हमारे आसपास हर वक्त अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की ताकतें रहती हें। बुरी जहाँ हानी पहुचती हें वही अच्छी हमको इन बुरी ताकतों से बचाती हें। इसे समझने के लिए हमको पाहिले बुरी शक्तियों के बारे में जानना होगा तभी हम अच्छी ताकतों के बारे में समझ पाएंगे। एक एक कर सभी के बारे में थोडा थोडा निम्न हे।
लगभग सभी दर्शन ग्रंथो, और धर्मो में माना हे की पिशाच रक्त पान वाले होते हें । इनमे से कई को हमने देखा भी हे, जेसे खटमल,मच्छर, जूं, पर बहुत सारे ऐसे भी हें जिन्हें हम देख ही नहीं पाते।
हम जब रात को बिस्तर पर सोते हें तब प्रति क्षण हमारी त्वचा खिरती रहती हे, होता यह हे की नई त्वचा उत्पन्न होती रहती हे पुरानी निकलती रहती हे , इस निकल कर गिरे हुए त्वचा के अंशों को जिन्हें हम अपनी आँखों से नहीं देख पाते(पर इलेक्ट्रिक माइक्रोस्कोप से देखे जा सकते हे) को खाने के लिए करोड़ों की संख्या में छोटे जीवाणु भी आ जाते हें। प्रकृति के सिधान्तो के अनुसार उन्हें भी खाने वाले अति सूक्षम परजीवी भी उत्पन्न हो जाते हें। जो उन्हें खाने के साथ शारीर की त्वचा और रक्त को भी चूसने लगते हें। इन्हें प्रतिदिन शरीर से अलग करने के लिए हमको नहाना शरीर को साफ करना जरुरी होता हे (अन्यथा खुजली एक्जीमा, आदि त्वचा रोग हो सकता हें।) इस प्रकार हम करोड़ों जीवो पर जीवियों आदि के साथ रात भर रहते हें। इन सूक्षम प्राणियों की उपस्थिति विशेष गंध के द्वारा भी पहिचानी जा सकती हे। यह गंध विशेष व्यक्ति के शरीर , चादर तकिये या बिस्तर में भी महसूस की जा सकती हे।
ये सभी रक्त, त्वचा और शरीर भागों को खाने पीने से पिशाच ही तो हें।
भूत-प्रेत के बारे में जो धारणा हे वह यह हे की जो मर चुकें हें वे हें या दिखाई दिए बिना हानी पहुचने वाले आत्माएं हे। आत्मा हम प्रणियों को जीवन देने वाली शक्ति के रूप में जानते हें भूत का अर्थ जो बीत चुके या पूर्व काल के न दिख सकने वाले ? इस विचार से असंख्य जीवाणु ,विषाणु,जिन्हें आज सूक्षम दर्शी यंत्रो की मदद से देखा जा चूका हे हमारे एक दो फुट के आसपास ही करोडो की संख्या में उपस्थित हो सकते हें । बस में ट्रेन में या कही भी किसी के छीकने, खासने, से उड़कर हमारे मुह नाक के रस्ते करोड़ों की संख्या में शरीर में प्रवेश पा जाते हें। या हमारे किसी भी वस्तु ,जेसे बस ट्रेन की सीट, रोड,खिड़की,दरवाजा, या उनसे जिनसे हम अनजाने ही प्रतिदिन न जाने कितनी बार स्पर्श करते हें, हाथो की अँगुलियों के साथ आकार हमारी त्वचा नाक आंख,मुह, के रस्ते अन्दर आ ही जाते हें।
यही नहीं जरा कल्पना कीजिये की मक्खी जेसे जीव जो गंदगी पर बैठते हें और फिर उड़ कर मिठाई ,खाद्य सामग्रियों आदि पर बैठते हें, उनके पेरों में चिपके ये लाखों करोड़ों की संख्या में चिपके यह जीव् या भूत , खाद्य सामग्री पर भी पहुच जाते हें , और शायद यह बात कम लोग जानते हें की मक्खी जिस भी पदार्थ पर बैठती हे, वहां अपनी लार की एक छोटी बूंद रखती हे ताकि उसके एंजाइम उस खाद्य को मक्खी को पच सकने और खाने योग्य बना सके उसी तरह जेसे हमारी लार चबाते समय भोजन से मिलकर पचने योग्य बना देती हे। इस लार में भी लाखों की संख्या में जीवाणु पाए जाते हें। और जब वह सामग्री हमारे द्वारा खा ली जाती हे तो ये कितनी बड़ी संख्या में हमारे शरीर में प्रवेश पा जाते हें।
कई बार महिलाएं अपने हैंड बैग में रखी चीजों से जूझती नजर आती हैं। उनके हैंड बैग में तमाम जरूरी व गैर-जरूरी सामान भरा पड़ा होता है। और इस सामान के साथ ही होते हैं प्रेत ओर पिशाचो की तरह उपस्थित कई खतरनाक बैक्टीरिया भी।
शोध में पाया गया है कि लेडीज हैंड बैग में भी कई बार औसत टॉयलेट से ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं।
किसी भी महिला के पर्स में कौन सा ऐसा सामान है, जो नही होता। टॉयलेट पेपर, फेसवॉश, लिपिस्टिक, क्रीम, काजल, आईलाइनर, परफ्यूम, रूमाल, दवाएं, क्रेडिट और एटीएम कार्डस, मोबाइल फोन हैंडसेट, वॉलेट, टिकट, चाबियां, टैबलेट, लंच बॉक्स और कई बार फल और नट्स, ओर फिर महिलाएं उनके लिए दिन में कई बार अपने हाथ विना साफ किए पर्स में डालती रहतीं हें, इस प्रकार बाहरी वातावरण के ये प्रेत आते जाते रहते हें।
कुछ रक्त पान करने वाले पिशाच जो परजीवी जेसे थ्रेड वोर्म जिन्हें सामान्य भाषा में चिनुमुने, एस्केरिस या टेप वोर्म जेसे दो दो तीन तीन फिट से भी अधिक लम्बे हो सकते हे कब शरीर में प्रवेश करके हमारे साथ वर्षों तक रह रहे हें और परिवार बढ़ाते रहते हे को हम केसे भूल जाएँ की वे भी तो हमारे पास रहने वाले प्राणी हें।जो पानी खाने पीने,की सामग्रियों या शरीर के किसी भी भाग से कब प्रवेश पा गए हम नहीं जानते।
इन करोडो भूत प्रेत पिशाचो के बीच रह कर भी आखिर हम केसे स्वस्थ रहते हें यह विचार भी करना ही होगा। कुछ भाई कह सकते हें की वे पूरी तरह से स्वस्थ ओर कीटाणु/जीवाणु रहित स्थानों पर ही रहते/आते/जाते हें इस लिए वे उनसे दूर हें। यह सोचना भूल हे सच यही हे की हम कही भी कितने ही अच्छे दिखने वाले माहोल या स्थान पर रहें हम इनसे घिरे ही रहते हें।
वास्तव में ये सव भी हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गए हें, सारा प्राक्रतिक संतुलन इस एक दुसरे को लाभ हानी देकर एक दुसरे को साथ देने के लिए ही बना हे। पर इनमे भी जंगल कानून अनुसार जो भी शक्ति शाली होगा वह जीवित रहेगा का आधार ही लागु होता हे । यह हमारे शरीर की विलक्षणता होती हे इसको ही रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कहते हे।
यही विलक्षणता हमको इन असख्य भूत प्रेतों पिशाचो पर जीवियों से बचाती हे। यह विलक्षणता ही "देव" शक्ति हे। इसी के आधार पर असंख्यों ऐसे जीवाणु हमारे शरीर में हमारे रक्षक बन कर रहते हें और इन प्रेत पिशाचो को खाकर नष्ट कर हमको रोगों से बचाए रखते हें।ये ही सब देवी देवता, खुदा मसीह नहीं तो और कोन हें यही तो हें वे अच्छी शक्ति या खुदाई ताकते जिन्हें हम या सारे धर्म दर्शन परमात्मा भी कहते हे हमारे अन्दर ही निवास करते हें।ये ही शक्ति बाहरी टीके,वेक्सिन आदि से भी मिल सकती हे। इसी के कारण हम आज चेचक हेजा, प्लेग आदि,के पिशाचो ,राक्षसों से मुक्त हुए हें।
इन्ही देव शक्तियों की सशक्त बनाये रखने सभी धर्मो में प्रतिदिन नहा धोकर स्वच्छ होकर जीवन यापन करने स्वच्छ भोग( भोजन) लेने मंदिर मस्जिद जेसे स्वच्छ वातावरण में रहने की कल्पना की गई हे।
एक चिकित्सक या चिन्तक के नाते में यही कहना चाहता हूँ की हम किसी भी समय कहीं पर भी अकेले नहीं हें हमारे साथ होती हें करोडो की संख्या में एक कोशीय जीवो(आत्माओं) जिनमे देव भी हें दानव और पिशाच भी , हमको चाहिए की देव या रक्षक आत्माओं को सशक्त बनाये , संतुलित और अच्छे आहार विहार स्वछता, देवीय वतावरण बनाकर। इससे हम अपना और अपने परिवार को सुखी निरोगी और बल शाली बांये रखने में सफल होंगे। और असुरी शक्तियाँ प्रेत ,पिशाच आसपास होते हुए भी कुछ भी बिगाड नहीं पाएंगी।
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