पृथ्वी पर जितने भी फल हें उनमे बिना कोई हानि पहुचाये केवल हित ही हित करने वाले तीन प्रकार के "फल" हमारे ऋषि-मुनियों को दिखलाई दिए वे तीन हरड बहेड़ा , और आंवले थे जिनके सयुक्त नाम को ही त्रिफला कहा गया।
त्रिफला इन तीन - हरड + बहेड़ा + आंवले ओषधिय पेड़ों के फलों का मिश्रण हे। अनुपात भेद या फल की जाती भेद से इसका शरीर पर प्रभाव न्यूनाधिक(कम-ज्यादा) हो सकता हे। जहाँ एकल ओषधि जो अपना प्रभाव हमारे शरीर पर करती हे वह प्रभाव उनके सम्मलित प्रभाव में अलग देखा जाता हे। फिर भी उन तीनो के अलग अलग सामान्य गुण समझना भी आवश्यक हे। देखें ।
महिर्षि चरक का कहना हे की "संसार में दो प्रकार के रसायन ( सभी रक्त, मांस आदि शारीर की धातुओं का पोषण कर सशक्त बनाना) होते हें,एक वय स्थापक ( आयु बडाने वाले) अथवा जीवन शक्ति(Vitality) बढाने वाले और दुसरे रोग निवारक शक्ति (Immunity) बडाने वाले।वयस्थापकों में आँवला और रोग निवारको में हरड सर्व श्रेष्ट होती हे। ये दोनों ही त्रिफला के प्रमुख घटक हें। गुठली रहित फल का छिलका त्रिफला के रूप में प्रयोग किया जाता हे।
अनेक शोधो द्वारा ज्ञात हुआ हे की त्रिफला एक अद्भुत ओषधि हे।
त्रिफला पाचन क्रिया को ठीक करने वाली और भूख को बढ़ाती हे।यह लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने और शरीर में वसा कोलेष्ट्रोल की अवांछनीय मात्रा को हटाने में सहायता करती हे। त्रिफला का उपयोग रक्त के जमाव (थक्का जमने)से रोकने में किया जाता हे। यह गेस के कारन होने वाले सिर दर्द को दूर करने के लिएउपयोगी हे। मधु मेह या डाईवितिज के रोगी की में रक्त शर्करा के स्तरों को सामान्य बनाए रखने में मदद करती हे।
त्रिफला चपापचय या मेटाबोलिजम को नियंत्रित कर शरीर के आंतरिक अंगों की सुरक्षा करता हे। त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां एक प्रकार से शारीर की आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं। अनावश्यक जमाव और अधिकता को कम करती हैं, पाचन और पोषक तत्वों के शरीर को प्राप्त होने या लगने की स्तिथि बनती हे।
आयुर्वेदिक ऋषियों के अनुसार त्रिफला ऐसी ही आयुर्वेदिक औषधी है जो शरीर का कायाकल्प कर सकती है। संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व शोथ(सूजन) को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संस्थान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है।
स्वस्थ रहने के लिए त्रिफला चूर्ण महत्वपूर्ण है।
त्रिफला सिर्फ कब्ज (Constipation reduction) दूर करने ही नहीं बल्कि आतों के गति को [Colon tonification & Gastrointestinal tract tonifing]ठीक कर आंतो की सफाई कर [Intestinal cleansing] पाचन क्रिया{Digestive balance}नियमित करती हे । इससे भोजन का सम्यक पाचन {Better food assimilation} होता हे जिससे कोलेस्ट्रोल नियंत्रित{Serum cholesterol balance} होकर रक्त सञ्चालन{Better circulation} होता हे। पित्त सँशोधन(Bile duct opening) करती हे। इस तरह से यह अपरोक्ष रूप से होने वाले सिरदर्द मूत्ररोग,किडनी का सुधार ,यकृत या लीवर को ठीक करती हे।
सक्षेप में कहा जा सकता हे की त्रिफला के नियमित सेवन से कमजोरी दूर होती है। या त्रिफला के नियमित सेवन से लंबे समय तक रोगों से दूर रहा जा सकता है।त्रिफला और इसका चूर्ण वात,पित्त व कफ को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
बालों के खराब होने और समय से पूर्व सफेद होने से भी त्रिफला के सेवन से बचा जा सकता है।
केसे करें त्रिफला का सेवन -
सुबह के समय तरोताजा होकर खाली पेट ताजे पानी के साथ त्रिफला का सेवन करें और इसके बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें।
हमेशा मौसम के हिसाब से त्रिफला का सेवन करना चाहिए। यानी मौसम को ध्यान में रखकर त्रिफला के साथ गुड़, सैंधा नमक, देशी खांड, सौंठ का चूर्ण, पीपल छोटी का चूर्ण, शहद इत्यादि मिलाकर सेवन कर सकते हैं। अधिक अच्छा हे त्रिफला का सेवन करने से पहले या तो आप किसी अनुभवी वैद्य से संपर्क करें जिससे साथ त्रिफला का सही-सही और पूरा लाभ उठा सकें। पर यदि बिना परामर्श के भी लिया गया तो भी लाभ ही होगा यह कोई हानी नहीं करता। पर यह ध्यान रखना होगा की विशेषकर सस्ते के चक्कर में इसमें प्रयुक्त हरड , बहेड़ा और आवला पुराने फफूंद वाले न हों देखा गया हे की विक्रेता अधिक लाभ के लिए ख़राब द्रव्य का प्रयोग करते हे।
त्रिफला का नियमित सेवन चुस्त दुरुस्त और प्रसन्न कर सकता हे।
त्रिफला पर विश्व में हुई कई शोध
विकिपीडिया पर दर्ज जानकारी के अनुसार त्रिफला पर समकालीन अनुसंधान में त्रिफला में एंटीनियोप्लास्टिक (अर्बुद या केंसर विरोधी) गुण पाए गए हें।
भारत के कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, जैसे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा की गई शोध से यह पता चला है कि एक त्रिफला में महत्वपूर्ण विषनाशक और कैंसर विरोधी कारक अत्यंत उपयोगी औषधीय गुण हैं।
कैंसर लेटर पत्रिका के जनवरी 2006 के अंक में प्रकाशित एक अध्ययन "एक कैंसर विरोधी औषधि के रूप में पारंपरिक आयुर्वेदिक मिश्रण त्रिफला की क्षमता" में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के विकिरण जीवविज्ञान और स्वास्थ्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने पाया कि त्रिफला में ट्यूमर कोशिकाओं में साइटोटॉक्सिसिटी (कोशिका मृत्यु) प्रेरित करने की क्षमता तो है । जबकि वह सामान्य कोशिकाओं को वह इस रूप में प्रभावित नहीं करता।
इसी प्रकार जवाहर लाल विश्वविद्यालय में विकिरण एवं कैंसर जीवविज्ञान प्रयोगशाला के जरनल ऑफ़ एक्सपेरिमेंट एंड क्लिनिकल कैंसर रिसर्च में प्रकाशित दिसंबर 2005 की एक रिपोर्ट के अनुसार त्रिफला पशुओं के ट्यूमर के मामलों को कम करने और एंटीऑक्सीडेंट स्थिति बढ़ाने हेतु प्रभावी है.
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के वनस्पति विज्ञान विभाग की एक अन्य रिपोर्ट नेलिखा हे कि कैंसर कोशिका-रेखाओं पर "त्रिफला" का साइटोटॉक्सिक प्रभाव बहुत अच्छापाया गया और यह प्रभाव इस शोध में उपयोग की गई सभी कैंसर कोशिका रेखाओं पर एक समान था." फ़रवरी 2005 में जरनल ऑफ़ एथ्नोफ़ार्मेकोलॉजी में प्रकाशित परिणामों में यह कहा गया कि संभवतः "त्रिफला" में मौजूद एक प्रमुख पॉलीफ़िनॉल, गैलिक अम्ल इन परिणामों का कारण हो सकता है. इन्हीं लेखकों ने पूर्व में यह बताया था त्रिफला में "अत्यधिक एंटीम्यूटेजेनिक/ एंटीकार्सिनोजेनिक क्षमता थी."
एंटीऑक्सीडेंट गुण
फरवरी 2006 में, डा. ए. एल. मुदलियार पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ बेसिक मेडिकल साइंसेस, मद्रास विश्वविद्यालय, तारामणि कैंपस, के वैज्ञानिकों ने बताया कि त्रिफला की पूरक खुराक देने से एंटीऑक्सीडेंट में शोर-जनित-तनाव से होने वाले परिवर्तनों और साथ ही चूहों में कोशिका-प्रेरित प्रतिरोधक प्रतिक्रिया की रोकथाम होती है. इसका अर्थ यह है कि त्रिफला में एक तनाव-विरोधी कारक है।
इस अध्ययन का निष्कर्ष यह था, कि अपने एंटीऑक्सिडेंट गुणों के कारण त्रिफला शोर-जनित-तनाव से होने वाले परिवर्तनों को वापस ज्यों का त्यों कर देता है,या तनाव से रोगी को मुक्त करता हे।
ट्रॉम्बे स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के विकिरण रसायन विज्ञान और रासायनिक डायनेमिक्स प्रभाग में संचालित अध्ययनों में यह पता चला कि त्रिफला के तीनों घटक , सक्रिय हैं और वे अलग-अलग परिस्थितियों में कुछ भिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं और इन अलग-अलग घटकों की संयोजित गतिविधि के कारण त्रिफला मिश्रण के और अधिक कार्यकुशल होने की अपेक्षा की जाती है. इस अध्ययन के परिणाम फ़ाइटोथेरेपी रिसर्च के जुलाई 2005 के अंक में प्रकाशित किए गए थे.।
दो महीने बाद, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने त्रिफला के एक घटक की रेडियो रक्षात्मक क्षमता की जानकारी दी.
इसी तरह के परिणाम कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज, मणिपाल की ओर से जरनल ऑफ़ ऑल्टरनेटिव एंड कॉंप्लिमेंटरी मेडिसिन में प्रकाशित किए गए थे जहां वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि "आयुर्वेदिक रसायन औषधि त्रिफला की मदद से विकिरण टॉलरेंस में 1.4 ग्रे गामा-किरणन की वृद्धि हुई". उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जहां त्रिफला से गैस्ट्रोइंटेस्टिनल और हीमोपोयटिक मृत्यु से सुरक्षा प्रदान की जा सकी, वहीं पशु 11 GY से अधिक किरणन के संपर्क में आने के बाद 30 दिनों से अधिक नहीं जी पाए।
एलिसन रॉस, विज्ञान अधिकारी, नामक ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने आशा जताई है कि एक दिन भारतीय आयुर्वेदिक औषधि त्रिफला से पाचन ग्रंथि के
कैंसर का इलाज किया जा सकेगा।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के कैंसर संस्थान की एक टीम ने चूहों पर किए एक प्रयोग में पाया कि
त्रिफला चूर्ण के इस्तेमाल से पैनक्रियाज़ यानी पाचन ग्रंथि में होने वाले कैंसर का बढ़ना कम हो
जाता है।
अमेरिकन ऐसोसिएशन फ़ॉर कैंसर रिसर्च में पेश अध्ययन से आशा जगी है कि एक दिन त्रिफला
से इस रोग का इलाज भी हो पाएगा।
लेकिन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अभी यह शोध अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है।
पाचन ग्रंथि का कैंसर का इलाज बहुत कठिन है इसलिए इलाज के नए तरीके खोजने की ज़रूरत है।
ये सब अभी प्रारंभिक प्रयोग हैं. त्रिफला को लेकर भविष्य में बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है।
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त्रिफला से बनी कई ओषधियाँ जो बाज़ार में उपलब्ध हें।
त्रिफला चूर्ण / त्रिफला घृत, त्रिफलारिष्ट, त्रिफला के केप्सुल्स और गोलियां।
लगभग सभी आयुर्वेदिक ओषधियों में इनका उपयोग होता हे ।
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हरड- संसार की दो सर्वश्रेष्ट रसायन गुण वाली ओषधियो
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