घुटनेके जोड़ [knee] का रोग वर्तमान समय की बड़ी समस्या-
किसी भी प्राणी के जोड़ों की रचना में कई महत्वपूर्ण
मांसपेशियों, हड्डियों (Bons ) उपास्थियों (कार्टिलेज) लिगामेंट्स (बाँधने के लिए रस्सी जेसी रचनाये),तरल पदार्थ आदि की एक संरचना होती हे। जब भी इन किसी भी संरचनाओ में किसी भी प्रकार की चोट,रोग,या अन्य कारणों से परिवर्तन आता हे तब उनके काम में समस्या आती हे जो दर्द, उनके घुमने में कठिनाई आदि होने लगती हे। यही सब घुटने में भी होता हे।
शरीर का सारा भार भी उन्हें ही उठाना पड़ता हे इस कारण घुटने की समस्या किसी को भी लाचार कर देती हे।
दुर्घटना वश हुए चोट या अघात की भरपाई शरीर की प्राकृतिक व्यवस्था कर देती हे पर रोग आदि के कारण आई विकृति शरीर की इन प्राक्रतिक क्षमताओं के बाद भी आती हें तो इसका प्रमुख कारण व्यक्ति स्वयं के द्वारा प्राक्रतिक जीवन चर्या से अलग हट कर मिथ्याहार-विहार अर्थात अनावश्यक खाते-पीते रहना और आरामदेह जीवन जीना होता हे।
इसी बात को हम यदि और विस्तार से समझना चाहते हें तो कहा जा सकता हे की देनिक जीवनचर्या में अपनी सुविधा अनुसार परिवर्तन कर लेना जो स्वय को अच्छा और आराम देने वाला हो, इसका प्रमुख कारण होता हे।
युवा शरीर की प्राक्रतिक क्षमताएं युवावस्था में इन मिथ्या या अति या विलासी जीवन की इन परिस्थितियों को नहीं आने देती पर जब आयु ढलने लगती हे और क्षमताएं कम होने लगती तब ये रोग एक साथ या धीरे-धीरे शरीर पर आने लगते हें।
इनमें गठिया सबसे आम बीमारी है जो शारीर के जोड़ों को प्रभावित करती हे इसका असर सारे शरीर का वजन उठाने वाले घुटने की हड्डियों पर महसूस होता हे। घुटने की उपास्थि या कार्टिलेज कहा जा सकता हे, 'घिसने' लगती हे, उनके बीच रहने वाला प्राक्रतिक तरल पदार्थ विकृत या ख़राब होने लगता हे या कम होने लगता हे। इस विकृत तरल में जीवाणुओं का संक्रमण भी हो जाता हे। इस संक्रमण को वर्तमान एंटीबायोटिक्स आदि के द्वारा पूरी तरह से मिटाना भी सभव नहीं होता, फिर रोगी को होने वाला कष्ट और उनकी लाभ पाने की जल्दबाजी चिकित्सक को कोर्टिजोने देने पर मजबूर करते हें अकसर सभी क्वेक्स या तात्कालिक वाह-वाही और श्रेय पाने के लिए और इस डर से की रोगी (ग्राहक) हाथ से निकल न जाए कोर्टीजोन्स का प्रयोग हमारे देश में (अन्य कई देशो में प्रर्तिवंधित) धड़ल्ले से दिया जाता हे, इससे रोगी जीवन भर के लिए उन पर आश्रित हो कर जीने के लिए मजबूर हो जाता हे। अंत तक कोई विकल्प नहीं बचता।
आयुर्वेदिक चिकित्सा इसका एक मात्र विकल्प हे। आयुर्वेद द्वारा यह रोग पूरी तरह से अच्छा क्या जा सकता हे। समय इस बात पर निर्भर होगा की रोगी कितनी जल्दी उसके पास आया हे और उसने आने के पूर्व कितना कार्टीजोन का सेवन किया हे ।
एक कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी को विश्वास में लेकर सबसे पाहिले इन हानिकारक ओषधियों को बंद करता हे, रोगी को धीरज पूर्वक दर्दके साथ हिम्मत रखने की सलाह देता हे फिर शोधन,की कई चिकित्सकीय प्रक्रियायो द्वारा शरीर को प्राक्रतिक प्रक्रियाओं की और वापिस लाकर सभी संतुलन व्यवस्थित करता हे। धीरे-धीरे शरीर जेसे जेसे अपनी प्राक्रतिक अवस्था को पाने लगता हे रोगी ठीक होने लगता हे। और धेर्य पूर्वक किये गए इस इलाज से तीन से छह माहों में रोगी ठीक होने लगता हे।
इस दोरान कई आयुर्वेदिक ओषधियो के साथ वमन / विरेचन, स्नेहन, स्वेदन आदि की आवश्यकता रोगी की स्थिति अनुसार करना हो सकती हे।यह सभी प्रक्रियाएं
पंचकर्मा थेरेपी के अंतर्गत आती हें (देखे - पंचकर्म से स्वास्थ लाभ: ) नवीन रोगी या जिन्होंने कोई कार्टिजोंन नहीं लिया हे वे और शीघ्र केवल सामान्य से लगने वाले महारास्नादी क्वाथ/कुछ गुगल युक्त ओषधि/मूत्रल/ और अश्वगंधा आदि ओक्सिदेन्ट्स /निशोथ /और अरंड तेल जेसे विरेचको के माध्यम से आश्चर्यजनक रूप से ठीक किया जा सकता हे।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रति कई लोगों को यह भ्रान्ति हे की इसमें परहेज अधिक करना होता हे। यह सच नहीं हे। वास्तव में आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा रोगी ओषधियों से ठीक नहीं किया जाता वरन दूषित मेटाबोलिस्म की प्रक्रिया या मिथ्याहार विहार के कारण को हटा कर शरीर को ठीक किया जाता हे। इस लिए जिन कारणों से रोग हुआ हे उनको तो छोड़ना ही पड़ेगा। बस हर आयुर्वेदिक चिकित्सक परहेज के रूप में वे ही संभावित परहेज बताता हे। पर अकुशल या अनुभव हीन चिकित्सक अज्ञानतावश अधिक अनावश्यक परहेज
बता देता हे यही इस भ्रान्ति का कारण हे।
अधिकतर रोगी यह जानना चाहते हे की क्या खाए क्या न खाए,क्या करें क्या न करें तो इसका उत्तर हे की वे अपनी पिछले जीवन का पुनरवलोकन करें सोचे की उन्होंने जीवन चर्या के विपरीत क्या किया था, इसके लिए भी अनुभवी परामर्शदाता के रूप में चिकित्सक की मदद ली जा सकती हे। ईमानदारी से किये पुनरवलोकन से निकले निष्कर्ष के बाद अपनाई जीवन चर्या आपको पुन: स्वस्थ करने में सहायक होगी।
अंत में इसका उत्तर कोई भी चिकित्सक यही देना चाहेगा की इस प्रकार की खाने वाली चीजें न खाई जाये जो पचने में आसान न हो, जो पेट में अम्ल या एसिडिक क्रिया करें (जेसे खट्टी चीजें)। पोषक और रेशा युक्त खाना श्रेष्ट होगा। फास्ट फ़ूड हमेशा ठंडा और आरामदेह वातावरण, अधिक सोना,अधिक खाना, व्यायाम या शारीरिक परिश्रम का अभाव, निरंतर कब्ज,शोच का न होना,खराब जीवन चर्या या मिथ्याहार - विहार होता हे यह समझ लेना आवश्यक हे। यदि हम इन सभी बातो पर विचार कर कर लें तो यह भयानक रोग जो अपंग भी बना सकता हे को आने से रोक सकेंगे और ए हुई इस व्याधि से छुटकारा भी पाने की उम्मीद कर सकेंगे।
डॉ मधु सूदन व्यास
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