सूखी खांसी, ड्राई कफ शुष्क कास -
सामान्य रूप से जेसा की नाम से ज्ञात होता हे ऐसी खांसी चलना जिसमें कफ आदि न निकले। आयुर्वेद में इस प्रकार से चलने वाली खांसी को "वातज कास"'कहा गया हे।
इसमें गले या मुह में सुखा या रूखापन ह्रदय स्थान या पसलियों में, छाती, में दर्द कभी कभी खांसी चलने से मूर्च्छा स्वरभेद, होता हे खांसी चलते समय जोर से आवाज होती हे कभी कभी बड़े कष्ट के साथ कफ निकलता हे । कफ निकलने पर राहत प्रतीत होती हे, और खांसी का वेग या दोरा कम हो जाता हे।
इस प्रकार की खांसी में सर्दी/जुकाम आदि रोग के संक्रमण के कारण राहत के लिए की चिकित्सा में गले और छाती में बना कफ सूख जाता हे इसे शरीर बाहर फेकना चाहता हे पर नहीं निकाल पाने से खांसी का दोरा चलता रहता हे। यह भी जरुरी नहीं की ओषधिया ली ही गई हों , हम सब अपने देनिक जीवन में भोजन आदि के साथ घी तेल ,हल्दी,मिर्ची नमक, गरम मसाला, अदरक,आदि-आदि कई बस्तुएं खाते पीते रहते हें, इस प्रकार की सामग्रियां भी ओषधिय प्रभाव डालतीं हें, यही सब अच्छा ख़राब जिसे मिथ्याहार विहार का नाम आयुर्वेद में दिया हे, इस और अन्य सभी रोगों का कारण बनकर, इस प्रकार के कई लक्षणों या रोगों को उत्पन्न कर देती हें।
जेसा की इस विवरण से जाना जा सकता हे इसकी चिकित्सा भी कफ को निकाल कर एवं आहार विहार को संतुलित कर की जा सकती हे।
एक पाठक ने जानना चाहा हे [kindly post home based cure for dry cough n sore throats.......m suffering big tym] उन्हें इसका उत्तर इन उपरोक्त विवरण में समझना चाहिए।
किसी भी रोग की घर की चिकित्सा इन्ही आहार-विहार पर आधारित होती हे। समान्यतय कहा जाता हे की आप यह खाएँ यह न खाएँ, इस प्रकार से रहें या न रहें तो इसमें विचारणीय बात यह हे की इन उपरोक्त बताई गई बातों में लगभग हर रोग और उसके ठीक करने का राज छुपा हुआ हे, उन्हें समझना होगा।
सुखी खांसी को मिटाने सोंठ+ मुन्नक्का +मिश्री + कालानमक +शहद- को गाय के घी या अच्छे मलाई वाले गाय के दूध के साथ देने से कफ निकलेगा और आराम होगा।
उपरोक्त चीजें पीपल+ कालीमिर्च और मिलकर केवल शहद के साथ चटाने से कफ वाली खांसी (जिसमें अधिक बलगम आती हो)ठीक होती हे ।
सूखी खांसी में खट्टी चीजें,अधिक भोजन और हींग हानिकारक होती हे।
सूखी खांसी होने पर अदरक का प्रयोग नहीं करें ।
हल्दी का प्रयोग हमारे घरों में खांसी के लिए अक्सर किया जाता हे पर यह जान लें की हल्दी कफ को सुखाती हे , इसलिए सूखी खांसी में देने पर तकलीफ और बढ जाएगी।
खांसी के विषय में एक बात समझने की और भी हे की यह आती क्यों हे?
खांसी आने में श्वास सस्थान अर्थात साँस लेने में प्रयुक्त होने वाले शरीर के अवयव आते हें। इनमें गला,फेफड़े प्रमुख हें। जब भी प्रकार की विजातीय वस्तु इन स्थानों पर आ जाती हे जेसे खाई गई कोई बस्तु,श्वास से अन्दर आई कोई वस्तु,जीवाणु,विषाणु,आदि आदि,तब हमारे शरीर की प्रणाली उसे बाहर फेक देना चाहती हे तब ही खांसी,छींक, अदि आती हे। यह प्रयत्न तब तक चलता हे जब तक वह विजातीय पदार्थ बाहर नहीं कर दिया जाता ,यदि गले में चिकनाहट हे तब उसके साथ थोडा थोडा लगातार फेका जाता रहता हे परचिकनाहट नहीं हे तो इस प्रयत्न में सूखी खाँसी आती रहती हे। यदि ऐसी चीज जो और अधिक खुश्की करे तो खांसी का दोरा शांत नहीं हो पता। इस हेतु सहायक के रूप में चिकनाहट ओषधि के साथ देने पर लाभ होता हे। यही इसको ठीक करने का सिधांत हे।
आयुर्वेद में घरेलु उपायों के अतिरिक्त कई ओषधियाँ उपलब्ध हें इनका समुचित अनुपान( ओषधि के साथ ली जाने वाली सहायक द्रव्य जेसे शहद,पानी,दूध,घी, छाछ, दही, आदि-आदि) के साथ सेवन रोग मिटाता हे। इसी कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा में अनुपान को भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हे। विना उपयुक्त अनुपान के ली गई ओषधि व्यर्थ या हानि करने वाली भी सिद्ध हो जाती हे। कुछ सामान्य सी ओषधियाँ बना कर प्रयोग की जा सकती हें
कंटकारी भस्म- बरसात के बाद अपने आप भारत के अधिकांश भागो में उत्पन्न होने वाली यह वनस्पति जिसमें जामुनी रंग के फुल लगते हे सारे पोधे पर कांटे और कांटे युक्त्त पत्तियां होती हे( देखे चित्र ) इसको जड़ सहित उखाड़कर धोकर मिटटी साफ करलें सुखाकर लोहे के तवे पर ढक कर जला लें यह कंटकारी भस्म होगी सुखी खांसी में शहद और गोघृत के साथ कफ युक्त खांसी में शहद और छोटी पीपल एक साथ, कहते से रोग मुक्त हो जाता हे यह बड़ी निरापद ओषधि हे जो शिशुओं से लेकर वृधो तक चमत्कारी असर दिखाती हे। किसी भी स्थिति में कोई भी हानी नहीं करती। कंटकार्यवलेह (या कंटकारी अवलेह ) के नाम से कई अन्य ओषधियो के साथ बनी का उपयोग विना भय के किया जा सकता हे। इसे पानी मिलाकर सिरप की तरह पिया जा सकता हे।
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