Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

Benefits of Drinking Water.

मधुर जलपान ३०/०६/१६ 
शक्कर(चीनी) मिले मीठे जल को पीने से कफ बढता है, और वात घटती है| मिश्री युक्त जल दोष नाशक, और शुक्र वर्धक होता है| गुड युक्त जल मूत्र क्रच्छ दूर करने वाला, और पित्त्कारी होता है| परन्तु पुराने गुड से युक्त जल पित्तनाशक और पथ्य है| शहद युक्त जल त्रिदोष नाशक होता है|

विमर्श 
वात और पित्तज रोग अर्थात जिनमे वेदना, जलन जैसे लक्षण होते हें, में शकर मिला मीठा जल लाभदायक दर्द और जलन को शांत करता है| गुड वाले मीठे जल से मूत्र की कमी दूर हो जाती है, मूत्र खुल कर आता है| जहाँ नया गुड जलन दाह उत्पन्न कर सकता है पर पुराने गुड का पानी उसे शांत कर देता है। शहद युक्त पानी सभी दोषो को सम बना कर लाभ देती है।    
मीठे पानी से रक्त में ग्लूकोज जल्दी पहुँचता है इससे एनर्जी या शक्ति का संचार शीघ्र होने से उसकी कमी से होने वाले दर्द, जलन, में आराम मिलने लगता हे। पानी की कमी या निर्जलीकरन  से वात और पित्त की उत्पन्न समस्याएं तत्काल दूर होने से कष्ट मिट जाता है। 

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जल नेती (नाक से पानी पीना) 

29/06/16
उष: पान के समय अनेक व्यक्ति नाक से पानी पीते है, यह हितकर नहीं, परमात्मा ने नाक श्वास, गंध लेने के लिए बनाई है| जलपान के लिए मुहं दिया है| नाक से पानी पीने से श्लेष्मा (नाक का गन्दा मल) पेट में चला जाता है| 
परन्तु जिन्हें योगिक क्रिया जलनेति और सूतनेती का अभ्यास है, जो नित सात्विक भोजन करते हों, सात्विक वातावरण में निवास करते हों, और निरोगी हों वे प्रात: (रात्री के अंतिम प्रहर में) नासिका से उष:पान कर सकते हें| नासिका से उष:पान करने से दृष्टि गरुड़ सद्रश्य हो जाती है|
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उष:पान (प्रात:पानी पीना)
प्रात: उठकर सबसे पाहिले पानी पीना हितकारी है| 
परन्तु कफ प्रकोप, मन्दाग्नि, और नव-ज्वर होने पर उष:पान नहीं करना चाहिए|
प्रात उठकर पाहिले कुल्ले करें, फिर पानी पियें| इससे आंत्र मल और मूत्राशय की सफाई ठीक से होते है| 
उष:पान से अर्श, शोथ, संग्रहणी, ज्वर, उदर रोग, मलावरोध, मेद-वृधि, मूत्र रोग, पित्त रोग, शिर दर्द, आदि ठीक होते हें| 
परन्तु जिन्हें, नूतन ज्वर, कफ-प्रकोप, आम-वृधि (अपचित मल आना) तीव्र (एक्यूट) वात व्याधि, श्वास, कास(खांसी), क्षय (टीवी,), हिचकी, अग्निमांध, अतिसार, पेचिश, नया सर्दी-जुकाम,  और कफ प्रकोप हो तो  प्यास लगने पर ही पानी पीना चाहिए|
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जल पान (पानी पीना) निषेध 
शोच के बाद, सूर्य ताप या धुप से लोटें के बाद, बिना विश्राम किये, योग, व्यायाम या शारीरिक श्रम के बाद, एवं भोजन के प्रारम्भ में जलपान नही करना चाहिए|
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वर्षा ऋतू में हम कैसे रखें अपना खयाल - क्या कहते हें हमारे आचार्य!
वात सहित त्रिदोष नाशक द्रव्य का प्रयोग लाभकारी होगा| 
आचार्य चरक ने इसके अंतर्गत वात प्रकोप करने वाले रुक्ष खाद्य यथा सत्तू , दिन में सोना, ओस में घूमना, बेठना, नदी का जल, व्यायाम, धुप का सेवन, मैथुन आदि के लिए निषिद्ध(मना) किया है| 
इस ऋतू में खाने पीने वाले पदार्थों में अम्ल और लवण रस वाले अधिक लाभकारी होंगे| अन्य मधुर रस के स्थान पर मधु (शहद), का प्रयोग भी लाभकारी है, क्योंकि यह शीतल और लघु पाकी होने से वात की अधिक वृद्धि नहीं होने देता|
आचार्य चरक ने इस काल में गर्म कर शीतल किया हुआ पानी पीने का निर्देश दिया है|
अन्य निर्देशों में प्रहर्षण( देह को घिसना या रगड़ना), उद्वर्तन(उबटन), स्नान(नहाना), गंध धारण (चन्दन हरिद्रादी लेप), सुगन्धित पुष्प माला आदि प्रयोग, के साथ हल्के पवित्र वस्त्र धारण, कर क्लेद रहित स्थान पर निवास के लिए कहा है| 

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प्रभात संदेश
अल्प (कम) जल पान,
अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि,शोथ,क्षय, मुहं में पानी आना, उदर रोग, नूतन ज्वर, मधुमेह,  में थोडा थोडा, पानी प्यास होने पर पीते रहना चाहिए, वमन वेग(उल्टी) आने पर एक साथ अधिक पानी पीने से वमन नहीं रुकती| 

प्रभात संदेश-  
उष्ण जल पान - गरम पानी 
प्रमेह, डाइविटीज, ववासीर, जुकाम, वात रोग, अफरा, मलावरोध,दस्त लगने पर,नव ज्वर, गुल्म, पेटदर्द, मन्दाग्नि, अरुचि, नेत्र रोग, संग्रहणी,श्वास, कास, हिचकी, और कफ रोग, आदि होने पर गरम पानी पीना लाभकारी होता है|

प्रभात संदेश- 
शरीर में कोई रोग हो तब तक पोष्टिक ओषधि (ताकत की दवा) देने से कोई लाभ नहीं| 

पहिले रोग दूर करने का प्रयत्न करें, सुपाच्य या आसानी से पचने योग्य भोजन दूध आदि से पाचन ठीक करेंफिर अग्नि बल बड़ने पर (भूख लगने पर) ही पोष्टिक ओषधि-आहार देना लाभ कारी होता है|

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स्वास्थ है हमारा अधिकार १

हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

चिकित्सक सहयोगी बने:
- हमारे यहाँ देश भर से रोगी चिकित्सा परामर्श हेतु आते हैं,या परामर्श करते हें, सभी का उज्जैन आना अक्सर धन, समय आदि कारणों से संभव नहीं हो पाता, एसी स्थिति में आप हमारे सहयोगी बन सकते हें| यदि आप पंजीकृत आयुर्वेद स्नातक (न्यूनतम) हें! आप पंचकर्म चिकित्सा में रूचि रखते हैं, ओर प्रारम्भ करना चाह्ते हैं या सीखना चाह्ते हैं, तो सम्पर्क करेंं। आप पंचकर्म केंद्र अथवा पंचकर्म और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे अर्श- क्षार सूत्र, रक्त मोक्षण, अग्निकर्म, वमन, विरेचन, बस्ती, या शिरोधारा जैसे विशिष्ट स्नेहनादी माध्यम से चिकित्सा कार्य करते हें, तो आप संपर्क कर सकते हें| सम्पर्क समय- 02 PM to 5 PM, Monday to Saturday- 9425379102/ mail- healthforalldrvyas@gmail.com केवल एलोपेथिक चिकित्सा कार्य करने वाले चिकित्सक सम्पर्क न करें|

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