Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Types & General views about BASTI Treatment, बस्ती के भेद और बस्ती चिकित्सा विषयक सामान्य जानकारी|

Types & General views about BASTI Treatment, 
बस्ती के भेद और बस्ती चिकित्सा विषयक सामान्य जानकारी:- 
यह भ्रम मिटा दिया जाना चाहिए की "बस्ती' का मतलब एनिमा है|
एनिमा केवल एक पेट साफ करने का आधुनिक तरीका मात्र है यह शोधन मात्र ही है जबकि बस्ती पूरी चिकित्सा है, और यह गुदा के साथ कई विभिन्न शरीर अंगों से दिया जाता है| यह आयुर्वेदीय पंचकर्म चिकित्सा के अंतर्गत एक सम्पूर्ण चिकित्सा के रूप में रोगोपचाररोगनिवारणएवं चिकित्सा में सहायक के रूप में प्रयोग की जाती है| इस लेख में गुह्य स्थानों की (गुद, मूत्र गर्भाशय) बस्ती को प्रमुखता दी गई है| 
मुझे विश्वास है, की वे आयुर्वेदिक चिकित्सक जो वर्तमान में बस्ती चिकित्सा नहीं कर रहे हें वे इससे रोगी को लाभ देकर स्वयं भी यश, और धनोपार्जन करने में समर्थ होंगे| चिकित्सक इस विषय में कुछ भी मुझसे निसंकोच पूछ सकते हैं|   
प्रमुख रूप से (सामान्यत:) तीन  बस्ती होतीं है| आयुर्वेदिक आचार्यों ने नाम, अंग, स्थान, कार्य, ओषधि मात्र, प्रयोग, एवं उपयोगकी द्रष्टि से,  विभिन्न नामो से अपने ग्रन्थों में वर्णन किया है| कुछ बस्तियां एसी भी कही है जो बिना किसी पूर्वकर्म या शर्त के दी जा सकतीं है| पुरातन काल से वर्तमान तक कई चिकित्सक केवल बस्ती चिकित्सा से रोगियों को लाभ देते आ रहें है| बस्ती चिकित्सा के कारण रोगी को कडवी ओषधि से छुटकारा तो मिल ही जाता है , साथ ही कई रोगों में ओषधि के पचने, और मेटाबोलिज्म आदि की प्रक्रिया से गुजरने के कारण ओषधि गुण में परिवर्तन आदि समस्या का सामना नहीं करना होता| ओषधि सीधे प्रभावित अंग जैसे छोटी बढ़ी आंत, पक्वाशय, गर्भाशय, मूत्राशय, आदि पर क्रिया कर सकती है| या जिस अंग विशेष के लिए की जा रही है, सीधे उसी पर असर डालती है| 
वास्तव में इसे बस्ती इस कारण कहा गया है की, इस प्रकार से ओषधि द्रव (तैल, क्वाथ, मांसरस, दुग्ध आदि) मलाशय, मूत्राशय, पीठ (कटी), जानू (घुटना), नेत्र आदि स्थानों पर कुछ समय के लिए स्थापित, रखा, या  बसाया (settle down) जाता है| अत: जिस स्थान पर इसे रोका जाता है, उसके मान से इसे क्रमश: गुद बस्ती, उत्तर बस्ती, कटी बस्ती, जानू बस्ती, नेत्र बस्ती आदि कहा जाता रहा है|
चिकित्सा क्रम के अंतर्गत पूर्वकर्म स्नेहन, और स्वेदन कर रोगी के गुदा, योनी या मूत्र मार्ग, से अथवा नाभि, ह्रदय, कटि, पार्श्व, कुक्षी, जानु, नेत्र, आदि स्थानों  ओषधि द्रव तेलादी, स्थापित करने से वह उस स्थान के दोषों को दूर कर और शमन(शांत) करती है|
वात दोष चलायमान (Moving) है, इसलिए बस्ती वात दोषजन्य रोगों की विशेष चिकित्सा है, परन्तु वात अपने साथ-साथ पित्त और कफ का भी शोधन-शमन करने में वाहक की भूमिका का निर्वाह करता है, इस लिए सभी प्रकार के रोग ठीक होते हैं|  
इसलिये बस्ती चिकित्सा अकेली ही सम्पूर्ण चिकित्सा हो जाती है| इससे वात-पित्त-और कफ तीनों दोषों, सातों धातुओं, मलों का शोधन, शमन, लेखन, स्तम्भन, स्नेहन, वृंहण, रूक्षण आदि सभी चिकित्सा कर्म प्राप्त हो जाते हें|
बस्ती चिकित्सा से शरीर को पुष्ठ होकर, वय: स्थापना (उम्र बढ़ना) होकर दीघार्यु प्राप्त होती है, अग्नि बल बढ़ने से मल, श्लेषमा, पित्त एवं वायु का शोधन हो जाता है,  बुद्धि प्रखर होती है|
बस्तियों के प्रकार[1]- सर्व रोग और दोष निवारण में समर्थ बस्ती चिकित्सा उनके कार्य (Task), अधिष्ठान (According to organs, प्रयोज्य ओषधि (applicable medicine), ओषधि मात्रा (Dose), विधि (Method), संख्या (count), आनुषंगिक भेद (Incidental differences), कार्मुक्ता (potentiality), आदि के अनुसार कई वर्गीकरण या भेद (Distinction) किये जाते हें|
सामान्यत: चिकित्सकीय दृष्टि से वर्गीकरण नाम और कार्य (according to name and functions.) के अनुसार तीन है. ß
1. निरुह या अस्थापन . यह प्रकूपित दोष को शरीर से बाहर निकालती है। अत इसे शोधन बस्ती कहते हें|
2. अनुवासन (अनुवासित smoothness), स्नेह से अनुवासित (चिकनापन) करने वाली बस्ती|
3. उत्तर बस्ति  - पुरुष मूत्र द्वार, स्त्री के मूत्र द्वार और योनी में दी जाने वाली बस्ती उत्तर बस्ती है|
निरूह बस्ति –यह अधिकांशत ओषधि क्वाथ से दी जाती है| इसका कार्य मल को निकालना होता है, पर यह बस्ती हमेशा अनुवासन या स्नेह बस्ती के बाद ही जबकि दोष या मल स्निग्ध (चिकना) होकर आसानी से निकलने योग्य हो गया हो, यदि अनुवासन के पूर्व दिया जाता है तो रुक्षता बढ़ जाने से वात वृद्धि होकर कष्ट बड जाता है|   आस्थापन बस्ति[2], कुछ कार्य अन्तर से इसका पर्याय है।
निरुह के अंतर्गत सभी शोधन बस्तियाँ, लेखन बस्तियाँ, उत्कलेशन, दोषहर आदि, सभी बस्तियों का समाहन होता है। निरुह बस्ती आवश्यक रूप से, लगभग 45 मिनिट में, दोषों (मलों) के साथ लोटना (वापिस निकलना) ही चाहिए अन्यथा हानिकारक होती है|
निरुह (अस्थापन) बस्ती देने के बाद रोगी को मलमुत्र एवं अपान वायु क्रमशः मल, पित्त, कफ, एवं वायु ठीक से निकले (सम्यक प्रवृत्ति), भोजन में रूचि पैदा (अग्निप्रदीप्त) हो, पक्वाशय, मलाशय आदि अवयवों में हलकापन (लाघवता) हो जाये तो निरुह लाभदायक सिद्ध होती है| इससे रोगी स्वस्थ्य एवं बलवान होता है।
परन्तु अति निरुहण (अतियोग) हो जाये तो रोगी अंग सुप्ति, अङ्गमर्द, क्लम, कम्पन, निद्राभाव, दुर्बलता, तमः प्रवेश, उन्माद और हिक्का आदि (विरेचन के अतियोगों) के समान लक्षण पैदा होने लगते है।
जिस रोगी को वमन-विरेचन, हुआ हो या कराया गया हो, दुर्बल हो, या जिसने कुछ भी खाया हो, गर्भ धारण हो, श्वास. कास, का रोगी हो, गुदा में व्रण घाव आदि हो, जलोदर हो तो निरुह बस्ती नहीं देना चाहिए|    
अनुवासन बस्ती:-  घृत, तेल, आदि स्नेह की अधिकता वाली यह बस्ती अनुवासित (पोषण) करने से अनुवासन बस्ती कहती है| यह बस्ती चिकित्सा में सर्व प्रथम दी जाती है| निरुह बस्ती के विपरीत यह, अगर वापिस न लोटे तो भी कोई हानि नहीं करती| अनुवासन बस्ती कभी भी ऐसे रोगी को नहीं दी जा सकती जिसे शोधन या निरुह बस्ती न दी जा सके| इसे देने के पाहिले निरुह बस्ती कभी नहीं दी जाती| कई बार केवल अनुवासन बस्ती देना ही पर्याप्त होता है| इस प्रकार जो रोगी निरूह (आस्थापन) के योग्य होते हें वे सब अनुवासन के योग्य भी योग्य होते हें| ऐसे रोगी जो विशेष रूप से रूक्ष शरीर वाले हों या केवल वात दोष से पीड़ित हों, उन्हें अनुवासन बस्ति देना चाहिए। 
अनुवासन बस्ती में स्नेह मुख्य देर्व्य होता है, स्नेह (घृत, तेल आदि) की मात्रा के अनुसार यह भी तीन प्रकार की 
स्नेह बस्ती-जिसमें स्नेह 250 ml, अनुवासन बस्ती- स्नेह मात्रा 120 ml, और मात्रा बस्ती जिसमें स्नेह- अनुवासन की अधि मात्रा 60 ml स्नेह होता है, कहते हैं| 
इसके अंतर्गत ही सभी यापन बस्तियां, मधु तैलिक, बृहण बस्ति, शुक्रवर्धक बस्ति,मात्र बस्ती, फलमात्रा बस्ति, युक्तरथ बस्ति आदि इसके अंतर्गत आतीं हें|
उत्तर बस्ति :- पुरुषों के मूत्र द्वार, स्त्रियों के मूत्र द्वार और योनी में दी जाने वाली बस्ती उत्तर बस्ती कहलाती है|  इसके अनुसार ही मूत्र-द्वार गत, या गर्भाशय गति बस्ती कहती है| गर्भाशय गत बस्ती अल्प वयस्क और अविवाहित कन्या में, नहीं देना चाहिए| स्त्रियों में उत्तर बस्ती, स्त्री चिकित्सक का ही न्यायसंगत अधिकार है, साथ ही यह लोकाचार (Ethics) भी है, अत: पुरुषों को नहीं लगाना चाहिए|  
Types General views about BASTI- बस्ती के भेद और बस्ती विषयक सामान्य जानकारी|

आगे  - प्रतिक्षित पोस्ट अलग अलग रोगों में प्रयुक्त होने वाली बस्तीयां,  आसान बस्ती योगप्रयोग द्रव्य निर्माण विधि, बस्ती कैसे दें, आदि का विवरण बस्ती निर्माण construction of BASTI)) बस्ती द्रव्य कैसे तैयार करें?निसंकोच या बिना किसी विशेष प्रक्रिया के दी जाने वाली बस्तियां| 




बस्ती भेद की विशेष जानकारी इच्छुक अन्य निम्न वर्गीकरण देखें- 


[1] A- नाम एवं कार्य अनुसार according to name and functions. – 1. अनुवासन (अनुवासित smoothness), 2. निरुह अस्थापन). 3. उत्तर बस्ति पुरुष मूत्र द्वार, स्त्री के मूत्र द्वार और योनी में | /
B- अधिष्ठान भेद से (According to organs)1. पक्वाशयगत,  2. गर्भाशयगत, 3. मूत्राशयगत,4. व्रणगत./ Cप्रयोज्य ओषधि द्रव्य भेद (applicable medicine), - 1.  निरूह (अस्थापन- क्वाथ द्रव्य), 2. अनुवासन (स्नेह. तैल आदि).  
D- मात्रा भेद से (according to Dose) - 1. स्नेह बस्ति – जैसे वय (आयु) अनुसार, दी गई  निरूह बस्ति की 1/4 मात्रा में, 2. मात्रा बस्ति- स्नेह बस्ति की सबसे कम मात्रा, 3.अनुवासन -स्नेह बस्ति की 1/2 मात्रा,

E- विधि एवं संख्या भेद से (Method & count),-1. कर्म बस्ति (कुल 30 बस्तियां), 2. काल बस्ति (15 या 16), 3. योग बस्ति (7 या 8

F- कार्मुक्ता भेद से (potentiality) -1.शोधन बस्ति (Refinement), 2. लेखन (Slimmer.), 3. उत्कलेशन (Stimulator), 4. शमन (mitigatory), 5.बृहंण (Weight promoter) 6. कर्षण् (reducing weight ) 7. रसायन (Rejuvenator) 8. बाजीकरण (Sex promoter.),  9. स्नेहनीय (Smoothness promoter), 10. चक्षुण्य (eye Remunerative) , 11. संग्राही, 12. कर्ण प्रसादन बस्ति (Ear ). 
G-आनुषंगिक भेद Incidental differences से - 1. यापन- (किसी भी समय और किसी को भी दी जा सकती है,)  2. सिद्धबस्ति-  (रोग विशेष के शमनार्थ.), 3. प्रासृत[1] योगिकी (100 ml), 4. द्वादश[1] प्रासृतिकी- 1200 ml), 5. पादहीन प्रसृत (600 ml). 6. तीक्षण बस्ति- (क्षार मूत्र आदि तीक्ष्ण औषधि की), 7. मृदु बस्ति – (मांसरस, दुग्ध आदि), 8.पिच्छा बस्ति – (संग्राही बस्ति उपयोग अर्श, अतिसार, प्रवाहिका, आदि में), 9. रक्त बस्ति रक्तक्षय (Blood loss) (रक्त की).
H- स्थानानुसार (स्थान Location)1.कटि बस्ति (basti for Back or spine,),2. जानु बस्ति (घुटना knee) , 3. हृदय बस्ति (basti for heart), 4. शिरो बस्ति (basti for Head), 5. नैत्रबस्ति आदि.
[2] आस्थापन- वयःस्थापकअर्थात् जो आयु की स्थापना कर बल वर्ण का प्रसादन करें।
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जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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