डायबीटीज या मधुमेह को कैसे पहिचाने?
डायबीटीज आज एक आम रोग के रूप में दिखाई देता है, अब सब जानते हें की यह वर्तमान परिस्थितियों की देन है। परंतु पिछले कुछ समय से जब शिशुओं में भी यह पाया गया तो स्थिति बड़ी ही भयावह नजर आने लगी है। पर अकसर इस रोग का प्रारम्भ में पता नहीं चल पाता। इसका कारण कुछ भय वश कुछ अनजाने में समय रहते अर्थात लगभग 40 के आसपास सतर्क नहीं होते ओर जांच से बचते हें, यदि समय रहते जांच हो जाए तो नियंत्रण कर अधिक हानी से बचा जा सकता है।
हमारे इस लेख का उद्धेश्य भी यही है की सब जान लें, डाईविटीज से बचने के बारे में हम कई बहुत बार जान चुके हें, पर इसके अन्य पहलुओं के बारे में सब तब तक नहीं जानते जब तक यह रोग उन्हे घेर नहीं लेता।
हमें इस भयावह रोग की जानकारी होना ही चाहिए ताकि समय रहते अपनी ओर अपनों की रक्षा कर सकें।
आयुर्वेद में इस रोग को प्रमेह की एक गंभीर भेद ही मधुमेह है।
डाईविटीज होने के पहिले होने वाले लक्षण -
स्वस्थ्य व्यक्ति में यदि धीरे धीरे मुहॅ में मीठापन (स्वीटनेस), हाथ पैरों में शून्यता ओर हलकी जलन सी प्रतीति, तालु ओर गले का सूखना, प्यास, आलस, अधिक पसीना आना, किसी प्रकार से मूत्र का गंध, वर्ण(रंग) ओर आसमान्य दिखें लगा है, तो आयुर्वेद मत से प्रमेह की शुरुवात हो चुकी है, इस समय ठीक हो सकने वाली इस स्थिति से नहीं मुक्ति पाई जाती तो जान लें, की हम मधुमेह की ओर ही बढ़ रहें हें।
प्रमेह या इस स्थिति की चिकित्सा आसानी से की जा सकती है, पर लक्षणो को नजरंदाज यह सोच कर करना की कुछ खाने पीने से या आने-जाने से हो गया होगा ठीक हो जाएगा, तो यह सोच गलत है, अपना खाना पीना, ओर गतिविधिया वही रखना मधुमेह बना देगा।
मधुमेह की प्रारम्भिक अवस्था
इसमें दिन भर थकान, प्रात: उठने पर लगना की नींद पूरी नहीं हुई, इसके साथ ही बहुमूत्रता (बार बार मूत्र जाना) अतिपिपासा (प्यास अधिक लगाना) और अधिक भूख लगाना (polyphagia) प्रारम्भ हो गया हे तो समझ लें डाईविटीज का शरीर में प्रवेश हो गया है।
ओर फिर जब डाईविटीज हो जाए
प्रारम्भिक अवस्था में भी नजर अंदाज किया जाता रहा, तो धीरे धीरे ऊपर के लक्षणो के साथ, नजर ओर भी कमजोर होने लगेगी, वजन कम होने लगेगा, इसे आयु के कारण मनाने की भूल करना एक बड़ी भूल होगी, विशेषकर तब जबकि मातापिता या अन्य परिवार के लोग इसके वंशानुगत जींस के प्रभाव से डाइबिटिक हों। हाथ पैरों में झुंझुनाहट बड्ना, त्वचा में सूखापन, बिना अधिक श्रम कार्य किए भूख ओर इतनी अधिक बढ़ गई है की, आप हर वक्त कुछ कुछ खाने से रोक ही नहीं पा रहे हें, ओर समझ रहे हें की शुगर कम हो रही है, तो आपको डाईविटीज हो चुकी है, मान कर चिकित्सक से जांच कराना चिकित्सा लेना ही आपके लिए अधिक अच्छा होगा।
इसके इन प्रारम्भ से डाईविटीज हो जाने तक के लक्षणो से समान्यत: किसी व्यक्ति (केवल कुछ अपवाद छोड़कर) अपने डाईविटिक हो जाने का पता ही नहीं चलता वह उन्हे साधारण सी बात समझने की भूल करता रहता है।
यदि अब भी नजर अंदाज किया जाता रहा तो आँखों की नजर ओर अधिक कमजोर (या अंधत्व तक ) घाव का जल्दी न भरना, ओर गंभीर ह्रदय रोग आदि जैसे रोगों की ओर चल पढ़ते हें।
अक्सर लोग स्वयं को डाईविटिक मानने से डरते रहते हें, जबकि वे समय पर निदान हो जाए तो व्यक्ति पूरी आयु सुख से जी सकता है।
इस लेख में हम हम इस बात के चक्कर में न पढते की डाईविटीज कितने प्रकार की होती है। हम यह समझे की किन जाँचो से इसका पता चलाया जा सकता है।
निदान- डाईविटीज के निदान के लिए निम्न टेस्ट किए जाते हें।
यूरिन या मूत्र की जांच। अगर ब्लड शुगर 170 से ज्यादा नहीं है, तो पेशाब में नहीं आएगी।
रक्त की जांच (ब्लड टेस्ट)।
Sugar F-शुगर खाली पेट( फस्टिंग), (नॉर्मल रेंज 100-120) -
Sugar PP-खाना खाने के दो घंटे बाद (नॉर्मल रेंज 130-160)।
जब यह जांच कारवाई जानी हो तो इस टेस्ट से तीन-चार दिन पहले से कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाना खाना चाहिए, ओर टेस्ट से पहले कॉलेस्ट्रॉल कम करनेवाली नाइसिन टैब्लेट, विटामिन-सी, ऐस्प्रिन, गर्भ-निरोधक दवाइयां आदि का बिल्कुल इस्तेमाल न करें।
कई बार यह भी पाया गया है की उक्त जाँचों में भी कई कारणो से शुगर होने के बाद भी नॉर्मल आती है, या कभी कभी नॉर्मल से अधिक भी आ सकती है। जबकि अन्य लक्षण मिलते हें तो इससे खुश या दुखी होने की जरूरत नहीं, इसका अर्थ यह नहीं की डाईविटीज है या नहीं है, इसका अर्थ है रक्त देते समय किन्ही कारणो से शुगर मिली है।
संदेह की स्थिति ओर निश्चित परिणाम के लिए एचबी ए 1 सी टेस्ट करवाना चाहिए इससे पिछले तीन माह की ऐवरेज रक्त शर्करा स्थिति का पता चल जाता है। यह परिणाम सटीक ओर किसी भी प्रकार के संदेह को समाप्त कर देता है। इसलिए इस ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट को अवश्य करना चाहिए।
यह टेस्ट केवल डायबीटीज के रोगी या सभावित रोगी ही नहीं, बल्कि सामान्य और प्री-डायबीटिक लोग भी करा कर सही समय पर डायबीटीज होने न होने की जानकारी ले सकते हें। इससे ऐसे बिना डायबीटीज वाले मरीजों के मामले में संदेह भी खत्म हो जाता है, जिनका इमरजेंसी में किए गए टेस्ट में ब्लड ग्लूकोज लेवल ज्यादा आया हो।
HB A 1 C या ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (नॉर्मल रेज़ 4% से 6 %) -
इस टेस्ट में आपको खाली पेट और खाने के दो घंटे बाद का ब्लड सैंपल देने का झंझट पालने की जरूरत नहीं है। कभी भी, किसी भी लैब में जाकर एचबीए1सी जांच के लिए रक्त सैंपल दे सकते हैं।
नॉर्मल (4% से 6 %) से अधिक 5.7 से 6.4 पर्सेंट होने का मतलब है आपकी खतरे की घंटी बज चुकी है। यह प्री-डायबीटीज की स्टेज होती है, जो आगे चलकर डायबीटीज में बदल सकती है। डायबीटीज के मरीजों में एचबीए1सी 6.5 से 7 पर्सेंट तक रहे तो डायबीटीज नियंत्रण में मानी जाती है।
इसके अतिरिक्त अन्य जांच में "खून में कॉलेस्ट्रॉल", व चर्बी की मात्रा के लिए "लिपिड प्रोफाइल" टेस्ट
ईसीजी, व टीएमटी टेस्ट, आंखों की जांच, वजन का रेकॉर्ड, पैरों की जांच, ब्लडप्रेशर की जांच, किडनी जांच
भी करा लें।
डाईविटीज होने न होने की दोनों स्थितियों में प्रति वर्ष जांच करना लाभदायक सोदा रहेगा।
डायबीटीज का शरीर के अन्य अंगों पर दुष्परिणाम भी हो सकता है।
- किडनी पर असर कुछ साल बाद ही शुरू हो जाता है। इसे रोकने के लिए ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर दोनों को नॉर्मल रखना चाहिए।
- ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखकर आंखों की मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।
- डायबीटीज के मरीजों में अकसर 65 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते दिल के दौरे की समस्या शुरू हो जाती है। इससे बचने के लिए ग्लूकोज स्तर नियंत्रण में रखने के साथ-साथ ब्लड प्रेशर, कॉलेस्ट्रॉल और तनाव पर नियंत्रण भी जरूरी है।
- अन्य दूसरी बीमारियां हार्ट अटैक, स्ट्रोक्स, लकवा, इन्फेक्शन और किडनी फेल्योर,आदि।
- स्किन व आंखों अन्य रोग।
- पैरों की समस्याएं।
- दांतों की बीमारियां।
- पुरुषों में नपुंसकता और महिलाओं में बांझपन।
- फ्रोजन शोल्डर या कंधे का जाम होना।
हो सकता है, आपकी नजरंदाजी से आपको डाईविटीज का पता ही न हो पर शरीर में उपरोक्त रोग के लक्षण भी आने लगे हों तो अभी भी चेत जाए।
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डाईविटीज पर ओर जानकारी
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