ग्रीष्म- ऋतु चर्या
- कैसे स्वस्थ रहें, इस मोसम में?
ऋतु आवत ऋतु जात है, कहत सबन यह बात| अनुकूल चंगा रहे, प्रतिकूल पाये घात||
हमारे देश
में सूर्य उत्तरायण होने से दिन लम्बे और गर्म होते हैं| इसे ग्रीष्म ऋतु जो माह मई से जुलाई के आरम्भ तक रहती
है, कहा जाता है| इस समय वातावरण कष्टकारी तीव्र गर्मी, गर्म हवाएं (लू) के साथ चलती
है| इससे व्यक्ति शारीरिक शक्ति में कमी की
अनुभूति, और अग्नि मंद हो जाती है| अग्नि और वायु महाभूत प्रबलता होती है| वात दोष
संचित (एकत्र) होता है,
कफ दोष शांत रहता है|
इस काल में
सेवन किया वात प्रधान आहार-विहार बाद में वात रोग उत्पन्न करता है| यदि कटु पदार्थ
मिर्च-मसाला आदि खाया जाए तो अग्नि बड़ने से पित्त विकृत होकर जलन आदि करता है|
इसलिए इस काल में पित्त शामक, मधुर, शीत,एवं स्निग्ध आहार-विहार करना लाभकारी होता
है|
आहार:- खाद्य
पदार्थ जो पचाने के लिए हल्के होते हैं- इनमें मधुर रस प्रधान (मीठा), स्निग्ध (चिकने), शीत (तरावट वाले), और द्रव्य, जैसे चावल, मसूर आदि का सेवन करना चाहिए|
पानी और अन्य तरल पदार्थ जैसे ठंडे पानी,
छाछ, फलों के रस, मांस
सूप, आम का रस, काली मिर्च के साथ बिलोया
हुआ दही, छाछ आदि का सेवन अधिक करना चाहिए| सोते समय चीनी सहित दूध लिया जाना लाभकारी
है|
गर्मी की
अधिकता से शरीर में पित्त बड़ने से जलन, दाह, एसिडिटी, से बचे रहने के लिए अधिक नमक
वाला तीखा चटपटा, अम्ल युक्त खट्टा, और गरम खाद्य से बचना चाहिए| अधिक, परिश्रम,
कसरत, यौन भोग और शराब सेवन, हानिकारक होतीं है|
शरीर में
पानी की कमी, पित्त की अधिकता, और अग्निबल (पाचन क्षमता कम होने) से शोच में कमी
अथवा दस्त होने की स्तिथि बनती है|
दही-वर्फ
को शीत समझना भ्रम है:- दही,
विशेषकर खट्टे दही को गर्मी शांत करने वाला समझना एक भ्रम हें, स्पर्श में ठंडे
महसूस होने वाला दही, बर्फ वास्तव में पित्त की वृद्धि कर उष्णता बढाता है| यह
एसिडिटी का कारण होता है| जबकि मट्ठा, छाछ (Buttermilk) पित्त शामक ठंडक देता है| दही की अच्छी तरह मथ कर बनाई लस्सी पित्त शांत करती है| वर्तमान
में लस्सी के नाम पर लिया जाने वाला कम बिलोया, बरफ आदि मिला कर बनाया, गाडा “दही पित्त” बढ़कर पेट में जलन करता है|
चिकित्सकीय निर्देश:- पित्त बड़ने
पर शोच-क्रिया ठीक नहीं होती, यदि विरेचक, रेचक, या कब्ज नाशक लिया जाये तो पित्त
शांत हो जाता है, और पेट, मूत्र शरीर में होने वाली जलन शांत हो जाती है| इसके लिए
एरंड तेल, हरड चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण आदि श्रेष्ट होते हें|
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समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।
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