Dry eye syndrom, या सूखी आंख वाला रोग, आयुर्वेद के अनुसार “शुष्काक्षिपाक”
Dr Madhu Sudan Vyas
वर्तमान में 86% लोगों को [जिनमें अधिकतर महिलाएं होती हें] को पाया जाने वाला आँखों का रोग "ड्राई आई सिंड्रोम" का पता उस व्यक्ति को तब होता है, जब वह आँखों में, चुभन, और रेत गिरने या कोई बाहरी
वस्तु होने जैसा अनुभव को सामान्य न समझ किसी नेत्र चिकित्सक के पास जाता है|
पाया गया है की अधिकतर 63% इस प्रकार की शिकायत आँखों में होने पर या तो किसी दवा की दुकान से स्वयं दवा खरीदकर डालते हें, यह हमने सोशल मीडिया पर पूछे प्रश्न और हमारे पास आये रोगियों उनके सहायको और वृद्धो से सम्पर्क में पाया है|
कई को तेज बहती हवा में या पंखे और एयर कंडिशनर में रहने
पर आँखों में जलन होती रहती है| इसी प्रकार से टीवी देखने में, पड़ने में, अधिक
गर्मी या धूप के कारण अधिक कष्ट होता है|
इन लक्षणों के अतिरिक्त
ऑंखें खोलने में भी कष्ट, पलकों पर भारीपन, फोटोफोबिया (रौशनी सहन नहीं होना), हलका या तेज दर्द, लालिमा, एवं खुजली जैसे लक्षणों में से एक या अधिक मिलने लगें, और आंसू कम
आते हों या भावनाएं होने पर भी, आंसू न आते हों या या कम आते हों तो वह ड्राय आई
सिंड्रोम का शिकार हो गया है| इसे ही आयुर्वेद में “शुष्काक्षिपाक” रोग कहा जाता
है|
सामान्यत: इस बारे
में यही माना जाता है, की अधिक लगातार पड़ने, टी वी देखने और मोबायल पर नजर गडाए
रखने से नजर कमजोरी के कारण हो रहा है, तो यह बात सच भी है|
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आंख में प्रकृति ने एक पम्प भी लगाया है! |
सच इसलिए की
यह होता तो इन्ही कारणों से है पर इनके अतिरिक्त और भी कई कारण हो सकते हें|
हालाँकि कारण कोई भी हो सभी में आंसू बनाने वाली ग्रंथि जो पलकों में होती है
(देखें- चित्र -1)
जिसे लेक्रिमल ग्लेंड कहा जाता है, की कम सक्रियता से, विटामिन A की कमी (Xerophthalmia.) से, कन्जेक्ताइवल
स्केरिंग जैसे कारण [ट्रेकोमा, स्टीवेंस जोनसन सिंड्रोम, pemphigoid पेम्फिगोइड, केमिकल बर्न, क्रोनिक कन्जेकटिवाटिस,] अथवा कुछ
निजी कारणों जेसे- मम्प्स, पलक झपकने में कमी, से भी होता है| (भेद देखें चित्र नं -2 )|
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चित्र -2 |
हमारी आँख अच्छी तरह
से काम करती रहें, इसलिए उसे निरंतर गीला, तर, नम या लुब्रिकेंट होना जरुरी होता है, यह
कार्य आंसू या अश्रु से निरंतर होता रहता है|
सामान्यत: आंसू जब तक बहकर बाहर न निकलें दीखते नहीं, एसा इस कारण होता है, की-
आंख में प्रकृति ने एक पम्प भी लगाया है, यह सुनकर सामान्य जन को यह आश्चर्य जनक
लग सकता है, पर यह सच है|
आँखों के नाक की तरफ
वाले भाग को गौर से देखें, ऊपर और नीचे की और दो छेद दिखेंगे, (देखें चित्र-1) ये
ही पम्प के मुख है, जहाँ से आंसू खीच कर नाक में फेंक दिया जाता है और आंसू हमें
नहीं दखता जब तक की अधिक न निकले या पम्प काम कम या बिलकुल भी न कर रहा हो|
पलकों के ऊपर अश्रु
ग्रन्थि से निकला आंसू पूरी आँखों पर फेलकर नम या गीला करता है, आंख के ऊपर आये
धूल आदि को पलक के झपकने से जैसे बुहार कर नाक के भाग की और धकेलता है, जहाँ फिर
पलक के झपकने से दोनों छेद, जिन्हें लेक्रिमल पक्चा (lacrimal puncta) कहते हें
मिलते हें, आंसू की बूंद, ऊपर और नीचे की लेक्रिमल केनाल से मशक जैसी लेक्रिमल
डक्ट में पम्प कर दी जाती हें, वहा से नाक के अंदर गिर जाया करती है| धूल अदि के
कण आंख में एक तरह एकत्र होकर (नेत्र मल या कीचड़ की तरह) निकल जाते हें|
अब यदि इस पूर्ण
प्रक्रिया में कहीं भी कोई गड़बड़ी हुई, तो समस्या खड़ी हुई, अर्थात ड्राय आई सिंड्रोम
या सूखी आंख रोग का श्रीगणेश हुआ या रोग हो ही गया|
यदि लक्षण कम हें, तो
रोग का प्रारम्भ हो रहा है, यदि अन्य और भी अधिक लक्षण हें, तो रोग आ चुका है| अब
तक जो गलतियां की हें उन्हें ठीक करना ही होगा इससे पहिले की रोग बढकर ठीक न हो
पाने की स्तिथी, तक पहुँच जाये| इसकी अंतिम परिणिति केंसर से लेकर अंधत्व तक भी
सम्भावित है|
चिकित्सा जो आप खुद कर सकते हें -
रोग से बचने के लिए जरुरी है, की हम कारणों को तलाश कर (चित्र-2) हटा
दें,
- जैसे टीवी, मोबायल का अधिक और एकटक प्रयोग,
- सूखे वातावरण में रहना,
- लगातार कोंटेक्ट लेंस पहनना|
- आपको प्रतिदिन अच्छा संतुलित भोजन करना चाहिए जो पाचन
बडाये,
- हरी सब्जियों का सेवन बढाएं,
- गर्म पानी पिया जाना अच्छा है|
- कार्य करते समय आँखों दिशा में परिवर्तन करें,
- आँखों पर दवाव् कम
करें, प्रत्येक 10 मिनिट बाद पलक झपकाए एक टक रहने से बचें,
- A/C ह्युमेडीफायर, रूम हीटर से बचें,|
चिकित्सक से चर्चा कर पता लगायें, की - रोग का कारण यदि इनमें से कोई है, तो एक अच्छा चिकित्सक ही आपको उचित परामर्श दे सकेगा|
- कही किसी दवा की एलर्जी तो
नहीं? या आंसू बनाने वाली ग्रंथि काम न कर रही हो?
- यह रोग ऑटो इम्यून कारण या
हार्मोन्स की गड़बड़ी से तो नहीं?
- आंसू बनाने वाला सिस्टम या प्रक्रिया में
समस्या तो नहीं?
आधुनिक चिकित्सा में इसकी चिकित्सा में सामान्यत: कृत्रिम आंसू लाने
की दवा डाली जाती है, यदि कोई दोष ओपरेशन से ठीक होने योग्य है, तो किया जाता है,
पम्पिंग प्रक्रिया ब्लोक हो तो सलाई डालकर खोला जाता है या एक छोटा सा कृत्रिम
यंत्र जिसे punctal pluge कहते हें, lacrimal puncta में डाल दिया जाता है, जिससे
आंसू बहना बंद हो जाता है| पर यदि आंसू बनाना ही बंद हो गया है तो कोई चिकित्सा
नहीं हो पाती|
आयुर्वेद में इसके लिए पूर्ण चिकित्सा बताई गई है|
इसके लिए चरक
सुश्रुत आदि ऋषियों ने पंचकर्म के अंतर्गत होने वाली अक्षितर्पण जो रोग रोगों, दोषों, के अनुसार विशिष्ट ओषधि घृत जैसे त्रिफलादी घृत, पटोलादी घृत, जीवन्त्यादी घृत, आदि से होता है, परीक्षणों में हमने भी श्रेष्ट पाया है|
पिछले दिनों में हुए कुछ विशेष शोधों ने निम्न निष्कर्ष दिए हें|
अधिकांश रोगियों को पूर्ण लाभ
हुआ| जिन्हें कुछ लक्षणों में पूर्ण सुधार नहीं मिला उन पर शोध जारी है| पाया गया
की जिनमें सुधार अपेक्षाकृत कम या नहीं हुआ वे अधिक आयु के थे, निष्कर्ष यह है की
जितना शीघ्र चिकित्सा की गई परिणाम सुखद रहा|
घृत का प्रयोग आप कैसे कर सकते हें-
हालांकि विशिष्ट पंचकर्म चिकित्सा जो केवल चिकित्सक की देख रेख में ही की जा
सकती है, को छोड़कर रोगी ऊपर लिखित परामर्श का पालन करने के अतिरिक्त,
- त्रिफला घृत एक
एक चम्मच (5 ग्राम) दोनों समय गाय के दूध में मिलकर पिए,
- आँखों में भी दोनों समय
लगाये(थोड़ी सी जलन जरुर होगी) तो प्रारम्भिक रोग के कष्ट से छुटकारा मिल सकता है|
अगला लेख- “शुष्काक्षिपाक” या Dry eye syndrom, ड्राई आई के, अधिक रोग लक्षण हो तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सहायता से की जा सकने वाली पंचकर्म चिकित्सा से लाभ प्राप्त किया जा सकता है|
“शुष्काक्षिपाक” या Dry eye syndrom, ड्राई आई की विशिष्ट पंच कर्म चिकित्सा योजना
यदि आप आयुर्वेद स्नातक चिकित्सक हैं, तो आप अगले इस शोधात्मक जानकारी
और प्रशिक्षण से अपने इस प्रकार रोगोयों की चिकित्सा कर सकते हें|
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