की "इस गर्मी से हिरन भी काले पढ़ जाते हें" इस समय की गर्मी से वर्षा की फसल पकती है|
श्राद्ध पक्ष, नवरात्रिविजयादशमीशरद पूर्णिमा जैसे, अवसर इसी समय आते हें
इस ऋतू में अधिक मात्रा में खाना विष खाने जैसा है? 
शरद ऋतु पित्त प्रकोपक काल है| वह स्वभाविक ही कुपित अवस्था में रहता है। शरीर में पित्त का कार्य पाचन है, पर इस समय यह हानि भी पहुचने लगता है|  इससे भूख कम होने लगती है, और जठराग्नि या पेट की पाचन शक्ति मंद रहती है। इस कारण इस मोसम में अधिक आहार (भोजन) खाने के लिए मना किया जाता है| पाचन कमजोर होने से अधिक खाया भोजन पित्त प्रधान अम्लपित्त (एसिडिटी), माइग्रेन आदि सिर में दर्दजल की कमी से अत्यधिक प्यास लगनाज्वररक्तपित्त रोग चर्मरोग और अन्य रोगों का कारण बनता है|  अतः इस मोसम में बिना भूख खाना अनुचित है| जो लोग इन पित्तजन्य रोगों जैसे आदि से पाहिले से ही परेशान है उन्हें तो  इस ऋतुचर्या का पालन अत्यधिक सावधानी के साथ करना चाहिए।
लाभकारी स्वाद-
इस मोसम में मधुरकषाय (कसले स्वाद के), तिक्त (कडवा), आसानी से पचने वाले व्यंजनो का ही सेवन करना लाभकारी होता है|   इन रस (स्वाद) वाले पदार्थ पित्त का शमन करने वाले होते है। इसी कारण गणेश उत्सव में मोदक,  श्राद्ध पक्ष में क्षीर,  आदि का महत्व है|
सभी दूर होते हें प्रेत और पिशाच? {लेख देखें-   क्या प्रेत और पिशाच होते हें?}
एक बात और विचारणीय है की इस ऋतु में सभी दूर पानी भरा हुआ रहता है, इसमें अनेक मच्छर, मक्खी, से लेकर अनेक दिखने वाले और न दिखने वाले पेरासाईट जीव भी वृद्धि करते हें, कहा जा सकता है की इस काल में जो भूत प्रेत  धरती पर अधिक उतर आते हें, वे ये ही हैं   
पानी हर जगह मिलता है दूषित -
पानी में बहकर आये पानी के साथ कई रसायन, खनिज आदि भी नदी तालाबों, बांधों, में एकत्र हो जाते हें, अत:  पीने के पानी पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए | इस मोसम में सर्वाधिक रोग इस प्रकार के दूषित जल के कारण ही होते हें| मच्छर मक्खी के कारण मलेरिया, डेंगू, हेजा, टायफाइड, जैसे रोग इसी काल में अधिक पाए जाते हैं
इस मोसम में आपको क्या खाना चाहिए? 
इस ऋतू में  अनाज के अंतर्गत गेहूंजौज्वारधानदालों में  चनातुअरमुंगमसूरमटर।
 सब्जी में ककोड़ापरवलगिल्कीग्वारफलीगाजरमक्के का भुट्टातुरईचौलाईलौकीकदृदूसहजन की फलीजमीकंदआलू । 
फलों में अंजीरपके केलेअमरुदअनारअंगूरनारियलपपीतामौसम्बीनींबू
सूखे मेवों में अखरोटआलू बुखाराकाजूखारकचारोलीबादामसिंघाड़ेपिस्ता,  मसालों में जीरा,  आंवला,  धनिया,  हल्दी,  खसखस,  दालचीनी,  कालीमिर्च,  सौंफ।
इस समय गाय का घी सेवन करना चाहि, यह अग्नि को तो प्रदीप्त के साथ पित्त को भी शांत करता है| मोसम के रुक्षता या सूखापन को भी दूर करता है।
इस समय गन्ने का रस एवं नारियल का पानी अधिक लाभदायक है|

इस मोसम में मालिश से लाभ होता है| 
इस शरद ऋतु में स्नेहन (मालिश) करने से त्वचा की रुक्षता मिटकर चमक आती है, सर की तेल मालिश बालों को झड़ने, गिरने, सफ़ेद होने से बचाकर उन्हें मजबूत और मोटा कर देते हें| यदि तेल न लगाये तो इन दिनों बालों को भी अधि हानि पहुंचती है|

इस मोसम में क्या नहीं खाएं ?
मौसमी सब्जियां विशेषकर जी पानी के संपर्क में अधिक रहती है, जैसे गोभी, पालक, मेथी, मुली, आदि पर क्रमी अंडे देते हें, वे पेट में जाकर हानि करते हें, या कृषक उन्हें नष्ट करने रसायन छिड़कते हें, ये रसायन सब्जी आदि के साथ पेट में जाकर पित्त की व्रद्धि कर हानि पहुँचते और केंसर जैसे रोग उत्पन्न करते हें|
इस समय क्षारीय (Alkaline),  खट्टे जैसे दहीखट्टी छाछ, , और गरम एवं मसालेदार वस्तुएं नहीं खाना चाहिए|  खट्टे फल भी जैसे-नींबूआदि का सेवन कम करें।
बाजरीमक्काउड़दकुलथीचौला फलीफूटप्याजनोनिया की भाजी, रतालूबैंगनइमली,  पोदीना,  फालसाअनन्नास, कच्चे बेलफलतिलमूंगफली, आदि पित्त बढ़ने वाले खजाने से बचें|
 मिर्च मसालों, लहसुनमैंथी और हींग, सरसों के तेल, मेवों का सेवन, का प्रयोग सीमित मात्रा में करें|
चाय और कॉफी न किया जाये तो अच्छा है अन्यथा कम सेवन किया जाना चाहिए।
शराब (मद्यपान) अधिक हानि कारक है| इस मोसम में पीने से अल्सर हो जाता है|  
शरद ऋतू में शरीर का बल मध्यम रहता है, अत: अत्यधिक परिश्रम और अति व्यायाम करना भी हानि पहुंचता है|
हवा से विशेष बचें- 
इन दिनों पूर्व से आने वाली हवा (पुरवाई) में नमी होती है जो पुरानी बीमारियां जैसे- जोड़ों का दर्द आदि फिर से ताजा कर देतीं हैं, अत इससे बचें|
इन दिनों संयम से रहें और क्रोध अधिक न करें इससे पित्त बढ़कर रक्तचाप अधिक बडाता है|
इस समय दिन और रात का ताप का अंतर भी मिलता है अक्सर रात बहुत ठंडी होती हैं कूलर एसी पंखा चलते रहने से प्रातः उठने पर पूरे शरीर में दर्द महसूस होता है, जो बाद में ज्वर भी बन सकता है। अत:  सावधानी, विशेषकर छोटे बच्चो की अधिक रखना जरुरी है|

इस समय होने वाले पित्तज रोग (एसिडिटीमाइग्रेन आदि सर दर्दसर्वांग दाहअनिद्राआदि) की पित्त शांति के लिए सर्व श्रेष्ट हैं इन दिनों पंचकर्म विरेचन” |
 आयुर्वेद ऋषि चरक के अनुसार पित्त प्रकोपक इस काल में, पित्त रोगों (एसिडिटी, माइग्रेन आदि सर दर्द, सर्वांग दाह, अनिद्रा, आदि) को पंचकर्म की विरेचन “VIRECHAN" समूल रोग नाश के लिए सर्व श्रेष्ट चिकित्सा है|
यदि पंचकर्म विरेचन न करवा सकें तो भी इस समय त्रिफला चूर्णहरड चूर्ण, निशोथ चूर्ण या अमलतास का गूदा, एरंड तेल आदि का विरेचन (जुलाब) लेने से पित्त रोगों से बचा जा सकता है|  बहुत फायदेमंद होते हैं।
शरद ऋतू के बाद हेमंत ऋतू आती है जिसे हेल्दी सीजन भी कहा जाता है यह स्वस्थ के लिए सर्व श्रेष्ट मोसम है|  हेमंत ऋतू के बारे में जानने प्रतीक्षा करें
 डॉ मधु सूदन व्यास प्रगति नगर उज्जैन मप्र 9425379102 
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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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