स्वस्थ जीवन शेली के साथ स्वस्थ आहार कार्यक्रम भी वृद्धावस्था की तकलीफ़ों से बचाता है।
इस अवस्था में एक स्वस्थ जीवन शेली के साथ स्वस्थ आहार कार्यक्रम ही वृद्धावस्था की तकलीफ़ों से बचाती है।
इस अवस्था में घी, तैल से बनी चीजें जैसे पूड़ी, पराँठे, छोले भठूरे, समोसे, कचौड़ी, जंक फ़ूड, चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक का ज्यादा सेवन सेहत के लिए घातक है, इनका अधिक मात्रा में नियमित सेवन ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रोल, मधुमेह, मोटापा एवं हार्ट डिजीज का कारण बनता है, तथा पेट में गैस, अल्सर, ऐसीडिटी, बार बार दस्त लगना, लीवर ख़राब होना जैसी तकलीफें होने लगती हैं, इनकी बजाय खाने में हरी सब्जियां, मौसमी फल, दूध, दही, छाछ, अंकुरित अनाज और सलाद को शामिल करना चाहिए जो की विटामिन, खनिज लवण, फाइबर, एव जीवनीय तत्वों से भरपूर होते हैं और शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैंl
प्रात 5 से 6 बजे
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उषा पान कम से कम दो गिलास पानी पिये।
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प्रात: 7 बजे
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औषधि चाय, प्रज्ञापेय, फल का रस या दूध, छाछ, आदि अपनी प्रक्रति एवं रोगनुसार लें।
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प्रात: 9 बजे -
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नाश्ता- अंकुरित अनाज, ऋतु अनुसार मोसमी फल, दलीया, उपमा, खमण, सत्तू, लापसी, आदि
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11 से 12 बजे
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भोजन - चपाती (मोटे आटे की) दाल, चावल, दलिया, हरी सब्जी, सलाद (प्याज,टमाटर,ककड़ी, मुली, नीबू आदि) दही या छाछ,आदि ।
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दोप 3 से 4 बजे
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फल- पपीता, केला, सेव, अमरूद, आदि एवं मोसमी फल, 500 ग्राम न्यूनतम, परमल, खँखारा, चने(भुने) , फलों का रस,
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7 बजे साय
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रात्री भोजन- फल, दूध, दाल-दलिया+ हरी सब्जी, चपाती,
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रात्री 9 से 10
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गरम दूध मलाई रहित,
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उपरोक्त तालिका के अनुसार सामान्य व्यक्ति (निरोगी) दिन भर में 10-15 ग्राम शक्कर, 5 ग्राम नमक, 15- 25 ग्राम देसी घी-तैल, आदि का प्रयोग करें तो लाभदायक रहता हें। माह में एक दो बार सामान्य से हटकर खीर पूरी पकवान कम मात्र में हानी कारक नहीं होता। डाईविटीज के रोगी को चिकित्सक के अनुसार मात्रा में उपरोतानुसार समय पर ही भोजन व्यवस्था करना चाहिए। बाज़ार की बनी हुई कचोरी समोसा आदि का सेवन न करें क्योंकि व्यापारियों द्वारा एक ही तैल घी को चाहे वह कितना भी जल जाए, का प्रयोग किया जाता रहता हे इससे खराब कोलेष्ट्रोल आदिक बनाता हे और रक्तचाप- हृदय के रोगों को आमंत्रित करता है ।
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अलसी का चूर्ण (2 से 5 ग्राम तक) अच्छे कोलेष्ट्रोल को बडाता है, इससे धमनियों में बाधा नहीं होती। डाईविटीज के रोगी इस चूर्ण में सेकी हुई मेथी को मिलकर कर सकते हें। किसी विशेष रोग के रोगी चिकित्सक से परामर्श कर अन्य चीजों को प्रयोग कर सकते हें।
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कष्ट
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फल, एकोषधि
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सामान्य ओषधियां जो हानी नहीं पहुंचाती।
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कब्ज में
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अमरूद, पपीता, आवंला, हरड़, गाय का घी, मुली, पालक, लोकी,
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अभयारिष्ट, त्रिफला घृत, पञ्च सकार चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण,
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अम्लपित्त, जलन, खट्टी डकार
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इलायची, लोंग, नीबू, फलाहार, भूखा न रहना, अधिक या गरिष्ठ भोजन त्याग,
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अविपत्तिकर चूर्ण,
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पेट में दर्द
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अदरक, सोंठ, पोदीना, लहसुन, हिंग,
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हिंग्वाष्टक चूर्ण,
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वमन/ उल्टी जी मचलाना
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इलायची (छिलका सहित),
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मयूर पुच्छ भस्म (मोर पंख चंद्रिका लोहे तवे पर जलाकर बनी भस्म, अमृत धारा (पीपरेंट+ कपूर+ अजवायन का सत)
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पेचिश,दस्त,
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कच्चा बिल्व फल चूर्ण, कुटज चूर्ण, आम की गुठली का चूर्ण, दही, छाछ, केला, साबुदाना,
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हिंग्वाष्टक चूर्ण, कुटजा रिष्ट, वत्सकादी घन वटी, लघु गंगाधर चूर्ण,
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सर्दी जुकाम
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तुलसी, सोंठ, पीपल, कालीमिर्च का चूर्ण या काढ़ा( इन सभी को मिलाकर भी प्रयोग कर सकते हें, शहद,
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अमृतारिष्ट, सुदर्शन चूर्ण,
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मूत्र में जलन
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नारियल पानी, लोकी का रस, अनार रस, मुली का रस, तरबूज, ककड़ी,
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क्षार पर्पटी(पानी के साथ), गोक्षुरादी गुग्गलु,
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खांसी
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तुलसी, पान का रस, शहद,
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खदिरादी वटी, लवंगादि वटी, कंट्कार्यादी अवलेह,
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