Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

"Psoriasis"- Disease that is incurable by medicine - but you can cure it yourself?["सोराइसिस" दवा से ठीक न हो पाने वाला एक रोग - पर आप खुद इसे ठीक कर सकते हैं- कैसे? ]

"सोराइसिस"  दवा से ठीक न हो पाने वाला एक रोग - पर आप खुद इसे ठीक कर सकते हैं-  कैसे?  
सोराइसिस, psoriasis, अपरस, विचर्चिका, Eczema आदि नामों वाला भयानक कष्ट कारी इस रोग के बारे में बहूत सारे प्रश्न उठते होंगे आपके मन में जैसे -
  • सोराइसिस दवा से क्यों ठीक नहीं होता?
  • रोग का कारण क्या है?
  • कैसे हमारी रोग नियंत्रण प्रणाली ही सोरैसिस के लिये है,  जिम्मेदार?
  • रोग प्रतिरोधक शक्ति को कैसे ठीक करें?  
  • क्या इससे सोराइसिस के अतिरिक्त ओर रोग भी ठीक हो सकेंगे?
  • में तो अभी स्वस्थ्य हूं क्या मुझे एसा खराब रोग हो सकता है?
  • क्या कोई इसे ठीक करने में मेरी मदद कर सकता है?
  • चिकित्सा में समय कितना लगेगा?
  • क्या पंच कर्म निशुल्क या कम खर्च पर भी उपलब्ध है
          आयुर्वेद में सोराइसिस दुष्ट चर्म रोगों के अन्तर्गत आता है | देखें :- Particular or Secondary skin Disease (lesions) (चर्म रोग-2 विशेष या सोराईसिस).
सोराइसिस एक बहुत जिद्दी और खराब चर्म रोग है, जिसमें प्रभावित अंगों में बहुत खुजली होती है, त्वचा के ऊपर पपड़ी जैसी परत जम जाती है, शरीर पर लाल-लाल धब्बे और चकत्ते हो जाते हैं, ओर कोई ओषधि भी काम नहीं करती| सामान्यत: माना  जाता है, कि पूरी तरह से यह रोग ठीक नहीं होता! 
विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा दुनियाभर में 29 अक्टूबर विश्व सोराइसिस दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनियाभर में सोराइसिस रोग से तीन फीसदी आबादी यानी करीब 12.50 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हैं।
पर  जो किसी भी इलाज से ठीक नहीं हो पाता
उसे आप स्वयं ठीक कर सकते हैं?
कैसे? पर पहले जानना होगा कि-
सोराइसिस दवा से क्यों ठीक नहीं होता?
इस बात को समझने के पहिले आपको समझना होगा, कि इस रोग का सम्बंध किसी यह रोग त्वचा के रोग से या किसी जीवाणु , या विषाणु से, अथवा सोंदर्य प्रसाधन लगाने (कॉस्मेटिक प्रॉब्लम), से भी नहीं है।
ओर जब इसका कारण ये हैं ही नहीं, तो इलाज में दवा का क्या मतलब?
हालांकि, सोराइसिस होने के बाद लगातार खुजली आदि करने से या अन्य कारण से दूसरा संक्रमण या चर्म रोग आदि हो सकते हैं।
सोराइसिस के बाद खुजलाने से हुए त्वचा का संक्रमण (स्किन इंफेक्शन) का इलाज तो आसानी से हो सकता है, और अच्छा होते देख साध्य  (curable) समझ लिया जाता है, पर वास्तव में सोराइसिस ठीक नहीं होता| रोग संक्रमण हटने से ठीक होता हुआ प्रतीत मात्र होता है, रोग पूर्ववत बना रहता है | कुछ स्टीयरॉइड से त्वचा सामान्य सी भी दिखने लग सकती है पर ओषधि लगाना बंद करने के कुछ समय बाद पुन रोग लोटता है | स्टीयरॉइड का लगातार उपयोग से स्किन कैंसर की संभावना बढ़ जाती है |     
रोग ठीक न होने का कारण क्या है?
हमारे शरीर पर होने वाले अनेक रोगों के आक्रमण को शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति ही, शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला कर देती है, ओर इससे त्वचा की कई कोशिकाएं बढ़ने लग जाती है, इसके परिणाम से त्वचा पर सूखे और कड़े चकत्ते बनने लगते हैं, पुरानी त्वचा निश्चित समय से पुर्व निकलती नहीं, पर नई कोशिकाएं उसी त्वचा की सतह पर बनने लगतीं हैं, जिन्हे हटाने के खुजली चलती हैं, ओर दुसरे रोगों का शिकार भी होने लगता है। 
कैसे हमारी रोग नियंत्रण प्रणाली ही इसके लिये है जिम्मेदार?
इस प्रकार होता यह है जब बचाने वाला ही समस्या बन जाये, तो उसे स्वयं के सिबाय, कोन बचा सकता है, क्योंकि रोग प्रतिरोधक शक्ति बडाना या घटाना तो आपके अपने हाथ में ही है, आपके मिथ्याहार विहार से ख़राब हुआ पाचन तंत्र, के दोष से शरीर की धातु पोषण क्रम बिगड़ने से हुई नियंत्रण प्रणाली गड़बड़ा जाती है, और रोग होता है इसीलिए सोराइसिस को भी तो आप स्वयं ही नियंत्रण प्रणाली को ठीक करके ही रोग ठीक कर सकते हें। 
रोग प्रतिरोधक शक्ति बडाने के बारे में हमने कई अन्य लेख [ऋतु चर्या, आदि] लिखे हैं, ओर आगे भी लिखेंगे, अभी हम अपने विषय पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
रोग प्रतिरोधक शक्ति को कैसे ठीक करें?  
रोग प्रतिरोधक शक्ति का सीधा सम्बंध चपपचय क्रिया या मेटाबोलिज्म से होता है, आयुर्वेद में इसे धातु पोषण क्रम के मंद (कमजोर) होने, या अवरुद्ध (रुकने) से होता है। 
हम जो भी खाते- पीते हैं या जीवन चर्या का पालन करते हैं उस तरह धातु का पोषण होकर क्रमश: रस, रक्त, मांस, मेद, आस्थि, मज्ज,ओर शुक्र, धातु बनती है, ओर इन धातुओं का ठीक से पालन या धारण करने से  आठवीं धातु ओज” जो मनुष्य को तेजस्वी बनाती है।
यदि इस धातुपरिपाक क्रम ठीक से न हो या बंद हो जाये तो जिस धातु पर क्रम भंग हुआ है, वह दूषित होने लगती है। इसका अर्थ है उस धातु से सम्बंधित रोग होने लग जाते हैं। जैसे, रस बिगड्ने पर पाचन क्रिया, रक्त बिगड्ने से चर्म रोग, खून की कमी, आदि, मांस से वजन बडना या दूबला होना, मेद से शरीर में दुर्गंध, लीवर रोग, किडनी, मूत्र रोग, रक्त चाप, ह्रदय रोग आदि लिस्ट लम्बी है, आस्थि से हड्डी के रोग, मज्जा के दुषित होने से शरीर में वसा, हड्डी, कार्टिलेज, ओर शुक्र बनने की प्रक्रिया रूकना, फिर शुक्र से संतान उत्पादन क्षमता प्रभावित, नपुंसकता का आगमन, अंत में ओज हीन जीवन जीने की बाध्यता।
क्या इससे सोराइसिस के अतिरिक्त ओर रोग भी ठीक हो सकेंगे?
यदि आपने इस लेख को अभी तक, ध्यान से पडा होगा तो समझना आसान है, कि इस धातु परिपोषण क्रम को केवल एक स्वस्थ्य जीवन चर्या जीकर, अर्थात, खान-पान ठीक करें, स्ट्रीट फूड, मन-चाहा खाना पीना, छोड दें, प्रात: भ्रमण, रात्री समय पर सोना, नित्य व्यायाम, बुजुर्गों द्वारा बताई अच्छी आदत, आचरण आदि आदि ऋतु चर्या के अनुसार चलें, तो सभी धातु क्रम ठीक होगा, रोग प्रतिरोधक शक्ति प्राक्रतिक होगी इससे न केवल सोराइसिस, बल्की , मोटापा, मधुमेह, ह्रदय रोग, ब्लड प्रेशर,  हड्डीके रोग, भी हमेशा के लिये ठीक हो जायेगा।
में तो अभी स्वस्थ्य हूं क्या मुझे एसा रोग हो सकता है?
जिन्हे अभी सोराइसिस नहीं है, उन्हे इनके होने की, ओर अन्य रोग होने की सम्भावना ही नहीं रहेगी, या जिन्हे उक्त रोग हैं वे भी ठीक होने लगेंगे।
क्या कोई इसे ठीक करने में मेरी मदद कर सकता है?
पर पड़ी हुई अस्वस्थ भोजन और जीवन जीने की आदतें, जिन्हे हम ठीक समझते हैं, भी आसानी से नहीं छूटतीं, अधिकांश मामलों में इस प्रकार से आमूल चूल परिवर्तन सामान्य व्यक्ति के लिये बहुत कठिन होता हैअधिक समय तक किसी संत की तरह सब कुछ छोड़ भी तो नहीं  सकते|   
दो रास्ते हैंं इसके :- 
पहिला है योगी का जीवन जीना ‌‌! 
यदि आपको सोराइसिस आदि रोग हैं, तो नया जीवन पाने के लिए आपको अपना कायाकल्प करना चाहिए, कायाकल्प के लिए या तो किसी योगी की तरह कठोर होकर सभी मिथ्याहार और असंंयमित जीवन छोड़ना और अच्छी जीवन शैली जीना होगा, पर इसमें अधिक समय लगेगा, और स्वयं के प्रति अत्यंत कठोर भी होना होगा, जो मुश्किल होगा, पर तभी कष्ट से छुटकारा भी मिलेगा|
दूसरा ही आयुर्वेद की पंचकर्म से हो काय कल्प:- 
 इन सामान्य पड़ी हुई आदत को छुड़ाने में आयुर्वेदिक चिकित्सक आपकी मदद कर सकता हैं। इसमें किसी योगी जैसा जीवन जीने की जरुरत नहीं होगी | बस कायाकल्प के बाद आप अपने शरीर का फिर से पुरानी आदतों से बस बचाये रखना होगा|   
कायाकल्प के लिए “आयुर्वेद पंचकर्म” आपकी मदद करता है। 
{विडिओ देखें - फिल्म अभिनेता अक्षय खन्ना कैसे किया अपना कायाकल्प (यह कोई विज्ञापन नहीं और न ही इस विडिओ में, श्री अक्षय खन्ना जी आयुर्वेद का प्रचार कर रहे है, यह तो पंचकर्म करने के बाद चिकित्सालय से अपना अनुभव शेयर कर रहें है)} 
पंचकर्म के माध्यम से आप अपने शरीर की एक प्रकार से ओवर-आइलिंग करते है, पूरी तरह या आंशिक रूप से बिगडा हूआ शरीर फिर से स्वस्थ्य होकर, स्वयम को तैयार कर लेता है, चपपचय क्रिया प्राक्रतिक होती है, शरीर फिर से स्वस्थ ओर कांति मान बनने की ओर चल पडती है। पंचकर्म के बाद आपका शरीर नया एक बच्चे की तरह हो जाता है, फिर उसे आसानी से नए स्वस्थ भोजन, और जीवन चर्या के लिए तैयार किया जा सकता  है, पंचकर्म के बाद शिशु बच्चे के समान शरीर को मिर्च मसाला, फास्ट फ़ूड, आदि से बचाकर व्यायाम, भ्रमण योगा को जोड़ कर नई आदत बनाना संभव हो जाता है, क्योंकि शिशु के समान उअस नए शरीर की इच्छा भी नई हो जाती है, जब तक आप स्वयं अपनी आदतें फिर से ख़राब नहीं करते आप स्वस्थ्य रह सकते हैं|   
दूसरा उपाय जो अधिक आसान है, इसके लिए आप आज ही नजदीकी पंच कर्म केंद्र में जायें, ओर उनसे पंचकर्म द्वारा “शरीर शोधन” वमन, या विरेचन आदि, (आपकी क्षमता अनुसार), शरीर शोधन करवायें, ओर दुष्ट रोगों से मुक्त्ति पायें।
पंचकर्म में समय कितना लगेगा?
पंचकर्म की किसी एक क्रिया, वमन या विरेचन आदि में लगभग १५ दिन का समय लगता है, ओर यह पूरी तरह एक स्थान पर (इंडोर ट्रीटमेंट) की तरह किया जाता है। पूरा पंचकर्म तो लगभग १८० दिन में होता है, पर इसकी जरुरत नहीं होती|  
खर्च कितना होगा?
सामान्यत: पंचकर्म की की 15 दिन पूर्ण प्रक्रिया में लगभग ऑषधि व्यय 2000/- रु से 5000/- रु आता है । पनकर्म के विशेष भोजन, आवास, आदि व्यय क्षमता ओर सुविधा अनुसार 100- 200 रु से लेकर एक दो लाख तक या अधिक भी है।
क्या पंच कर्म निशुल्क या कम खर्च पर भी उपलब्ध है?
हाँ - वर्तमान में केंद्र ओर राज्य शासन ने अपनी सभी आयुर्वेद विध्यालय, ओर चिकित्सालय समान संस्थाओं की स्थापना लगभग देश के हर बडे शहर में निशुल्क या कुछ सामान्य शुल्क, युक्त बना रखी है। इनके अतिरिक्त कई  निजी सस्थायें जो सेवा/ व्यवसाय आधारित जैसे पातन्जलि (हरिद्वार), आदि  भी हैं।  आप अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार वहं जाकर पंचकर्म करवा कर पूर्ण स्वस्थ्य हो सकते हैं।     
उज्जैन में हमारे यहां (उज्जैन में) भी पूर्ण पंचकर्म चिकित्सा क्रम, सभी प्रकार का [निशुल्क, सामान्य शुल्क, ओर विशेष सुविधा व्यवस्था, शुल्क [वी आई पी] सहित भी उपलब्ध है।
शासकीय आयुर्वेद महविध्यालय, चिकित्सालय संस्थाओं में, ओर निजी आयुर्वेद महविध्यालओं में वहाँ पड्ने वाले छात्रों को प्रशिक्षण के उद्धेश्य से रोगियों को निशुल्क आवास/ भोजन/ ओर ओषधि सहित, पंचकर्म विशेषज्ञ चिकित्सक के संरक्षण में पंचकर्म चिकित्सा उपलब्ध होती है। आप नजदीकी संस्था का पता कर इस सोराइसिस नामक दुष्ट रोग से मुक्ति पा सकते हैं ।


Ø  Skin lesions (primary) or damage an overview. {त्वक विकार या त्वचा में होने वाले रोग या चर्म रोग}.
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समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में आयुर्वेदिक चिकित्सा के ज्ञान, सामर्थ्य, हेतु किया जा रहा है। चिकित्सा हेतु नजदीकी प्राधिक्रत आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेँ। चिकित्सक प्रशिक्षण हेतु सम्पर्क करै।

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निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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