जिसे एंट्रायटिस, (Enteritis), कोलायटिस (Ulcerative colitis) जिसे सव्रण बृहदांत्रशोथ कहते हें हो गया है|
निम्न और मध्यम वर्ग के लिए उपलब्ध पीने के पानी से लेकर खाने-पीने की लगभग प्रत्येक बस्तु, आवास, आने जाने के स्थान, वाहन, वातावरण सब कुछ संक्रमित है| हर चीज प्रदूषित, अशुद्ध, मिलावटी है| यही नहीं इनकी आदत भी अस्वच्छ स्थानों पर रहने, खाने, साफ सफाई के प्रति उदासीनता, की हो गई है| इसके चलते हमारे देश की बहुसंख्यक आबादी सव्रण बृहदांत्रशोथ नामक इस रोग से प्रभावित है|
इस प्रकार के अधिकतर मामलों में जीवाणु संक्रमण खाने पीने की गडवडी (food poisoning) जिसे आयुर्वेद में मिथ्याहार-विहार कहा जाता है, से होता है|
घर में बिल्ली, कुत्ते आदि पालतू पशु से भी यह रोग फेल सकता है|
प्रारम्भ में तो पता भी नहीं चलता!
इसका प्रारम्भ भी होता है सामान्य से दिखने वाली पेट की तकलीफों से, और अधिकांश मामलों में रोग का पता भी नहीं चलता|
इन जीवाणुओं का आंतों में पैदा होना और बढ़ना आंतों में पहिले सूजन पैदा करता है, फिर आंतों में घाव (अल्सर) होने लगते हें, आंत्रशोथ (enteritis) जैसी भयानक रोग पैदा हो जाता है| सामान्यता यह आन्त्रशोथ छोटी आंतों का रोग है, परन्तु कई रोगियों में इसके साथ पेट या पक्वाशय में शोथ (gastritis) और बड़ी आंतों (large intestine) वृहद्न्त्र शोथ (colitis). भी मिलता है|
आंत्रशोथ (Enteritis) कई प्रकार से या कारणों से भी हो सकता है इनमें प्रमुखता से मिलने वालों में विषाणु (viral) या जीवाणु (bacterial) के संक्रमण (infection), विकिरण (radiation), किसी ओषधि या दवा के दुष्प्रभाव (medication), शराव सेवन (alcohol intec), से भी हो जाता है|
संक्रमण के कारण आंत्र शोथ (आंत में सुजन) होने पर पाचन संस्थान को होने वाली रक्त की आपूर्त्ति कम हो जाती है, और रोग इससे प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने से शोथ या सूजन (inflammatory condition) होकर सव्रण बृहदांत्रशोथ (ulcerative colitis- आंतों में घावयुक्त सूजन), उत्पन्न होती है, इसी कारण रोगी ज्वर, दस्त, मतली, उलटी, पेटदर्द और शोच में खून आने की शिकायत करता है|
वाइरल से होने वाला आंत्रशोथ कुछ दिन में ही स्वत: ठीक हो जाता है, परन्तु इसके साथ ही जीवाणु का भी संक्रमण होने या होने की सम्भावना के कारण चिकित्सा करवाना आवश्यक होता है, इस बात को नजर अंदाज कर देना अक्सर घातक सिद्ध होता है, इससे ही जीर्ण आंत्रशोथ (Chronic Enterites) होकर जीवन का संकट खड़ा कर सकता है|
कोनसे जीवाणु या विषाणु इस रोग का कारण हैं?
इन जीवाणुओं में सल्मोनिला (Salmonella), ई कोली (Escherichia coli -E. coli), स्तेफिलोकोकास (Staphylococcus aureus) Campylobacter jejuni (C. jejuni), शिगेला (Shigella), Yersinia enterocolitica (Y. enterocolitica), बैसिलस प्रजाति Bacillus species, आदि हो सकते हें|
चिकित्सा TREATMENT
आयुर्वेदिक चिकित्सा से एसा नहीं होता, रोगी की प्राकृतिक क्षमता और भी बड जाती है, जो रोग को दुबारा होने नहीं देती| रोग की स्तिथि के अनुसार कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक ओषधि या पंचकर्म बस्ती चिकित्सा से आतं को पूर्ण रूप से विषाणु/जीवाणु रहित कर सकता है|
तात्कालिक साधारण संक्रमण तो कुछ ही दिन में ठीक किया जा सकता है, पर एक कुशल अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक रोग की स्तिथि को समझ कर पूर्ण रोग मुक्त कर देता है|
इस रोग की चिकित्सा पूर्ण रोग मुक्त होने तक आवश्यक रूप से लेना चाहिए, अन्यथा पुराना रोग बन कर जीवन भर कष्ट का कारण बनता देखा गया है|
बस्ती चिकित्सा में रोग स्तिथि अनुसार दो सप्ताह से एक माह में रोग दूर हो जाता है| जबकि ओषधि चिकित्सा लम्बे समय लेना पढ़ सकती है|
आयुर्वेद चिकित्सा में बृहदांत्रशोथ की चिकित्सा में स्वच्छता, रोग जनक वातावरण, भोजन-पानी से परहेज को प्राथमिकता दी गई है|
चिकित्सा में कुटज, बिल्व, उदुम्बर क्वाथ, लोध्र छाल चूर्ण, नागरमोथा मूल चूर्ण , नागकेसर चूर्ण , कुटज घन वटी, उदुम्बर क्वाथ बस्ती, आदि कई द्रव्य, और योग प्रयुक्त होते हें|