Varicose
veins Or Siraja Granthi –It can cause of death.
अपस्फीत शिराएँ (वैरिकाज़ वेंस) या सिराज ग्रंथि- भी मृत्यु का कारण हो सकतीं है|
जी
हाँ वैरिकाज़ वैन्स या सिराज ग्रंथियां जो जिम्मेदार हो सकतीं हैं पैरों में गम्भीर
घाव या अल्सर (Ulcers), शिराओं में रक्त के थक्के (Blood
clots) बनने और उनके ह्रदय तक पहुंचकर हृदय रोग (Cardiovascular
or Heart Disease), बनने में, या गंभीर
रक्तस्राव जो मृत्यु (Death) का कारण?
क्या
हैं ये सिराज ग्रंथियां?
कभी
कभी कई लोगों के पैरों में खून की नसें अधिक उभरी हुई दिखाई देतीं है, यह अधिकांशत: पैरों में होने वाला रोग वेरीकोज वैन्स या आयुर्वेद
अनुसार सिराज ग्रंथि का बनना है| एसा पित्त की
विकृति से होता है| इसके जैसा ही दिखने वाला रोग शिरा गत घनास्त्रता (frozen or clotting) भी होता है पर
इससे अलग सिराज ग्रंथि में नसें (वैन्स) सर्पाकार कुंडली जैसी दिखतीं
है| परन्तु इसके कारण आगे चलकर शिराज ग्रन्थियां बन
सकतीं है| [देखें पूर्व लेख- लगातार बैठकर लंबीयात्रा करने, या बिस्तर पर लगातार आराम करने से, आपका रक्त जम कर हो सकता है और गंभीर बीमारी "त्रिदोषज शिरा गत घनास्त्रता" का कारण? ]
आयुर्वेद के अनुसार यह धातुवह (रस-रक्तादी) स्त्रोतास की स्त्रोतों दुष्टि है| इसके कारण का वर्णन अष्टांग हृदय (वाग्भट्ट) ने निम्न अनुसार किया है_
आहारश्च विहाराश्च य: स्याद्दोगुणैै: सम:| धातुर्भिविॆुगुणों यश्च स्त्रोत्सां स प्रदूषक:|( शा.स्था.अ. 3-44)
अर्थात - जो आहार (भोजन)-विहार (गतिविधियाँ) रस अदि धातुओं के विपरीत होतीं हैं, वे स्त्रोतसों के मार्ग को अवरुद्ध कर देतीं है|
अति क्षारीय या अम्लीय प्रकृति पैदा करने वाला खाना और अधिक खड़े रहने जैसी गतिविधि इस का कारण होती है|
शरीर का सारा भार (वजन) पैरों के जिन भागों पर सीधे पड़ता है, जैसे टखना (ankle), और पिंडलियाँ (calf)
में सामान्यत: होता है| आयुर्वेद के अनुसार[1]
(देखें फुट नोट) यह रोग आँखों आदि में भी
होता है, जलन, सूजन और लालिमा, आदि (पित्त दोष के प्रमुख लक्षण) , दर्द, (वात के कारण) भारीपन (कफ के कारण) जैसे और भी कई लक्षण के साथ होता है|
वात-पित्त-कफ-
तीनों दोषों की विकृति से रक्त (blood) और
वाहिनियाँ (vessels) दूषित होतीं है, इनकी रूकावट के कारण शिराएँ फूल और फैल कर कमजोर होने से उस विशेष जगह पर
उभर कर सांप के तरह नजर आने लगतीं है|
रोग
का कारण:- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, शिराएँ रक्त को हृदय की ओर ले जाती
हैं, यह कार्य गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर हृदय में
ले जाना होता है, इसके लिए शिराओं में कपाट (वाल्व)
होते हें, जो रक्त को वापिस आने से रोकते हें, इनके
कमजोर, होने या किसी कारण से पूरी तरह कार्य न कर पाने
से रक्त पूरी तरह ऊपर चढ़ नहीं पाता, या नीचे भी आने
लगता है| रक्त के लगातार नीचे रहने और अधिक दवाव होते
जाने से शिरायें फूलने लगतीं हैं, और उनकी लम्बाई भी
बड़ने लगती है, इससे वे बढकर सांप के समान टेडी-मेडी और
फूलने से त्वचा पर उभरी हुई दिखने लगतीं है|
क्या
क्या हो सकता है - सिराज ग्रंथि या वेरीकोज वैन्स के कारण?
शरीर
का अशुद्ध रक्त शिराओं से ह्रदय द्वारा खींचा (pumping) जाकर फेफड़ों में आक्सिजन
लेकर शरीर के अन्य सभी भागों में जाकर पोषण और शक्ति देता है, परन्तु शिराओं के
वाल्व ख़राब होने से रक्त वहीँ भरा रहता
है, इससे उन स्थानों की मांसपेशियों के उत्तकों (Tissue) को भी आक्सीजन न मिल पाने से, और उन स्थानों पर अधिक दवाव होने से, पैरों में, या प्रभावित
भागों में कसक जैसा दर्द (aching
pain), भारीपन और थकावट मालूम
होने लगती है|
ऑक्सिजन
रहित रक्त की लगातार एक स्थान पर उपस्थिति से स्थानीय त्वचा को पोषण/ आक्सीजन न मिल
पाने से वेवर्णता (colourlessness रंगहीनता, पीलापन, फीकापन) होने लगता है, और धीरे धीरे वहां खुजली, व्रण (ulcer), या चर्म रोग पामा (एक्ज़िमा) आदि भी हो सकता है|
सिराज
ग्रंथि या वेरीकोज वैन्स के कारण, पोर्टल रक्त चाप
(portal hypertension ) रोग भी हो सकते है| सामान्यत: एसा रक्त अर्श (hemorroids), ग्रास नलीका भोजन नली (oesophageal) में विकार होने से आदि से होता है|
शिरापस्फीति
(वेरिकोसील Varicocele) का खतरा -
अंडकोषीय शिराओं में varicocity हो
जाने से यदि चिकित्सा नहीं की जाती तो पुरुष/ स्त्री बांझपन (infertility) भी हो सकती है |
वैरिकाज़ वैन लक्षण:
1.
पैरों में कसक (Aching pain) जैसा बदतर दर्द विशेषकर व्यायाम के बाद और रात्रि को होता रहता
है|
2. स्तब्धता (Numbness) होना, अकड़ना, जड़ता, संज्ञा
हीनता(सुन्न होना), तंत्रिकाओं में शोथ (सूजन) या जलन (neuritis).
3. प्रभावित अंगों में गौरव या भारीपन (Heaviness)|
4. थकान (Tiredness)|
5. शिराओं का वक्राकर (Tortuous veins) और मकड़ी
जाल (spider-
veins) जैसा दिखाई
देना (telangiectasia) |
6. कृष्ण रक्त शिरा:- उस स्थान की त्वचा या शिरा में कालापन (विवर्णता)
Discoloration of the veins or skin.
7.
टखनों में सूजन (Ankle swelling) होती है यह विशेषकर सायंकाल में अधिक होती है, क्योंकि व्यक्ति दिन-भर काम
करता है|
8. प्रभावित भागों में सूजन (Redness),सूखापन (dryness), और खुजली (itchiness), या चर्म रोग होना|
9.
ऐंठन होना विशेषकर जब कोई अचानक खड़ा होने की कोशिश करे|
10. सामान्य चोट लगने पर रक्तस्राव (Bleeding) होना और घाव का देर से भरना|
क्या यह रोग स्वत: ठीक हो जाता है?
सामान्यत: नए
रोगी को इस रोग स्वयं ठीक हो जाना लगता है, जबकि कोई व्यक्ति जब पैर
समतल या उपर करके लेट जाता है, तो रक्त बहकर
ह्रदय की और जाने लगता है इससे फूली हुई शिराएँ दिखना बंद या कम हो जातीं है, रोगी को लगता है ठीक हो गया, परन्तु अधिक खड़े होने पर पुन: फूल जातीं हैं|
कैसे जाने की वेरीकोज वैन या सिराज ग्रन्थि हो गई है?
जब
भी भी किसी को पैरों में कसक जैसा दर्द उठता
हो, बार-बार होने से रोका नहीं जा सके और किसी भी उपाय
से ठीक न हो तो यह रोग सिराज ग्रंथि (वेरीकोज) वैन्स
होता है|
किनको हो सकता है यह रोग?
वैरिकाज़
वेन्स का यह रोग अधिकांशत: ऐसे लोगों को ही होता है, जो अधिकतर खड़े रहते हें जैसे सुरक्षा गार्ड, चौकीदार, पुलिस, सैनिकों, वाहन
खींचने, कुलियों, रिक्शा
खींचने, शिक्षक आदि|
इस
खड़े रहने वाले कारण के अतिरिक्त, आयुर्वेद मत (पूर्व जन्मगत प्रभाव) से, जिसे अब आधुनिक भी वंशानुगत जींस के रूप में मानते हें, को भी इस रोग का कारण माना जाता है|
आयुर्वेदिक विचार और चिकित्सा की दृष्टि से सिराज ग्रंथि का निदान निम्नानुसार
किया जा सकता है:-
आयुर्वेद
अनुसार सिराज ग्रंथि निदान (Varicose veins diagnosis):-
अभिष्यंदी भोजन - जैसे दही, मांसाहार, जंक फ़ूड, ड्रिंक्स, आदि
का अति सेवन|
अधिक्
मात्रा और समय तक, गुरु (heavy), मंद (mild), शीत (ठंडा cold), स्निग्ध (unctuous)
भोजन का सेवन|
- मिथ्याहार
एवं विरुद्ध आहार का सेवन (Unnecessary & Advrse food combinations),
- श्रम
अतियोग या अधिक परिश्रम (Excess work)
- भारोत्तोलन,
वजन उठाना (Weight lifting)
- आवागमन
अधिक दूरी तक चलना (Long walk)
चिकित्सा में परों में होने वाले जिन
मुख्य शिराओं से प्रभावित अपस्फीत शिराओं में रक्त जाता है, उनका शल्यकर्म द्वारा बंधन कर
दिया जाता है। यदि गहरी शिराओं में धनास्रता (थ्रोंबोसिस) होती है, तो सुचिवेध (इंजेकशन) चिकित्सा या शल्यकर्म नहीं कि जा सकता ऐसी शिराओं को कम करने के लिए रबड़ की लचीली
पट्टियाँ पावों की ओर से आरंभ करके ऊपर की ओर को जंघे तक बाँधी जाती हैं।
दशा उग्र
न होने पर शिराओं के भीतर इंजेक्शन देने से कुछ समय के लिए लाभ होता है। जब शिराएँ अधिक विस्तृत
हो जाती हैं, तो शल्यकर्म द्वारा उनको निकालना आवश्यक हो जाता हैं। आधुनिक चिकित्सा में अक्सर इंजेक्शन
चिकित्सा और शल्यकर्म दोनों कार्य करने पड़ते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा Ayurvedic treatment for Varicose Veins – Siraja Granthi:- (शीघ्र)
[1] - आचार्य सुश्रुत ने
नेत्र रोग में भी इसका उल्लेख सिराजाल
के नाम से भी किया है (सुश्रुत उत्तर तन्त्र ५४)| आधुनिक विचार से जहाँ यह केवल पैरों में होता है आयुर्वेद विचार से यह समस्या, नेत्रादी (eye) सहित अन्य स्थानों पर भी हो सकता है, इसीलिए
दोषादी कल्पना अधिक सटीक है, इससे एक समान लक्षण और
निदान के कारण कहीं भी हुए सिराज ग्रन्थि (वेरीकोज वेन्स) की चिकित्सा आयुर्वेद विचार से अधिक आसान हो
जातीं है|