खुजली
– जब कोई रोग न हो तब भी चल सकती है!
“दिल है की मानता नहीं, खुजलाने के सिवा कुछ
जानता नहीं” एसा इंसान ही नहीं लगभग सभी प्राणियों को अक्सर खुजलाने की इच्छा होती
है| बन्दर, कुत्तों पक्षियों आदि को तो खुजलाते देखा भी होगा|
खुजली,
कंडू, या प्रुराइटिस (pruritus) शरीर की त्वचा (Skin) पर होने वाली एक विशेष
अनुभूति है, जिसे करने में सुख का अनुभव होता है, इसी लिए खुजली करने से- . .
‘दिल है की . . . मानता नहीं . . .’|
खुजली
जब शरीर के किसी भी भाग पर होने लगती है, तो हमारा हाथ जाने-अनजाने में ही वहां चला
जाता है, और उस जगह को खुजलाने लगता है, परन्तु जब वहां खुजलाया जाता है, तो खुजली
और लगातार बढती ही जाती है, और कभी कभी तो खुजला-खुजलाकर चमड़ी छील ली जाती है और
खून भी निकलने लग सकता है, फिर भी खुजली है की बंद होने का नाम ही नहीं लेती| और
तो और कभी कभी यह खुजली तो शरीर के गुप्तांग जैसे भाग के पास भी होती है, तो इसके
कारण बड़ी शर्मिंदगी उठाना पढ़ जाती है|
परतुं
आपको जान कर आश्चर्य होगा की अधिकांश मामलों में (केवल कुछ
स्केबीज, एक्जीमा, एलर्जी आदि को छोड़कर), त्वचा या शरीर
कहीं भी होने वाली यह खुजली किसी भी रोग आदि से नहीं होती, त्वचा बिलकुल सामान्य
या निरोगी होती है, फिर भी खुजली चलने लग सकती है|
रोग
के विना खुजली क्यों चलती है?
खुजली के
विषय में समझने से पाहिले हमको दर्द के बारे में भी समझना होगा|
दर्द जो एक
कष्ट है, और कारण हट जाने पर या पूर्ण ठीक हो जाने पर दोबारा नहीं होता, जबकि
खुजली बार-बार होती ही रहती है|
दर्द क्या है?
शरीर के
किसी स्थान पर किसी भी कारण जैसे कीड़े के काटने, जलने, छिलने, कटने, चोट आदि से
दर्द होता है, दर्द के होने से वहां एक प्रकार का प्रोटीन ‘हिस्टामाइन” रसायन निकलने
लगता है, यह मस्तिष्क को चोट आदि का दर्द
होने की जानकारी पहुंचता है, सूचना होते ही मस्तिष्क, उसके हाथ को, दर्द का कारण
पता लगाने और मिटाने वहां पहुंचाता है, यह सब सेकेंड्स से भी कम समय में होता है|
हाथ उस दर्द के कारण कीड़े आदि को तुरंत दूर करने की कोशिश करता है, ताकि कष्ट मिट
जाये| इसी के साथ हिस्टामाईन वहां रक्त कोशिकाओं को एकत्र करता है, ताकि संक्रमण
से रक्षा हो, इससे इन रक्त कोशों के एकत्र होने से सूजन या लालिमा दिखाई देने लगती
है|
यदि दर्द
का कारण सामान्य हुआ तो कारण हटाते ही दर्द ठीक हो जाता है, और हिस्टामाईन निकलना
बंद हो जाता है, प्रक्रिया रुक जाती है|
खुजली में
भी यही होता है, पर कोई कारण न मिलने पर मष्तिष्क भ्रम में पड़ा रहता है इससे हिस्टामाईन
निकलना बंद नहीं होता, और आदान प्रदान की प्रक्रिया भी बंद नहीं होती, और खुजली
बार बार चलती ही रहती है| ऐसा हिस्टामाईन निकलने से मस्तिष्क को गलत सन्देश पहुचने
पर प्रतिक्रिया के कारण होता है|
अब प्रश्न
उठता है की जब कोई सीधा कारण नहीं होता तो हिस्टामाईन निकलता ही क्यों है?
इसका उत्तर
पाने के लिए हमको कई बातों पर विचार करना होगा|
वास्तव में
कारण तो रहता है जिन पर सामान्यत: हमारा ध्यान जाता ही नहीं|
कई लोग जब
इकट्ठे हों और अचानक किसी एक को खुजली करते दूसरे देखते हें, तो उनका शरीर भी
अज्ञात खतरे कारण हिस्टामाईन रिलीज करने लगता है, उसी प्रकार से जैसे किसी एक आंख
के रोगी की लाल आंख देख कर दूसरे को भी आंख भी लाल होती है, एक को रोता या दुखी देख
दूसरा भी रोता या दुखी होता है| कुछ को सोता देख अन्य को भी नींद आती है, पसंदीदा
खाना सामने देख भूख लगती है आदि|
अमरीका में
हुए एक शोध में यह सिद्ध हुआ है,-
इस शोध में
बिना कोई सुचना दिए एक समूह को अनावश्यक बैठाया गया, कुछ लोग खुजलाने को कहा गया, थोड़ी देर बाद ही पाया
गया की धीरे धीरे सभी लोग खुजलाने लगे थे| और जैसे ही उन्हें सचेत किया गया वे सभी
चोंक गए, उन्हें पता ही नहीं था की वे कब खुजलाने लगे|
हम जिस
प्रकार के वातावरण में रहते हें, उस वातावरण का असर भी हिस्टामाईन निकलने का काम
करता है| हमारे चारों तरफ सूक्ष्म जीवाणु, धूल के कण, आदि उपस्थित होते ही है,
गर्मी आदि से पसीना आना, या सर्दी से त्वचा सिकुड़ने से खुश्की होना सामान्य बात
है| एसा होने पर भी त्वचा पर स्थित संवेदी तंत्रिकाएं शरीर पर आये ऐसे तत्वों को
हटाने हेतु हिस्टामाईन रिलीज करने लगती हैं. और हाथ खुजलाकर उसे हटाने की कोशिश
करने लगता है, और चूँकि वह उन्हें हटा नहीं पाता, इससे खुजली बंद नहीं होती, पर मष्तिष्क
को राहत लगती है इससे वह लगातार खुजलाने की सलाह देता ही रहता है|
इसमें एक
बात और जानने की है, वह यह की दर्द और खुजली दोनों ही त्वचा स्थित तंत्रिका (Nerve) से संवेदनाये केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) तक लाती और पहुंचती है, और उसके अनुसार काम करती हें, परन्तुं वे आदेश, मस्तिष्क
के अलग अलग भागों से लेतीं है|
दर्द को
मस्तिष्क दूर करने का प्रयास करता है, इसके लिए वह हाथ से कीड़े आदि को दूर करवा कर
कर दर्द निवारक हिस्तामाइन देकर कार्य समाप्त करता है, वहीँ इसके इसके विपरीत
खुजली शरीर को सुख देने हेतु की जाती है| इसीलिए दर्द दूर होने पर वह दोबारा नहीं
होती, जबकि खुजलाकर सुख देने का प्रयास निरंतर चलता ही रहता है, और फिर पूर्व में
चाहे कोई रोग न हो पर लगातार खुजलाते रहने से, त्वचा फटती छिलती है और संक्रमण
होता है और कोई न कोई चर्म रोग होने की संभावना बड सकती है|
खुजली को सबसे
क्षुद्र रोग (smallest
disease) के रूप में माना जाता है, इसलिए सामान्यत: इस पर इतना
ध्यान नहीं दिया जाता फिर भी कुछ के लिए यह एक बड़ी परेशानी हो सकती है| इसलिए इस
प्रकार की खुजली को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में हिस्टामाइन-खुजली कहा है|
चिकित्सा
इस प्रकार
की खुजली होने पर मष्तिष्क को समझाना होगा की गलत सन्देश है|
एलर्जी,
संक्रमण, सिर के जूँ, दाद (Ringworm), हर्पीज (Herpes), खाज (Scabies) कीट के काटने से, सन बर्न, शुष्क त्वचा,
आदि जैसे रोग वाले कारणों से होने वाली खुजली की चिकित्सा तो ओषधि से की जा सकती
है, जैसे खुश्की की तैल लगाकर, कीटों को
नष्ट कर, एलर्जी विरोधी दवा खाकर आदि आदि| परन्तु इस खुजली की चिकित्सा ओषधि से
नहीं हो सकती| इस प्रकार की खुजली से बचने
और न होने देने के लिए व्यक्ति को स्वयं को (मष्तिष्क को) यह समझाना होगा की खुजली
नहीं चल रही है|
याद करें
अक्सर आपने भी एसा अनुभव किया ही होगा की कभी भी जब खुजली करने की इच्छा हुई और उस
समय किसी के सामने मर्यादावश खुजली नहीं की, तो थोड़ी देर बाद खुजली कब बंद हो गई
यह पता ही नहीं चलता|
भुलावा
देना सबसे अच्छी चिकित्सा है, जब खुजली की भावना हो तब विचार कर लें की खुजलायेंगे
नहीं, यदि बस कुछ देर सब्र कर लिया जाये तो खुजली कब बंद हो जाएगी, पता भी नहीं
चलेगा|
बड़ा दर्द
करता है छोटे दर्द को दूर- इस प्रकार की खुजली
यदि उठी हो तो अन्य या उसी स्थान पर चुभोकर, अंगुली गड़ाकर, आदि तरीकों से अधिक
दर्द पैदा हो जाये तो खुजली बंद हो जाती है, दर्द तो थोड़ी देर बाद बंद होना ही है|
इसी सिधांत पर आयुर्वेदिक अग्निकर्म,
क्षार कर्म, जलोकावचरण या रक्त मोक्षण आदि चिकित्सा भी काम करती है| एक्यूप्रेशर,
एक्यूपंचर से चिकित्सा से भी यही लाभ मिलेगा| आपने कई दादी नानी के चिकित्सा
चुटकुलों में कालीमिर्च, कपूर, पिपरमेंट आदि का प्रयोग सुना या पढ़ा होगा, या किसी
एसी ओषधि लगाने दी होगी जो जलन, दर्द, या सनसनी उत्पन्न करती हो वह भी यही भुलावा
देने की प्रक्रिया है, इसी कारण वह ठीक हो जाने पर भी बार-बार होती ही रहती
है|
सोराइसिस
जैसा रोग जो किसी भी विषाणु जीवाणु आदि से न होकर केवल शरीर की त्वचा के समय से
पूर्व ही बदलने से होता है, में भी मृत त्वचा को हटाने के लिए हिस्टामाइन बनने से खुजली
चलती है, और कोई दवा काम नहीं करती एसी स्थिति में भी खुजली चलने पर भुलावा दिया
जाये तो खुजली बंद हो जाती है, जबकि खुजलाने से रोग अधिक कष्टकारी होता है|
याद रखें
बिना रोग के लगातार खुजलाने का इस सुख आपको कई चर्म रोग की सोगात दे सकता है|
इस प्रकार
की खुजली से बचे रहने का सबसे अच्छा रास्ता है स्वयं को व्यस्त रखना| अधिकांशत यह
खुजली तब ही चलती जब जब आप फुर्सत में होते हें, कोई काम नहीं होता, नींद पूरी हो
चुकी होती है और केवल आलस्य ही होता है|
इस लेख के
अंत में में यही कहना चाहूँगा की बिना किसी रोग के या बिना बात के होने वाली खुजली
पर खुजलाये नहीं, हलका हाथ का स्पर्श देकर या उस स्थान को सहलाकर, किसी और काम में
व्यस्त होकर, भुलाकर, चिकनाहट लगाकर, अन्य बड़ा दर्द देकर, इसको दूर करने का
प्रयत्न करें|
व्यस्त रहें मस्त रहें-
हमेशा
स्वयं को व्यस्त रखें व्यस्त रखने का सबसे सुन्दर और आसान उपाय नियमित जीवन चर्या
है, समय पर उठें, सोयें, व्यायाम करें, काम करें, शरीर को थकायें जिससे नींद अच्छी
आये, अच्छा संतुलित भोजन करें तो खुजली ही नहीं कोई रोग होगा ही नहीं|
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