सर्वोपरि है आहार
इसमें
पहला ओर प्रमुख स्थान आहार का है। आहार शरीर के पोषण के साथ-साथ स्वस्थ भी रखता है। यही वजह है, कि आहार चिकित्सा का साधन भी है।
आहार का सेवन हमारे देश में दादी नानी के निर्देशों के अनुरूप ऋतु या मौसम अनुसार किया जाता रहा है, ,
आहार के दो प्रकार
आहार के भी दो हिस्से हैं, एक पूर्ण और दूसरा अल्पाहार।
हमारे देश के परिवर्तित होते रहने वाले मोसम [गर्मी, सर्दी,बरसात] के अनुसार, इसको कालानुसार [प्रात:, दोपहर, सायं,रात्री] भी अलग-अलग रखा गया है।
पाश्चात प्रभाव के चलते उनके मौसम के अनुरूप निश्चित आहार को ब्रेकफ़ास्ट, लंच, डिनर, आदि के नाम से लिया जाना तो गलत नहीं, पर उस समय आहार भी उनके अनुरूप ब्रेड,बिस्किट,ओर फास्ट फूड खाना, ओर रात्री डिनर के समय अधिक ओर गरिष्ठ[देर से पचने वाला] खाना खाने से आहार के इस स्तम्भ कमज़ोर होने लगता है। कमजोर खभे पर खड़ा भवन जैसे क्षति ग्रस्त होने लगता है उसी प्रकार से हृदय रोग, डाईविटीज़, ब्लड प्रेशर जेसी बीमारियाँ होने से शरीर रोगी होने लगता है।
मोसम या ऋतुओं के अनुसार पूर्ण ओर अल्पाहार पर विचार करने के बाद ही उपयुक्त आहार लेना अच्छा होताहे।
ग्रीष्म ऋतु में रात्री छोटी ओर दिन बढ़े होते हें, गर्मी की अधिकता से शरीर में खुश्की बढ़ती है,(
गर्मी का मोसम- बेचेनी ओर मुश्किल का हल?) सामान्य शरीर को अधिक शक्ति[केलोरी] की जरूरत होती है, पर साथ ही अग्नि या भोजन पचाने की क्षमता भी कम हो जाती है,मोसम की गर्मी या उष्णता ओर साथ ही अधिक तेज मिर्च मसाले आदि युक्त भोजन, पित्त बढ्ने से पेट, शरीर, मूत्र त्याग आदि में जलन या दाह भी होने लगती है, जैसी कई बातों को सोचकर, आहार पर विचार करना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार इस ग्रीष्म ऋतु में लवण [नमकीन], कटु [चरपरे], अम्ल[ खट्टे] रस [स्वाद] वाले उष्ण [शराव या मद्ध्य आदि] ,पदार्थ, व्यायाम [अति] , ओर धूप का सेवन करना छोड़ देना चाहिए। सभी ने यह अनुभव भी किया होगा की इन दिनों इस प्रकार के मिर्च मसालों से एसीडिटी, मूत्रादी में जलन,की समस्या हो जाती है।
दो बार पूर्ण ओर दो बार अल्पाहार ।
दिन बढ़े होने से काम काज, या शारीरिक गतिविधियां अधिक होतीं हें, अतः केलोरी (भोजन से प्राप्त ऊर्जा-
आहार कि केलोरी केसे जाने?:) खर्च भी अधिक होती है। इस कारण कम से कम दो बार पूर्ण ओर दो बार अल्पाहार लेना आवश्यक हो जाता है। जिनमें मधुर, लघु [शीघ्र पचने योग्य जिससे शक्ति जल्दी मिले] , स्निग्ध [घी तेल वाले], पदार्थ मोसम में उत्पन्न होने वाले फल सब्जी का सेवन खूब करना चाहिए। प्रात: के अल्पाहार में
इंसटेंट नाश्ता भारतीय फास्ट फूड में सत्तू (देखें) का प्राचीन काल से मुख्य स्थान रहा है। यह शरीर के पोषण के साथ-साथ मोटापा और डायबिटीज को नियंत्रित रखता है।प्रात: काल के लिए यह आदर्श नाश्ता है। दूसरा अल्पाहार दिन के तीसरे प्रहार में किया जाता है। इस समय आम, अंगूर, संतरा, मोसम्बी, ककड़ी, खरबूजा, आदि मौसमी फल ओर रस लाभदायक होते हें। ठंडाई, दूध, छाछ, दही की लस्सी, भी लेना अच्छा है। बिना मथा दही खाना हानिकारक होता है। चाय पीने की आदत है तो उसमें दूध अधिक होना चाहिए।
रात में यदि देर से खा रहे हों तो कम ओर सुपाच्य खाना भी जरूरी होता है, आजकल हमारे देश में शादी आदि कार्यक्रमों में रात्री में अधिक पकवान चाट पकोढ़ा, ओर देरी से पचने वाले खाना, खाने खिलाने की परंपरा बन गई है, यह ग्रीष्म ऋतु में रात में ये सब खाना अधिक हानिकारक है, इससे बचना या अति कम खाना ही अच्छा होता है।
सर्दी के मौसम (शीत ऋतु)सब कुछ पचा सकने वाला ।
ठंडों के दिनों में पाचक अग्नि तेज हो जाती है, ओर यह गरिष्ठ( देर से पचने वाले भोजन) को भी पचाने में समर्थ होती है, इस समय जो भी खाया जाता है, सब पच जाता है इसीलिए वह बल,ओर शरीर वर्धक होता है। हमारे देश में इन दिनों लड्डू आदि "तर माल" खाने की परंपरा है। जनवरी में आने वाली मकर सक्रांति पर्व पर लड्डू को इसी कारण जोड़ दिया गया है।
इस काल में अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार मात्र में सभी खाद्य खाये जा सकतें है। इस समय भी पूर्ण ओर अल्पाहार दो-दो बार समय का ठीक अंतराल रखकर किया जा सकता है।
लेकिन "तर माल" खाने/ खिलाने से पहिले हम सबको यह जरूर सोचना चाहिए की हम कैसे हों या हमारी पीढ़ी केसी हो?
पहिले सोचे, क्या चाहिए आपको अति तंदरुस्त (मोटी ताजी) ओर आलसी ओर शरीर या स्म्रती बुद्धि ओर बुद्धिमान संतान ?
सर्दियों में जठर अग्नि तेज हो जाती है सामान्य व्यक्ति बालक आदि द्वरा जो कुछ भी खाया जाता है , आसानी से पच जाता है।
हमरे घरों में पुरानी परंपरा के अनुसार लड्डू खाने खिलाने का रिवाज है, यदि इस फेट ओर कार्बोहाइड्रेट अधिकता वाले खाने के स्थान पर के स्थान पर संतुलित ओर प्रोटीन से भरपूर खाने का प्रयोग करें, तो मेधा,स्म्रती, बुद्धि, के साथ स्वस्थ्य शरीर भी मिलेगा, जबकी लड्डू खाने/खिलाने से मिलेगा आलसी ओर मोटा शरीर।
मोटा शरीर कसरत से माल पचाकर ताकतवर जरूर बनाया जा सकता है, पर बुद्धिमान नहीं। उदाहरण हजारों मिल जाएगे।
बारिश के मोसम में पाचक
अग्नि मंद हो जाती है, वायु में आद्रता(नमी) से कफ बढ़ता है, पर उमस या उष्णता से वायु प्रकुपित होती है। इस प्रकार से तीनों दोष परिवर्तन शील व्यवहार करते हें, इसी कारण कभी रोग भी बढ़ते घटते रहते हें। अत: यथा संभव देर से पचने वाले खाध्य से बचना चाहिए। कुछ लोग मिर्च मसले वाले पकोड़ियाँ आदि इन दिनो खाते हें, जो सभी के लिए अच्छे नहीं होते। युवा जिनकी पाचक अग्नि(शक्ति) ठीक है उन्हे छोड़ कर एसा खाना अन्य के लिए हानिकारक हो सकता हें।
गर्मी के मोसम में पित्त का प्रकोप होता है इसी कारण पेट में /मूत्र त्याग आदि में जलन होती रहती है, इस समय पित्त शामक, शीतल, सुगंधित, खाना-पीना ओर वातावरण में रहना लाभकारी होता है। इस समय भूख कम लगती है, गर्मी के कारण पानी अधिक पीने में आता है, आठ पानी की अधिकता के साथ तरल खाद्य फलों के रस, दूध दही की लस्सी, आदि लाभ दायक होते हें।
2- निद्रा और 3-ब्रह्मचर्य, के विषय में शीघ्र।
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