सावधान :- बार-बार टांसिलाइटिस होने से, आप जीवन भर के लिए हो सकते हैं शिकार - अपंगता, आमवात, या गाउट के ?
- टोंसिलाइटिस सामन्यत: जल्दी ठीक हो भी जाता है पर-- ?
- इसे सामान्य रोग समझ कर उपेक्षा कर वेपरवाह रहना जीवन भर का संकट उत्पन्न कर सकता है।
- टोंसिल्स बार-बार होते रहने से क्या हो सकता है?
- कोई नहीं चाहेगा कि युवा वस्था के बाद ही इस प्रकार का रोग उसे हो।
- कैसे बचेंगें ?
- टोंसिल्स बढ़ने को रोकने के लिए होने के कारण हटाना होगा?
- बड़ी ही आसान है - चिकित्सा ?
टोंसिलाईटिस क्या है?
बच्चों में
सामान्य रुप से पाया जाने वाले रोगों टोंसिलाईटिस से अधिकांश व्यक्ति परिचित हें।
युवाओं में भी बहुत देखा जाता है । अक्सर अधिकतर माता- पिता प्रारम्भ में इसके
प्रति उदासीन रहते हैं। जब अधिक खांसी, बुखार, होता है, रोगी को गले में सूजन के कारण कुछ भी
निगलने में, सांस लेने में तकलीफ अधिक होने लगती है, तब कहीं इसके प्रति ध्यान जाता है, तब तक अक्सर
देरी हो चुकी होती है, रोग अधिक बड्ता जाता है। यह जान लें
कि इसे सामान्य रोग समझ कर उपेक्षा कर वेपरवाह रहना जीवन भर का संकट उत्पन्न कर
सकता है।
टोंसिलाइटिस
सामान्यत: जल्दी ठीक हो भी जाता है पर पर बार बार होने से हो सकते हैं, जीवन भर के लिए भयानक रोग ?
हालांकि
जागरुक पालक जल्दी चिकित्सा पर ध्यान देते हैं, ओर एलोपेथिक एंटिबाओटिक्स
से यह दो- तीन दिन में ही रोग ठीक भी हो जाता है, पर ओर इससे
वे फिर से असावधान हो जाया करते हैं, ओर अधिकतर मामलों में
टोंसिल्स दोबारा हो जाते है, यदि रोग इसी प्रकार बार- बार
होता रहे, तो जीवन भर का खतरनाक रोग आमवात या गठिया वात (अपंग बनाने वाला रोग) ओर कई नये नये रोग होने का संकट हो जाता है। पर
पहिले तो समझ लेना चाहिये कि टोंसिल्स गले में दो ग्रंथीयों के रूप में शरीर का
प्राकृतिक भाग है। जो खाने-पीने से पेट ओर सांस से फेफडों के बीच जीवाणु, ओर शरीर के लिये अनावश्यक वस्तु को रोकने के लिये एक छ्ननी का काम करता
है। इन टोंसील्स में जीवाणु के संकृमण से सूजन होने पर “टोंसिलाइटिस” या
तुंन्डिकेरी शोथ कहाता है।
टोंसिल्स बार-बार
होते रहने से क्या हो सकता है?
टोंसिल्स
में एक सप्ताह से अधिक संकृमण रहने पर, वह पूरे शरीर में
फेलने लग जाता है, ओर बार-बार संक्रमण होने से, जीवन में कई समस्या खडी कर सकता
है?
तात्कालिक
रूप से खराटे (Sleep
Apnea[i] ) जो लंबे समय तक रह सकते हैं, कान में संकृमण, टोंसिल्स में घाव, (Peritonsillar Abscess), जैसे कष्ट तो इसीके कारण देखे जाते है।
कुछ भयानक
रोग जिनके बारे में आम लोग नहीं जानते, ओर आधुनिक चिकित्सा
भी बेअसर सिद्ध होती है, वह है आमवात, या आम भाषा
में पुकारा जाने वला रोग, गठिया वात, (Rheumatic
Fever Arthritis) जिसमें ह्रदय, शरीर के जोड़ों, त्वचा या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में
सूजन होती है, ओर जीवन भर कष्ट देते रहते हैं। अपंग बनाने वाला
यह रोग, जो किसी भी चिकित्सा से पूरी तरह ठीक नहीं होता।
कोई नहीं
चाहेगा कि युवा वस्था के बाद ही इस प्रकार का रोग उसे हो।
कैसे बचेंगें ?
इससे बचने
का एक ही रास्ता है, वह है, टोंसिल्स को बार-बार संक्रमित न होने दिया
जाये। हमारे अबोध बच्चों को इससे बचा कर रखा जाये।
टोंसिल्स बढ़ने को रोकने के लिए होने के कारण हटाना होगा?
जैसा की
उपर पड चुके हैं कि टोंसिल गले में एक प्राकृतिक रचना है, जिसका काम मुहु ओर नाक से ली जाने वाला भोजन, पानी, हवा आदि सभी के अनावश्यक पदार्थ रोकने का होता है। इसके उपर चिकनाई आसानी
से चिपक जाती है, अत: वनस्पति ओर देसी घी, तैलों, चर्बी, में तला हुआ
खाना (fried food), उनकी अधिकता वाला खाना चाकलेट, पिज्जा, आदि, आदि खाने की बाद
उसे टोंसिल पर से साफ करना होगा, ओर यदि बार बार टोंसिल्स बड्ते
हैं तो उन्हे खाना छोड ही देना होगा।
सामान्यत: टोंसिल्स
साफ रखने के लिये कुछ भी खाने के बाद कुल्ले करना, दांत साफ करने
ओर प्रात: सायं दोनो समय अच्छी तरह से मंजन, पेष्ट आदि से ब्रश
करने, ओर गरम पानी से गरारे, की आदत
जीवन भर अपनानी होगी ।
टोंसिल्स
में संकृमण होने पर गरम पानी में नमक, या फिट्करी डाल कर
गरारे कर या त्रिफला क्वाथ आदि आयुर्वेदीय ओष्धीय का गंडूश धारण करने से, गला साफ रखने से बार बार होने वाला रोग ठीक हो जायेगा।
स्वयम और बच्चों में
ब्रश की आदत डालें ?
अक्सर हममे
से अधिकांश आपने बच्चो को दोनो समय ब्रश करने की हिदायत देते रहते है, विशेष कर जब कोई चिकित्सक सलाह दे तब, पर स्वयम इस
आदत को कभी नहीं करते। बच्चे, ओर युवा अपने बडों का अनुकरण
करते है, वे देखते हैं कि उनके माता-पिता भी दोनों समय ब्रश
ओर गला साफ नहीं करते फिर भी उन्हे टोंसिल्स नहीं है तो उपदेश बेकार लगता है।
इसीलिये बडों को भी अच्छी सफाई की आद्तें डालना ही चाहिये,
इससे न केवल स्वयम को लाभ होगा उनके बच्चे भी स्वस्थ्य रहेंगे।
बड़ी ही आसान है - चिकित्सा
:- ऊपर लिखी गले, नाक, आदि की नियमित सफाई,
ब्रश, गरारे, ओर तले हुए खाने को
छोड्ने के साथ, संकर्मण ठीक करने दवायें भी खाना चहिये।
टोंसिलस के लिये आयुर्वेदिक, होमियोपेथिक ओर एलोपेथिक
एंटिबाओटिक सभी कारगर हैं। परंतु 7 दिन से अधिक ओर बार बार एलोपेथिक एंटिबायोटिक
खाने से वे सात्म बनकर आदत बन जाते है, ओर असर करना बंद कर
देते है, फिर डाक्टर अगली पीढ़ी (Generation) के एंटीबायोटिक देते हैं, इसी क्रम में बड्ते जाने से सभी दवा का असर बंद
होने लग जाता है,
रोगी की रोग प्रतिरक्षा शक्ति (immune power) कम या
नष्ट होने से जीवन भर के लिये रोगी बन
जाता है। अत: अधिक अच्छा है, सुयोग्य चिकित्सक की सहायता से
आयुर्वेदिक ओषधि का सेवन, ओर उपरोक्त सफाई प्रोग्राम जीवन भर
अपनाया जाये।
टोंसिल्स पंचकर्म
में वमन चिकित्सा, आदि से भी ठीक हो जाता है पर यह छोटे बच्चों को नहीं कराया जा सकता।
यदि
टोंसिल्स घाव वाले अधिक कष्टकारी हों तो आपरेशन से निकलवाये भी जा सकते हैं, पर इन प्राकृतिक अंगो को निकालने का उपाय अंतिम ओर कोई विकल्प न होने पर
ही होना चाहिये।
[i] स्लीप एपनिया एक संभावित गंभीर विकार
है जिसमें बार-बार सांस रुक जाती है और शुरू हो जाती है। यदि आप जोर से खर्राटे
लेते हैं और पूरी रात की नींद के बाद भी थकान महसूस करते हैं,
तो आपको स्लीप एपनिया हो सकता है।
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