Without
any warning, attack in one night, the terrible disease- Gout
or Vata-Rakta .
बिना
चेतावनी के एक रात में दर्द से आने वाला भयानक रोग, - गाउट या वातरक्त|
बिना
चेतावनी के एक ही रात में पैरों की अँगुलियों में सूजन, और तेज दर्द के साथ अचानक
होने वाला रोग जो वात रक्त या गाउट हो सकता है, यह पुरुषों में 30 वर्ष की आयु के
बाद युवावस्था में, और प्रोढ़ महिलाओं होता है| वातरक्त के प्रत्येक पांच रोगियों
में रोगी पुरुष 4 और स्त्री 1 होती है|
रक्त की
जाँच करने पर रक्त में यूरिक एसिड बढ़ा [सामान्य दर = पुरुष- 3.0 तो 8.5 mg/dl और
महिला=205 से 7.0 mg/dl] हुआ पाया
जाता है| समान्य स्थिति में यह मूत्र के साथ निकल जाया करता है, परन्तु अधिक बढ़ने
और निकल न पाने के कारण जोड़ में जमा होकर किसी दिन अचानक कष्ट का कारण बन जाता है|
समान्यत:
यह कष्ट या रोग किसी भी पेथी के चिकित्सक की चिकित्सा से ठीक भी हो जाता है,
परन्तु इसे ठीक हो गया समझने की भूल करना और चिकित्सा, परहेज बंद कर देने पर अधिक
कष्ट देने वाले रूप में आता ही है|
प्रारम्भिक
स्तर पर की गई यह भूल भारी पड़ती है, और रोग विकरालता के साथ जीवन भर के लिए जुड़
सकता है|
यह रोग न
हो इसलिए इसके बारे में जान कर सावधान रहना, और होने पर पूरी चिकित्सा करना, बार
बार रकत में यूरिक एसिड लेबल परिक्षण करवाते रहना ही बुद्धिमानी है|
वातरक्त (Gout) क्या है?
आयुर्वेद
चरक सूत्र में हम देखें तो पायेंगे की हजारों वर्ष पूर्व अनुभव सिद्ध निदान वर्त्तमान
ने भी प्रमाणित किया है|
आज विश्व
के एक बडी आबादी को जिनमें बुजुर्ग अधिक हैं, वातरक्त (गाउट) नामक यह रोग कष्ट दे
रहा है| यह भी गठिया (arthritis) के सामान
परन्तु उससे अधिक दर्द वाला रोग है|
वात रक्त
बिना चेतावनी के अचानक एक ही रात में
सूजन, और तेज दर्द के साथ प्रकट हो सकता है|
वात रक्त पुरुषों में अधिक 4:1 (महिलाओं की
तुलना में) पाया जाता है| पुरुषों में 30 वर्ष की आयु के बाद पर महिलाओं में अक्सर
रजोनिव्रत्ति (menopause) के बाद होता देखा गया है|
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Vatrakt (gout) Nidaan |
आधुनिक
चिकित्सा क्षेत्र में गाउट एक प्रकार का चयापचय गठिया (metabolic
arthritis) के रूप में जाना
जाता है। इसमें जोड़ों में दर्द, सूजन, लालिमा और त्वचा नाजुक अनुभव होती है| इस
रोग में रुक-रुक कर कुछ कुछ अंतर से तेज दर्द उठता है| समान्यत पैर के जोड़ों से
प्रारम्भ होता है|
अधिकांशत:
रोगियों में वातरक्त (गाउट) का दर्द पैर के अंगूठे में महसूस होता है, जो बड़े पैर
की अंगुलीयों से बढकर टखने आदि, अन्य जोड़ों तक पहुँच जाता है|
वात रक्त रोग
अत्यधिक दर्द वाला होता है| प्रभावित भाग को छूने या किसी चीज के टकराने से भी
अधिक तकलीफ होती है|
पुराना (chronic) वातरक्त (gout) प्रभावित भाग में क्षेत्र में अधिक दर्द वाली सूजन पैदा
कर देता है| इसको आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में Tophus [नोट नीचे] कहा
जाता है। यह यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा होने से बनते हें|
यह टोफस यदि
अधिक बड़ा हो जाता है तो शल्य चिकित्सा द्वारा हटाया जा सकता है| ये यूरिक एसिड के क्रिस्टल गुर्दे में भी जमा हो गुर्दे की पथरी
बना सकते हैं|
वातरक्त
रोग (Gout) का आधुनिक निदान (कारण) वर्तमान शोध कार्यों के बाद रोगी के रक्त
परिक्षण में पाया गया की यूरिक एसिड की मात्रा अधिक होने से एसा होता है|
शरीर में
प्युरिन (डीएनए का एक रसायन जो ओक्सीडेशन पर यूरिक एसिड बनाता है) नाइट्रोजन का प्रमुख आधार है| प्युरिन के दो तत्व एड्नाइन और गुआनिन शरीर की
मेटाबोलोक क्रिया करते हें| कुछ एंजाइम (xanthine) के
आक्सीकरण से प्युरिन से यूरिक एसिड बनता है, जो मूत्र के साथ त्याग दिया जाता है|
कुछ स्थितियों
में जब यह जमा होने लगता है, तब रक्त के साथ मिल जाता (hyperuricemia) है| यह यूरिक एसिड शरीर के कई हिस्सों में जमा होने लगती है| यह जोड़ों
में जमा होकर तेज दर्द और सूजन पैदा करती है|
निम्न
व्यक्ति तुलनात्मक अन्य के, अधिक वातरक्त से अधिक प्रभवित हो सकते हें|
1- जिनकी
आयु 30 वर्ष से अधिक है,
40 से 50 वर्ष आयु के पुरुष
इस रोग के लये अतिसंवेदनशील होते हैं|
2- महिलाएं विशेषकर रजोनिवृत्ति (मेनोपाज) के बाद 60 वर्ष आयु तकऔर
विशेषकर उनमें जिनके परिवार में यह रोग रहा हो, होने की अधिक सम्भावना होती है|
3- वजन का अधिक होना भी वातरक्त के लिए एक बड़ा
कारण है|
4- शराब का
व्यसन से भी अधिक यूरिक एसिड बनता है, जो जमा होता है|
5- अधिक
घी,तेल, चर्बी युक्त और अधिक मात्रा, या अधिक बार खाना इसका एक बड़ा कारण है|
6- किसी
अन्य रोग विशेषकर उच्च रक्तचाप के लिए, ली जाने वाली कुछ दवा से भी यूरिक एसिड बढ़ता
है|
वातरक्त
(गाउट) की चार अवस्थाएं (Stages)
I
st
– अलक्षणात्मक अवस्था- इस स्तिथि में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। केवल रक्त में यूरिक एसिड (hyperuricemia) जो रक्त की जाँच से ही ज्ञात होता है| इस स्तर पर अधिकांश लोगों को यह
पता ही नहीं होता की उन्हें वातरक्त (गाउट) हो सकता है|
II
nd
- तीव्र अवस्था (Acute
Stage)- वातरक्त की इस तीव्र स्तिथि प्रारम्भ में शरीर के
कुछ जोड़ों में से किसी में तीव्र दर्द होता है| लगभग 75% मामलों में दर्द पैर की अंगूठे
के जोड़ों शुरू होता है। क्रिस्टल कठोर स्तर को जोड़ों में जमा है। वातरक्त का
निदान आम तौर पर इस स्तर पर होता है|
III
rd
– अत्यायिक अवस्था (Intercritical)- इस सामान्य रूप अधिक कष्टकारी जीर्ण अवस्था कोई लक्षण महसूस नहीं होते|
यूरिक एसिड जमा होकर प्रारंभिक टोफी कर सकते हैं| यह अवस्था में दो से छह महीने तक
रह सकती है|
इस अवस्था
में कई रोगी भ्रमित होकर सोचते हें की वे ठीक हो गए, और इसे चमत्कार समझ चिकित्सा
बंद कर देते हें|
IV
th-
वातरक्त की जीर्ण अवस्था (Chronic Stage)- अत्यायिक अवस्था को जीर्ण अवस्था में पहुँचने में दो से छह महीने लगते
हें| यह सबसे गंभीर स्तिथि है| इसमें
जोड़ों में यूरिक एसिड जमने से बड़े टोफी बन जाते हें इससे जोड़ों में जबरदस्त दर्द,
लालीमा, सूजन हो जाती है|
इस अवस्था
में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) कर टोफी को हटाने की जरुरत होती है|
वातरक्त या
गाउट की आयुर्वेद एवं आधुनिक दोनों के मत अनुसार रोकथाम
वातरक्त या
गाउट बड़ने से रोकेने के लिए अच्छा आहार वह है, जिससे प्युरिन को कम किया जा सके|
इसके लिए
जरुरी है की निम्न खाद्य से परहेज करना चाहिए| यही बात आयुर्वेद के आचार्यों ने भी
कही है|
समुद्री
खाद्य पदार्थ,
मछली, झींगे, केकड़ों,
आदि, विशेष रूप से प्राणियों के यकृत, दिल,
जीभ और गुर्दे आदि अंगों का मांस| मांसरस (सोरबा), कॉफी और कोको, चाय,
सब्जियां जैसे पालक, मटर और सेम, ब्रेड, केक, पेस्ट्री,
लड्डू-वाफला, या अधिक घी तेल चर्बी वाले खाद्य, शराब,और विशेष रूप से बियर, टोफू
(सोयाबीन), सत्तू, को छोड़ ही दिया जाना चाहिए |
विरुद्ध
आहार, दिन में सोना, आग या धुप में तापना और घूमना, मैथुन, भोजन की मात्रा कम करें,
घुटनों पर दवाव जिन कार्यो जैसे साइकल,घोड़े, ऊंट जैसी सवारी
झटके देने वाले वहां जैसे मोटर-सायकल, से बचना चाहिए, तैराकी और रस्सी कूद, खेल न
खेलें|
धुप, ताप,
गर्म मोसम में अत्यधिक सफ़र से वात बढ़कर
दर्द अधिक पैदा करती है|
मैथुन से
बचें, मल-मूत्र जैसे प्राकृतिक वेग कभी न रोकें
पथ्य
अर्थात क्या खाए?
अजवायन, स्ट्रॉबेरी
और ब्लूबेरी, चेरी, सेव, जों, सांठी चावल,गेहूं मुंग,मोठ, मकोय, पोई, बथुआ,करेला,
चोलाई, परवल, लोकी, चीज़, गो दुग्ध, जैसे खाद्य ले सकता है| पानी अधिक पीना, अल्प
भोजन, हितकारी है|
लाभकारी
आयुर्वेदिक ओषधियाँ|
अजवाइन या अजमोद,
अरंडी तेल, हरड (Harad
Chebulic), निशोथ, गोकुलान्ता पत्र (Hygrophila spinosa), तुलसी, गिलोय, आवंला, ग्वारपाठा,
वात रक्त
के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा सूत्र- Ayurvedic Line of Treatment:
आधुनिक चिकित्सा में जहाँ केवल दर्द निवारक,
स्टिरोइड, या सर्जरी की जाती है, की तुलना में आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा
निश्चित रूप से एक अच्छा विकल्प है| योग आसन और व्यायाम द्वारा जोड़ों में लचीलापन
लाया जा सकता है|
अच्छा आहार
और स्वस्थ्य जीवन शैली रोग की रोकथाम, और लबे समय तक स्वस्थ रखने हेतु प्रभावी
उपचार,
है| इससे रक्त का यूरिक एसिड सामान्य रखा जा सकता है|
वात
रक्त की आयुर्वेदिक चिकित्सा शोधन (CLEANSE), मेटाबोलिक संतुलन बनाने, राहत (RELIEVE) और शारीरिक-मानसिक बल देकर, धातुओं का सम्यक परिपोषण कर, के सिधान्तों
पर की जाती है|
आयुर्वेदिक
चिकित्सा में कायाकल्प करने वाली(rejuvenative), रोग
प्रतिकारक क्षमता बढाने या सबल करने वाली, वात शामक, शोथ(सूजन) हर, प्राक्रतिक
दर्द नाशक, अपक्षय रोकने वाली (antidegenerative), ओषधियों
का प्रयोग कर जोड़ों में लचीलापन,और सुधार लाकर लाभ देतें हैं| यह चिकित्सा बिना
कोई हानि पहुंचाए लम्बे समय तक दी जा सकती है|
पंचकर्म
चिकित्सा रोग को आगे बडने से रोक मेटाबोलोज्म ठीक करने से लेकर विषाक्त पदार्थ
(जैसे यूरिक एसिड) को हटाकर (detoxfy) कर शरीर का शोधन (सफाई)
करती हैं|
जलोका आदि
से रक्त मोक्षण के माध्यम से जोड़ों में संचित दूषित रक्त और यूरिक एसिड को निकलना
एक तात्कालिक राहत देने वाली चिकित्सा है|
इसमें आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के साथ-साथ
पंचकर्म चिकित्सा प्रक्रियाओं द्वारा स्नेहन (मालिश), पत्रपिंड स्वेद, चूर्ण पोटली स्वेद, आदि से दर्द और सूजन में लाभ देकर, राहत
और जोड़ों में लचीलापन लाया जाता है| यह सब
कार्य बिना किसी दुष्प्रभाव के, प्राकृतिक विधि से संपन्न होता है| रोग अधिक होने
पर बार यह प्रतिवर्ष करना आवश्यक होता है|
सभी
प्रयासों का उद्धेश्य यूरिक एसिड का स्तर नियंत्रित किया जा सके, ताकि दोबारा रोग
आक्रमण न होने पाए, यह सुनिश्चित करने हर्बल ओषधियाँ, स्वस्थ आहार और अच्छी जीवन
शैली के लिए प्रेरित किया जाता है|
सामान्यत:
यही चिकित्सा गठिया (आमवात) में भी की जा सकती है|
आधुनिक
चिकित्सा में NSAIDs (Non-steroidal
anti-inflammatory drugs) और स्टियोरोइड, दर्द निवारक, आदि का
प्रयोग होता है, अधिकांश ये दवाएं कुछ देर का आराम जरुर देती है परन्तु पेट की
खराबी, हृदय की समस्या, खून बहने की समस्या (bleeding), लीवर
और गुर्दे की क्षति, कान में आवाजें, मतली,
उल्टी, दस्त, जैसी समस्याएं जो बुजुर्गों में अधिक मिलतीं हें जैसे दुष्प्रभावों पैदा करतीं हैं|
साध्यासाध्यता – प्रारम्भिक स्तर पर नियंत्रण आसान होता है,
तृतीय अवस्था में कष्ट पूर्वक, और चतुर्थ अवस्था का वात रक्त याप्य, दुसाध्य या
असाध्य श्रेणी का हो सकता है|
http://healthforalldrvyas.blogspot.in/2013/10/gout.html?spref=fb
नोट - a deposit of crystalline uric acid and
other substances at the surface of joints or in skin or cartilage, typically as
a feature of gout.
यह, गाउट गठिया में
शारीर के जोड़ों,
त्वचा या उपास्थि की सतह पर क्रिस्टलीय यूरिक एसिड और अन्य पदार्थों का जमाव होता
है|
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