डायबिटीज़ के मरीज़ों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती, तो वह डायबिटिक रेटिनोपैथी
के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या् का पता तब चलता है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।याद रखे की आंख सही हे तो जहाँ हमारा हे ,अन्यथा सब दूर अँधेरा हे।
रेटीनोपैथी के शुरूवाती लक्षण:
• चश्मे का नम्बकर बार-बार बदलना
• सफेद मोतियाबिंद या काला मोतियाबिंद
• आंखों का बार-बार संक्रमित होना
• सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना
• रेटिना से खून आना
• सरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम हो जाना
सामान्य व्याक्ति की तुलना में डायबिटीज़1 और डायबिटीज़2 के मरीज़ों में मोतियाबिंद होने की अधिक संभावना रहती है।
सुरक्षा के उपाय :
• समय-समय पर आंखों की जांच करायें, यह जांच बच्चों में भी आवश्य क है।
• रक्त। में कालेस्ट्राल और शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखें।
• अगर आपको आखों में दर्द, अंधेरा छाने जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।
• डायबिटीज़ के मरीज़ को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए।
• डायबिटीज़ होने के दस साल बाद हर तीन महीने पर आंखों की जांच करायें।
• गर्भवति महिला अगर डायबिटिक है तो इस विषय में चिकित्सक से बात करे।