देखें- पैरलाइसिस पक्षाघात या लकवा -क्या है? या देखें- पैरालिसिस कितनी तरह का होता है। |
शरीर कई स्नायु(एक प्रकार की डोरियाँ) से रक्त ले जाने वाली नलिकाओं (आर्टिर्ज/वैन्स), नाड़ियों (नर्व) और मांसपेशीयों समूह को अस्थियों (कंकाल) पर बांधे रखता है। मांसपेशियाँ मस्तिष्क के द्वरा नाड़ियों की शयता से निर्देशित कर कार्य करतीं हें। जब भी ये मांसपेशियाँ अपने कार्य में पूर्णतः असमर्थ हों जाती हें तो इस स्थिति को पक्षाघात या लकवा मारना कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावित क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है, या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि यह असमर्थता आंशिक है, तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं।
वाइरस के कारण होने वाले पैरालासिस को छोड़कर सभी मस्तिष्क का अवरोध या रक्त का थक्का हट जाने पर रक्त के प्रवाह ठीक हो जाने से सामान्यत: पूर्ण ठीक हो जाते हें। वर्तमान में थक्के को हटाने वाली ओषधियाँ भी उपलब्ध हें, जैसे ही यह ज्ञात हो की पैरालासिस का अटेक हुआ है, शरीर या कोई विशेष भाग या अंग निष्क्रिय हो गया हें, तो तुरंत किसी बड़े हॉस्पिटल में कुशल एलोपैथिक चिकित्सकों की देखरेख में भर्ती कर देना चाहिए, क्योकि अधिकांश मामलों में रोगी मुख से ओषधि आदि लेने में असमर्थ होता है, उसे रक्त का थक्का मिटाने रक्त चाप को नियंत्रण करने, और उचित आहार आदि को रक्त वाहिनियों द्वारा सीधे रक्त में ही पहुचाना आवश्यक होता है।
क्या पैरालाइसिस देवी विपत्ति है जो किसी “दैवी मानता: से ठीक होती है?
पूर्व समय में जब तक लकवे कारण ज्ञात नहीं था, तब लकवा या पैरालासिस हो जाने पर निष्क्रिय शरीर का कारण दैवीय प्रकोप समझा जाता था, और विभिन्न दैवी कृपा की प्रतीक्षा करते हुए समय व्यतीत किया जाता था। मन को तसल्ली देने हेतु किसी विशेष स्थान के जल का स्नान, भभूत, आदि का प्रयोग और मंत्र आदि प्रक्रिया जारी रहती थी। स्वयं यह सब करने वाले मांत्रिकों, आदि को भी ज्ञात नहीं होता था की कितना समय लगेगा। परंतु चूंकि रक्त का प्रवाह जो एकाएक रुक जाने से यह समस्या हुई थी वह प्रवाह एक दम से किसी चमत्कार की तरह से प्रारम्भ न होकर धीरे धीरे ब्लोकेज के हटने पर ही होता है, इस कारण लाभ भी धीरे धीरे ही होता है, इसे ही देवी शक्ति का आशीर्वाद माना जाता रहा करता था। कदाचित कभी कभी जबकि अवरोध किसी इस प्रकार के थक्के (क्लोट) का हो जा रक्त प्रवाह के कारण मस्तिष्क के अवरोध को दूर भी कर दे, तब भी पूर्ण लाभ अचानक नहीं होकर धीरे-धीरे मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति होते रहने से उसके पूर्ण कार्यक्षम होने के बाद ही होता है। इस कारण इसके स्वत: ठीक हो जाने से इसे दैवीय प्रकोप से जौड़ दिया गया। निराशा न हो इसके लिए अथवा व्यावसायिक लाभ के लिए तंत्र मंत्र, भभूत आदि के प्रयोग किए जाते रहे।
जैसा की पूर्व में कहा गया हे की अटेक आने पर तत्काल हॉस्पिटल में ले जाना जरूरी है, इस पर कुछ लोग सोच सकते हें, की जब इस रोग का रोगी स्वत ठीक हो सकता है। तो चिकित्सा के लिए हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत क्या है। तो यह भी जान लें की विश्व में प्रतिवर्ष करीब 7 लाख से अधिक लोग पैरालाइसिस या पक्षाघात से मरते है जो टीबी से डेढ़ गुना व मलेरीया से मरने वाले लोगो से 22 गुना अधिक है। शरीर के हर भाग को दुबारा बनाया जा सकता है लेकिन नष्ट हुए मुस्तिष्क सेल्स कभी दुबारा नही बनते। मस्तिष्क में 100 बिलीयन सेल्स, 12 मिलीयन ब्रेन सेल्स होते है। पक्षाघात होने के तीन घंटे भीतर रोगी को अस्तपाल पहुंचा देने से उसके पूर्णत ठीक होने का प्रतिशत काफी बढ़ जाता है। यदि यह समझ नहीं आ रहा की पैरालाइसिस हुआ है की नहीं तो भी शरीर में होने वाले अचानक परिवर्तनों, जैसे आवाज में लडखड़ाहट, सुस्ती अथवा बेहोशी, मिर्गी का दौरा या आँखों के सामने अंधेरी आना, आंखों की रोशनी में कमी या धुंधलापन, तीव्र सिरदर्द, उल्टी होना, हाथ-पैर या चेहरे पर कमजोरी या सुन्नता तथा भाषा को समझने मे परेशानी जैसे लक्षणो को भी नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये परितर्वन पैरालाइसिस अटेक की आने की पूर्व चेतावनी भी हो सकते है।
पर यह भी समझ लेना चाहिए की आक्रमण के बाद जितना शीघ्र थक्का हटाया जाएगा रोगी को उतना ही कम नुकसान होगा, अर्थात कम समय में और पूर्ण सक्रियता मिल सकेगी। साथ ही परीक्षण से थक्के का कारण ज्ञात हो जाने से भविष्य दोबारा पुनः रोग के आक्रमण की संभावना भी नहीं होगी।
रक्त के थक्का बनाने की शक्ति कम करने की दवाएँ अब प्राप्य हैं और उचित चिकित्सा होने पर रोगी की स्थिति में शीघ्र सुधार हो जाता है, यहां तक कि वह पूर्णत: नीरोग हो सकता है, लेकिन कुछ ही घंटों के विलंब से रुधिर की पूर्ति के अभाव में मस्तिष्क का क्षेत्र पूर्णतया नष्ट हो सकता है, जिसे फिर से क्रियाशील नहीं किया जा सकता और इसके फलस्वरूप स्थायी पक्षाघात हो जाता है। पक्षाधात का आक्रमण अक्सर बार बार भी हुआ करता है।
रौग का आक्रमण जितना गंभीर होगा अर्थात मस्तिष्क को जितना अधिक मात्र और समय तक रक्त की आपूर्ति नहीं होती उतने समय तक उससे संबन्धित हाथ-पैर, वाणी और अन्य गतिविधि का संचालन नही होने से वे अंग धीरे धीरे अपना काम भूलने लगते हें, इसलिए यदि अधिक समय तक प्रभाव रहे तो पुनः अंगों को गति देकर जैसे किसी छोटे बच्चे को चलना सीखना होता हे उसी प्रकार उस रोगी को भी सिखाना भी जरूरी हो जाता है। इसी कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा में विशेष ओषधिया तैलों से मालिश द्वारा स्नेहन, स्वेदन करते हुए पंचकर्म करके जोड़ों और मांस-पेशियों को सक्रिय करते हुए, अथवा फिजियो थेरेपी, योगा, आदि द्वारा जिसमें विभिन्न एक्सरर्साइज होती है, की सहायता से उसे व्यक्ति को पूर्व की तरह से सक्षम बनाया जा सकता है। इसमें यह बात अच्छी तरह से समझ लेना आवश्यक है, की पेरलाइसिस के बाद जब रोगी ठीक हो रहा होता है, तब वह रोगी एक छोटे बच्चे की तरह से व्यवहार करता है, उसमें उत्साह का अभाव होता है, वह एक आलसी की तरह जो स्वयं कुछ भी नहीं करना चाहता, जिसे सिर्फ आराम से पड़े रहना ही अच्छा लगता है, उसके एक दो माह तक के बेहोशी जैसे समय में रहने के कारण मांस-पेशी और जोड़ जैसे जकड़ जाते हें को हिलाने में दर्द का अनुभव भी उसी प्रकार से होता हे जैसे किसी एसे व्यक्ति को जो अपना अधिकांश समय आराम से गुजारते हों और एक दिन अधिक चलना या श्रम करना पड जाए तो उनके हाथ, पेर, जोड़ आदि में दर्द होने से निष्क्रिय ही रहना चाहते हें।
यदि पैरलाइसिस के रोगियों को जो हमारे अपने होते हें उन्हे पुन: पूर्ववत सक्रिय करना चाहते हें तो उनके साथ एक्सरसाइज़, या फिजिकल एक्टिविटी जबरन भी करना पड़े तो करना ही चाहिए। यदि शीघ्र ही अंगों को सबल नहीं बनाया जाता तो सारा जीवन लगड़ाहट, आदि आशिक अपंगता में गुजारना पड सकता है।
आजकल पक्षाघात के मामले में भी चिकित्सा विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है और यही कारण है ह्दय की एन्जियोग्राफी व एन्जियोप्लास्टी की तरह ही मस्तिष्क की भी एन्जियोग्राफी व एन्जियोप्लास्टी कर मस्तिष्क की धमनियों में जमे खून के धक्के को दूर किया जा सकता है।
देखें- पैरलाइसिस पक्षाघात या लकवा -क्या है? देखें- पैरालिसिस कितनी तरह का होता है।
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