देसी घी बचाए मोटापे ओर हृदय रोग से?
देसी घी बचाए मोटापा ओर हृदय रोग से।
देशी घी के नाम से हमारे देश भारत में गाय ओर भेंस के दूध से निकाला हुआ घृत, स्नेह, तूप (मराठी), नेई (तेलगु), रोगनेजर्द (फारसी), समन (अरबी), ButiramDepuratam
(लेटीन), या मिल्क-फेट को ही घी के
नाम से सदियों से पुकारा जाता रहा हे। पुरातन काल में केवल गाय के दूध ओर घी को ही
प्रमुखता मिलती रही हे। इसी लिए जब भी दूध या घी कहा जाए तो गाय के दूध ओर घी के
बारे में कहा जा रहा हे, माना
जाना चाहिए।
महर्षि सुश्रुत (आयुर्वेद-सर्जन), के मतानुसार घी सौम्य, शीत-वीर्य, कोमल, मधुर, अमृत के समान गुणकारी, स्निग्ध, उदावर्त (गेस), उन्माद (पागलपन), मिर्गी, उदरशूल (पेट दर्द), ज्वर, ओर पित्त (जलन, दाह, गर्मी) को नष्ट करने वाला, अग्निदीपक, स्मरणशक्ति, मेधा, सोंदर्य, स्वर, लावण्य, सुकुमारिता, ओज, तेज, बल, वीर्य, ओर आयु का वर्धक,नेत्रों के लिए हितकारी, होता हे।
देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो युवावस्था को
कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। गाय
का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है। गाय के घी में स्वर्ण क्षार (गाय दूध - घी आदि को हल्का
पीले रंग देने वाला 'पित्त' [रसायन] Linoleic Acid (सीएलए)) पाए जाते हैं जिसमे
अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के अतिरिक्त
अन्य घी में नहीं मिलते । इसी के कारण गाय के घी से अच्छी कोई दूसरा नहीं है।
गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे
माइक्रोन्यूट्रींस [जिनमें कैंसर बढ़ाने वाले तत्वों से लड़ कर
उन्हे हटाने की क्षमता होती है,] मौजूद होते हैं। अत: घी के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से
बचा जा सकता।
स्वास्थ्य जगत का इतिहास देखें तो ज्ञात होगा की हमारे
देश में 50 वर्ष पहिले हार्ट अटेक, ब्लड प्रेशर, केंसर, डाईविटीज, जेसे रोग न के बरावर हुआ
करते थे जब की आज हर चोथे पांचवे व्यक्ति यहाँ तक की कम आयु वालों में भी होने लगे
हें, इसका एक मात्र श्रेय नकली
वनस्पति घी, रिफाइंड तेल ओर इन्ही से बने
फास्ट फूड को ही जाता हे कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पाश्चात्य खाद्य ओर खान पान से प्रभावित, ओर चिकित्सा शिक्षा से दीक्षित विशेषज्ञों के कथन जो की पाश्चात्य स्थानो, फेट्स या अन्य खाद्य पदार्थों पर हुए शोध के अनुसार थे, ओर इसी प्रकार के अन्य
मिथकों के चलते देसी घी को भी सेहत का दुश्मन समझ लिया गया, ओर व्यापारिक लाभ के चलते
नकली घी तेल ओर फास्ट फूड वालों ने इसका प्रचार कर आर्थिक लाभ भी किया।
अब कई वैज्ञानिको ने घी को अच्छा सेचुरेटेड फेट कह कर मोटापा
आदि के विरुद्ध इसकी सलाह दी हे।
भारत में ही नहीं अन्य कई देशों में हुए
शोध के परिणाम अब हमारी पुरानी आयुर्वेद मनीषियों की घी के प्रति मान्यता को मनाने
पर मजबूर हो गए है।
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देनिक भास्कर 24मार्च2013 |
संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादित
घी द्वारा चूहों पर अध्ययन से पता चला है कि घी थोड़ा सीरम कोलेस्ट्रॉल को कम करने
में मदद करता है।
वेज्ञानिक
Wistar
ने चूहों में अध्ययन कर जो लिखा है, उससे ज्ञात होता हे की घी प्लाज्मा एलडीएल कोलेस्ट्रॉल{खराब} को कम कर देता है। इस प्रक्रिया में पित्त [lipids] की वृद्धि स्राव द्वारा होती
है, इसके अलावा, घी गैस्ट्रिक एसिड के स्राव
को उत्तेजित करता है, इस प्रकार से पाचन प्रक्रिया में
सहायता मिलती है, [घी का आयुर्वेद में कब्ज और अल्सर का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है]।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के
वैज्ञानिकों ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान जर्नल के नवीनतम अंक द्वारा सूचित किया
है, की भारतीय वैज्ञानिकों का
अभी पता चला है,
कि गाय का घी
सेवन से हम कैंसर से बच सकते है। गाय घी एंजाइमों की उपलब्धता को बढ़ाता है, जो कैंसर पैदा करने वाले
पदार्थों का निर्विषीकरण[detoxification] कर, केन्सर
बनाने वाले रसायन [carcinogens] की सक्रियता के लिए जिम्मेदार रसायनो को हटा देता हे।
इसमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कुल वसा (घी
सहित) का सेवन निर्धारित सीमा से अधिक नहीं होनी चाहिए। प्रयोगशाला में किए गए
प्रयोगों में वैज्ञानिकों ने मादा चूहों पर सोयाबीन तेल की तुलना में गाय के घी के
प्रभाव का अध्ययन किया था। उन्होंने पाया कि उन चूहों को जिन्हे गाय के घी पर रखा
गया उनमें स्तन कैंसर की व्रद्धि में कमी आई , वहाँ सोयाबीन तेल पर खिलाया तो उनमें एक ट्यूमर का अनुपात
अधिक था।
भारत में उपलब्ध घी ज्यादातर भैंस के दूध से बनाया जाता है।
हालांकि अध्ययन गाय घी पर किया गया था, वैज्ञानिकों ने कहा भैंस घी
भी इसी तरह प्रभावी होने की उम्मीद है, क्योंकि दोनों में सीएलए होते हैं। डॉ. Kansal ने कहा 'घी लंबे समय से हृदय
स्वास्थ्य के लिए दोषी माना जाता रहा है, यह भी असत्य है। घी रक्त एचडीएल स्तर सुधारने के लिए उपयुक्त हे, जो दिल के लिए अच्छा है।
आज खाने में घी ना लेना एक फैशन बन गया है। बच्चे के
जन्म के बाद डॉक्टर्स भी माँ को घी खाने से मना करते है। दिल के मरीजों को भी घी
से दूर रहने की सलाह दी जाती है। यह भ्रम हे, आयुर्वेद ओर परंपरा के अनुसार माँ को आयुर्वेदिक ओषधि, मेवा ओर घी युक्त लड्डू
खिलाने का रिवाज हे जो जच्चा {प्रसूता} माँ के लिए शक्ति, सुंदर काया ओर बच्चे के लिए
पुष्ट दूध देता हे। ओर रोगों से लढ़ने की शक्ति प्रदान करता है।
एक सामान्य व्यक्ति को रोजाना (24 घंटे में) कम से कम २ चम्मच (5 से 10 ग्राम) गाय का
घी तो खाना ही चाहिए-
- यह वात और पित्त दोषों को शांत
करता है।
- चरक संहिता में कहा गया है की
जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों
ना खाया जाए, ये बुझती नहीं अर्थात पाचन क्रिया शक्तिशाली हो जाती हे।
- बच्चे के जन्म के बाद प्रसूता {नई माँ} का वात बढ़ जाता है जो
घी के सेवन से निकल जाता है, अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है।
- हार्ट की नालियों में जब
ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट [खराव कोलेष्ट्रोल हटा कर] का काम करता है।
- कब्ज को हटाने के लिए भी घी
मददगार है। चिकनाहट की कमी से आंतों में मल सूख जाने से मलावरोध हो जाता हे।
- गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता
है तो घी उसे शांत करता है, शीतलता की वृद्धि करता हे।
- घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता
है। इससे रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा ओर शुक्र इन सात
धातुओं की पुष्टि हो जाने से ओज बढ़कर शरीर के तेजस्वी बना देता हे।
- दाल में थोड़ा सा घी डाल{बघार कर या फ्राई कर} कर खाने से कभी पेट में ग़ैस
नहीं बनती।
- देसी घी खाने से मोटापा कम होता
है। मोटापे का कारण घी में तर पूरी परांठा लड्डू बाफला बाटी या अधिक घी खाना
हो सकता है।
- घी एंटी आक्सिडेट्स है, यह फ्री रेडिकल्स को
हानि पहुंचाने से भी रोकते है।
- घी के नाम पर वनस्पति घी कभी न
खाए, ये पित्त बढाता है और
शरीर में जम के बैठता है, खराब कोलेस्ट्रॉल बड़ा कर ह्रदय रोग आदि का प्रमुख कारण
है। इसी के दोष की सजा देसी घी को मिल रही हें।
- घी को कभी भी मलाई गर्म कर के
नहीं बनाया जाना चाहिए, इसे दही जमा कर मथने से जीवाणु {यीष्ट} के द्वारा प्रचुर मात्र
में विटामिन B बन जाता है। या कहा जा
सकता हे की इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है। इसतरह प्राप्त मक्खन को गर्म
करने से घी मिलता है। यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान
(यज्ञ) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही
कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा, धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है। इसमें
वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अदभुत क्षमता होती
है।
- गाय का घी एक अच्छा कोलेस्ट्रॉल
है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत
अच्छा टॉनिक भी है। अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार,नाक में प्रयोग करेंगे
तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
घी से बनी आयुर्वेदिक ओषधियॉ-
त्रिफला घृत – इसके सेवन से नेत्र रोग दूर
होते हें। इसे खाने से दृष्टि में सुधार होता हे चश्में का नंबर कम हो जाता हे।
उदार रोगों के लिए भी अच्छा हे, मोटापा को भी कम करता हे।
फल घृत – महिलाओं के लिए लाभकारी
गर्भाशय को स्वस्थ कर अच्छी पुष्ट संतान प्रदान करने वाला हे।
ब्राह्मी घृत – वाणी स्मृति, बुद्धि को ओर मस्तिष्क
संबन्धित रोगों के लिए उपयोगी।
च्यवनप्राश: आदि ओर भी कई प्रकार की औषधियाँ ओर घृत ओर गाय के घी के
द्वारा बनाई जातीं हें।
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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग
निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|
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