Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Why Doctors, physicians & Vaidya are called Dhanvantari? {Exclusive artical by Vaidya Madhu Sudan vyas} चिकित्सको, वैद्यों और डॉक्टरों को धन्वन्तरी क्यों कहा जाता है? {धन्वन्तरी जयंती विशेष } वैद्य मधु सूदन व्यास उज्जैन

चिकित्सको, वैद्यों और डॉक्टरों को धन्वन्तरी क्यों कहा जाता है?
{धन्वन्तरी जयंती विशेष }
वैद्य मधु सूदन व्यास उज्जैन

भगवान धन्वन्तरि जयंती, धनतेरस (कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी) मनुष्य का प्रथम सुख निरोगी व् पुष्ट  शरीर, एवं श्री संपन्नता हेतु की जाती है|
समुद्र मंथन या सारे संसार की खोजबीन (Exploration) से प्राप्त धन्वन्तरी जी, वैदिक काल के महान चिकित्सक होने से, देवताओं के वैद्य कहलाये गए|
रोग निवारण और नवजीवन प्रदान करने वाली ओषधिय ज्ञान से निष्णात चिकित्सक, होने से ही उन्हें काल के सर्वश्रेष्ट देव, विष्णु का अवतार भी माना गया|
प्रतीक के रूप में, उनके एक हाथ में कलश, दुसरे में जलोका या ओषधि,  तीसरे में शंख, (रोग-भय नष्ट करने हेतु शंख बजाने वाले), और चोथे हाथ में चक्र (रोग चक्र नष्ट करने वाले) धारण किया रूप प्रदर्शित कर उनका विशेष सम्मान किया गया था|
तत्कालीन पौराणिक समय के बाद से ही उनके अनुगामी, और श्रेष्ट चिकित्सको को “धन्वन्तरी” की उपाधि, या नाम से सम्मानित करने की परम्परा प्रारम्भ हो गई, जो वर्तमान में भी देखी जा रही है|
आयुर्वेद इतिहास विषय में आचार्य सुश्रुत ने लिखा है की ब्रह्मा जी ने (अर्थात आदि कालीन मानव परम्परा), श्रुति (जो सुना अगली पीढ़ी को बताया), स्मृति ( जो याद रहा वह अगली पीढ़ी को स्मरण करते रहना), के आधार पर एक हजार अध्यायों में एक लाख श्लोक के रूप में आयुर्वेद का प्रकाशन किया, इसे उनसे प्रजापति (तत्कालीन प्रजा पालक या शासक), प्रजापति से अश्वनी कुमारों ने, उनसे इंद्र ने, इंद्र से धन्वन्तरी ने पढ़ा था|
इस काल तक हर बात स्मरण (याद) रखना पढता था, इसलिए इसे “स्मृति” कहा गया| इसके बाद भोज पत्र आदि में लेख संकलित किये जाने की व्यवस्था मिल जाने से आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत सहिंता के रूप में लिपि बद्ध कर सहिंता बनी|
भावप्रकाश आदि ग्रंथो के अनुसार आत्रेय आदि ऋषियों ने इंद्र से ही आयुर्वेद सीख कर अपने शिष्य अग्निवेश आदि अनेक शिष्यों को प्रदान किया था|
देखें  श्लोक-
 विध्याताथर्व सर्वस्वमायुर्वेदं प्रकाशयन्। स्वनाम्ना संहितां चक्रे लक्ष श्लोकमयीमृजुम्||
आगे अग्निवेश आदि शिष्यों ने ज्ञान को संकलित कर, चरक सहिंता के रूप में लिपिबद्ध किया था|
इतिहास जो भी रहा हो यह निश्चित है, की आदिकाल में धन्वन्तरी जी, सामान्य जन-जन जो उस काल में देश या स्थानों में, देवता, सुर, असुर, नाग, गन्धर्व, आदि आदि अनेक नामो से जाने जाते थे, की चिकित्सा कर समान्य जन के प्रथम चिकित्सक कहाए थे| इस काल के बाद से ही समस्त चिकित्सको को धन्वन्तरी कहने की परंपरा बन गई होगी| कालांतर में वेद से उत्पन्न ज्ञान के कारण वैद्य कहाने लगे| इतिहास विषयक मत-मतान्तर होने के बाद भी धन्वन्तरी जी निर्विवाद है|
वर्तमान में भी समाज के श्रेष्ट कुशल चिकित्सकों को चाहे वे किसी भी पैथी के क्यों न हों, धन्वन्तरी के नाम से सम्मानित किया जाता है|  “जय धन्वन्तरी” के इस नारे में वर्तमान के समस्त चिकित्सको की विजय की कामना की जाती है, और आशा की जाती है, की वे समाज को अपने श्रेष्ट ज्ञान से रोग मुक्त कर श्री (धन) सम्पन्न करेंगे| क्योंकि स्वस्थ शरीर ही सम्रद्धि का सबसे बड़ा स्त्रोत है|
धन्वन्तरि मन्त्र
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय् धन्वंतरये।
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय॥
त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधये श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः
अमृतकलश धारण किये, सुदर्शन रूप (जिनका दर्शन शुभ हो), वासुदेव(भू देव) धन्वन्तरी, जो तीनों लोकों के अधिपति (सर्वमान्य चिकित्सक), समस्त भय, सर्व रोग को नष्ट करते हें, एसे विष्णुरूप भगवान् धन्वन्तरी जी को नमन है|
धन्वन्तरि स्तोत्र
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधिदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।

वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढ़दावाग्निलीलम||
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चिकित्सा सेवा अथवा व्यवसाय?

स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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