अधिक
वसा सेवन से हो जाती है नपुंसकता- एक शोध परिणाम
देखा
जाता है की पुरुष सबसे अधिक सचेत अपने पुरुषत्व के प्रति होता है| वह जीवन भर केवल
यही चाहता है की वह हमेशा “मर्द” बना रहे| पुरुषत्व या मर्दानगी का कारण शुक्राणु का
शरीर में बनते रहना होता है| परतु आश्चर्य की बात है की स्वाद और आनंद के लिए वर्तमान
में जो भी चिकनाई युक्त खाना खाता वे शुक्र उत्पादन को कितनी हानि पहुँचा सकते हें यह वह नहीं जानता|
हमारे देश में प्रतिदिन हलवा, खीर, पूरी मिठाइयाँ और पकवान, और कई मांसाहारी पकवान बनाये और खाए जाते हें, इन पकवानों को पोष्टिक भी माना जाता है|
दूध और मांस से बने खाद्यों में उत्पादनों में संतृप्त वसा (Saturated
fat) होती है, और बीज वाले, मेवों और वनस्पति
तेलों असंतृप्त वसा (Unsaturated fat) पाई जाती है| सेचुरेटेड फेट (संतृप्त वसा) सामान्य ताप मान पर
ठोस जबकि असंतृप्त वसा तरल रहती है|
पर
आप नहीं जानते की आहार में ली गई संतृप्त वसा सेचुरेटेड फेट की अधिक मात्र सेवन से
शुक्राणुओं का बनाना कम होकर उनकी संख्या बहुत कम हो सकती है|
वर्ष
2012 में अमरीका के शहर बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हुए अध्ययन में 99 पुरुष शामिल हुए उन्हें अलग अलग प्रकार के आहार देकर वीर्य निर्माण और
उसकी गुणवत्ता परखी गई, इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने निम्न परिणाम सिद्ध किये:-
Ø शरीर
के लिए उनके वजन आदि अनुसार प्रतिदिन आवश्यक संतुलित खाने में 5% सभी प्रकार के फेट्स (वसा) मात्रा बड़ा देने से उनमे शुक्राणुओं की संख्या
में 18% तक गिरावट आ जाती है|
Ø कार्बोहाइड्रेट
के बदले अगर संतृप्त वसा का सेवन 5% बढ़ा दिया जाये तो
शुक्राणुओं की संख्या 38% तक कम हो जाते हैं|
Ø कार्बोहाइड्रेट
के बदले 5% मोनो अनसैचुरेटेड वसा या पॉली अनसैचुरेटेड वसा (जेसे ओमेगा 3) से कुल शुक्राणुओं की संख्या में कोई प्रभाव
नहीं पड़ा अर्थात कोई हानि नहीं हुई|
Ø ओमेगा
-3 (पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड) का अधिक सेवन शुक्राणु की बनावट में अंतर कर
देता है|
Ø करीब
28 प्रतिशत लोग जिन्होंने सप्ताह में एक बार नशा (चरस, शराब, सिगरेट का) लिया
था, उनका स्पर्म काउंट कम पाया गया|
Ø जिन्होंने
एक बार से अधिक दो नशे (जैसे सिगरेट+ शराब आदि) लिया था, उनका स्पर्म काउंट 52% तक कम हो गया था|
ध्वज भंग (Erectile
Dysfunctioning) पर भी 64 लोगों पर शोध हुआ
जिन्होंने गांजे से नशा किया उनको लिंग उत्तेजना में भी कमी आई इसका पाता पेनाइल
डयूप्लेस अल्टासाउंड जांच से मिला|
अब विचार
करें की चाकलेट आइसक्रीम सहित सभी मिठाइयां, स्ट्रीट फ़ूड, या फ़ास्ट फूड्स जिनमे
कचोरियाँ, समोसा, पिज़्ज़ा भी होते हें में आप सप्ताह में कितनी बार लेकर कितनी संतृप्त
और असंतृप्त वसा खाते हें, और वह ली जा सकने
वाली आवश्यक मात्रा से कितना अधिक होती है यदि विचार कर लिया जाये तो पुरुषत्व को
बचा कर रखा जा सकता है|
परन्तु ?
एक आयुर्वेद चिकित्सक की दृष्टि से अथवा आयुर्वेदिक विचार से भारतीय प्राचीन समय से खाए जाने वाले फेट्स यदि पचा लिए जा सकें तो लाभकारी भी हो सकते हें| इसका अर्थ है, जितनी केलोरी मात्रा शरीर में उपयोग की जा सके उतनी ही खाना, और यदि अधिक खाई गई है तो उसको पचाने या जलने के लिए शारीरिक परिश्रम, व्यायाम किया जाता रहे तो वही फेट्स जमा ही नहीं होगा और पुरुषत्व का पोषण करता रहेगा|
वर्तमान में हमारे यहाँ भी उपरोक्त वर्णित समस्या फेट्स की अधिकता से होने का कारण यही है की हम दिन शरीर को मिले इंधन को केवल स्टोर करते हें, जलाकर (पचाकर) उपयोग नहीं करते| नपुंसकता सहित सभी रोगों का कारण यही स्टोर रूम के ही काम आ रहा शरीर है| हमको चाहिए की हम अपने शरीर को स्टोर रूम न बनाने दें|
समस्त चिकित्सकीय सलाह, रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान (शिक्षण) उद्देश्य से है| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें| इसका प्रकाशन जन हित में किया जा रहा है।