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फंगल या फफूंद ग्रस्त अंगुलियाँ
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मानसून में पेरों की फंगस (या फफूंद) एवं सोंदर्य की समस्याए |
मानसून आ गया है, लम्बी गर्मी और सूखे के मोसम के बाद बारिश सारी धरती को हरी भरी बना देती हे, जो हमारे मन को बड़ा ही आनंद देती है, पर प्रत्येक मोसम के लाभ और हानिया भी हें| उसकी अधिकता से या हमारी उसका अति आनंद लेने या लापरवाही के कारण बारिश भी कई रोगों के साथ शारीरिक सोंदर्य को भी प्रभावित करती है। इस मोसम में अनजाने से शारीर के अन्य भोगो की तुलना में पर अधिक प्रभावित होते हें| अत:आज कल पैरों का बचाव भी बहुत जरुरी हो जाता है। बरसात में पैरों का ख्याल रखने के सोंदर्य के अतिरिक्त और भी कई दुसरे कारण भी हैं। ऐसे में पैरों की खूबसूरती से अधिक आवश्यक हो जाती है पैरों की सफाई। बारिश के मौसम में पेरों की सफाई की जरा सी भी कमी हुई नहीं की पैरों पर फंगस या फफूंद से संक्रमण होने की संभावना रहती है।
सामान्यत सभी प्रतिदिन अपने चेहरे पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन पैरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। जो मोटे शारीर वालों/ डाईविटीज के रोगियों को अधिक हानी कारक सिद्ध हो सकी है। जरुरी है की हम सब स्वयं को और छोटे बच्चों के पेरों का बहुत अधिक ख्याल रखे , नहीं तो इस फफूंद के संक्रमण से पेरों की अंगुलियाँ में गलन,कटे दर्द वाले घाव, आदि कब हो गए पता भी नहीं चल पायेगा|
फंगल या फफूंद एक परजीवी है, हम सबने इसे अक्सर बरसात के बाद दीवालों पर सफ़ेद काले रूप में जमते भी देखा होगा| वनस्पति के रूप में भी यह कुकुरमुत्ते, आदि के रूप में देखा होगा| अक्सर बरसात के दिनों में रोटी /ब्रेड पर भी तीन चार दिन में पनपने लगती है | इसी प्रकार जब भी सफाई का विशेषकर अँगुलियों के बीच आभाव हुआ, या अधिक समय तक इनके बिच गीलापन /नमी बनी रही तो, इसको पनपने का मोका मिल जाता है, परिणाम स्वरुप घाव, चर्मरोग गलन आदि दर्द देने वाले रोग प्रवेश कर जाते हें जो की डाईविटीज के रोगियों को सडन(गेंग्रिन) का कारण बन पैर कटवाने यो मोत का कारण भी बन जाते हें |
केसे बचे इस भयानक परिणाम दे सकने वाली फंगल से| इसके लिए जरुरी हे की हम अपने पेरों की देखभाल करें|
नायलोन के मोज़ों की जगह हमेशा काटन(सूती) के मोजे़ ही प्रयोग में लायें और गीले मोज़ों को बदलने में देरी ना करें । पैरों की सफाई का भी हमेशा विशेष ख्याल रखें। इसके लिए आप डिटोल /फिटकरी आदि का प्रयोग कर सकते हैं । आप पैडीक्योर का भी सहारा ले सकते हैं। गीले पैरों को ठीक प्रकार से साफ करने के पश्चात उन्हें सुखान कभी नहीं भूलें क्योकि नमी या गीलापन फफूंद के लिए जरुरी तत्व है, पेरों को ठीक प्रकार से सुखा कर ही बिलकुल सूखे मोजों के साथ ही जूते पहनें । और जब भी मोका मिले तत्काल पेरो को जूते मोजों से निकालकर पोछ-सुखाकर रखें| कार्यालय आदि स्थानों पर जहाँ बेठना हो पेरों को खुल्ला रखे,और हवा लगने दें| पर कभी भी नंगे पांव बिलकुल ना चलें। ऐसे मौसम में खुले जूते पहनें या ऐसी चप्पंलें पहनें जो आसानी से सूख जायें। हफ्ते में एक दिन जूतों को कुछ देर धूप में रखें, जिससे उसमें मौजूद सूक्ष्मजीवी या फफूंद नष्ट हो जायें,और नमी भी पूरी तरह से सुख जाये |
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फंगल ग्रस्त नाख़ून और अंगुलियाँ |
डायबिटिक्सि में डायबिटिक फुट की समस्याएं इस मौसम में कहीं ज्यादा बढ़ जाती हैं और अस्थमैटिक्स में फंगस वाले जूतों से संक्रमण की संभावना भी अधिक हो जाती हे|
आपके पैर पर आपके शरीर का पूरा ढांचा खड़ा होता है। थोड़ा सा समय अपने पैरों की सफाई के लिए रोज कम सेकम दो बार जरुर निकालेंगे तो आप फंगस या फफूंद से होने वाले किसी भी प्रकार के संक्रमण से भी बच सकेंगे।
इसके अलावा आप मानसून्स से पहले मानसून में होने वाली समस्याओं से बचने की तैयारी कर लें। गर्मियां हमारा खान-पान से मन हटा देती हैं और गर्मियों में हमारा स्वास्थ्य भी कमज़ोर हो जाता है। गर्मियों के बाद बरसात के मौसम में स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस मौसम में बीमारियां अधिक होती हैं। सर्द और गर्म मौसम की वजह से पाचन क्रिया भी ठीक नहीं रहतीं।
इसलिए इन समस्याओं से बचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए -
मानसून में अन्य शारीरिक साफ सफाई पर विशेष ध्यांन देना चाहिए। सफाई में हाथों की सफाई विशेष आवश्यक है, इसलिए खाना खाने से पहले हाथ ज़रूर धो लें अगर आप नाखून बढ़ाने के शौकीन भी हैं, तो इस मौसम में छोटे नाखून रखें।क्योकि इनमे संक्रमण इन दिनों अधिक हो सकता है | इस मानसून के मोसम में यह भी जरुरी हे की थोड़ा हल्का खाना खाने की आदत डालें, जो आसानी से पच सके क्यों कि बरसात में गैस, अपच जैसी पेट की समस्याएं अधिक होती हैं। बाहर का खाना या बासी खाना ना खायें। इस मोसम में मिर्च के पकोड़े बहुत खाए जाते हें , मिर्च की अधिकता से अग्नि तेज जरुर होती है, और पकोड़े का तेल स्नेहन कर 'वात' (वायु) का शमन भी करती है, इसके बाद भी इसकी अधिकता जो व्यक्ति विशेष अनुसार कम-ज्यादा हो सकती हे पेचिश/दस्त आदि का कारण बन सकती हे अत इनसे बचना लाभकारी है।
अक्सर इस मोसम में पानी कम पीने में आता हे जो हानिकारक होता है, अत पानी भी पर्याप्त पिए, अपने फ्रिज की बोतलों को बदलने की आदत डालें। बाहर का जूस या पानी ना पीयें, बोतलबंद पानी या उबले हुए पानी को ही पीने की आदत डालें। क्योकि सभी दूर के पानी अक्सर गन्दा /गटर मिश्रित पानी हो सकता है।
मानसून में भीगने का डर अधिक रहता है, इसलिए बच्चों को इनहाउस गेम्स खेलने को ही प्रेरित करें। घर और आस-पास- अपने घर के आस-पास पानी ना जमा होने दें। मानसून आने से पहले से ही साफ-सफाई की आदत बना लें। ताकि मच्छर न पनपने पायें|
महिलाओं के लिए भी यह कुछ जरुरी आदतें बनाना सोंदर्य के लिए लाभदायक होगा - पूरी बांह के कपड़े पहनें, जिससे आप मच्छरों से बच सकें। घर के आस-पास पानी ना जमने दें। अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए स्वस्थ आहार का सेवन करें। फास्ट फूड और फास्ट, फूड से परहेज़ करें। पीने के पानी का खास ख्याल रखें। वर्षा त्रतु को हमेशा से ही साल का सबसे अच्छा समय माना जाता रहा है। तेज़ गर्मी और तीव्र धूप से राहत दिलाने वाला यह मौसम बहुत ही लुभावना होता है। ऐसे में आप स्वयं को अधिक ऊर्जावान महसूस करते हैं, लेकिन इस मौसम का दूसरा पहलू कुछ मायनों में खतरनाक भी है। ऐसे मौसम में त्वचा और बालों से संबंधी समस्याएं अधिक होती हैं। आपकी थोड़ी सी लापरवाही आपके सौंदर्य और स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। सलाद या कच्ची सब्जि़या कम खायें।
कठोर साबुन का प्रयोग ना करें। चेहरे पर जैतून का तेल ना लगायें, यह ठंड के मौसम में ही यह अच्छा होता हे है। मच्छरों और कीड़ों से होने वाली एलर्जी से बचने के लिए घर के आसपास पानी ना जमा होने दें। अपने पैरों, बालों या त्वचा को अधिक समय तक गीला ना रहने दें क्योंकि इससे फंगल इंफेक्शन जैसी त्वचा की समस्याएं भी हो सकती हैं। सूरज की किरणों से आपकी त्वचा को क्षति पहुंच सकती है इसलिए सनस्क्रीन लगाना ना भूलें। यह एलर्जी और अल्ट्रावायलेट किरणों से आपकी सुरक्षा करेगा। ऐसे क्लीन्ज़र का प्रयोग करें जो नान सोपी हों और त्वचा के रोमछिद्र को साफ रखे। मेकअप जितना हल्का होगा आप मौसम का मज़ा भी उतना ही ले सकेंगे। आपके लिए मेनीक्योर और पेडीक्योर अच्छा हो सकता है लेकिन वाटरप्रूफ आई लाइनर व मस्कारा का ही प्रयोग करें।त्वचा की समस्याओं से बचने के उपाय अपनाने के साथ–साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचना भी उतना ही आवश्यक है।
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