Rescue from incurable disease

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लाइलाज बीमारी से मुक्ति उपाय है - आयुर्वेद और पंचकर्म चिकित्सा |

पैरालाइसिस कितनी तरह का होता है?

पैरालाइसिस कितनी तरह का होता है?

शरीर की मांसपेशियों को बनाने वाले सेल्स के समूह या ऊतकों (टिशूज) को कार्य करने के लिए रक्त की आवश्यकता होती है, और यदि किसी रक्तवाहिका में खून रिसने (bleeding) या खून का थक्का (thrombosis) बनने के कारण खून की पूर्ति बंद हो जाय, अथवा धमनी (आर्टरी) के अंदर रुकावट (ओब्सट्रकषण) हो जाए तो खून की आपूर्त्ति प्रभावित हो जाने से पक्षाघात हो जाता है।
हेमीप्लेजिया (hemiplegia) या अर्धपक्षाधात-  प्रमस्तिष्कीय (cerebral) थ्रॉम्बोसिस अर्थात् मस्तिष्क की किसी धमनी में रुधिर का थक्का बनना अर्धपक्षाधात (hemiplegia) का एक साधारण कारण है। इसमें मस्तिष्क के जिस भाग में थ्रांबोसिस होता है उसके विपरीत शरीर भाग का (उस नर्व से नियंत्रण होने से उस भाग में) पक्षाधात हो जाता है।  
  धमनियों के किसी रोग से ग्रस्त होने पर भी रक्त का थक्का बनता है। इन रोगों में सबसे सामान्य एक अर्बुद या एथिरोमा (atheroma) है, जो बुढ़ापे या आयु की अधिकता से शरीर क्षीण होने के कारण (अपकर्षी परिवर्तन) होता है।  इसी प्रकार से सिफिलिस(एक यों रोग) या मधुमेह (डाईविटीज) के प्रारंभिक संक्रमण काल के आठ दस वर्षों के बाद, 40-50 वर्ष के आयु वाले व्यक्तियों की रोग ग्रस्त धमनियों में भी  उपर्युक्त अर्बुद हो जाता है।
 कमजोर महिलाओं में भी प्रसूति के तुरंत बाद पक्षाघात का आक्रमण होते प्राय: देखा गया है।
        इसके अतिरिक्त दोनों पैरों का पक्षाघात, जिसे पेराप्लेजिया (paraplegia) कहते हैं, जो किसी एक पैर में क्रमश: बढ़ती हुई कमजोरी से प्रारम्भ होकर और डायएन न देने से दोनों पैरों को पेरलाइज(निष्क्रिय) बना देता हे। इसका रोगी का अपने मल मूत्र पर नियंत्रण नहीं रख पाता। यह सिफ़लिस के कारण या रीड की हड्डी के बीच मेरुरज्जु में छोटी गांठ(अर्बुद) के रूप में उत्पन्न होकर धीरे धीरे कई वर्षों तक बढ़ता रहता है प्रारंभिक अवस्था में पहचान और उपचार होने पर ठीक हो सकता हैं।
हमारे देश में खेसारी सदृश कुछ अनाज होते हें इनको दाल के रूप में खाने पर लेथेरिज़्म (lathyrism) हो जाता है, जिसके कारण जांघों में भारीपन (आयुर्वेद मत से जानुस्तंभ, सक्थि स्तंभ) हो जाता है।
वाइरस या विषाणुओं के आक्रमण से भी लैंड्रोज पेरालिसिस जो बड़ी तेजी से बढ़ता है, इसमें ज्वर पैर से चढ़ता है और सारे शरीर तक जा पहुंचता है।  यह श्वसन या रेस्पिरेटरी सिस्टम को फेल करके सांस न ले पाने पर मौत हो जाया करती हें।
पोलियो माइलाइटिस (poliomyelitis) जो की पाँच वर्ष से कम वाले बच्चों पर ही आक्रमण करनेवाले एक विषाणु से मुख द्वारा फैलता है। प्रारम्भ में दो तीन दिनों तक बुखार (ज्वर) रहता है और इसके बाद शरीर के किसी या कई भागों में पक्षाघात प्रारंभ होकर बच्चे को अपंग बना देता है। पर यह एक अच्छी खबर है की हमारे देश में इस पर नियंत्रण कर लिया गया है। पर इस रोग के शिकार अनेकों अपंग सारे जीवन कष्ट उठाते देखे जा सकते हें।  
बेल्स पाल्सी या अर्दित या फेसियल पेरालिसिस चेहरे का पक्षाघातइसमें आधा चेहरा किसी दिन सबेरे या नहाने के बाद पक्षाधात पीड़ित पाया जाता है। यह प्राय: आधे चेहरे पर व्याप्त मुख तंत्रिकाओं के चारों ओर महसूस होता है। केवल चेहरे पर हो जाने वाला यह लकवा या पक्षाघात चेहरे की दोनों ओर की नसों में से एक की क्षति के कारण एक प्रकार की अस्थायी कमजोरी या मांसपेशियों का पक्षाघात है। अधिकतर रोगी 1 से 3 महीने के भीतर ठीक पूरी तरह ठीक हो जाते हें। कभी कभी रोग से उबरने के बाद चेहरे पर कुछ स्थायी कमजोरी छोड़ सकता है। 

इस रोग में चेहरे के कार्य जिनमें पलक झपकाना,  मुस्कुराहट, लार की ग्रँन्थी से लार के उत्पादन को नियंत्रण करना, आँसू और जीभ से भोजन के स्वाद की पहचान करना प्रभावित हो सकता है।

इसका कारण आम तौर पर हर्पिज जैसे विषाणु से उत्पन्न घावों का कारण,  एपिस्टिनबर्र-वायरस, इन्फ्लूएंजा या फ्लू वायरस और लाईम रोग के संक्रामक प्रभाव के कारणों से होता है।  

परंतु जरूरी नहीं की हर संक्रमण बेल्स पाल्सी का कारण बन जाए। है। वायरस प्रतिरक्षा प्रणाली से प्रतिक्रिया के तंत्रिका में सूजन पेदा कर दे उनमें, संभावित होता है।  
 बेल पाल्सी किसी भी आयु के स्त्री-पुरुष को हो सकती है, पर वयस्क मधुमेह और गर्भवती महिलायें इससे अधिक  प्रभावित हो सकती हैं। अविलंब चिकित्सा से रोगमुक्ति संभव है।

आगे देखें – क्या पैरालाइसिस देवी विपत्ति है जो किसी “दैवी मानता: से ठीक होती है?आगे देखें-  पैरालाइसिस कैसे ठीक होगा?
देखें -- पैरलाइसिस पक्षाघात या लकवा -क्या है?   एक दिन अचानक किसी स्वस्थ्य को चेतना हींन कर देने वाला यह रोग-
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