पंचकर्म चिकित्सा में पूर्वकर्म
स्वेदन कर्म Swedana Karma(Diaphoresis)
डॉ मधुसूदन व्यास
का अर्थ है, पसीना| पसीना लाने की प्रक्रिया ही स्वेदन कहाती है| यह पंचकर्म द्वारा शोधन कार्य के पूर्व कर्म के अंतर्गत आता है| शरीर का पसीना सूखी या गीली दो विधि से लाया जा सकता है, स्वेदन के द्वारा रोगों के कारण बने दोष शरीर के बाहर आ जाते हें या निकलने के लिए मल-मूत्र आदि के साथ निकलने के लिए सम्बंधित स्थान पर पहुँच जाते हैं| कुछ दोष जो पसीने के साथ निकलकर भी सम्बंधित रोग को ठीक कर देते हैं|
स्वेदन क्रिया कैसे कार्य करती है? How Sweden works?
जीवन का आधार, शरीर के अन्दर सतत चलने वाली चपापचय (मेटाबोलोक) क्रिया जो भोजन को पचाकर समस्त अंगों का पोषण, शोधन, आदि करती रहती है| प्रक्रिया चलते रहने से कई विष, अपशिष्ट पदार्थ भी बनते रहते हें| सामान्यत: यह गन्दगी साँस, पसीना, मल, मूत्र, आदि के द्वारा फेंक दी जाती रहती है| परन्तु खाध्य पदार्थों, श्वास, पानी, आदि के द्वारा अवांछित पदार्थ भी जाने-अनजाने प्रवेश करते रहते हें, और जो पूरी तरह न निकलकर शरीर के विभिन्न स्थानों पर जमा होकर रोग का कारण बनते हें, स्वेदन के पूर्व किये जाने वाली दीपन-पाचन प्रक्रिया से अपचित पदार्थ पचकर एकत्र होता है, एवं स्नेहन {वाह्य मालिश एवं अंत:पान (घृत, तेल आदि पीना)} की सहायता निकल जाने जैसी अवस्था में आकर निकलने के लिए तत्पर होते हें| इनमें से भी कुछ तो स्वयं ही बाहर आ जाते हें, जो नहीं आ पाते वे स्वेदन की प्रक्रिया से श्वास मार्ग, मल-मूत्र मार्ग, त्वचा मार्ग (पसीना निकलने के छिद्र), आदि से वे विष (टोक्सिन), एवं अपशिष्ट, अवांछित पदार्थ पिघलकर, शरीर से निकल जाते है|
शरीर से कतिपय या जड जमाये हुए दोष यदि नहीं निकलते तो पंचकर्म की अन्य प्रक्रिया वमन, विरेचन, बस्ती, रक्तमोक्षण आदि से निकाले जा सकते है|
स्वेदन से लाभ -
1. स्तंभन - स्वेदन से शरीर के जोड़ लचीले होते हें, कठोरता से होने वाला कष्ट मिट जाता है|
2. गौरव नाश- शरीर का भारीपन कम होता है, इससे दर्द में राहत मिलती है|
3. शीतघ्न – शरीर की ठण्ड (शीत) कम कर गर्मी प्रदान करती है|
4. मार्दवकर- स्वेदकर – मेटाबोलिज्म के अंतर्गत बनने अपशिष्ट पदार्थ (गन्दगी) पसीने के साथ निकालकर त्वचा को साफ़, मुलायम, चमकदार, और स्वस्थ बनती है| शरीर कोमल हो जाता है|
5. अग्निवर्धक- स्वेदन के बाद पाचन क्रिया ठीक हो जाने से भूख अच्छी लगती है|
6. त्वक प्रसाधन- त्वचा को चिकनी, एवं स्वच्छ करती है|
7. शूलहर – जोड़, शरीर के समस्त दर्दों को नष्ट करती है|
8. रोग के लक्षणों का शमन होता है|
स्वेदन की विधि क्या हैं?
स्वेदन या पसीना लेने की प्रक्रिया चरक एवं वाग्भट के अनुसार प्रमुख रूप से चार प्रकार की होती है|
1. ताप स्वेदन – गर्म किये वस्त्र, धातु, ईट, आदि से सेक.
2. उपनाह स्वेदन –गर्म पुल्टिस से सेक,
3. उष्म स्वेदन यह गर्म औषधिय क्वाथ, विभिन्न वनस्पति पत्र, पानी, आदि से निकली भाष्प से सेक करना है|
4. द्रव स्वेदन - यह गर्म औषधिय क्वाथ, तैल, पानी, आदि के द्वारा सेक|
अन्य प्रकार से भी स्वेदन निम्न वर्गीकृत किया जाता है|
संकर स्वेद इसे पिंड स्वेद Pinda Sweda ; स्निग्ध (पत्र औषधि, तेल,घी, आदि जैसे षष्टिकशाली अदि) या रुक्ष (बालू, मिटटी, धातु अदि से) दो प्रकार का .
1. प्रस्तर स्वेद –गर्म पत्थर शिला या काष्ठ शिला पर औषधि शमी धान्य आदि पर सुलाना,
2. नाडी स्वेद, Nadi Sweda. औषधि या बिना औषधि पानी की भाप को एक नलिका की सहायता से किसी अंग का स्वेदन, यह एकांग किसी विशेष भाग पर या सर्वांग भाष्प स्वेदन यंत्र में लिटा या बिठाकर किया जाता है|
3. परिषेक स्वेद- औषधि क्वाथ आदि द्रव से शरीर पर धारा बनाकर स्वेदन करना| यह भी एकांग या सर्वांग (लिटाकर) की जाती है| जैसे पिषिचिल pizichil आदि|
4. अवगाह स्वेद Avagaha Sweda औषधि क्वाथ, दूध, तेल, आदि टब में भर कर रोगी को बिठाना|
5. जेन्ताक स्वेद- जेन्ताक अर्थात एक प्रकार का गोल कमरा जिसे कूटागार कहा जाता है, में बिठाकर धुआं रहित अंगारों से स्वेदन करना|
6. अश्मघन स्वेद पत्थर की शिला को गर्म कर स्वेद देना| इसमें और प्रस्तर स्वेद में अंतर यह है की अश्मघन रुक्ष, शुष्क होती है जबकि प्रस्तर शमी धान्य आदि पत्र औषधि के कारण स्निग्ध होती है|
7. कर्षू स्वेद- एक गड्डे में बिठाकर स्वेदन,
8. कुटी स्वेद –एक झोपडी या कुटी में बिठाकर स्वेदन,
9. भू स्वेद –जमींन पर बिठाकर,
10. कूप स्वेद –कुँए जैसा स्थान बनाकर बिठाकर स्वेदन करना|
11. होलाक स्वेद- अग्नि पर तापना-
12. उपनाह स्वेद Upanaha Sweda. उपनाह अर्थात औषधि बांध कर स्वेदन देना.
स्वेदन के उक्त अनेक भेद प्राचीन काल में सामग्री, स्थान, व्यवस्था आदि की उपलब्धता के अनुसार की जाती रही है| वर्तमान में उपलब्ध स्थान, साधन, उपकरणों के माध्यम से चिकित्सक कर सकता है|
स्वेदन योग्य अर्थात एसे रोगी या व्यक्ति जिन्हें स्वेदन से लाभ दिया जा सकता है वे निम्न हैं-
संधिवात, पक्षाघात, न्युरोलोजिकल समस्या, कास, हिक्का, श्वास, शरीर में भारीपन,कर्ण शूल, शिर:शुल, आंशिक,पूर्ण, या एकांग पक्षाघात, विवंध, कमर, गर्दन, जोड़ आदि स्थानों पर दर्द, गर्ध्रसी, मोटापा, मांसपेशी में खिंचाव, आदि में स्वेदन से लाभ होता है, जिनका वमन,विरेचन बस्ती देना हो उनको भी स्वेदन देना चाहिए|
स्वेदन जिन्हें नहीं करें- सामान्यत चिकित्सक एसे रोगी जो पित्त प्रधान हों,
अतिसार पीड़ित (दस्त लग रहें हों), कामला (पीलया ग्रस्त),रक्त पित्त नाक आदि से खून बहना),ज्वर रोगी, मधुमेही (इन्सुलिन लेने वाले पित्त प्रधान), गर्भणी, कुष्ट रोगी, हृद्रोगी, भ्रम या चक्कर पीड़ित, मूत्राघात (मूत्र न आना) पित्त रोगी को स्वेदन न करें|
स्वेदन कर्म करने के पूर्व आवश्यक रूप से स्नेहन अवश्य करना चाहिए अन्यथा हानि की संभावना अधिक रहेगी|
चिकित्सक को स्वेदन के विषय में अच्छे स्वेदन, अति स्वेदन, कम स्वेदन के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है| स्वेदन कार्य निष्णात चिकित्सक की देखरेख या सज्ञान में होना चाहिए अन्यथा दुष्परिणाम भी हो सकते हें विशेषकर अति स्वेदन से|
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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