Rescue from incurable disease

Rescue from incurable disease
लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

भोजन की नियम - जिन्हे अपना कर सौ वर्ष जियेँ।

वजन को नियंत्रित करना है तो
1-धीरे- धीरे चबा- चबाकर खाओ।
2-शांति से एकाग्र चित्त होकर भोजन करो।
3-छोटे छोटे कोर(निवाले) खाओ।
4-सोचो की भोजन में बड़ा स्वाद लग रहा है।
 
पेट का हमेशा भारी रहना,  भूख का नहीं लगना यह बताता है, 
की आपका पेट साफ  नहीं रहता है। एसा भोजन के न पचने के कारण होता है। चरक के अनुसार भूख न लगी हो फिर भी भोजन करने से रोग होते हें।  इसीलिए जब भोजन करें तो विना भूख के न करें। 
एसी अवस्था में यह जानना भी जरूरी है की, उड़द, चना आदि से बने पदार्थ भारी होते हैं, जिन्हें कम मात्रा में लेना ही उपयुक्त रहता है।
 खाने के साथ अदरक और सेंधा नमक का सेवन सदा हितकारी होता है।भोजन ताजा होना चाहिए। ताजा गरम भोजन न केवल स्वादिष्ट लगता है,वरन पाचकाग्नि को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है। ताजा भोजन अतिरिक्त वायु और कफ बढ्ने नही देता।  ठंडा बासी या सूखा भोजन देर से पचता है। इससे गेस अधिक बनती है। एक बार खाना खाने के बाद जब तक वह पूरी तरह पच न जाय एवं खुलकर भूख न लगे तब तक दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। इस लिए यह भी जरूरी है की भोजन उतनी ही मात्रा में किया जाए जो आसानी से पचाया जा सके। खाये जाने वाले भोजन में ठोस ओर तरलता का अनुपात 70:30 होना अधिक लाभकारी है। अधिक सूखे खाद्य खाते समय पानी अधिक पीकर या अन्य तरल खाद्य  से इस अनुपात को नियंत्रित करना चाहिए।  एक बार भोजन करने के बाद दूसरी बार भोजन करने के बीच कम-से-कम छ: घंटों का अंतर अवश्य रखना चाहिए ।
 रात्रि में आहार के पाचन के समय अधिक लगता है इसीलिए रात्रि के समय जल्दी भोजन कर लेना चाहिए। शीत ऋतु में रातें लम्बी होने के कारण सुबह जल्दी भोजन कर लेना चाहिए और गर्मियों में दिन लम्बे होने के कारण सायंकाल का भोजन जल्दी कर लेना उचित है। भोजन की बाद कम से कम तीन घंटे तक नहीं सोएँ। भोजन की बाद जल्दी सो जाने से शारीरिक गतिविधियां मंद पड जातीं हें, पाचन धीरे- धीरे होता है, तीन घंटे जागते रहने से पेट का खाना पच कर आगे बढ़ जाता है, इससे अपचन नही होता।    
संतुलित आहार जिसमें प्रोटीन  कार्बोहाइड्रेट ओर फाइबर सहित कम स्टार्च वाला भोजन जिसमें यथेष्ट तरलता हो , अपनी आयु, प्रकृति, के अनुसार उचित मात्रा में करना चाहिए। मनुष्य प्रजाति के लिए हमेशा शाकाहारी भोजन ही सात्म्य या उपयुक्त होता है। आमिष या नॉन वेज के लिए मनुष्य शरीर नहीं  बना है।  एसा खाना इसी कारण शरीर जल्दी बाहर फेंक देता है। खाने की मात्रा व्यक्ति की पाचकाग्नि और शारीरिक बल के अनुसार निर्धारित होती है।
 हल्के पदार्थ जैसे कि चावल, मूंग, दूध अधिक मात्रा में ग्रहण कर सकते हैं।
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और भी --

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समस्त चिकित्सकीय सलाह रोग निदान एवं चिकित्सा की जानकारी ज्ञान(शिक्षण) उद्देश्य से हे| प्राधिकृत चिकित्सक से संपर्क के बाद ही प्रयोग में लें|

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

AAP NE BAHUT ACCHA LIKHA HAI ACCHE JANKARI HAI

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हमारा लक्ष्य सामान्य जन से लेकर प्रत्येक विशिष्ट जन को समग्र स्वस्थ्य का लाभ पहुँचाना है| पंचकर्म सहित आयुर्वेद चिकित्सा, स्वास्थय हेतु लाभकारी लेख, इच्छित को स्वास्थ्य प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य विषयक जन जागरण करना है| आयुर्वेदिक चिकित्सा – यह आयुर्वेद विज्ञानं के रूप में विश्व की पुरातन चिकित्सा पद्ध्ति है, जो ‘समग्र शरीर’ (अर्थात शरीर, मन और आत्मा) को स्वस्थ्य करती है|

निशुल्क परामर्श

जीवन के चार चरणौ में (आश्रम) में वान-प्रस्थ,ओर सन्यास अंतिम चरण माना गया है, तीसरे चरण की आयु में पहुंचकर वर्तमान परिस्थिती में वान-प्रस्थ का अर्थ वन-गमन न मान कर अपने अभी तक के सम्पुर्ण अनुभवोंं का लाभ अन्य चिकित्सकौं,ओर समाज के अन्य वर्ग को प्रदान करना मान कर, अपने निवास एमआइजी 4/1 प्रगति नगर उज्जैन मप्र पर धर्मार्थ चिकित्सा सेवा प्रारंंभ कर दी गई है। कोई भी रोगी प्रतिदिन सोमवार से शनी वार तक प्रात: 9 से 12 एवंं दोपहर 2 से 6 बजे तक न्युनतम 10/- रु प्रतिदिन टोकन शुल्क (निर्धनों को निशुल्क आवश्यक निशुल्क ओषधि हेतु राशी) का सह्योग कर चिकित्सा परामर्श प्राप्त कर सकेगा। हमारे द्वारा लिखित ऑषधियांं सभी मान्यता प्राप्त मेडिकल स्टोर से क्रय की जा सकेंगी। पंचकर्म आदि आवश्यक प्रक्रिया जो अधिकतम 10% रोगियोंं को आवश्यक होगी वह न्युनतम शुल्क पर उपलब्ध की जा सकेगी। क्रपया चिकित्सा परामर्श के लिये फोन पर आग्रह न करेंं। ।

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