Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Fasting on festivals - A mode of mind and self refinement, with the liberation of body disease! त्योहारों पर उपवास - शरीर की रोगों से मुक्ति के साथ मन और आत्म शोधन की एक विधा!

पर्व ओर त्योहारों पर उपवास – शरीर (रोग मुक्त्ति) , मन ओर आत्म शोधन की एक विधा! 
डॉ. मधु सूदन व्यास उज्जैन मप्र,  
https://healthforalldrvyas.blogspot.com/2019/09/
fasting-on-festivals-mode-of-mind-and.html
कई व्यक्ती नव रात्री सहित अन्य पर्वो पर एक या अधिक दिन के  ब्रत या उपवास रख साधना करते हैं। धर्म ग्रंथो में वर्णित उपवास के कई भावार्थ किये हैं। ईश्वर के पास बेठना, तप-जप करना, बल पूर्वक इंद्रियो को वश में करने का प्रयंत्न, आदि आदि हैं पर सामान्यत: इसे भोजन ग्रहण न करने से माना जाता है। वास्तव में इसे धर्म ग्रंथो में शरीर, मन ओर आत्मा को स्वस्थ्य ओर शुद्ध करने के विचार से ऋषियों ने शामिल किया है। इसलिये उपवास शरीर ओर मन की चिकित्सा से स्वत: जुड जाता है। 
चिकित्सकीय द्रष्टी से यहाँ उपवास का अभिप्राय, शरीर के पाचन संस्थान के विश्राम से है। प्रतिदिन दो से पांच बार या अधिक भी, कुछ न कुछ खाते रहने से यह पाचन संस्थान दिन रात सक्रिय रहता है। पाचन तंन्त्र भी विश्राम करे यह शरीर की प्राकृतिक मांग होती है, इसीलिये लगभग सभी प्राणी अकसर कभी कभी कुछ समय के लिये खाना छोडते देखे जाते हैं। मनुष्य को भी रोग प्रभाव होते समय खाना खाना छोडते देखा जाता है।
रोग की मजबूरी वश खाना छोडने की बजाय यदि विचार पूर्वक छोडा जाये, या उपवास किया जाये तो अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है।  
उपवास आयुर्वेद ओर प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार उपवास को निम्न प्रकारों में बांटा जा सकता है।
१- प्रात: कालीन उपवास (Morning fasting;)- सुगम उपवास है, इसमें केवल प्रात: का नाश्ता या अल्पाहार छोडना होता है। दिन में सिर्फ दो बार भोजन करें।
२-  सायंकालीन उपवास (Evening fast;) –इसे एकासना या अर्धोपवास भी कहते हैं। जिन्हे पूराने ओर जटिल रोग हों उन्हे इससे बडा लाभ होता है। इसमें एक समय लिया जाने वाला भोजन संतुलित, सुपाच्य ओर प्राकृतिक होना चाहिये।
३- एकोहार उपवास (Single food fasting;)- एक बार एक ही खाद्य खाना एकोहार होता है। जैसे प्रात: रोटी तो शाम को केवल सब्जी, अगले दिन एक एक समय केवल फल, दूसरे समय केवल दूध। शरीर कि सामान्य समस्याओं को इससे दूर किया जा सकता है।
४-   रसोपवास ( Liquid fasting ;) - केवल फलों या सब्जीओं, के रस या सूप लिया जाता है। दुध भी इसमें शामिल नहीं होता। इसमें कोई भी ठोस खाद्य न होने से मल-त्याग प्रक्रिया बंद न हो इसलिये गुन गुने जल में नीबु रस मिलाकर एनिमा लेकर पेट साफ करते रहना चाहिये
५-   फलोपवास (Fruits fasting;) - केवल रस दार फलों या सब्जियों पर रहना फलोपवास होता है। इसमे  व्याक्ति अनुकूल फल या सब्जी का प्रयोग किया जाता है। इसमें भी कभी कभी एनीमा आवश्यक हो जाता है।
६- दुग्धोपवास (Milk fasting);- यह दुग्ध कल्प भी कहाता है, इसमें दिन में चार-पांच बर केवल गाय का ताजा दुध ही पिया जाता है।
७- तक्रोपवास्‌ ‌ (Buttermilk fasting;)- छाछ या मट्ठे के साथ किये जाने वाले इस उअपवास को तक्र कल्प भी कहते है। संगृहणी जैसे पेट के रोग, ओर छोटे-मोटे कई रोग ठीक किये जा सकते है। इसमें छाछ घी रहित होना चाहिये, इसे प्रारम्भ करने के एक दो दिन पहिले पूर्णोपवास कर लेना चाहिये।
८- पूर्णोपवास (Total fasting;)- केवल शुद्ध ओर ताजे जल के अतिरिक्त ओर कुछ भी नहीं खान-पीना पूर्णोपवास होता है।
९-        साप्ताहिक उपवास (Weekly fasting;)- सप्ताह में एक दिन पुर्णोपवास करना साप्ताहिक उपवास होता है। आफिस में कुर्सी पर बेठे बेठे काम करने वालों को यह उपवास जरूर करना चाहिये। उपवास के दिन गरम पानी का एनीमा भि लेना चाहिये। इससे कई शरिरिक ओर मानसिक तनाव ओर रोगों से बच सकते हैं।
  १०- लघु उपवास (Small fasting;)- तीन से सात दिन तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं|
 ११-  कठोर उपवास (Harsh fasting;)- पूर्णोपवास के सभी कठोर नियम कठोरता से पालन करना होता है। कई ऋषि-मुनि ओर द्रड संकल्प वाले व्यक्ति यह कर सकते है। महात्मा गांधी अकसर यह उपवास करते थे। यह असाद्य रोगों के लिये, पर इसे चिकित्सक के मार्ग दर्शन में ही करना चाहिये।
 १२-  टूट या खन्डित उपवास (Break fasting;) – इसमें दो से सात दिन पूर्णोपवास के बाद कुछ दिन हलका भोजन करन, फिर पुन: उतने ही दिन का उपवास करना होता है। यह क्रम अभीष्ट सिद्धी (रोग निवारण) तक किया जाता है।
 १३- दीर्घ उपवास (Long fasting)- पूर्णोपवास बहुत दिन तक चलाना। इसके लिये कोई समय निर्धारित नहीं होता। यह २१ दिन से ५०- ६० दिन का भी हो सकता है। स्वभाविक भूख लगने पर अथवा शरीर क्षय होने के पूर्व तक जारी रखा जा सकता है।  इस उपवास को पुर्व छोटे-छोटे उपवासो के अभ्यास के बाद ही करना चाहिये।
उपवास काल में निम्न बातों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
1. पानी की कमी नहीं होना चाहिये।
2. उपवास काल में शोच न आने पर एनीमा लेते रहना चाहिये। उपवास के समय आंत अपना काम कम कर देती है, इसलिये मल सूख कर उन्हे जाम कर सकता है, यह हाँनी कारक होता है। यह मानना कि खाना नहीं खाने से मल बन नहीं रहा यह भूल होती है। पूर्व का जमा मल ओर शरीर की अन्य क्रियाओ से भी किसी न किसी रूप में मल बनता ही है, इसे भी निकालना जरूरी होता है, न निकले तो उपवास का परिणाम निष्फल सिद्ध हो जायेगा।  उपवास काल में सामान्यत: एक से डेड लिटर गुनगुने पानी से एनीमा लेना उचित रहता है। इसमें नीबू रस कि कुछ बुंद मिला लेने से सफाई अच्छी होती है। कब्ज दूर करने कोई दस्तावर ओषधी हाँनी कर सकती है। 
3.  स्नान- प्रति दिन मोसम के अनूसार उष्ण या शीतल जल से स्नान रोज करना ही चहिये। 
4.  उपवास काल में बिस्तर पर लेटे रहने या बेठे रहने से हानी होती है, अत: शक्ति भर श्रम, योगा,या व्यायाम भी करना चाहिये। 
5.  विश्राम – उपवास की जरूरत के मान से विश्राम भी जरूरि है।
6.मानसिक स्तिथि – उपवास काल में शांत ओर स्थिर रहना चाहिये। मानसिक दवाव ओर व्यर्थ के विचार मानसिक तनाव ओर रोग उत्पन्न कर सकते हैं इससे बचने इश्वरोपासन, जप, ओर स्वाध्याय, लेखन, पठन आदि मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है, यह उपवास का सच्चे अर्थ में लाभ या प्रशाद प्राप्त करना होता है, अत: उपवास करने वाले व्यक्ति को पूरे उपवास काल में यह जरूर करना चाहिये। विनोबा, गांधी जी आदि ने इसी काल में ही, पुस्तके लिखीं थीं या कई ग्रंथो का अध्ययन किया था।
7.  उपवास का अंत या भंग करना – यह एक बहूत ही महत्व पूर्ण चरण होता है। पूरे उपवास का लाभ ओर हानी इसी चरण के अनूसार होती है।
अक्सर नव रात्री उपवास के वाद अंत वाले दिन लोग खीर पूरी आदी गरिष्ट खाना खाने की भूल करते है, यह बडी हाँनी पहुंचाता है, ओर उपवास के लाभों से बंचित कर देता है।
उपवास के बाद पाचन क्षमता कुछ दुर्बल हो जाती है, अत: खाना बहुत ही सुपाच्य ओर स्वल्प मात्रा में खाना चाहिये। उपवास के माध्यम से रोग दूर करने, वजन नियंत्रित करने के इच्छुको के लिये आयुर्वेद में प्रथम दिन मुंग दाल का पानी फिर धीरे धीरे अगले दिन बिना बघारी खिचडी फिर बघारी खिचडी, फिर अर्धाहार करते हुए भोजन करना चाहिये, फिर रोग ओर जरूरत अनुसार भोजन की मात्रा ओर सामग्री का निर्णय करना चाहिये। अधिक अच्च्छा है कि किसी कुशल वैद्य या डाइटीशियन से सलाह ले ली जाये। 
शुगर, ब्लड प्रेशर, अनीमिया, हृदय रोग, किडनी के रोग वाले रोगी, और गर्भवती महिलाओं को उपवास नही करना चाहिए| 

1.     
प्रात: कालीन उपवास;
Morning fasting;
2.     
सायंकालीन उपवास ;
Evening fast;
3.     
एकोहार उपवास;
Single food fasting;
4.     
रसोपवास;
Liquid fasting ;
5.     
फलोपवास;
 Fruits fasting;
6.     
दुग्धोपवास;
 Milk fasting ;
7.     
तक्रोपवास्‌ ;
 Buttermilk fasting;
8.     
पूर्णोपवास ;
 Total fasting;
9.     
साप्ताहिक उपवास;
 Weekly fasting;
10.  
लघु उपवास;
Small fasting;
11.  
कठोर उपवास;
 Harsh fasting;
12.  
टूट या खन्डित उपवास;
 Break fasting;
13.  
दीर्घ उपवास
 Long fasting
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