Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

अस्थमा श्वास या दमा (Athama) से बचने के लिए वायु का उपयोग छान कर करें?

अस्थमा से बचने के लिए वायु का उपयोग छान कर करें? [अस्थमा दिवस 6 मई] 
आयुर्वेद के अनुसार श्वांस रोग अस्थमा या दमा के नाम से जाना जाने वाला यह विश्वव्यापी रोग जो साँस लेने में होने वाली घरघराहटसांस लेने में कष्ट, सीने में जकड़न, और खांसी से पहचाना जाता है, जिसमें विकासशील देशों विशेषकर उन देशों की एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है, जहाँ आधुनिक बस्तियां बस्ती बसने के लिए पेड़ों की अंधाधुन्द कटाई/छटाई कर पर्यावरण का संतुलन ख़राब कर दिया है| यह रोग भारत अमेरिका केनेडा सहित कई देशों की लगभग 10% से अधिक आबादी को प्रभावित कर रहा है| आज 6 मई को विश्व अस्थमा दिवस पर इस समस्या पर चिंतन करें|
अस्थमा दिवस 6 मई 
जीवन के लिए एक मात्र सर्व प्रमुख सहायक श्वास (साँस) को प्रभावित कर दम (प्राण) निकाल देने वाला यह दमा या अस्थमा श्वास हेतु मिल रही वायु(हवा) के प्रदुषण का परिणाम है| 
यदि हम अस्थमा के इन प्रमुख कारणों जैसे 1- पशु/पक्षी अदि की त्वचा, बाल, पंख या रोयें, 2- दीमक, तिलचट्टे आदि कृमियों से, 3-अवांछित पेड़ और घास (जैसे गाजर घांस) आदि के पराग कण, 4- सतत उड़ती धूल, उद्योग, इंधन, सिगरेट अदि का धुआं और तीखी गंध, सड़ते पानी/पशु/ कचरा/मल-मूत्र आदि से होता वायु प्रदूषण, 5- ठंडी हवा या मौसमी बदलाव, 6- सुगंधित और सुन्दरता बढाने वाले उत्पाद, 7- मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव, 8- कुछ एस्पिरीन और अन्य दवाएं, 9- खाद्य पदार्थों में मिलावट या प्रिजर्व सूखे फल या शराब, कोल्ड ड्रिंक अदि पेय, 10 - संक्रमण, तक यदि पर ध्यान दें तो पाएंगे की इनमें से अधिकांश रोग के कारण हमारे द्वारा पर्यावरण की छेड़ छाड़ से निर्मित हुए हें|
प्राकृतिक पेड पोधे, वन-उपवन, बाग़ बगीचे जो समस्त प्रदूषित वायु को सोख कर ओक्सिजन, देते हैं, पेड पोधों की उपस्थिति से धुल, धुआं पराग अदि विषेले पदार्थ हम तक पहुँच ही नहीं पाते हैं, वर्तमान में घरों के आसपास भी पेड-पोधे, बेल, आदि देखने नहीं मिलते जो इन धुल आदि तत्वों को रोक लें| यह अब कंक्रीट के जंगल में बेधडक सडको, से घर के अन्दर तक आसानी से प्रवेश पा रहे हें| कहीं भी जाये इनसे बचाव दीखता ही नहीं|
चोबिसों घंटे इस वातावरण में रहने से विचार करें, की कितनी धुल-धुआं, आदि हमारे जाने विना हमारे फेफड़ों में पहुचकर जम जाया करता है, और हम भी आज के विलासितापूर्ण जीवन जीते हुए, प्राणायाम, योग, एक्सरसाइज़ आदि भी नहीं कर रहे हें, जो फेफड़ों को साफ करता है| इसके साथ ही हम अपने नाक कान गले आदि की सफाई के प्रति अधिक सजग नही है, प्रतिदिन ओपचारिक रूप से जल्दी जल्दी देनिक इन कर्मो से निपट कर भाग-दोड को निकल पड़ते हें|
निरंतर गति से फेफड़ों में जमती जाती यह धुल, धुआं, आदि प्रदुषण फेफड़ों को जीवाणु-विषाणुओं या कहे भुत-प्रेत को जमने का आसान अवसर प्राप्त हो जाता है| फेफड़े सुकुडने लगते हें, धीरे धीरे जितनी वायु पहिले ले सकते थे उसमें कमी होने लगती है| वायु की कमी से जितनी ओक्सिजन मिलनी चाहिए उतनी न मिलने से साँस लेने में कठिनाई होती है, विशेषकर जब भी दोड-भाग, सीडी चड़ने आदि से ओक्सिजन की जरुरत पूर्ति में कमी आ जाती है, और साँस फूलने लगती है, पूर्ती के लिए साँस तेज गति से आने जाने लगती है, और दम फूलने लगता है, यही अस्थमा या दमा रोग है|
बचने का उपाय का उपाय एक ही सबसे अच्छा है की साँस लेने के लिए जो वायु मिले वह धुल रहित शुद्ध हो, एसा केवल घर के आस पास बहुत से पेड पोधे, बेलें, फल सब्जिय आदि लगाने से ही संभव है, ये धूल को फेलेने से रोकेंगे, गन्दी कार्बनिक गेसों को सोख लेंगे, ओर लगातार अच्छी अक्सिजन छोड़ते रहेंगे|
दूसरा यह की हम अपनी दिनचर्या सुधारें, प्राणायाम, योग, एक्सरसाइज़, करके फेफड़ों को साफ और पुष्ट रखें, ताकि वे अधिक आक्सीजन ग्रहण करते रहें|
स्थमा से बचने के लिए ब्रक्ष लगायें, हरियाली फेलायें,  ये वायु को छान कर साफ कर देंगें और अस्थमा भाग जायेगा|   

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