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छूत का यह रोग हवा, पानी अथवा सांस द्वारा नहीं फैलता। यह एक रोगी व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के निकट संपर्क में आने से ही फैलती है। इसलिए परिवार में एक व्यक्ति से यह सारे परिवार में ही अकसर फैल जाती है। यह नमी की स्थिति के चलते पनपता है। आम तौर पर बच्चों को इसका सबसे अधिक ख़तरा बना रहता है और बच्चों में यह रोग बहुत आम है। यह सामान्यतया उन लोगों को होती है जो साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखते। |
बेतकुल्ल्फ़ होकर किसी भी दोस्त के बिस्तर का उपयोग करने, या उसके गंदे तोलिया, पहने हुए कपड़े, कंघे आदि का प्रयोग करने ओर रोज न नहाने वालों में, ओर साफ सफाई पर ध्यान न देने वालों, ओर कुत्ते- बिल्लियों से अधिक संपर्क रखने वालों के शरीर पर संपर्क के एक माह बाद तक भी,यदि खुजली चलने लगती है। सामान्यत: इस बात को साधारण सी बात समझ कर अक्सर नजर अंदाज भी कर दिया जाता है। यह साधारण सी खुजली शरीर के किसी विशेष अंग हाथ, पैर गर्दन ओर खुले हिस्सों को अधिक प्रभावित कर सकती है। अक्सर सामान्य जन इसका कारण समझ ही नहीं पाते। धीरे धीरे यह सारे शरीर में फेल सकती है, ओर शरीर को वीभत्स रूप दे सकती है।
अधिकतर लोग यह नहीं जानते की मनुष्य ओर पशुओं से पोषण प्राप्त कर जीने वाले, ये
भूत प्रेत पिशाच जैसे छोटे छोटे कई परजीवी जिन्हे नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता, शरीर में घुस गए हें। उसकी मादा ने अंडे दिये हें, जो ऊपरी त्वचा के खुजलाने से नाखूनों के माध्यम से शरीर के दूसरे अंगों तक खुजला-खुजला कर पहुचाए जा रहे हें। उन अंडों से निकले परजीवी वयस्क होकर आगे पूरे शरीर में फेल कर अपनी संतानों को बढ़ाते रहते हें। कुछ परजीवी कपड़ों चादरों बिस्तर में गिर कर नए स्थानो की तलाश भी करते रहते हें।
यह एक प्राचीनतम रोग है, यह रोग केवल मनुष्यों में ही नहीं स्तनधारी पशुओं ओर कुत्तों-बिल्लियों में देखा जा सकता है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी स्त्री पुरुष इससे प्रभावित हो सकते हें। केवल बाहरी त्वचा(चमड़ी) पर ही नहीं पुरुषो ओर महिलाओं के गुप्तांगों के अंदर बाहर भी रहकर खुजली करते ओर नए स्थान तलाशते रहते हें।
जिस प्रकार लकड़ी को धीरे धीरे घुन लगती है उसी प्रकार से शरीर में अति छोटे सुरंग जैसे बिल बना कर ये प्रवेश करते हें, त्वचा के नीचे त्वचा की सबसे बाहरी परत(कोर्नियम) में जाकर मादा अंडे देती है। तीन से 10 दिनों में उनसे लार्वा परिपक्व होकर फिर बच्चे निकालकर फेलते रहते हें। देखें चित्र
त्वचा के बाहर भीतर उनके कारण बने चकत्ते में छुपे दो सप्ताह के जीवन चक्र वाले ये परजीवी, छह पैर वाले लार्वा आठ पैरों के nymphal ओर अंडे अपनी उपस्थित से ओर एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया या खुजली पैदा करता है। जो संबन्धित व्यक्ति को खुजलाने पर मजबूर कर देता है, ताकि उसके नाखूनो के सहारे शरीर के अन्य भागों तक पहुँच सकें।
धीरे-धीरे त्वचा के बड़े भाग पर अतिक्रमण कर, पीड़ादायक खुजली (विशेष रूप से रात में) जिससे त्वचा को गंभीर क्षति पैदा करते हें जिससे एक्जिमा भी हो जाता है।
विशेष निदान के लिए परजीवी या उनके अंडे और खोजने के लिए संभावित क्षेत्र से त्वचा खरोचकर, नमूने को माइक्रोस्कोप की मदद से देखे जाता है। या डर्मोस्कोपी की जाती है।
साधारणतयः स्कबीज़ चर्म रोग से मृत्यु हो जाना सुनने में नहीं आता। लेकिन अगर छोटे बच्चों को यह त्वचा रोग हो तो इनमें प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटि) की कमी होने से ओर पस पड़ने से, संक्रमण रक्त में जाने (सैप्टीसीमिया) से बुखार होने पर यह घातक हो सकता है।
चिकित्सा
इस स्केबीज़ चर्म रोग के इलाज के लिए कुछ ध्यान देने योग्य बातें ये भी हैं, घर में एक भी सदस्य को स्केबीज़ होने पर पूरे परिवार के सभी सदस्यों का एक साथ इलाज होना जरूरी होता है। एक-एक कर चिकित्सा में घर से कीट नष्ट न होकर बार-बार अन्य को संक्रमित करता रहता है। क्योंकि शरीर इनके विरुद्ध एन्टी बॉडी नहीं बनाता।
आयुर्वेद में इन्हे नष्ट करने हेतु महामरिच्यादी तैल गंधक तैल, बड़े प्रभाव शाली है। केवल नीम का तैल लगते रहने से भी रोग ठीक हो जाता है। सारे शरीर की त्वचा [चमड़ी] पर इसे लगाना बहुत ज़रूरी है। अगर मरीज़ इस केवल उन जगहों पर ही लगाएंगे जहां पर ये दाने हैं तो बीमारी का नाश नहीं हो पाएगा। 24 घंटे के अंतराल पर यह दवाई ऐसे ही शरीर पर दो तीन बार लगाई जाती है। रोज एक बार नहा लिया जान जरूरी है। ओषधि का शरीर पर हमेशा [24 घंटे] लगे रहना बहुत ज़रूरी है।
संक्रमण अवस्था में नीम के पत्ते पानी में उबालकर इस पानी से पूरा परिवार रोज नहाये ओर पहनने के वस्त्र, चादर,तकिया गिलाफ, आदि रोज धोये, जो कपड़े रोज न धिये जा सकें उन्हे धूप में रखना चाहिए, इससे कीट नष्ट होते हें।
रोग पुन: न हो इसके लिए सबसे अधिक जरूरी है की प्रतिदिन नहाया जरूर जाए। बाहर काही से भी आने के बाद, किसी भी संपर्क के बाद, हाथ पैर,धोने की आदत बनाई जाए, नाखून न बडने दिये जाए, ताकि आए कीट फैलने की संभावना न रहे।
यदि रोग अधिक नाही है तो केवल इतने से ही ठीक हो जाएगा। पर यदि बड़ चुका हे तो खाने की आयुर्वेदिक दवाई भी चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए।
एलोपेथि में भी इस बीमारी के पूर्ण इलाज के लिए दवाईयां उपलब्ध हैं। इन का प्रयोग आप अपने चिकित्सक से मिलने के पश्चात् कर सकते हैं। इस संक्रमण में डाक्टर परमेथ्रिन नामक दवा (स्केबियोल) इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। यह सफेद रंग का एक घोल होता है। जिसे प्रभावित क्षेत्र और गले के नीचे-नीचे शरीर के सभी भागों में लगाया जाता है।
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