Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Rescue from Specific disorders The Overweight / Joint pain / Diabetes and Psoriasis by Panchkarma.(पंचकर्म का से कायाकल्प- स्वयं पर प्रयोग और उसके परिणाम|)

पंचकर्म का से कायाकल्प- स्वयं पर प्रयोग और उसके परिणाम|
Rescue from Specific disorders The Overweight / Joint pain / Diabetes  and Psoriasis by Panchkarma.
डॉ मधु सूदन व्यास
विशेष रोग अधिक वजन/ जोड़ों के कष्ट/ डाईविटिज और सोरायसिस, Psoriasis से मुक्ति की और| 
एजिंग से शरीर कमजोर होता है, धीरे धीरे रोग आक्रमण करते हें, जिनसे कोइ कुशल से कुशल, चिकित्सक भी बच नहीं पाता, देर सवेर सामना होना ही है|
रोग जो मुझे भी हुए!
में दुर्भाग्यवश डाइविटीज, को आने से रोक तो न सका, ओषधियों से एवं एलोपेथिक मित्रों के सहयोग से नियंत्रित अवश्य कर सका| पर बोनस में प्राप्त, सोरायसिस, Psoriasis (जो संपर्क या छूत से नही होती) के कुछ पेच, पेर पर हो गए, जब कई दिन की सामान्य चिकित्सा से लाभ नहीं हुआ, तो पंचकर्म द्वारा ठीक करने का मन बना लिया| क्योंकि इस जिद्धि रोग को एसे ही छोड़ना, उसे सारे शरीर पर विस्तार के लिए आमंत्रित करना जैसा ही सिद्ध होता|
इसके साथ ही कुछ माह से संधिवात (घुटनों में दर्द शोथ, सूजन) भी हो रही थी, जो में सामान्य स्नेहन स्वेदन से ठीक कर पा रह था, पर पूरी तरह ठीक नही कर पा रहा था, वजन बढकर 77. 33 kg जो सामान्य मेरे 5’4” कद के मान से बहुत अधिक है, भी कम नहीं हो रहा था| भोजन मीठा आदि का नियन्त्रण भी लाभकारी नहीं हो रहा था|
कुशल चिकित्सक कर सकता है पञ्च कर्म!
पंचकर्म का कार्य चाहे स्वयं कुशल भी है तो उसी प्रकार नही किया जा सकता जैसे कोई सर्जन अपना ओपरेशन नहीं कर सकता, अत: मेने अपने छोटे भाई समान कनिष्ट चिकित्सक साथी डॉ एस एन पांडे को अपना चिकित्सक नियुक्त किया|
समर्पित रोगी ही ले सकता है पूर्ण लाभ!
उनकी चिकित्सा पर कोई प्रश्न या विचार न उठाकर एक समर्पित भाव से चिकित्सा चलाने का निर्णय किया| कोई विशेष चिकित्सा तब ही सिद्ध होती है जब समर्पण भाव से की जाये, क्योंकि रोगी के प्रतिपल की जानकारी भाव, शरीर की स्थिति, या अवस्था, सभी कुछ चिकित्सक के आधीन रहना आवश्यक है| कोई भी चिकित्सक स्वयं की चिकित्सा करते समय, नर्म भाव, या मन को अप्रिय कार्य से बचने का प्रयत्न करेगा इससे वह लाभ नहीं ले पायेगा|
रोग का पूर्व इतिहास|
समान्य ब्लड सुगर पिछले वर्ष 2006 में ज्ञान में आई, वर्ष 2008 तक समान्य ओषधि, भोजन, आदि से नियंत्रित की जाती रहे थी| वर्ष 11 से एलोपेथिक एमरायल फोर्ट एक रोज अन्य सहायक विटामिन, बीपी आदि सहित दो वर्ष 13  तक लेने के बाद विभिन्न तीर्थ यात्रा आदि में हुई अवहेलना से दो बार रोज लेनेपर अब तक नियंत्रित रही थी पर पिछले एक वर्ष से कुछ दुर्बलता के अनुभव ने कुछ आयुर्वेदिक साथ साथ लेने का निश्चय किया| इसके लिए एक डॉ यू एस निगम को आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा बताई, एक वटी बनाने का निर्णय कर दो माह में बना कर शंकराचार्य वटी नामकरण कर 1- 1 प्रात सायं भोजन के पूर्व उक्त एलोपेथिक दवा के साथ साथ लेना प्रारम्भ कर दिया|
लगभग तीन माह में ही आश्चर्य जनक रूप से उत्साह और बल मिलने लगा, सुगर भी पूर्ण नियंत्रित हो गई| जब भी टेस्ट किया तो फास्टिंग 90 mg/dl के आसपास और PP 150 mg/dl के आसपास मिलती रही| परन्तु सोरिसिस ने कब चुपके से प्रवेश किया पता ही न चला| इस शंकराचार्य वटी लेने के पूर्व सुगर 120 mg/dl और pp 160 mg/dl के आस पास रहती थी| पिछले छह माह पूर्व कराई HBA1C टेस्ट में 9.5% (fair control) रही थी|
रोग के अनुसार ठीक करने हेतु पंचकर्म के दो प्रमुख कर्म वमन एवं विरेचन का निर्णय लिया गया|
रोगी पत्र बना-  
नाम--- आयु- 67/ लिंग- पुरुष,/  वजन- 77.300 kg, / BP-140/90 /P- नाडी सामान्य,
चिकित्सा के प्रारम्भ में परिक्षण कराये गए, फास्टिंग 87mg\dl, choleshtrol 128 mg\dl एवं HBA1C -8,74% (good control) पाया जो की निश्चय ही शंकराचार्य वटी का कमाल था, क्योंकि और किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन मेनें नहीं किया था|
अच्छी ओषधि का चयन भी आवश्यक है! और सम्पूर्ण साधन और परिचारक भी चाहिए!
इसीलिए श्री डॉ यू एस निगम के शिष्य डॉ एस एन पाण्डे के क्लिनिक पर चिकित्सा प्रारम्भ की गई- 
पंचकर्म का क्रम-
1 पाचन- पंचकर्म के पूर्व 7 दिन पाचन हेतु शिवाक्षार पाचन चूर्ण 5- 5 ग्राम भोजन के पूर्व दोनों समय| भोजन समान्य जो अभी तक लेते रहे थे| 7 दिन पश्चात् परिक्षण में पाचन ठीक हो जाने के बाद|
2- अगला क्रम-  स्नेहन- रोग और प्रकृति के अनुसार पंचतिक्त घृत स्नेहनार्थ. 6 दिन तक क्रम में 30 ग्राम/ 60gm/ 90 gm/ 120 gm/ 140 gm/ 120 gm घृत, प्रात: स्वयं डॉ पांडे के हाथ से उनके घर जाकर धन्वन्तरी स्मरण कर मुझे पीना पड़ा|  इस दोरान भी भूख लगाने पर भोजन में प्रात: केवल चाय, 3- या चार फुल्का रोटी, मुंग दाल, थोड़ी सब्जी दिन में केवल दो बार ली गई| खाने की मात्रा नियंत्रित नहीं थी| में अधिक पर दो से अधिक बार खाना और नाश्ता रात्रि दूध प्रतिबंधित रहा|
पांच दिन तक रोज बारीकी से निरिक्षण किया जाता रहा, -सारे शरीर में भारीपन, चक्कर, लार आना, सुस्ती, थकान, दर्द, प्यास, जलन या दाह, बेचेनी, अरुचि का निरिक्षण कर दर्ज किया गया| कुछ भी नहीं हुआ|
प्रथम दिन घृत पान के बाद कोई लक्षण नहीं था, दुसरे दिन केवल सर में थोडा भारी पन प्रतीत हुआ, तीसरे दिन सुस्ती भी रही, चोथे दिन भी विशेष लक्षण नहीं था,अर्थात सामान्य रहा| गर्म पानी बिना प्यास के बार बार पीते रहने का निर्देश पालन किया गया,  जो पालन किया| 
मल विसर्जन की जानकारी रोज ली गई दो दिन कोई विशेष परिवर्तन मल (लेट्रिन) में नहीं हुआ तीसरे दिन थोडा थोडा घी मल से निकले लगा, मल पहिले से ढीला आया, दुसरे दिन 4 बार, तीसरे दिन 2 बार, चोथे दिन 6 बार  अत्यंत गन्दा बदबूदार मल विसर्जित हुआ पाचवें दिन केवल दो बार थोडा ठीक रहा, छटे दिन दो बार पूर्ण घृत युक्त शुद्ध मल विसर्जित हुआ| सम्यक स्नेहन लक्षण मिलने अगले सातवें दिन प्रमुख ‘वमन” कर्म करना था|
मेरे केस में विशेष बात यह थी की डाइविटीज होने से रोज ब्लड सुगर भी देखी गई, सभी ऊपर उल्लेखित एलोपेथिक और आयुर्वेदिक दवाएं स्नेह्पन के दिन से बंद कर दी गई थी| इसके बाद भी फास्टिंग सुगर एक से सात दिन तक क्रमश: - 78/ 74 / 77/ 63/ 79/ 67- mg/dl रिकोर्ड की गई| पर किसी भी प्रकार की कमजोरी सी प्रतीत नहीं हुई| अनुभव सिद्ध हुआ की प्रक्रिया के दोरान ईतना अधिक घृत-पान के बाद भी ब्लड सुगर समान्य से कम निकली पर इससे कोई ख़राब लक्षण नहीं मिले| 
वजन भी तेजी से कम हुआ| पहिले दिन वजन 77-33 kg था, 4 थे दिन 76. 800 kg  जो वमन वाले दिन 75.680 kg, रिकोर्ड किया गया| किसी भी प्रकार की कमजोरी नहीं थी| क्योंकि मनोवेज्ञानिक रूप से में इसके लिए पूर्ण तयार था|    
   वमन के एक दिन पूर्व अर्थात छटवे दिन गरिष्ट भोजन उड़द दाल+ चावल =+तिल+ गोउ घृत, युक्त खिचड़ी, दही+ गुड+ और कितनी भी मावा खाने का निर्देश था| शाम के इस भोजन के दो घंटे बाद pp सुगर- 150 (नार्मल) मिली|  अगले दिन प्रात: ब्लड सुगर F- 78 देख कर आश्चर्य हुआ| इससे हमने में और डॉ पांडे ने इस बारे में भविष्य में अन्य डाईविटिज रोगियों पर परिक्षण करने का निश्चय भी किया है|
वमन के दिन- प्रात: नियमित हमेश की तरह सुगर फ्री चाय 6 am. के बाद लगभग निर्देशानुसार स्नान आदि पश्चात्  ½ kg दूध पीकर वमन के लिए उपस्थित हुआ| पुन: बाह्य स्नेहन और सर्वांग स्वेद की बाद वामन के पूर्व प्रात: 10 am पर बी पी- 158/87, P- 84 /M, रिकॉर्ड हुआ|
सब कुछ सामान्य और नियंत्रण में होने से अगली प्रक्रिया प्रारम्भ हुई|
10 -. 14 am पर मधुयष्टी फाँट 200 एम् एल तीन बार पिया,
10. 20 पर मदनफल पिप्पली का कल्क अन्य सहायक द्रव्यों के साथ निर्मित कर पिलाया गया|
इसके बाद पुनह मधुयष्टी फांट दो बार दिया गया|
10. 23 पर वमन के वेग प्रारम्भ हो गए,  10.32 am तक 7 वेगआये, और क्रमश दूध, कफ, फाँट सहित निकला, छटवे वेग में पित्त सहित वमन हुआ, |
इस बीच लगातार बीपी देखा गया घातक स्तर तक  ऊपर नहीं गया, दोड़ने भागने परिश्रम आदि के दोरान बदने वाले बीपी की तरह 191/103 सीमा  तक ही पहुंचा| वमन से कष्ट तो होता ही है सो हुआ भी ओर लाभ के लिए स्वीकार भी किया था, अत मंन स्थिति द्रढ़ होने से सहने की क्षमता भी उत्पन्न हुई जिसने मुझे बल दिया|
10. 40 तक के थोड़े विश्राम के बाद कुछ वमन के साथ शेष रहा केवल कडवा पित्त निकला, पूर्ण पित्तंत होते ही शुद्ध किंचिद लवण युक्त जल के पीने से शांति मिलने लगी|
10 50 पर नियमानुसार ओषधि धूम्र देते ही पूर्ण आराम मिला|
11- 10 पर एक बार मल विसर्जन (शोच हुआ जिसमें तरल श्लेष्मा आदि विसर्जित हुए|
11- 20 पर मुहं हाथ धोकर विश्राम करने लगा|  थोड़ी ही देर में नींद आ गई, लगभग ½ घंटे विश्राम के बाद एक दम तरोताजा भाव से उठा
12 am पर में स्वयं को एकदम स्वस्थ अनुभव कर रहा था| मोबायल उठाकर मित्रों से बात की कुछ जरुरी कार्य करने लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो|
दिन भर निर्देशानुसर विश्राम ही किया|
इसके बाद दिनांक 9-3- 16  से संसर्जन क्रम प्रारम्भ हो गया है, दो भोजन काल (समय) पेया (चावल सूप) दो काल विलेपी (गाढ़ा मंड या मांड), दो काल या समय का अकृत युष (दाल का पानी)
13-3-16 को आज कृत युष दो समय तक पहुंचा हूँ , पेट एक दम निर्मल एक शिशु की तरह प्रतीत हो रहा है| किसी प्रकार के खाने की इच्छा ही नहीं हो रही इस बिना-मिर्च मसाले वाले भोजन जितना सुस्वाद खाना जैसे कभी खाया ही नहीं| आज 13-3 को वजन 74.5 kg था पूरे अभी तक के संसर्जन क्रम में वजन धीरे धीरे कम हो रहा है, कमजोरी बिलकुल नहीं है| उत्साह है| काम में मन लग रहा है| परिश्रम से भी थकन नहीं हो रही|
14 एवं 15/ 06  दो-दो काल क्रशरा (पतली खिचड़ी,) के बाद अर्धाहर फिर सामान्य पूर्णाहार की और पहुँच गया हूँ|
वजन 74.5 पर स्थिर लग रहा है|
विशेष बात यह है की पंचकर्म प्रारंभ से अंत तक भी मेने एलोपेथिक दवा नहीं ली है ब्लड सुगर नार्मल आ रही है| शंकराचार्य वटी आज से प्रारम्भ कर दी है| घुटनों के दर्द में बहुत आराम है, सुजन नहीं है, सोराइसिस का पेच भी हलका सा लग रहा है उसमें खुजली बिलकुल नहीं है, स्किन एक जैसी हो गई है उस पर नारियल तेल या ग्वार पाठा (घृतकुमारी) रस ही लगा रहा हू| स्थानीय किसी दवा का कोई प्रयोग नहीं कर रहा हूँ| सोरायसिस, Psoriasis- {जो संपर्क या छूत से नही होती, यह एक जिद्धि चर्म रोग, जो ठीक होने का नाम ही नही लेता|इसमें त्वचा के ऊपर मोटी परत (Plaques) जम जाती हैं। यह बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती हैं।}  जैसे इस रोग से स्वयं को मुक्ति होते देखना सुखद अनुभव है|    
पर अनुभव हो रहा है की जैसे जैसे सामान्य खाने की और चलूँगा डाईविटिज की दवा खाना होगी|
कम्पूटर/मोबायल फेसबुक से भी इन दिनों लगभग दूर ही रहा| आराम मिला है अब जैसे आने वाले समय के लिए नव जीवन प्राप्त कर लिया है|
मुझे ज्ञात है की अभी मेरी समस्या पूरी तरह नहीं मिती है, मुझे इसके बाद पंचकर्म का अगला स्टेप विरेचन लेना होगा| अच्छा तो यह था की अभी लगातार ले पता परन्तु मेरी नातिन का जन्मदिन है दिल्ली जाना जरुरी है, अत: प्रक्रिया को 15 दिन टाल कर शेष क्रिया करवाऊंगा| तब तक मुझे ध्यान रख कर वजन को मेन्टेन रखना होगा| यदि पुनह वजन बड़ा तो समस्या देर से हल होगी|
उपसंहार और पंचकर्म की प्रथम प्रक्रिया वमन से लाभ के अंत में  सुखद अनुभूती-
में स्वयं को अत्यंत प्रसन्न और एनर्जेटिक अनुभव कर रहा हूँ| सभी मिलने वाले कह रहे हें की चेहरे पर चमक दिखाई दे रही है, जिसका अनुभव भी हो रहा है| कुल वजन हालाँकि 2 kg 640 ग्राम कम हुआ| में जानता हूँ की यदि विरेचन भी ले लेता तो 6 kg से भी कम कर पाता, खेर अगली बार सही|
खाने में मिर्च मसाला खाने की इच्छा नहीं हो रही, धीरे कम भोजन करने से तृप्त महसूस हो रही है| रोग सौराईसिस के लिए आयुर्वेदिक ओषधि भी प्रारम्भ कर दी है, जोड़ों में दर्द जैसे है ही नहीं, प्रात: की लम्बी सैर में आनन्द आ रहा है| बिना सुगर वाला खान ले रहा हूँ| रोज पीने वाली चाय पीने का मन नहीं हो रह ब्लैक या ग्रीन तै दिन में केवल दो बार ले रहा हूँ , भूख लगने पर दिन में दो बार चपाती, दाल, सब्जी, सलाद, दही या मट्ठा ही लूँगा, अन्य चीज की लेने में रूचि भी नहीं हो रही|   
निष्कर्ष
1.                   पंचकर्म पद्धत्ति से वजन कम होने पर किसी भी प्रकार की कमजोरी नहीं आती|
2.                   लाइलाज सौराईसिस और एक्जिमा जैसे चर्म रोग मिट जाते हे|
3.                   पेट के समस्त दोष एसिडिटी पेचिश ठीक होती है|
4.                   जोड़ों के दर्द आर्थराइटिस हमेश के लिए ठीक होती है|
5.                   डाईविटिज को विना एलोपेथिक दवा के नियंत्रीत किया जा सकता है|
6.                   स्फूर्ति और सक्रियता आने से आयु में वृधी होती है|
डाईविटिज पर हमको अभी और परिक्षण करना होगा यह परिणाम अंतिम नहीं| अगले कर्म पंचकर्म विरेचन के समय भी इसके परिणाम परिक्षण में लेंगे| अन्य रोगियों पर भी ईस प्रकार परिक्षण कर परिणाम सभी को अवगत जरुर करूँगा| ताकि सभी चिकित्सक साथी अन्य रोगियों को लाभ दे संके| आचार्य चरक द्वारा ४००० वर्ष पूर्व वर्णित इस विशेष पद्धत्ति जो भुला दी गई थी का लाभ जन जन को पहुँच सके |

इसके बाद अगला पंचकर्म कार्य “विरेचन” होगा| इसमें कष्ट नहीं होता इसलिए आसानी से करवा कर नवजीवन पारपत करूँगा| विश्वास है| डॉ पाण्डे को धन्यवाद| आचार्य चरक जिन्होंने यह चिकित्सा चरक संहिता में वर्णित की है को कोटि कोटि प्रणाम|
अभी तक पूर्व में, में कई रोगियों को लाभ में दे चूका था, पर अब स्वयं पर हुए नए अनुभव से लाभ लेकर और अधिक विश्वास से मुझ तक पहुचने वाले को भी लाभ दे सकूँगा|  
डॉ पांडे जी के यहाँ तो यह पंच कर्म होता ही है, हमारे शीघ्र बन रहे आयुष सेंटर में भी में स्वयं अत्यंत सामान्य व्यय पर किसी को भी लाभ देने हेतु तत्पर रहूँगा| 
लेख में विशिष्ट पद्ध्ति को पूरी तरह से अक्षरक्ष नहीं लिखा है| अत इसे पड कर, करने का प्रयास न करें| अन्यथा  अपरिपक्व व्यक्ति, और जिन्होंने आयुर्वेद ठीक से नहीं पड़ा है, या प्रत्यक्ष कर्म नहीं कराया है, वे इस विधि करने लगे तो जितना लाभ होता है, उससे अधिक हानि या कभी कभी म्रत्यु जैसी स्थिति भी आ सकती है|

  डॉ मधु सूदन व्यास उज्जैन| 
Date 16/03/2016
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