आयुर्वेदीय
पंचकर्म चिकित्सा से जड़ से ठीक जाते हें सब रोग|
Panchakarma therapy is to destroy the roots of diseases.
शरीर में खाना
अदि खाने से पहिले रस बनता है, इसलिए जैसा भी खाना हम खाते हें, रस भी उसके अनुरूप बनता
है| यह रस रक्त नलिकाओं के द्वारा सोखने पर शरीर की प्रक्रियाओं के द्वारा नवीन
रक्त का निर्माण करता है| रक्त से मांस को
पोषण मिलता है इससे और भी मांस बनने लगता है| मांस में विशेष परिवर्तन से मेद (या
चर्बी), बनकर मांस की रक्षा और उसके भविष्य पोषण के लिए उसके साथ एकत्र होता रहता
है|
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देनिक भास्कर उज्जैन दिनांक ३१०जुलाइ 16
उज्जैन विशेष के प्रष्ट 3 पर प्रकाशित लेख |
मांस और मेद
अस्थि के चारों और लिपटे रहते हें, और अस्थि को पोषित और शक्ति प्रदान करते रहते
हें| अस्थि अपनी शक्ति के लिए मध्य में मज्जा बनाती है, जो अस्थि की सुरक्षा करती है, साथ ही रक्तादी निर्माण में भी
सहयोग करती है|
इसी प्रकार एक दूसरे
के सहयोग से अंत में शुक्र धातु की उत्पत्ति होती है| शुक्र का अर्थ केवल वीर्य (semen), न होकर शरीर
का समस्त सार भाग है, वीर्य तो शुक्र की अधिकता वाला एक पदार्थ है, जो सन्तान
उत्पत्ति में सहायक होता है| इसीलिए आयुर्वेद
में यह शुक्र स्त्रियों में भी उपस्थित माना है| यह “ धातु शुक्र” वीर्य के साथ शरीर में
हार्मोन्स, और इन्सुलिन जैसे अन्त्रस्रावी रसों का निर्माण करता है| इसीकारण शुक्र धातु क्षय से थाईरोइड, डाइविटीज, जैसे रोग भी होने लगते हें|
शुक्र धातु अपने
कार्य के बाद “ओज” धातु निर्माण का काम करती है | यह ओज व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित
कर तेज या तेजस्विता प्रदान करती है|
यदि इन सातों
धातुओं का निर्माण ठीक प्रकार से सतत होता रहे, तो प्राक्रतिक शारीरिक आयु से
उत्पन्न ह्रास को छोड़कर, कोई रोग उत्पन्न नहीं हो सकता| परन्तु मनुष्य के खान-पान,
रहन-सहन, वातावरण, और प्राकृतिक आपदाओं,
आदि से धातुओं के निर्माण प्रक्रिया में बाधा होती है, इससे जिस धातु निर्माण के क्रम
में भी बाधा होती है, प्रभवित वह धातु, और उसके बाद वाली धातु भी प्रभावित या कह
सकते हें, की रोग ग्रस्त होने लगती है| जैसे यदि आहार अधिक या गरिष्ट या फ़ास्ट फ़ूड
जैसा अनावश्यक खाना आदि लिया, और पचा नहीं, तो रस ठीक से न बनने से बदहजमी, कब्ज, एसिडिटी,
अदि समस्या उत्पन्न होगीं|
यह दूषित या ख़राब
बना ‘रस’ जो आगे रक्त बनाता है वह भी दूषित होगा, आगे इसी प्रकार सभी दूषित धातु
बनेंगी| दूषित रक्त से अस्थि को पोषण न
मिलने से अस्थि और उनके जोड़ों के रोग, (जैसे संन्धीवात, स्पोंडीलाइटिस, हड्डी की
कमजोरी आदि) होंगे| धातु की कमी से शरीर कमजोर होगा और कई रोंगों के जीवाणु
संक्रमण कर रोग पैदा भी करेंगें|
धातु के निर्माण
में सतत चलती प्रक्रिया रुक जाने या कम होने से, भोजन आदि में लिए गए पदार्थ चर्बी
या मेद के रूप में शरीर इस आशा में जमा करने लगता है, की जब भी संतुलन ठीक होगा, उसका
प्रयोग कर धातु निर्माण श्रंखला आगे बढा सके| पर एक बार धातु निर्माण का संतुलन
ख़राब हुआ की फिर आसानी से विशेषकर जब तक व्यक्ति स्वयं कोशिश न करें, खानपान आदि
में ठीक न करें तब तक ठीक नहीं होता, और मोटापा, ह्रदय रोग, ब्लड प्रेशर, आदि नए
नए रोगों उत्पन्न करता है|
वर्तमान किसी भी
पेथी में ओषधि चिकित्सा द्वारा सामान्यत: इन रोगों या होने वाली समस्या को ठीक
करने हेतु, लक्षणों के अनुसार चिकित्सा कर तात्कालिक आराम दिया जाता है| परन्तु जब तक रक्त, मांस, मेद, और अस्थि, आदि धातु निर्माण का पूर्ण संतुलन ठीक न हो जाये या
आधुनिक विचार से मेटाबोलोज्म ठीक न हो तब तक कोई रोग मिटाया ही नहीं जा सकता| धातु निर्माण
प्रक्रिया को पुन: ठीक किये जाने का काम पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से किया जा
सकता है|
धातु निर्माण की
इस प्रक्रिया या मेटाबोलिज्म ठीक करने के लिए, आचार्य चरक, धन्वन्तरी आदि ऋषियों
द्वारा पिछले पांच हजार वर्षों से स्थापित पंचकर्म चिकित्सा पद्धत्ति का अन्य कोई विकल्प आज भी वर्तमान उन्नत विज्ञान प्रस्तुत
नहीं कर पाया है|
पंचकर्म के
द्वारा जिसमें पांच प्रमुख कर्म “वमन”, “विरेचन”, “बस्ती”, “नस्य”, और रक्त मोक्षण
आते हें, से सम्पूर्ण शरीर का शोधन किया जाकर, शरीर जैसे का एक प्रकार से नवीनीकरण कर दिया जाता है| इससे
सम्पूर्ण धातु निर्माण प्रक्रिया पुन: व्यवस्थित हो जाने से, शरीर के सभी हिस्से
प्राक्रतिक रूप से स्वस्थ्य होने लगते है| शरीर की सभी अंग स्वस्थ कर दिए जाने पर शरीर
अपनी रोग प्रतिकार क्षमता के बल पर रोगों को शरीर से निकाल फेंकता है| यदि इसी समय
या पंचकर्म द्वारा शोधित शारीर को सहायक के रूप में थोड़ी मात्रा में ओषधि दी जाती
है तो वह भी कोई गुना असर कर व्यक्ति शीघ्र
रोग मुक्त करने में सहायक होगी|
हजारों वर्षो के
विदेशी आकार्न्ताओं ने हमारी चिकित्सा पद्ध्ति को भी नष्ट किया, वैध्य, विद्वान् ,
शिक्षा और ग्रन्थों को नष्ट कर इस पंचकर्म चिकित्सा पद्धत्ति को हमसे दूर कर दिया|
आज जब पुन स्वतंत्र
भारत में जब हमको हमारी विरासत सभालने का मोका मिला और हम इस और आगे बढे, शोध, शिक्षा,
अच्छे आयुर्वेद विद्यालय, अच्छे प्रशिक्षणार्थी, अच्छे ग्रन्थ की उपलब्धता हुई, और
दुनिया को इसकी शक्ति अवगत हुई, और अब हम देख रहे हें, की सारा विश्व पंचकर्म आदि से प्रभावित हो, जैसे
पागल हो रहा है, जगह जगह पंचकर्म चिकित्सा केंद्र खुलते जा रहे हें| विदेशों में
भी इस पद्धत्ति को कई विद्वानों ने पहुँचाया और विश्व जनमानस को प्रभावित किया गया
है|
पिछले 30-40
वर्षो में देश के कई शास. /अशासकीय आयुर्वेद महाविद्यालयों ने भी कई निष्णात
चिकित्सा प्रशिक्षित करने में प्रत्यक्ष भूमिका का निर्वाह किया है| धीरे-धीरे स्वयं चिकित्सकों का इस पर विश्वास
उत्पन्न हुआ, और इसके द्वारा रोगियों की चिकित्सा में इसके प्रयोग में कर जन
सामान्य को भी इससे लाभ प्रदान किया जा
रहा है|
वर्तमान में
आवश्यकता इस बात की भी है, की रोगी को सही पंचकर्म चिकित्सा मिल सके| वास्तव में
वर्तमान में पंचकर्म चिकित्सा की इस सफलता को देखकर व्यापारी किस्म के लोग भी आ गए
हें जो अपने आधे अधूरे ज्ञान से केवल धनार्जन की दृष्टि से, मसाज पार्लर की तरह इसे
अपना कर इस पंचकर्म चिकित्सा पद्धत्ति को बदनाम भी कर रहे हें|
जन सामान्य को
पंचकर्म चिकित्सा करवाने से पूर्व जानना होगा कि वह जिस चिकित्सक से चिकित्सा करवा
रहा है, वह अनघड या अल्पज्ञानी, तो नहीं ? क्योंकि इससे चिकित्सा का उद्धेश्य तो पूरा नहीं
हो सकेगा अन्य हानि भी संभावित है| नवीन आयुर्वेद चिकित्सक भी जब तक इस चिकित्सा में निष्णात नहीं हों, तब तक
उन्हें वरिष्ठो से सहयोग लेते रहना चाहिए|
हमने भी जन
सामान्य और चिकित्सको के लिए “health for all
drvyas.blogspot.com” पर हिंदी में 500 से अधिक चिकित्सा विषयक लेख में लिख कर सहायता
पहुचाने की कोशिश की है| हमने हमारे पास आने वाले हर चिकित्सक को पंचकर्म पद्धत्ति
की जानकारी निशुल्क देने रहने का संकल्प भी किया है| रोगियों के लिए भी अत्यंत
सामान्य दरों पर सम्पूर्ण चिकित्सा उपलब्ध है|
जिस तरह से हम
स्वस्थ्य रहने के लिए हर दिन या विशेष सफाई वर्ष में एक बार घर/ निवास अदि की साफ
सफाई करते हें , उसी प्रकार देनिक शोधन (इस विषय पर लेख- “Panchakarma in dailylife? दैनिक जीवन में
पंचकर्म?” –पढ़ सकते हें} से दैनिक सफाई और वार्षिक पंचकर्म वमन और विरेचन
से वर्ष में एक बार शरीर का शोधन (सफाई) करा लेने पर कोई रोग कभी नहीं होता|
स्वस्थ व्यक्ति
को वसंत ऋतू में वमन और उसके बाद विरेचन करने का निर्देश
आचार्य चरक सहित कई ऋषियों ने दिया है| किसी रोग के लिए किसी भी मोसम में कोई भी
शोधन किया जा सकता है| परन्तु यह निष्णात चिकित्सक के निर्देशन में ही होना चाहिए|
अस्तु|
डॉ मधु सूदन
व्यास , B.A.M.S. पूर्व अधीक्षक /आर एम् ओ धन्वन्तरी आयुर्वेद महाविद्यालय
चिकित्सालय उज्जैन मप्र/ एवं पूर्व जिला
आयुर्वेद अधिकारी उज्जैन मप्र. [Contect - 9425379102, 0734-2519707/ mail- madhusudan.vyas67@gmail.com]
समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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